मंगलवार, जून 12, 2018

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी सड़क से बदल रही किस्मत

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी
सड़क से बदल रही किस्मत
केजीपी एक्सप्रेस वे देश में अपनी तरह का पहला ऐसा नेशनल हाईवे होगा, जो हरित एक्सप्रेस कहाएगा। साथ ही इसमें सौर ऊर्जा संचालित एलईडी लाइटें होंगी। देश का पहला ड्रिप सिचाई वाला हाईवे होगा। इसके निर्माण से आसपास के क्षेत्र की तस्वीर बदल रही है। सड़क किनारे जमीन महंगी हो रही हैं, नए निर्माण होने जा रहे हैं, गांवों का विस्तारीकरण होगा। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ने की उम्मीद है। व्यापार-कारोबार में बढ़ोत्तरी होगी। इसके सफर पर यह जानने की कोशिश की कि इसने लोगों के जीवन स्तर को कैसे प्रभावित किया है।

हाइवे से ठीक नीचे 15 सौ लोगों की आबादी का एक गांव है, मावी कलां। यहां पर खपरैल से बनी छोटी-छोटी झाेपड़ियां, इनमें जमा किया जा रहा है प्याज। 12वीं पास अनीश चंद महिला मजदूरों को लेकर प्याज साफ कराकर जमा करा रहा है। कहता है जब भाव आसमान छुएंगे तो ही वो इन्हें बेचेगा। अनीश तो अपने पिता के काम में हाथ बंटा रहा है। उसका सपना आर्मी में भर्ती होने का है, जिसकी वो तैयारी कर रहा है। एक्सप्रेस वे के निर्माण पर जरा कटु लहजे में कहता है कि अभी तो ये पूरा बना नहीं है तो कितनी जिंदगियां निगल गया है। आज भी एक हादसा हुआ है। कल पता नहीं और कितनी जाने ले लेगा। बकौल अनीश इस एक्सप्रेस वे के निर्माण से उनके गांव की तस्वीर में कोई फर्क नहीं आया है।

बुजुर्ग सत्यवीर ने बताया कि इस सड़क ने उसकी रोज़ी रोटी भी ठप कर रखी है। वो इस उम्र में मेहनत नहीं कर सकता, इसलिए खेरड़ा गांव के पुल के नीचे आकर खरबूजों की रेहड़ी लगाता है, जिससे करीब 100 रुपए ही कमा पाता है। हालांकि उसको उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कमाई बढ़ेगी।
खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे
कृष्ण कुमार कहते हैं कि नई सड़क बनने के बाद खेतीबाड़ी अब बची नहीं। जमीन सड़क में समा गई। यूपी में किसानों को करोड़ों का मुआवजा मिला, जबकि हरियाणा में लाखों भी बमुश्किल दिए गए। उनकी कमाई आधी रह गई है। सड़कें बनने से आसपास हरियाली बची नहीं। वहीं गांव 25 फुट नीचे हो गए हैं। खेतों से काटकर मिट्टी यहां भरी गई। इसके किनारे जाली की बाड़ लगा दी है। सड़क में आना जाना दो हिस्सों में बंट गया है। इससे यहां ठहराव खत्म हो गया है। नतीजतन कोई दुकानदारी की संभावना भी नहीं बची। उनकी एक और शिकायत है कि इन चौड़ी तेज रफ्तार सड़कों से दुर्घटनाएं भी बढ़ गई हैं, जिसकी वजह से लोग अब सड़क पार करने से भी डरते हैं। उनका कहना है कि हो सकता है कि एक्सप्रेस वे ने कुछ लोगों को बहुत फायदा पहुंचाया हो, लेकिन वे इसकी वजह से हाशिए पर जरूर चले गए हैं.
कहीं और की लगती हैं ये सड़क
सोनीपत से निकलकर जैसे ही कुंडली के राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचे, तो अचानक से यूं लगा कि जैसे-कि अमेरिका या इंग्लैंड के किसी इलाके में आ गए हों। ये सड़कें भारत को बहुत दूर ले जाने के लिए बनी हैं, लेकिन लोगों को उन पर चलने के काबिल भी बनाना होगा।

-----इतिहास के पन्नों से-------
जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी की चर्चा जरूर होती है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था, जिसने भारत के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ा था। सड़क किनारे पेड़, सराय, मील के पत्थर और डाक वितरण प्रणाली का विकास आदि ऐसी अवधारणाएं थीं जो न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के कई हिस्सों के लिए नई थीं।

पहला ड्रिप सिंचाई एक्सप्रेस वे : यह भारत का पहला ड्रिप सिंचाई वाला एक्सप्रेस वे है। जिसमें दोनों लेन के मध्य जो पौधे लगाए गए हैं उनके लिए ड्रिप सिंचाई सुविधा रखी गई है।

टावरनुमा टोल प्लाजा : केजीपी पर जो टोल प्लाजा बन रहा है वह दूर से देखने में टावरनुमा है। इसका तरह का टोल प्लाजा पहले किसी एक्सप्रेस वे पर नहीं बना है। यह पूरी तरह लोहे का है और दोनों लेन के बीच में प्लाजा है जिस पर तीन फ्लोर बनाए गए हैं। जिस पर करीब 25 करोड़ की लागत आई है, जबकि सामान्य प्लाजा 2 करोड़ में बनता है।
यमुना एक्सप्रेस वे की तर्ज पर टोल लगेगा। जिसके टेंडर होंगे फिर रेट तय होंगे।

सोलर वे : यह हाइवे पूरी तरह सोलर से कनेक्ट हैं। सभी लाइटें सोलर से ही चलेंगी। जिसके लिए एंट्री पर ही 250 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। जो देखने में खुद भी एक हाइवे जैसा ही प्रतीत हो रहा है। इसके बाद हाइवे पर 6 पैकेज में करीब 200 जगह पर सोलर प्वाइंट बनाए गए हैं।

500 दिन में निर्माण : सद्भाव के प्रोजेक्ट मैनेजर वी के देसाई ने बताया कि 2016 के बाद जब इसका दोबारा निर्माण शुरू हुआ तो उस समय सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई का डेडलाइन दी थी। मई 2016 में शुर हुआ लेकिन 8 महीने किसानों के विवाद के चलते काम बंद रहा। अन्य कार्यों विवादों आदि के कारण भी करीब 200 दिन कार्य नहीं हुआ। केवल 500 दिन में इसका काम पूरा किया गया है।

2 हजार टन का है ओवरब्रिज : खेखड़ा पर जो रेलवे ओवरब्रिज बन रहा है वो करीब 2 हजार टन लोहे का बना है। जिसकी एक साइड की लंबाई 70 मीटर और चौड़ाई 22 मीटर है। इसके नीचे कोई पिलर नहीं रहेगा। इस तरह का यह पहला ओवरब्रिज है।

हाइवे पर होंगे भारत दर्शन :

यह देश का पहला ऐसा एक्सप्रेस वे होगा जिस पर चलते हुए छुट्टी मनाने जैसी फिलिंग आएगी और भारत देश का मौका मिलेगा। इसके दोनों किनारों पर जगह-जगह देश के करीब 20 प्रसिद्ध स्मारकों के छोटे डेमो रखे गए हैं। जिसमें कहीं गेटवे ऑफ इंडिया तो कहीं इंडिया गेट और अशोक चक्र से लेकर कुतुब मीनार आदि के डेमो सड़क किनारे बनाए गए हैं जो काफी भव्य दिखते हैं।


केजीपी के बारे में वो सब जो शायद कुछ ही लोग जानते हैं -

आंकड़ों में एक्सप्रेस वे : मेजर ब्रिज 4 हैं, जिसमें यमुना नदी पर, हिंडन नदी पर, आगरा कैनाल और खेखड़ा ओवरब्रिज।

छोटे ब्रिज : 45

रेलवे ब्रिज : 6

फ्लाईओवर : 5

इंटरचेंज : 9

अंडरपास : 55

छोटे अंडरपास : 152

कलवर्टर्स : 113

वे साइड एमीनिटीज : 2

कुल लंबाई : 135 किलोमीटर
2006 में शुरू हुई थी प्लानिंग :
हरियाणा के कुंडली, पलवल और दिल्ली के गाजियाबाद को जोड़ने व दिल्ली को ट्रैफिक की समस्या से निजात दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बाहर रिंग रोड बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे की प्लानिंग 2006 में शुरू हुई थी। यह एक्सप्रेस-वे इसलिए बनाया है कि हरियाणा से यूपी आने-जाने वाले भारी वाहन दिल्ली में न घुसें। अभी इनके दिल्ली से गुजरने पर शहर में ट्रैफिक का बोझ बढ़ता है।

