मंगलवार, मार्च 27, 2012

असमंजस की सियासत या मौकापरस्ती


 यह कैसी सियासत है, जो लोकतंत्र की हत्या करने वाले को बचाने में जुटे हैं। आतंकवाद के दौर में जब पंजाब में सभी बड़े नेता या तो डर के भाग गए थे या फिर उनके समर्थक हो उठे थे, उस वक्त बेअंत सिंह ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने पंजाब में अकेले कांग्रेस की डोर थामे रखी। पंजाब में अगर आतंकवाद का काला दौर खत्म हो सका तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ बेअंत सिंह को ही जाता है। यह उन्हीं की हिम्मत और दृढ़ता थी कि पंजाब में दोबारा अमन और चैन की बहाली संभव हो सकी। बेशक आतंकवाद करने के लिए पंजाब को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इस अमन-चैन की एक बड़ी कीमत खुद बेअंत सिंह को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। ऐसे में अमन के इस पेरोकार के हत्यारों को लेकर जो सियासत खेली जा रही है, (जिसमें कि उनकी अपनी कांग्रेस पार्टी भी शामिल है) कहीं न कहीं उन दहशतगर्दों के लिए सबक होने की बजाए उनके हौसले ही बुलंद करेगा।
३१ अगस्त १९९५ को  हुए इस बमकांड में बेअंत सिंह समेत १६ अन्य लोगों की भी मौत हो गई थी। इस हत्याकांड के साजिशकर्ताओं में बलबंत सिंह राजोआणा भी शामिल था। यह वही राजोआणा है, जिसके पिता को आतंकवादियों ने गोलियों से भून डाला था। आतंकवाद पीडि़त परिवार के तौर पर ही राजोआणा को पंजाब पुलिस का सिपाही बना दिया गया था। चंडीगढ़ की जिला अदालत ने बलवंत को फांसी की सजा सुनाई है। पंजाब में स्थिति थोड़ी गंभीर इसलिए हो चली है कि एक वर्ग ऐसा है, जो इस फांसी को रुकवाने में पूरी तरह से सक्रिय हो चुका है। इसी प्रक्रिया के तहत ही जेलर जाखड़ ने भी कानून का ही हवाला देते हुए डेथ वारंट की तामील करने से इंकार करते हुए उच्च अदालत में अपील दायर करने की बात दोहराई है। श्री अकाल तख्त साहिब के सिंह साहिबान ने सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था एसजीपीसी के प्रधान अवतार सिंह मक्कड़ और शिअद प्रधान सुखबीर बादल को आदेश दिया कि वे राजोआणा मामले में हर तरह का प्रयास करें। विभिन्न धार्मिंक स्थलों से रोजाना बलवंत के समर्थन में रोष मार्च निकाले जा रहे हैं। इसमें अहम बात यह है कि पटियाला जेल में बंद राजोआणा ने अपनी फांसी के खिलाफ अपील दायर करने से इंकार कर रखा था। अब हालत यह है कि खुद बेअंत सिंह के परिजन और कांग्रेस भी फांसी के खिलाफ ही खड़े हैं। कांग्रेस शायद मजबूरन इस फैसले का समर्थन कर रही है, क्योंकि ८४ दंगों का भूत अब भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है। लेकिन पंजाब सरकार तो पूरी तरह खुलकर खेल रही है, इस मामले में चाहे फैसला कुछ भी उसके दोनों हाथों में लड्डू आना तय है। हो सकता है कि सरकार अंतिम विकल्प के तौर पर यूटी के साथ हुए समझौते को ही रद कर दे, जिसके तहत चंडीगढ़ के कैदियों को पंजाब की जेलों में रखा जा सकता है। सरकार फांसी देने से यह कहकर इंकार कर दे कि यह चंडीगढ़ के दायरे का मामला है, अत: इसका निपटारा वहीं होना चाहिए।
देखा जाए तो यह बेहद शर्मनाक घटनाक्रम ही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की हत्या करने वाले को उनके अपराध की सजा मिलने की बजाए खेमाबंदी कर राज्य का माहौल खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं शिअद की सहयोगी पार्टी भाजपा का स्टैंड भी इस मामले में ढुलमुल ही है। अगर देश में आतंकवाद फैलाने वाले कसाब, गुरु और राजोआणा इस तरह माफी या उनके मामले लटकते रहे तो फिर कौन इस देश की रक्षा के लिए आगे खड़ा होगा। जाहिर है कि हमारे सुरक्षा बलों का भी मनोबल इससे गिरेगा। इस मामले में सरकार द्वारा अपनायी जा रही कि धार्मिक कट्टरता कतई उचित नहीं है।
‡ चंदन स्वप्निल ‡