क्या है पूरा प्रोजेक्ट?
2006 में बनना शुरू हुए 271 किमी लंबे इस एक्सप्रेस वे के दो हिस्से हैं। पहला, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से गाजियाबाद होते हुए पलवल जाएगा। दूसरा, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से मानेसर हाेते हुए पलवल को जोड़ेगा।

क्या होगा फायदा?
एक्सप्रेस-वे पूरे होने से हरियाणा का एक प्रमुख हिस्सा पलवल प्रदेश के अन्य हिस्सों से कनेक्ट हो पाएगा। वहीं दिल्ली से होकर दूसरे राज्यों तक जाने वाले 80% वाहन सीधे इससे होकर जा सकेंगे। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल या जम्मू-कश्मीर तक जाने वालों को दिल्ली के ट्रैफिक में नहीं फंसना पड़ेगा। वहीं वायु-ध्वनि और धूल से होने वाले प्रदूषण में 25% तक की कमी आएगी।

कब पूरा होना था?
दोनों ओर के एक्सप्रेस-वे 2009 में बन जाने थे। बाद में कॉमनवेल्थ गेम के पहले 2010 में इन्हें बनाने की डेड लाइन तय की गई। इसके बाद भी तारीखें बढ़ती गईं। अब 2018 में ये शुरू हो रहे हैं, यानी नौ साल लेट हो गया। लेकिन दूसरा पहलु यह है कि इस पर भाजपा सरकार आने के बाद 201 में दोबारा कार्य शुरू हुआ था और 18 जुलाई 2018 में निर्माण पूरा करने की डेडलाइन खुद सुप्रीम कोर्ट ने रखी थी जबकि उसमें अभी समय है।

अभी शुरू किया तो क्या है खतरा : एक्सपर्ट के अनुसार हाइवे का काम पूरा होने में अभी समय है। बिना सही कनेक्टिविटी के शुरू करने में काफी खतरे हैं। इससे रोज सड़क पर दुर्घटनाएं होंगी। फिनिशिंग का कार्य भी काफी शेष है और बारिश आदि आने पर काफी परेशानियां इसमें आ सकती हैं। दुर्घटनाएं होंगी और लोगों की जान अगर इसकी वजह से गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

300 साल से मेहमान को चिमटे से उठाकर देते हैं बीड़ी

22 साल से कैथल के मालखेड़ी नहीं पीते बीड़ी-सिगरेट, बुजुर्ग हुक्का भी नहीं गुड़गुड़ाते, रिश्तेदार को भी धूम्रपान करने से रोकते हैं ग्रामीण
देसां म्हं देस हरियाणा, जैसा नाम वैसी ही अजब-गजब संस्कृति और रहन-सहन है यहां के गांवों की। गांवों की अपनी खासियत, रोचक किस्से और परंपरा है। आज हम ऐसे ही दो गांवों की कहानी आपको बता रहे हैं, कैथल का मालखेड़ी और जींद का खेड़ीबुल्ला। इन दोनों गांवों में लोग धूम्रपान नहीं करते।
जट सिख बाहुल्य वाला खेड़ीबुल्ला गांव धूम्रपान न करने के कारण दूसरे गांवों से अलग है। प्रदेश में जहां हुक्का-पानी देना सबसे बड़ी मेहमानवाजी समझी जाती है। अगर इस गांव के लोगों को मेहमान को बीड़ी देनी पड़ जाए तो उसे चिमटे से उठाकर देते हैं। इस रिवाज के चलते अधिकतर मेहमान गांव में आने के बाद बीड़ी या हुक्का पीने से गुरेज ही करते हैं। 300 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी कायम है। कुछ इसी तरह कैथल से 20 किलोमीटर दूर खनौरी रोड पर स्थित मालखेड़ी गांव में पिछले 22 साल से बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते। बुजुर्गों ने भी हुक्का गुड़गुड़ाना बंद किया हुआ है।

डॉक्टर ने मालखेड़ी वालों को बताए थे धूम्रपान के नुकसान
मालखेड़ी में प्राइवेट पॉलीटेक्निकल कॉलेज में प्रोफेसर दर्शन सिंह ने बताया कि ये उनदिनों की बात जब वे छोटे थे, तब बीड़ी-सिगरेट का प्रचलन शुरू ही हुआ था। बुजुर्गों ने इसका सेवन किया तो उन्हें तकलीफ हुई। डॉक्टरों ने बीड़ी-सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। फिर गांव ने फैसला लिया कि अब गांव में धूम्रपान नहीं होगा। बीड़ी-सिगरेट तो बंद हुई, इसके साथ ही हुक्का भी बंद कर दिया गया। 22 साल से ये फैसला कायम है। गांव में कोई रिश्तेदार धूम्रपान करता है तो उससे पहले क्षमा मांगकर बीड़ी-सिगरेट न पीने की अपील की जाती है। मालखेड़ी गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी है। हर बिरादरी के लोगों के चौपाल बने हुए हैं। जाट समाज की दो चौपाल व कश्यप, वाल्मीकि, हरिजन, ब्राह्मण समाज की एक-एक चौपाल हैं। किसी भी बात को गांव में ही चर्चा करके हल किया जाता है। 12वीं पास सरपंच पूनम ने बताया कि हमें गर्व है कि ऐसे गांव में रह रहे हैं, जहां कोई धूम्रपान नहीं करता है।

खेड़ीबुल्ला :गुरुद्वारा बना तो हुक्का भी हुआ बंद :
सदियों पहले खेड़ीबुल्ला गांव बसाने वाले गुरदत सिंह (कैथल की रियासत के राजा उदयसिंह के वजीर) ने धूम्रपान न करने जो पहल की थी, अब वह परंपरा बन गई है। गांव के युवा भी इसे बखूबी निभा रहे हैं। 1100 की आबादी वाले खेड़ीबुल्ला गांव में किसी भी मौके पर कोई भी सगा संबंधी या रिश्तेदार किसी के घर आता है तो उसकी खातिरदारी में ग्रामीण कभी भी हुक्का-बीड़ी या सिगरेट नहीं देते। गांव की एक दुकान पर बीड़ी-सिगरेट तो उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण या दुकानदार उन्हें हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कभी बारात की खातिरदारी हुक्के से नहीं की। कई ग्रामीणों की उम्र 90 से ऊपर है। ग्रामीणों का मानना है कि शायद हुक्का-बीड़ी पीते तो इतने साल कभी नहीं जीते। बीड़ी-सिगरेट या हुक्का न पीने का किसी पर कोई दबाव नहीं है। पंचायत या ग्रामीणों ने इसके लिए कोई भी नियम-कायदा नहीं बनाया है, सब अपनी मर्जी से इस परंपरा को निभा रहे हैं। सरपंच अंग्रेज सिंह ने बताया कि पहले बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए अलग से हुक्का होता था। 15 साल पहले बने गुरुद्वारे के बाद गांव में रखे इस हुक्के को भी हटा दिया गया। अब केवल एक दुकान पर बीड़ी ही बिकती है, उसे भी ग्रामीण हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव में सबसे ज्यादा संख्या में किसान है तो एक बड़ी संख्या में सेना में भी भर्ती हैं। अधिकतर गांवों के युवा सेना को ही अपना भविष्य के रूप में चुनते हैं।