सोमवार, मार्च 26, 2012

बचत योजनाओं पर ब्याज दरें 0.5 प्रतिशत तक बढ़ीं


पोस्ट आफिस की स्माल सेविंग प्लान के ब्याज दरों में आधा प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी की गई है।  ये ब्याज दरें एक अप्रैल 2012 से लागू होंगी। यह वर्ष 2012-13 के लिए वैध होंगी। एक और दो वर्ष की मियादी जमा योजनाओं में प्रत्येक पर ब्याज दर 0.5० प्रतिशत बढ़ाकर क्रमशघ् 8.2 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत की गई है। मासिक आय योजना (एमआईएस) की ब्याज दर को 0.3 प्रतिशत बढ़ाकर 8.5 प्रतिशत किया गया है। सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) की ब्याज दर को 0.2 प्रतिशत बढ़ाकर 8.8 प्रतिशत किया गया है।  वहीं, बचत जमा खाते पर ब्याज दर पूर्ववत 4 प्रतिशत ही रखी गई है।
 

मंगलवार, मार्च 20, 2012

फेसबुक यूजर्स सावधान, प्राइवेसी पॉलिसी बदलने जा रहा है

अगर आप फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं तो आपको ज्यादा सतर्क होने की जरुरत होगी क्योंकि फेसबुक भी गूगल की तर्ज पर अपनी प्राइवेसी पॉलिसी को बदने जा रहा है। फेसबुक अपनी प्राइवेसी पॉलिसी का नाम बदलकर डाटा यूस पॉलिसी में करने जा रहा है। इसका सीधा सा मतलब है कि यह सोशल नेटवर्किंग साइट अपने एडवरटाइजिंग रेवेन्यू को बढ़ाना चाहती है। अगले महीने कंपनी का आईपीओ आना है इसलिए फेसबुक के लिए यह जरुरी हो गया था। फेसबुक समझ गया है कि उसकी साइट पर यूसर्ज बहुत से डाटा, लिंक और विडियो शेयर करते हैं यह उसकी एडवरटाजिंग के लिए बड़ी चीज साबित हो सकती है। फेसबुक अपनी साइट से और पैसा बनाना चाहती है। इसके अलावा फेसबुक कुछ बड़े बदलाव कर साइट की इमेज को सुधारना चाहती है।

सोमवार, मार्च 19, 2012

तो विराट बनेंगे अगले कप्तान

दिल्ली के युवा बल्लेबाज विराट कोहली हर तरफ अपना जलवा बिखेर रहे हैं। पहले उन्होंने लगातार दो कैलेंडर इयर में 1000 से अधिक रन बनाए। इसके बाद सबसे तेज 3000 वनडे रन और 10 शतक। अब पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ी और सबसे भाग्यशाली 183 रन की पारी खेलकर वो अपने हम उम्र खिलाड़ियों से कई कदम आगे निकल गए हैं।

पाकिस्तान के खिलाफ कोहली ने भारतीय क्रिकेट का सबसे भाग्यशाली स्कोर बनाया। भारतीय वनडे क्रिकेट इतिहास में जिस भी खिलाड़ी ने 183 रन की पारी खेली है, वो टीम का कप्तान जरूर बना है। और सिर्फ कप्तान नहीं सबसे सफल कप्तान।

सबसे पहले बंगाल के स्टार क्रिकेटर सौरव गांगुली श्रीलंका के खिलाफ 183 रन की पारी खेलने के बाद टीम इंडिया के कप्तान चुने गए। गांगुली ने 26 मई, 1999 को श्रीलंका के विरुद्ध यह पारी खेली थी। महज तीन महीने बाद वो टीम के कप्तान बन गए। 5 सितंबर 1999 को उन्होंने बतौर कप्तान पहला वनडे खेला।

इसके बाद बारी थी रांची के राजकुमार महेंद्र सिंह धोनी की। धोनी को यह लकी इनिंग्स खेलने के बाद दो साल तक इंतजार करना पड़ा। उनकी किस्मत ऐसी चमकी कि अब तक टीम को रिकॉर्ड जीत दिला रहे हैं। 

धोनी ने 31 अक्टूबर 2005 को श्रीलंका के ही खिलाफ 183 रन की पारी खेली थी। इसके बाद 29 सितंबर 2007 को उन्होंने बतौर कप्तान पहला वनडे खेला।

धोनी से एक कदम पीछे रहे गांगुली

धोनी और गांगुली के बीच इस पारी के अलावा और एक समानता है। दोनों ने अपनी कप्तानी से टीम को सबसे बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए रिकॉर्ड जीत दिलाई। गांगुली की कप्तानी में टीम ने जहां इंग्लैंड के खिलाफ 325 रन का लक्ष्य हासिल किया, वहीं धोनी की अगुवाई में पाकिस्तान के खिलाफ 329 रन के टार्गेट को पार कर लिया।

गांगुली ने 2003 वर्ल्डकप में टीम को फाइनल तक पहुंचाया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2011 में धोनी की कप्तानी में टीम दूसरा वर्ल्डकप खिताब जीती। 

टेस्ट क्रिकेट की बात करें तो गांगुली की अगुवाई में टीम ने विदेशी धरती पर जीत का स्वाद चखा, वहीं धोनी की कप्तानी में भारत टेस्ट की नंबर एक टीम बना।

विराट में है धोनी और गांगुली सा दम

विराट कोहली में धोनी और गांगुली दोनों के गुण हैं। कोहली समझदारी भरी विस्फोटक पारी खेलने में माहिर हैं। साथ ही अंडर-19 वर्ल्डकप का खिताब जीतकर वो अपनी लीडरशिप क्वालिटी भी दिखा चुके हैं।

यदि यह संयोग जम गया तो कोहली जल्द ही टीम इंडिया की कमान संभालेंगे और टीम को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे। 

गुरुवार, मार्च 15, 2012

सेक्स और सियासत का काकटेल

भोपाल की आरटीआई एक्टिविस्ट शेहला मसूद की मर्डर मिस्ट्री को सीबीआई सुलझाने का दावा तो कर रही है, मगर इस मर्डर के तार भी राजनीतिक गलियारों से होकर गुजर रहे हैं। इस मामले में सीबीआई राज्य के एक बड़े बीजेपी नेता पर नजर बनाए हुए है। इस तरह से यह मर्डर केस भी सेक्स और पॉलिटिक्स के बीच उलझा हुआ है। जब-जब सेक्स और सियासत का कॉकटेल हुआ है, तब-तब हंगामा बरपा है। किसी महिला ने अपनी जान गंवाई है।
 आइए ऐसे ही कुछ मामलों पर एक नजर डालते हैं।