दूरदर्शन का उद्भव और विकास


आधुनिक जनसंचार माध्यमों में टेलीविजन का महत्वपूर्ण स्थान है टेलीविजन के विकास के फलस्वरुप सूचना विस्फोट हुआ है टेलीविजन क्या दर्जनों चैनल हैं जिनमें अंतरराष्ट्रीय चैनल भी शामिल हैं इन चैनलों द्वारा विविध कार्यक्रम का सीधा प्रसारण होता है आम आदमी के सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक टेलीविजन पर लगातार कार्यक्रम चलते रहते हैं टेलीविजन दिन के फिल्म प्रसारण तथा क्रिकेट आदि खेलों का सीधा प्रसारण आम आदमी को सोने और जागने के समय को नियंत्रित किया है आज टेलीविजन विकास की सामग्री ना होकर दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता बन गया है
रेडियो की भांति टेलीविजन का आविष्कार की पश्चिमी देशों हुआ 1920 के आसपास पश्चिमी देशों में मूक फिल्मों का प्रचलन काफी बढ़ गया था तदंतर उसमें विशेषता बढ़ाने हेतु चित्र को ध्वनि देने की खोज आरंभ हुई भारत में टेलीविजन की शुरुआत 15 अगस्त 1959 से हुई यूनेस्को की सहायता से आरंभ उस पहले प्रसार पर टिप्पणी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवालाल नेहरु ने कहा था टेलीविजन मनोरंजन शिक्षा व सूचना का माध्यम और विकास का प्रेरक है जो देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हितकर साबित होगा नेहरु जी की कल्पना 15 अगस्त 1965 को साकार हुई टेलीविजन के 1 घंटे के नियमित प्रसारण से लोगों को नई दिशा मिली भारत में टेलीविजन के माध्यम से संचार की दुनिया में अपना वर्चस्व कायम किया भारत में सेटेलाइट इंस्ट्रक्शन टेलीविजन एक्सपेरिमेंट यानी साइट से टेलीविजन को नया आयाम प्राप्त हुआ यह सन 1975 में उड़ीसा मध्य प्रदेश बिहार आंध्र प्रदेश कर्नाटक और राजस्थान 6 प्रदेशों में स्थापित किए गए कार्यक्रम प्रसारित करने का प्रयोग किया  गया इनमें राशि वालों को उपग्रह के जरिए शैक्षणिक कार्यक्रम प्रसारित करने का विश्व में पहला प्रयोग किया गया इन रिसीवर केंद्रों के माध्यम से टेलीविज़न इन प्रदेशों के सुदूरवर्ती गांव तक अपना कार्यक्रम पहुंचाने लगा आज दूरदर्शन ने हिंदी भाषा को अनमोल बनाया है तथा इसके क्षेत्र को विस्तृत किया है हिंदी भाषा को अहिंदी भाषी दूरदराज के गांव तक पहुंचाने में दूरदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है दूरदर्शन के प्रचार प्रसार के लिए केंद्रीय सरकार ने सन 1959 में स्कूल कॉलेज व स्थानीय निकायों को टेलीविजन सेट प्रदान किए सन 1982 में एशियाई खेलों के प्रकार टेलीविजन का महत्व डा एशियाड खेलों के कारण ही केंद्र सरकार ने सौ किलो वाट ट्रांसमीटर आवंटित कर देश के विभिन्न महानगर में स्थापित किए 1985 के बाद दूरदर्शन के विस्तार को नई गति मिली तथा दूरदर्शन घर घर पहुंचा अंतिम दशक के प्रारंभ में विदेशी समाचार एजेंसी सीआईए ने अमेरिकी इराक युद्ध का रोमांचक प्रसारण दुनिया के लोगों के साथ सामान्य भारतीयों के सामने एहसास कराया कि सरकार के दूरदर्शन नेटवर्क करीब 200 विदेशी कार्यक्रम के साथ जुड़े हुए हैं दूरदर्शन को शिक्षा सूचना और मनोरंजन के माध्यम के रूप में विकसित करके सामाजिक परिवर्तन में इसकी भूमिका स्पष्ट दिखती है देश की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को देखते पशुपालन डेरी बागवानी आदि को बढ़ावा देने और इसके विकास को प्रेरित किया है लोगों में अंधविश्वास की धारणा को खत्म कर जन सामान्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जागरुक किया है कला संस्कृति और साहित्य के प्रति व्यक्ति के प्रति जनता में जागरूकता पैदा की है
दूरदर्शन के कार्यक्रम की सेवाएं तीन भागों में बटी हुई है राष्ट्रीय क्षेत्रीय और स्थानीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में राष्ट्र की संस्कृति को प्रसारित किया जाता है केंद्रित किया जाता है साथ ही समाचार समसामयिक गतिविधियां सांस्कृतिक पत्रिका विज्ञान पत्रिका धारावाहिक संगीत नृत्य नाटक फीचर फिल्म में आदि प्रसारित की जाती है क्षेत्रीय कार्यक्रम राज्यों की राजधानी से प्रसारित होते चीन की भाषा उस राज्य की भाषा होती है और उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति को दूरदर्शन के माध्यम से प्रदर्शित और प्रसारित किया जाता है इसके अतिरिक्त स्थानीय कार्यक्रम कुछ विशेष समस्याओं के और उनका समाधान निकालने का प्रयास करते हैं ऐसा अनुमान है कि 600 लाख घरों में इस समय टेलीविजन सेट है जिसके द्वारा 30 करोड़ जनता दूरदर्शन के कार्यक्रम बैठ कर देखती है गांव में सामुदायिक टेलीविजन के प्रावधान से अनुमान 45 करोड़ जनता का समय लगाया जाता है इतनी बड़ी आबादी को एक सूत्र में बांधने का अनुपम संगठन दूरदर्शन अपने उद्देश्य सत्यम शिवम सुंदरम को चित्रित करने का प्रयास करता है।
नोट : ये तमाम पोस्ट पत्रकारिता के छात्रों की सुविधा के लिए दी गई हैं

भारत में सेटेलाइट और केबल टीवी का आगाज


भारत में टेलीविजन का आगमन विश्व में इसके आविष्कार से बहुत समय बाद हुआ लेकिन 1983 और 1991 दो ऐसे साल हैं जिन्होंने देश के विस्तार की एक नई दिशा प्रदान की 1982 में काले-सफेद प्रसारण का स्थान रंगीन प्रसारण ने लिया और साथ ही सेटेलाइट लिंक उपलब्ध हुआ जिसे दूरदर्शन का राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारंभ हुआ इसके साथ ही प्रतिदिन की दर से ट्रांसमीटर लगने लगे और 1990 तक इनकी संख्या 19 से बढ़कर 519 हो गई परंतु 1991 में इराक और अमेरिका के बीच खाड़ी युद्ध को जब सीएनएन नामक एक अमेरिकी चैनल सीधा प्रसारण किया जिसे डिश एंटीना की मदद से देखा जा सके तो इसे भारत में सेट लाइट केबल टेलीविजन का एक नया दौर शुरू हुआ इसके बाद दो परिणाम सामने आए जहां एक और इससे दूरदर्शन का एकाधिकार खत्म हो गया वहीं आकाश मार्ग को सेटेलाइट प्रसारण ने सबके लिए खोलकर राष्ट्र की सीमाओं को भंग कर दिया इससे सेंसर बोर्ड बेकार हो गया और सेटेलाइट ब केबल टीवीयुग का एक नया सूत्रपात हुआ। जहां तक चैनल खाड़ी युद्ध को विश्व के लिए सीधा प्रसारण कब स्थापित किया। इसके तुरंत बाद हांगकांग कवि को बाजार में उतारा स्टार प्लस, जी टीवी, बीबीसी, एम टीवी, प्राइम स्पोर्टर्स,एशिया सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन कार्यक्रमों को प्रसारित करना आरंभ किया। इससे ना केवल दर्शकों की तादाद बढ़ी बल्कि राष्ट्र की सीमाएं लुप्त होने से विश्व व्यापारीकरण होने लगा अब समाचारों विचारों और मनोरंजन का मुक्त वितरण होने लगा आज भारत में लगभग दर्जनों चैनल हर कहीं सहजता से उपलब्ध है दूरदर्शन के 2 चैनल जी टीवी का पूरा पैकेज सोनी टीवी सहारा टीवी आदि हिंदी चैनल हैं Star Plus ABP News Zee चैनल आदि अंग्रेजी में वह हिंदी के मिले-जुले कार्यक्रम आते हैं तमिल के चैनलों में सन टीवी राज TV विजय TV और प्रमुख है पंजाबी में लश्कारा, तारा, पीटीसी और दूरदर्शन आदि हैं इसी प्रकार मलयालम के 4 चैनल एशियानेट सूर्या कैराली दूरदर्शन का मलयालम चैनल है यही नहीं BBC सीएनएन डिस्कवरी नेशनल जियोग्राफी CNBC स्टार मूवीस एक्शन कार्टून नेटवर्क आस्था संस्कार आदि चैनल विभिन्न प्रकार के शतावर की अभिरुचि के अनुसार उनका मनोरंजन करते हैं आज यह सैटेलाइट टेलीविजन अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाने में एक अहम पुल का काम कर रहे हैं यही नहीं यह वस्तु की खरीद व बिक्री का भी महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं और क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्र की सीमाओं को बंद कर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं यद्यपि सेटेलाइट के महत्व को देखते हुए स्वागत किया जा रहा है वही राष्ट्रहित पर उनके प्रभाव को लेकर निरंतर चिंता भी बनी हुई है सर्वेक्षणों से यह बात सामने आई है कि दूरदर्शन के दर्शकों ने बड़ी तेजी से सेट लाइट का केबल टेलीविजन को अपनाया है परंतु पश्चिमी विचारों का रहन सहन की पद्धति पर आधारित कार्यक्रमों की 24 घंटे उपलब्ध भारत एशियाई राष्ट्रों की सोच को बुरी तरह प्रभावित कर रही है कि आकाश के माध्यम से हो रहे इस आक्रमण का हमारी युवा पीढ़ी और बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है यही नहीं विकासशील राष्ट्रों पर सैटेलाइट टेलीविजन के कार्यक्रमों का आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव किस प्रकार होगा इस प्रश्न प्रश्न सामने खड़े हुए हैं आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग एक लाख केबल ऑपरेटर हैं जिन्होंने इस व्यवसाय में 8 से 10 करोड़ पर समाया हुआ है केवल अपने ग्राहकों को मनपसंद कार्यक्रम दिखाते रहते हैं कोई ऑपरेटर तो कुछ कार्यक्रम के प्रोड्यूसर बन गए और अपने अपने लोकल एरिया की घटनाएं समाचार के रूप में खाते हैं उसी कवरेेेज करते हैं कई बार तो देखने में आया कि कुछ समारोह का सीधा प्रसारण भी करने लगे हैं आज क्षितिज सेट लाइट और केबल इन 3 तरह का प्रसारण दर्शकों के लिए उपलब्ध हो गया है आंकड़ों के अनुसार भारत में 7 करोड़ टेलीविजन सेट उपलब्ध हैं जिनमें से केवल ऑपरेटर से कोई चार करोड़ घर जुड़े हुए बताए जाते हैं और दिनों दिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।

विविध भारती

 विविध भारती
भारतीय सरकार ने रेडियो की लोकप्रियता को चार चांद लगाने के लिए फिर भी संगीत के विशेष प्रसारण हेतु मुंबई से अक्टूबर 1957 में विविध भारती नामक कार्यक्रम का प्रसारण आरंभ किया इस कार्यक्रम का प्रसारण 200 किलो वाट  के वेब लेंथ पर शॉर्टवेव बैंड शुरू किया इस कार्यक्रम को ऑल इंडिया रेडियो की वैकल्पिक भारतीय सेवा के रूप में प्रारंभ किया गया जिसमें प्रसारण का आदर्श ज्यादा समय संगीत सिनेमा को दिया गया 1966 में इसे विज्ञापन सेवा के नाम से जाना जाता है इस कार्यक्रम के अंतर्गत जयमाला हवामहल पिटारा आदि कार्यक्रम प्रसारित किए जाते रहे इसमें 200 से ज्यादा सेवा संगठन का प्रकार था बीज भारती का कुल प्रसारण समय सप्ताह के 6 दिनों में 12 घंटे 45 मिनट और रविवार को 13 घंटे 15 मिनट रखा गया इसके नेटवर्क में 28 व्यवसाय केंद्र और पूंजी का एकमात्र व्यवसाय केंद्र रखा गया है कुछ अन्य केंद्र विविध भारती के कार्यक्रम को प्रसारित करते हैं
एफएम
रेडियो स्टेशन से जो तरंगे रेडियो सेट पर आती हैं यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक होती हैं FM में ट्रांसमीटर के द्वारा तरंग विस्तार में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता और तरंग दैर्ध्य मैं परिवर्तन कर प्रसारण किया जाता है इन तरंगों की यह विशेषता है कि यह तरंगें पृथ्वी के समानांतर चलती हैं इसकी दूरी 55 से 65 किलोमीटर की परिधि तक सीमित रहती है FM ट्रांसमीटर क्या विशेषता होती है कि यह मोबाइल की रिसेप्शन प्रति प्रदान करते हैं जिससे सीमित सुनने का आनंद बढ़ जाता है इसकी फ्रीक्वेंसी 38 से 108 मेगाहर्ट्ज होती है इसमें ध्वनि अत्यंत स्पष्ट होती है FM तकनीक के भारत में आकाशवाणी को नई गति और नई दिशा प्रदान इसका प्रारंभ सन 1977 में हुआ वस्तुतः प्रसारण की तकनीक है जिसमें बहुत मधुर और स्पष्ट आवाज सुनाई देती है पिछले कुछ वर्षों में FM की जो पहचान बनी है उसका श्रेय टाइम्स ऑफ इंडिया के टाइम से फिल्म को दिया जा सकता है जिसने FM को हर आदमी से परिचित कराती है भले ही आम आदमी FM की कार्यक्रम ना सुने लेकिन वह इस से परिचित जरूर है 15 अगस्त 1995 से FM के  प्रसारणों का निजीकरण का महत्व बढ़ा देश में एफएम ट्रांसमीटर लगभग 200 हो गए हैं ऑल इंडिया रेडियो भी काफी प्रतिष्ठित है लेकिन कई प्राइवेट चैनल भी अपनी जगह बना चुके हैं
एएम
जिस प्रकार रेडियो के लिए ऑडियो सिग्नल आते हैं उसी प्रकार दूरदर्शन के लिए ऑडियो तथा वीडियो दोनों की फ्रीक्वेंसी को एक साथ मिक्स कर दिया जाता है इस मिक्सिंग की प्रक्रिया को कैरियर फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन के नाम से जाना जाता है फ्रीक्वेंसी के दो प्रकार माने गए हैं कैरियर फ्रीक्वेंसी सिग्नल फ्रीक्वेंसी इन दोनों को मिलाने के लिए दो तरीके अपनाए गए हैं अर्थात एंप्लीट्यूड मॉड्यूलेशन दूसरा FM अर्थात फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन जब सिग्नल को कैरियर के साथ इस प्रकार मिक्स किया जाता है कि कैरियर की फ्रीक्वेंसी वही रहे परंतु MP3 के अनुसार बदलना शुरू हो जाए इसको कहते हैं इसमें शामिल हो जाता आवाज सुनाई नहीं देती इस फ्रीक्वेंसी 550 किलो होती है सामान्यता आकाशवाणी पर प्रसारण किया जाता किए बिना छुए लंबी दूरी तक आ सकती हैं ध्वनि तरंगों को बहुत ऊंचा भेज देते हैं
ईटीवी
15 सितंबर 1965 को भारत में दूरदर्शन की शुरुआत हुई इस अवसर पर प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा की टेलीविजन मनोरंजन शिक्षा और सूचना का माध्यम का विकास का प्रेरक है जो कि देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हितकर साबित होगा वस्तु  etv रूप में दूरदर्शन शिक्षा के छेत्र में एक नवीन क्रांति का सूत्र पाठ किया शिक्षा क्षेत्र में tv अध्यापक के हाथ मजबूत कर रहा था भारत जैसे अभाव ग्रस्त देश के लिए दूरदर्शन एक वरदान सिद्धू हुआ देश में शिक्षा की कमी को पूर्ण करने का प्रयास किया विज्ञान विषयक प्रयोगशालाओं का सूक्ष्म फिल्मांकन साहित्यय के किस अंशु को फिल्म सहित फिल्मआना विज्ञान इतिहास भूगोल जैसे विषयों का प्रस्तुतीकरण आदि भली-भांति TV केे द्वारा प्रस्तुत किए जा सके अतःः ETV ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार मेंं महत्वपूर्ण भूमििका निर्वाह कर रहाा है ETV के द्वारा घर बैठे सभी वर्गों के लिए शैक्षणिके कार्यक्रम समय-समय पर प्रसारित किए जाते हैं


प्रसार भारती


आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भारत के जनमानस तक सूचना शिक्षा व मनोरंजन के उद्देश्य से अपने आदर्श बहुजन हिताय बहुजन सुखाय तथा सत्यम सुंदरम को प्रदर्शित करते आ रहे हैं रेडियो एवं टेलीविजन के प्रसारण में गुणवत्ता आए सरकारी नियंत्रण तथा अफसरशाही के बंधनों से मुक्ति मिल सके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही साथ जनमानस के उन्नयन में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कैसे सार्थक हो आदि प्रश्नों पर कई वर्षों से बहस होती आई है 1948 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक संवैधानिक सभा में भाषण देते हुए कहा था वास्तव में हमारा उद्देश्य और आस्वायत्त निगम बनाने का है यद्यपि नीतियों एवं अन्य दिशानिर्देशों के जरिए सरकार नियंत्रण रखती है लेकिन फिर भी सरकारी विभागों को इस के कार्यकलापों में कोई दखलंदाजी नहीं होती है 1964 में इंदिरा गांधी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पद ग्रहण किया तो उन्होंने एक समिति का गठन किया इस समिति के अध्यक्ष ए के चंदा थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1966 में पेश की समिति के अध्यक्ष ने रिपोर्ट में लिखा था कि प्रसारण जैसे संवेदनशील माध्यम को सरकारी नियमों और दिशा निर्देशों से नहीं चलाया जा सकता लेकिन उनकी इस बात पर गौर नहीं किया गया इसके बाद 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो आकाशवाणी एवं दूरदर्शन को स्वायत्तता देने संबंधी दिशा निर्देश सुलझाने दिशा-निर्देश समझाने हेतु वर्गीज समिति का गठन किया गया इस समिति ने सुझाव दिया कि आकाशवाणी और दूरदर्शन को पूर्ण  स्वायत्तता और विश्वास का पूर्ण दायित्व इन माध्यमों के पास रहे समिति की रिपोर्ट  के आधार पर तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा नया विधेयक प्रस्तुत किया परंतु इसके कार्यक्रम में आने से पूर्व ही 1979 मे लोकसभा भंग हो गई इसके 10 वर्ष पश्चात 29 दिसंबर 1990 को राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने प्रसार भारती विधेयक संसद मेंंंंं प्रस्तुत किया जिसे पास तो कर दिया गया पर लागू नहीं किया जा सका इस विधायक के अनुसार दूरदर्शन और आकाशवाणी दो अलग अलग विभाग होंगे जिसके प्रबंधन केेेे लि एक निगम होगा  निगम के प्रबंध के लिए  एक  9 सदस्यों का निदेशक मंडल होगा  जिसकी नियुक्ति  राष्ट्रपति एक समिति की अनुशंसा पर करेंगे  नियुक्त समिति में राज्यसभा के सभापति भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष  तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 10 सदस्य रखे जाने की बात कही गई। यह कहा गया कि यह परिषद सुनिश्चित करेगी कि प्रसार  भारती निर्बाध सूचना प्राप्तत करने के नागरिक के अधिकार का उल्लंघन नहीं करें और राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक विविधता में एकता बनाए रखेंें प्रसार भारतीय के बारे में शिकायत सुनकर उसे दूर करने की चेष्टा भी परिषद द्वारा  होगी विधेयक  में प्रावधान था कि प्रसाार भारती संसद के माध्यम से भारत की जनता के प्रति उत्तरदाई होगा  निगम देश की एकता अखंडता और संविधान में निहित लोकतांत्रिक  व सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखकर कार्य करेगा केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के हित में समय-समय पर प्रसारण रोकने के निर्देश देने का अधिकार होगा जिसकी प्रति संसद में रखनी होगी यद्यपि यह विधेयक 1990 में लागू ना हो सका और लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद इस पर गौर नहीं किया गया तब 1997 में सरकार ने पुणे इस विधेयक को संसद में रखा और प्रसार  भारती के नाम से भारतीय प्रसारण निगम की रचना की यह निगम अस्तित्वव में आया 23 नवंबर 1997  को आर एस एस गिल इसके पहले सीईओ नियुक्त किए गए।

टेलीविजन कार्यक्रम के निर्माण में विभिन्न सदस्यों का योगदान और जिम्मेदारियां


टेलीविजन में सभी तरह के कार्यक्रमों का निर्माण एक टीम वर्क से होता है इसमें बहुत सारे लोग मिलजुल कर कार्य करते हैं और अपनी प्रतिभा से अधिक का अधिक उपयोग हकरते हुए अच्छे से अच्छा कार्यक्रम बनाने का प्रयत्न करते हैं निश्चय ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन योग्यता कठिन परिश्रम उत्तरदायित्व की भावना परस्पर सहयोग से यह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो जाता है
सभी टेलीविजन कार्यक्रम का निर्माण निर्माता पटकथा लेखक विज्ञापन एजेंसी या किसी संस्था नदी की ओर से दशकों तक संदेश पहुंचाने की प्रक्रिया होती है।
वर्ग 1 समाचार वार्ता एवं परिचर्चा साक्षात्कार कमेंट्री आंखों देखा हाल शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम आदि
वर्ग 2 फीचर फिल्म गीत संगीत लोकगीत परंपरा की सुगम संगीत शास्त्रीय संगीत आदि।
इसके अलावा विभिन्न धारावाहिक कार्यक्रम की बहुत बड़ी संख्या में दिखाए जाते हैं।
 इसके साथ ही एक चौथा वर्ग भी है जिससे अन्य वर्ग की संज्ञा दी जा सकती इस वर्ग में प्रतियोगिता आत्मक कार्यक्रम रखे जाते जा सकते हैं जैसे जानकारी मनोरंजन से संबंधित कार्यक्रम किसी टेलीविजन के निर्माण में मुख्य रूप से निम्नलिखित व्यक्तियों का एक दल होता है जो आपस में मिल जुलकर सारा काम करता है।
न्यूज़ डायरेक्टर

एग्जीक्यूटिव प्रोडूसर
असाइनमेंट एडिटर
 न्यूज़ प्रोडूसर
लेखक/रिपोर्टर्स
प्रोडूसर
वीडियो ग्राफर्स
वीडियो एडिटर
ग्राफिक आर्टिस्ट
स्क्रिप्ट एडिटर
डायरेक्टर टेक्निकल डायरेक्टर, वीडियो टेप रिकॉर्डर ऑपरेटर, वीडियो इंजीनियर, टैलिसीने ऑपरेटर
लाइट डायरेक्टर, साउंड रिकॉर्डर
असिस्टेंट डायरेक्टर
निर्माण सहायक

फ्लोर निदेशक, कैमरा ऑपरेटर, टेलीप्रिंटर ऑपरेटर्स

इनमें से सबसे उत्तरदायित्व पूर्ण पद है समाचार निदेशक का जो पूरी टीम को प्रत्यक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से उसी के साथ मिलकर काम करती है वह अपने नीचे कार्यकारी निर्माता यानी एग्जिक्यूटिव प्रोडूसर को सारे निर्देश दे देता है और कार्यकारी निर्माता उन निर्देशों के अनुरुप ही अन्य सदस्यों में काम बांट देता है
 समाचार निर्देशक सबसे पहले कार्यकारी निर्माता या समाचार निर्माता  के साथ बजट तय करता है इसके बाद स्टूडियो में न्यू सेट की रूपरेखा तैयार की जाती है जुड़े सभी मसलों पर होने वाली बैठक की अध्यक्षता समाचार निर्देशक ही करता है प्रसारित होने वाले समाचारों का नियामक निर्णायक  और पूर्ण उत्तरदाई वही होता है
कार्यकारी निर्माता समाचार निर्देशक से समाचार कक्ष समाचार कर्मियों और समाचार संकलन स्रोतों का प्रबंध अपने हाथ में लेता है अलग-अलग न्यूज़ का आज की जिम्मेदारी उसी की होती है वही उसकी रूपरेखा बनाता है।
असाइनमेंट एडिटर समाचार लेखकों, घटनाओं तथा संबंधित समाचारों पर नजर रखता है वह समाचार कथाओं का वर्णन करता है उसमें नया और परिवर्तन जो भी करना होता है करता रहता है साथ ही वे न्यूज़ बीट और आगामी फाइल का अभी रखरखाव करता है वह वीडियो ग्राफ्स और वीडियो एडिटर्स को उनका काम सौंपता है
समाचार निर्माता कार्यकारी निर्माता को रिपोर्ट करता है असाइनमेंट एडिटर के साथ मिलकर काम करता है वह भी न्यूज़ का की योजना की बैठक में हिस्सा लेता है वह देखता है कि किस समाचार में कितने ग्राफिक्स जाने हैं वह समय के अनुसार योजना बनाकर आगामी पैकेज के लिए रीडिंग लिखता है ढांचा या रन डाउन मीट भी वही बनाता है।
टैलेंट न्यूज़ कास्ट की महत्वपूर्ण कड़ी है समाचार निर्देशक किसका चयन करता है संपादन करता का चुनाव की समाचार निर्देशक द्वारा किया जाता है और रिपोर्टर संवाददाता और समाचार लेखन काम वास्तव में बहुत महत्व रखता है इन लोगों का चयन कार्यकारी निर्माता द्वारा किया जाता है समाचार अंकित करके टेलीप्रिंटर को दे दिया जाता है वीडियो संपादक के साथ वीडियो चैट के संपादन की देखरेख करते हुए रिपोर्टर मास्टर वीडियो टेप समाचार निर्माता को सौंप देता है इसी तरह पिक्चर प्रोडूसर भी समाचार निर्देशक से काम हासिल करता  है ग्राफिक आर्टिस्ट विभिन्न स्रोत से मांग के अनुसार ग्राफिक डिजाइन को शिकार करता है न्यूज़ कास्ट स्क्रिप्ट कॉपी को टाइप करके टेलीग्राम पर को दे देता है वीडियो ग्राफर का चयन असाइनमेंट एडिटर या लेखक द्वारा किया जाता है वीडियो संपादक अपने दल का महत्वपूर्ण सदस्य होता है संपादन के लिए जरूरी उपकरणों का मूल्यांकन करता है स्टूडियो निदेशक वह महत्वपूर्ण व्यक्ति है जो सभी के तहत समाचार निकष पेंशन योजना की बुलाई बैठक में हिस्सा लेता है वह संपादक द्वारा दी गई रिपोर्ट की कॉपी की अध्ययन करता है उसके अनुसार अपने काम की तैयारी करता है सहायक निर्देशक रन डाउन शीट या फॉर्मेट की समीक्षा करता है तकनीकी निदेशक भी इसकी समीक्षा करता है ऑडियो डायरेक्टर का काम भी महत्व का है वह भी इस का चयन करता है उसके बाद वह तय करता कि कहां कितनी ध्वनि योजना रहेगी मंच निदेशक भी निर्माण कार्य का जिम्मेदार व्यक्ति है वह मांग के अनुसार सेट का निर्माण करता है स्टूडियो कैमरा ऑपरेटर का असली काम तो निर्माण के सोपान से शुरू हो जाता लेकिन कुछ काम होने पर भी करने होते हैं यह भी रन डाउन सीट का अध्ययन करते हैं।
एक टेली प्रॉम्प्टर ऑपरेटर का काम स्टूडियो कैमरा ऑपरेटर की तरह पहले से तैयारी करके रखना होता है पटकथा संपादक से अपने लिए टैली प्रांम्प्टर स्क्रिप्ट लेता है जो हर समय उसके साथ रहतीहै।  टेलीसीने ऑपरेटर का काम भी कम नहीं है प्रकाश निदेशक समाचार सेट के लिए प्रकाश की योजना तैयार करता है इसका अनुमोदन कर करा दिया जाता है वीडियो टेप रिकॉर्डर ऑपरेटर का काम निर्माण कार्य आरंभ होने से पहले ही वीडियो रिकॉर्डर इकाइयों की जांच करना है इस तरह हमने देखा कि कैसे सभी अपने अपने उत्तरदायित्वों का सही तरीके से निर्वाह करते हैं उनके कर्तव्य योग्यताओं क्षमताओं को परस्पर संबंधों को पहचाना जा सकता है साथी हम यह कह सकते हैं कि एक समाचार कार्यक्रम के निर्माण में कितने लोग जुड़े होते हैं निर्माण के प्रत्येक इतनी जटिल है जो निर्माण से पूर्व शिशु का निर्माण के पोस्ट तक जारी रहती है इस तरह कह सकते हैं कि टेलीविजन कार्यक्रम से जुड़े निर्माण के विभिन्न सोपानों में कैसे एक्टिव और कौन-कौन से सदस्य कैसे परस्पर निर्भरता से अपना कार्य पूर्ण करते हैं

आकाशवाणी की शुरुआत और एफएम का वर्चस्व

आकाशवाणी का विकास
माना जाता है कि दुनिया में पहला नियमित रेडियो प्रसारण अमेरिका के पिट्सबर्ग में सन् 1920 में किया गया था। इंग्लैंड में मारकोनी की कंपनी ने 23 फरवरी 1920 में चेम्सफोर्ड में पहली बार सफल प्रसारण किया। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने नवम्बर 1922 में काम करना शुरू कर दिया। भारत में भी रेडियो प्रसारण इसी काल में आरंभ हो गया। अगस्त 1921 में द टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक एवं टेलीग्राफ विभाग के साथ मिलकर अपने बॉम्बे स्थित कार्यालय से पहला रेडियो प्रसारण किया। गवर्नर ने पहले प्रसारण का आनंद 175 किलोमीटर दूर पूना स्थित अपने कार्यालय में लिया। जल्दी ही इसके बाद कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में रेडियो क्लब गठित किये गये। आरंभ में ब्रिटिश सरकार रेडियो को लेकर काफी उलझन में रही। उसे आशंका थी कि कहीं रेडियो का उपयोग आजादी आंदोलन के नेता जनता में अपनी बात पहुंचाने के लिए ना करने लगे वहीं सरकार स्वयं भी रेडियो के माध्यम से भारतीयों को अपने प्रभाव में रखना चाहती थी। आरंभ में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने रेडियो प्रसारण किया लेकिन इस कंपनी के घाटे में चले जाने के बाद रेडियो प्रसारण का काम ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
आजादी के समय भारत में आकाशवाणी के केवल छह स्टेशन थे। इनके अलावा रजवाड़ों में भी कुल पांच रेडियो स्टेशन काम कर रहे थे। रेडियो सेटों की संख्या सरकारी रिकोर्ड के अनुसार 248000 थी। देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री सरदार पटेल बने। आजादी के बाद सरकार ने आकाशवाणी के विकास की वृह्द योजना बनायी जिसके तहत देश के सभी हिस्सों में रेडियो स्टेशन एवं स्टूडियो स्थापित करना तय किया गया। इस पायलेट प्रोजेक्ट के तहत जालंधर, जम्मू, पटना, कटक, गुवाहाटी, नागपुर, विजयवाड़ा, श्रीनगर, इलाहाबाद, अहमदाबाद, धारवार और कोझीकोड में स्टेशन खोले गये। अनेक स्टेशनों की प्रसारण क्षमता बढ़ायी गयी। और इस प्रकार मात्र तीन सालों में ही आकाशवाणी केन्द्रों की संख्या बढ़कर 21 हो गयी और अब 21 फीसदी जनसंख्या द्वारा 12 प्रतिशत भूभाग पर रेडियो सुना जाने लगा।
बाद में देश की पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत रेडियो के विकास के लिए अलग से धन राशि मुहैया कराई गयी। भारतीय नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती भौगोलिक रूप से देश का विशाल होना तो थी ही इसके अलावा पर्याप्त धन का अभाव भी रेडियो के प्रसार में आड़े आ रहा था। पहली पंचवर्षीय योजना के तहत कुल 3.52 करोड़ की राशि आकाशवाणी के विकास के लिए आबंटित की गयी। नये स्टेशनों का खुलना जारी रहा। इस योजना के दौरान पूना, राजकोट, जयपुर और इंदौर में नये स्टेशन खोले गये। योजना के अंत में आकाशवाणी देश के लगभग 50 फीसदी आबादी और 30 प्रतिशत भूभाग पर सुने जाने लगे।
डॉक्टर केसकर के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद आकाशवाणी पर फिल्म संगीत के प्रसारण पर रोक लगाकर शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित किया गया। इसी दौरान रेडियो सीलोन पर प्रसारित बिनाका हिट परेड पर लोगों ने भारतीय फिल्म संगीत सुनना आरंभ कर दिया। अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम बिनाका गीतमाला भारतीयों में खूब लोकप्रिय हो गया। रेडियो सीलोन से मुकाबला करने के लिए 1957 में आकाशवाणी ने अपनी विविध भारती सेवा आरंभ की। आकाशवाणी ने साठ के दशक में हरित क्रांति समेत सभी विकास योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल में सरकार ने आकाशवाणी को अपने विचारों को जनता में प्रचारित करने का एक माध्यम बना दिया। आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी सत्ता में आई तो उसने वर्गीज समिति का गठन करके सरकार माध्यमों को स्वायत्ता देने की पहल की। जनता सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल पायी।
अस्सी के दशक में रेडियो पर लाइसेंस फीस समाप्त कर दी गयी। देश के दूरदराज इलाकों में भी आकाशवाणी केन्द्रों का प्रसार हुआ लेकिन टेलीविजन की लोकप्रियता का असर रेडियो पर पड़ने लगा और शहरों में रेडियो श्रोताओं में कुछ कमी आयी। इसका एक कारण आकाशवाणी में नयेपन का अभाव भी था। नब्बे के दशक में उदारीकरण और वैश्वीकरण का तेजी से प्रसार हुआ। सरकार ने निजी निर्माताओं को एफ.एम. चैनलों पर टाइम स्लॉट बेचना आरंभ कर दिया। ये प्रयोग काफी सफल भी रहा। इसी दौरान आकाशवाणी ने स्काई रेडियो और रेडियो पेजिंग सेवा आरंभ की।
सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. रेडियो आरंभ हो गया। ये आकाशवाणी के लिए एक नये युग की शुरूआत थी जब उसका मुकाबला प्राइवेट चैनलों से होने वाला था। प्रतिस्पर्धा में आकाशवाणी ने भी एफ.एम. गोल्ड और रेनबो चैनल आरंभ किये।
एफ.एम. रेडियो क्रांति
नब्बे के दशक की शुरूआत में उदारीकरण की आर्थिक नीतियों के बाद से ही देश में निजी रेडियो चैनलों की जमीन तैयार होने लगी थी। सन् 1993 में आकाशवाणी ने निजी निर्माताओं से कार्यक्रम बनवाना आरंभ किया और ये प्रयोग लोकप्रिय भी रहा। दिल्ली और मुंबई में टाइम्स और मिड डे समूह ने आकाशवाणी के लिए कार्यक्रम बनाये। सन् 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में हवाई तरंगों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया। मार्च 2000 में सरकार ने देश के 40 बड़े शहरो में 108 रेडियो स्टेशनों के लाइसेंसे देने के लिए खुली बोली लगायी। निजी कंपनियां रेडियो बाजार का सही अनुमान नहीं लगा पायी। अत्यधिक बोली लगा देने के कारण बाद में कंपनियों को अहसास हुआ कि रेडियो चैनल चलाना घाटे का सौदा होगा क्योंकि सरकार को भी मोटी रकम लाइसेंस फीस के रूप में दी जानी थी। सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. चैनल रेडियो सिटी बैंगलौर से आरंभ हुआ। इसके बाद देशभर में एफ.एम. रेडियो चैनलों के खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। अनेक कंपनियों ने आरंभिक दौर में घाटा भी उठाया। इस दौर में केवल मैट्रो शहरों में ही चैनल खोले गये थे। नये एफ.एम. चैनलों ने स्थानीय सूचनाओं और स्वाद के मुताबिक कार्यक्रम परोसना आरंभ किया। सड़क पर जाम, बाजार में सेल, स्कूलों में दाखिला और अन्य स्थानीय समस्याओं को उठाने के साथ-साथ लोकप्रिय संगीत के बलबूते जल्दी ही एफ.एम. चैनल आम लोगों की पहली पसंद बन गये।
सन् 2003 में सरकार ने डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को लाइसेंस फीस में कमी लाने के साथ-साथ नियमों में थोड़ी ढ़ील देनी चाहिए। दूसरे दौर में सन् 2006 में सरकार ने देश के 91 शहरों में रेडियो स्टेशनों की बोली से करीब 100 करोड़ की कमाई की। समाचार पत्र समूह-दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, मलयालम मनोरमा, मातृभूमि, हिन्दुस्तान टाइम्स, डेली थांती इत्यादि- के अलावा जी समूह, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों ने इस बोली में हिस्सा लिया। सन् 2006 में सरकार ने एक समिति का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य रेडियो चैनलों में समाचार एवं समसामयिक कार्यक्रमों को अनुमति देने के बारे में सरकार को सलाह देना था। समिति ने सिफारिश दी कि सरकार को चैबीस घंटे टेलीविजन समाचार चैनलों की तर्ज पर रेडियो समाचार चैनल आरंभ करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए।

जानिए रियलिटी शो कितने रियल और कब शुरू हुए


आजकल टेलीविज़न पर रियलिटी शो की भरमार है | सन 1948 में एलन फाँट नाम के ब्यक्ति के दिमाग में रियलिटी शो बनाने का विचार आया और कैंडिड कैमरा नाम से रियलिटी शो बना | इसके बाद कई शो बने | भारत में रियलिटी शो का इतिहास करीब दो दशक पुराना है | 3 दिसंबर 1993 को पहला रियलिटी शो अन्ताक्षरी शुरू हुवा जिसके 600 एपिसोड प्रशारित हुए | 1995 में संगीत पर आधारित कार्यक्रम सारेगामा आया और इस कार्यक्रम से फिल्म उद्योग को कुछ अच्छे गायक भी मिले| 2000 में एक नया रियलिटी शो आया कौन बनेगा करोडपति जिसमे शदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने होस्ट की भूमिका निभायी| यह शो एक अमेरिकी शो से प्रेरित था , इसके बाद तो सभी चैनलों में रियलिटी शो प्रशारित करने की होड़ सी शुरू हो गयी और दस का दम,सवाल दस करोड़ का,इंडियन आयडल आदि तमाम तरह के रियलिटी शो आने लगे |
  एक समय था जब टेलीविजन पर मनोरंजन के नाम समाचार,चित्रहार,और सप्ताह में एक फिल्म दिखाई जाती थी और रात को 10 बजे टीबी के कार्यक्रम बंद हो जाते थे | लेकिन अब चौबीसों घंटे कार्यक्रम चलते रहते हैं और चैनलों की भरमार हो गयी है |1984 से 1991 तक टेलीविजन पर लगभग ठीक- ठाक प्रोग्राम दिखाए गए| 1991 के बाद टेलीविजन ड्राइंगरूम से बेडरूम में घुस गया और निजी जीवन में ताकझांक करने लगा| सच का सामना,राखी का स्वयंबर,इमोशनल अत्याचार,बिग बॉस जैसे रियलिटी शो प्रसारित  होने लगे और दर्शक उपभोक्ता में तब्दील हो गए | कर्यक्रमो में विविधता का दौर शुरू हो गया और सब कुछ बाजार के द्वारा तय होने लगा,जिसके फलस्वरूप टेलीविजन के कार्यक्रमों से मूल्य और नैतिकता गायब हो गयी |
   अब सवाल पैदा होता है कि रियालिटी शो में क्या  सब कुछ रियल होता है? और ये रियलिटी शो किस सन्दर्भ में रियल हैं? प्रेमचंद,शरदचंद,राहुल व अन्य प्रगतिशील लेखकों ने अपनी रचनावो के माध्यम से समाज का जो वास्तविक चित्रण किया है ये शो क्या इसी तरह की वास्तविकता दिखाते हैं? ये रियलिटी शो कोई भी वास्तविकता नहीं दिखाते बल्कि पैसे के लिए लालच ये सन्देश परोसते है| जब असल ज़िंदगी में रियल कुछ नहीं रह गया तो इन रियलिटी शो में क्या होगा |
     एक अध्ययन के अनुसार रियलिटी शो में दिखाई जाने वाली कहानी और बिषयबस्तु का युवावों के मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है | वे ग्लैमर से भरी चकाचौंध दुनिया को हकीकत समझ बैठते हैं जबकि हकीकत में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,फलस्वरूप वे कुंथाग्रष्त हो जाते हैं | वयस्कों के बाद चैनल की टीआरपी बढ़ने के लिए अब बच्चों के लिए भी रियलिटी शो बनने लगे हैं , जो बच्चों से उनका बचपना छीन रहे हैं व उनको कुंठाग्रस्त और स्वार्थी बना रहे हैं |गरीबी के चलते गरीब जनता के बच्चे बालशोषण और  बालमजदूरी का शिकार होते थे | लेकिन अब इन रियलिटी शो के जरिये सभ्रांत परिवारों के बच्चों का भी शोषण हो रहा है | रातों रात अमीर बनने की ललक के चलते बच्चे माँ-बाप की कुंठा व असफल माँ-बाप की सफलता की सीढ़ी बन रहे हैं|
   रियलिटी शो के नाम पर बच्चों से भद्दा डांस,घिनौने संबाद, द्विअर्थी गाने गवाए जाते हैं क्या ये सही तरीका उनकी प्रतिभा को आकाने का ? इस छोटी सी उम्र में दुनिया के सामने उनकी रैगिंग की जाती है | बचपन में ही उन पर असफलता का तमगा लगा दिया जाता है,जिस बोझ के साथ उसे जिन्दगी जीनी होती है| देशभर में लाखों बच्चे इस शो में हिस्सा लेते हैं और जीतने वाले दस से ज्यादा नहीं होते हैं| देखा जय तो ये एक प्रकार का लाट्रीशो है | ये शो बालश्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए खूब चल रहे हैं| असफलता के डर के कारण इन बच्चों में अनेक प्रकार के मनोविकार पैदा हो जाते हैं| अचानक मिली सफलता को ये कभी-कभी पचा नहीं पाते एक दो साल तक ये ग्लैमर की दुनिया में जगमगाते हैं परन्तु कुछ समय बाद गुम हो जाते हैं | बच्चों को यहाँ लम्बी अवधी तक अलग रखा जाता है,दबाव और चिंता के माहौल में रहने व आराम की कमी के कारण इनमे अनिंद्रा आदि की कमी हो जाती है| शिशुरोग विशेषज्ञों के अनुसार शूटिंग के दौरान तेज रोशनी का सामना करना पड़ता है जिसका उनके शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| बच्चो को सजाने सवांरने के दौरान उनके चहरे पर जो कॉस्मेटिक लगाया जाता है उससे उनकी कोमल त्वचा को नुकसान होता है |
  जितने भी रियलिटी शो द्ल्खाये जाते हैं उनमे अपशब्द,गन्दी राजनीतिव अन्य हत्कंडे अपनाकर खूब दर्शक बटोरे जाते हैं और चैनल की टीआरपी बढ़ायी जाति है | दूसरी तरफ देखें तो इन कार्यक्रमों के पीछे बाजार अपना काम करता रहता है| हुनरमंदों को हुनर सिखाने के प्रदर्शन का मंच मुहैया कराते, रियलिटी शो में हिस्सा लेने की तैयारियों के प्रशिक्षण के बाज़ार महानगरों से कस्बों तक फ़ैल रहे हैं | एक अनुमान के अनुसार बीते दस सालों में दस हजार से भी ज्यादा प्रशिक्षण केंद्र खुले हैं जहाँ रियलिटी शो के लिए संभावित प्रतियोगी तैयार किये जाती हैं |रियलिटी शो के पीछे एक बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो रहा है| एक तरफ शो में हिस्सा लेने बावत तैयारियों से जुड़े कोचिंग संस्थान हैं तो किताब ,सीडी से लेकर कई दूससे उत्पाद भी | रियलिटी शो को अपने कुल राजस्व का 30 से 40 प्रतिशत मोबाइल एसएमएस से मिल जाता है | महत्वपूर्ण प्रशन ये है कि इन शो के नाम पर सिर्फ कारोबार हो रहा है बाकी कच्छ नहीं |टेलीविजन चैनलों को कम मेहनत में विज्ञापनों के बाजार में बड़ा हिस्सा बटोरने के लिए ये शो मुफीद लगते हैं| इस प्रकार के कार्यक्रम जो अपसंस्कृति परोस रहें हैं इन्हें  संगठित प्रयास करके रोकना  होगा|

भारत में सिनेमा


भारत में सिनेमा की शुरुआत करने का लयूमेरे बंधुओं को जाता है दिसंबर 1895 को पेरिस में किए गए विश्व में सिनेमा प्रदर्शन के 7 महीने बाद ही 7 जुलाई 1896 को मुंबई के वाटसन होटल में भारत का पहला फिल्म प्रदर्शन ल्युमियरे बंधुओं ने किया द सेंचुरी ऑफ सिनेमेटोग्राफी अराइवल ऑफ द ट्रेन लेडीस एंड सोल्जर ऑन व्हील्स आदि पिक्चर्स को प्रदर्शित किया गया। पहली देसी फिल्म हरिश्चंद्र घाट बैठकर द्वारा बनाई गई जिसमें कुश्ती दिखा बंदर को प्रशिक्षित करते हुए एक व्यक्ति का चयन किया 1912 में आर सी शर्मा ने एनजी चित्र के साथ मिलकर पुंडलिक फिल्म बनाई पहली फीचर फिल्म मुंबई में न्यू मेरे के प्रदर्शन के 17 साल बाद आई दादा साहब फाल्के द्वारा निर्मित राजा हरिश्चंद्र मई 1913 को प्रदर्शित हुई जो कि अमुक फिल्म थी इसमें कथा विकास दर्शाने के लिए हिंदी टाइटल का प्रयोग किया गया मराठीभाषी होते हुए भी दादा साहब फाल्के ने महात्मा गांधी की भारतीय हिंदी भाषा के राष्ट्रीय विसरू को पहचान लिया इस फिल्म के निर्माण पर एक पूरी दिलीप उपलब्ध है जिसमें दादा साहब फाल्के को निर्देश देते हुए दिखाया गया है भस्मासुर मोहनी सत्यवान सावित्री लंका देना आदि साल की कुछ फिल्में रही राजा हरिश्चंद्र की सब फिल्मों का विस्तार हुआ महाभारत और रामायण की कथाएं भारतीय फिल्मों की फिल्मों को किया जाने लगा
1920 के आसपास मिथक की कथा व स्थान ऐतिहासिक कथाएं होने लगी क्योंकि अब तक मुंबई भारतीय फिल्मों का केंद्र बनना शुरू हो गए थे इसलिए महाराष्ट्र का मराठा इतिहास फिल्मों का जोड़ रहा बाबूराम मिस्त्री ने गौरवशाली मराठा इतिहास को अपनी फिल्मों में चित्रित किया एक और ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से भारतीय जनमानस पराजित मानसिकता में जी रहा था दूसरी और भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियां अंधविश्वास भी भारतीय जनता को दिग्भ्रमित की ऐसी स्थिति में भारतीय फिल्में अंग्रेजों का विरोध तथा अपनी परंपरा का अनुरक्षण का भाव प्रमुख समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई जाएगी मूक फिल्मों का दौर 1931 में आलम आरा के आगमन से खत्म हुआ इस फिल्म के निर्देशक थे अर्देशिर ईरानी इस फिल्म के साथ ध्वनि अंततः भारतीय सिनेमा में पहुंच गई इस फिल्म 10000 फीट लंबी थी जिसकी लागत ₹40000 थी ऐसी फिल्म के आसपास स्टूडियो व्यवस्था भी आरंभ हुई अभी तक फिल्म बनाना निजी प्रयास था लेकिन धीरे-धीरे फिल्म स्टूडियो उसका खबर भेजो कोलकाता में न्यू थियेटर्स मुंबई में मुंबई टॉकीज पुणे में प्रभात टॉकीज लाहौर में पंचशील स्टूडियो इस व्यवस्था के तहत मासिक वेतन के अंतर्गत कलाकार तकनीशियन काम करते थे 1938 में ईरानी ने मदर इंडिया फिल्म बनाई बाद में इसी नाम से महबूबा ने नरगिस को लेकर मदर इंडिया फिल्म बनाई इसी समय कोलकाता की नियुक्ति किस कंपनी ने सर्वाधिक विविधता पूर्ण फिल्में बनाई अब तक भारत फिल्म निर्माण में विश्व के चौथे नंबर पर आ गया था द्वितीय विश्वयुद्ध भारतीय राजनीति में गांधीजी की अद्भुत सक्रियता एवं महत्व अंग्रेजो के खिलाफ बढ़ता विरोध सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने का भाव ईसाई धर्म के प्रभाव से बचाने के लिए हिंदुत्व के महत्व को स्थापित करना गांधी जी को हरिजन उत्तरायण प्रभावित फिल्म का निर्माण चंदूलाल शाह ने 1940 में किया
 इसी दौरान दिलीप कुमार राज कपूर मधुबाला देवानंद नरगिस कामिनी कौशल जैसे अदाकार अपने आप को स्थापित कर चुके थे युद्ध की समाप्ति के सारे नियंत्रण समाप्त हो गए फिर निर्माण में कितनी वृद्धि हुई डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी जैसी ऑर्बिट फिल्में भी बनी जिन्होंने भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहना पाई और फिर एक दिलवाया जिसकी हर भारतीय प्रतीक्षा प्रतीक्षा थी आजादी मिली स्वदेश सुशासन की भावना के साथ हर प्रकार के कला कौशल पुनर्जागरण और विकास प्रारंभ हुआ विशाल और भव्य सेट के कारण फिल्में काफी सफल होने लगी धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा पर वेबसाइट का हावी होने लगी वी शांताराम महबूबा फिल्म भारतीय सिनेमा को सार्थक दिशा दी बंगाल में सत्यजीत राय का उदय हुआ जिन्होंने विश्व सिनेमा पर भारतीय सेना से परिचित कराया अब तक लोकप्रिय सिनेमा भारतीय सिनेमा का पर्याय बनते जा रहा था।
इसी बीच राजेश खन्ना ने लोकप्रियता की चरम सीमा को छूने और सुपरस्टार बन गए इस सुपरस्टार के अगले अधिकारी थे अमिताभ बच्चन जी ने अंग्रेजी यंग मैन की छवि से अपनी तत्कालीन युवा वर्ग को अभिव्यक्ति दी व्यवस्था के दामन से नाराज पर आक्रोशपूर्ण था 1973 में राजकुमार की बॉबी फिल्म आई और हर युवा दिल में इस प्रेम की आस साथ किया इस फिल्म में प्रेम कहानी के फार्मूले को स्थापित किया जिसे कुमार गौरव की लव स्टोरी आमिर खान की कयामत से कयामत तक सलमान खान कि मैंने प्यार किया, रितिक रोशन की कहो ना प्यार में आज तक  दोहराया जा रहा है  रंगमंच से रंगमंच से फिल्मों में आने की भी परंपरा रही है कि मैं बलराज साहनी गुजराती रंगमंच से संजीव कुमार नसरुद्दीन शाह शबाना आजमी सिमता पाटिल परेश रावल जैसे कलाकार रहे हैं 90 का दशक खान अभिनेताओं के नाम रहा नायिका में शर्मिला टैगोर आशा पारेख नंदा मुमताज मधुबाला श्रीदेवी रेखा माधुरी दीक्षित काजोल ऐश्वर्या राय आदि ने संभाली।

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