 नारायण दत्त तिवारी सेक्स स्कैंडल
 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी भी सेक्स स्कैंडल में फंसे थे। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके नारायण दत्त तिवारी का रंग रसिया रूप देश की जनता ने कई बार देखा है। पिछली बार, तिवारी सेक्स स्कैंडल के कारण खूब चर्चा में रहे। आधे घंटे तक एक तेलुगू चैनल पर जब तिवारी की कथित रासलीला का प्रसारण किया जा रहा था तो इसकी गूंज पूरे हिंदुस्तान में सुनी गई।
  उमर अब्दुला पर भी लगे थे आरोप 
 जम्मू व कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुला भी सेक्स स्कैंडल में फंस चुके हैं। हालांकि बाद में वे पाक साफ निकले। मामला 2006 के एक सेक्स स्कैंडल का है। श्रीनगर पुलिस ने जब सबीना नाम की एक महिला को गिरफ्तार किया तो उसने कई चैंकाने वाले खुलासे किए। नतीजा मुख्यमंत्री के साथ कई पूर्व मंत्री और आला अधिकारी इस सेक्स स्कैंडल में फंसे। पूरे राज्य में कोहराम मचा। कुल 18 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इसमें राज्य के दो पूर्व मंत्री समेत एक आईएएस अधिकारी, एक डीआईजी एवं दो डीएसपी शामिल थे।
 जयाप्रदा के पोस्टर पर बवाल
 पिछले लोकसभा चुनाव में बॉलीवुड अभिनेत्री और सपा की उम्मीदवार जयाप्रदा के साथ हुआ। बरसों तक बड़े परदे पर अपने हुस्न का जलवा दिखा चुकीं जया उस वक्त रो पड़ीं, जब उन्होंने अपने ही अश्लील पोस्टर रामपुर में देखे। रामपुर उनका संसदीय क्षेत्र है। रामपुर की गलियों से निकलकर ये पोस्टर दिल्ली तक की राजनीति में बवाल मचाया। इल्जाम बागी नेता आजम खान पर लगा। यह बात खुद जया ने कही। वैसे मीडिया में अक्सर जया और अमरसिंह के संबंधों को लेकर भी छीटाकशी होती रहती है। जयाप्रदा कहती हैं कि राजनीति में यदि आए हैं तो दाग तो लगेंगे ही।
 एक कवयित्री के साथ मंत्री का अमरप्रेम 
 अपनी कविताओं से कइयों के दिल पर राज करने वाली मधुमिता की उसके घर पर ही गोलीमार कर हत्या कर दी गई। घटना मई 2003 की है। लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी ने उस दिन गोलियों की आवाज सुनी थी। जब लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो चैंकाने वाली खबर बनना लाजिमी थी। मधुमिता गर्भवती थी। शक की सुई तत्कालीन सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की ओर मुड़ी। लखनऊ की जनता के साथ अब पूरा देश दोनों के संबंधों को जान चुका था। हत्या के पीछे वजह यह बताई गई कि मधुमिता-अमरमणि त्रिपाठी के संबंधों के कारण वह गर्भवती हो गई थी लेकिन अमरमणि नहीं चाहते थे कि वह मां बने। मधुमिता अपनी जिद पर अड़ी थी। अंत में मधुमिता को गोली मार दी गई। फिलहाल अमरमणि जेल में हैं।
 आनंद सेन की आशिकी
 वह लॉ की स्टूडेंट शशि थी। शशि अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री आनंद सेन के करीब होती गई। शशि चाहती थी कि वह विधानसभा का चुनाव लड़े और लखनऊ की विधानसभा में बैठे। शार्टकट के रूप में उसने आनंद सेन को चुना। शशि के पिता खुद एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे। आनंद सेन ने भी उसकी आंखों में बसे इस ख्बा

शुक्रवार, मार्च 09, 2012

बादल हमेशा बहाव के साथ ही चले


प्रकाश सिंह बादल किस्मत के धनी हैं। 1956 में एसजीपीसी से अपना राजनीतिक कॅरियर शुरू करने वाले बादल बेशक पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। उन्होंने अभी तक एक भी बड़ा काम नहीं किया है, जिसे मील पत्थर कहा जा सके। अपने इस कार्यकाल में वह कुछ ऐसा करें, इसकी आशा की जानी चाहिए।
बादल के राजनीतिक कॅरियर के कई चरण हैं। कई उतार-चढ़ाव भी उन्होंने देखे हैं, लेकिन हर बार उभरकर वह सामने आए हैं। वे हमेशा विवाद से दूर रहते हैं।अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को बड़े कुशल ढंग से किनारे लगाने में उनकी महारत है। ज्ञानी करतार सिंह उन्हें राजनीति में लाए और 1957 में वह पहली बार अकाली दल और कांग्रेस के समझौते में वह कांग्रेस की टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1962 में गिदड़बाहा से वह हरचरण सिंह बराड़ से चुनाव हार गए। दो बड़े परिवारों में हुई भीषण राजनीतिक लड़ाई के बाद दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव न लडऩे का फैसला कर लिया। 67 में वह फिर से चुनाव जीत गए और 1970 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। इस दौरान वह पार्टी के विभिन्न मोर्चों में भाग लेते रहे।
आपातकाल के दौरान भी उन्हें जेल में जाना पड़ा। 1977 में जब वह फिर सीएम बने तो 78 में हुए निरंकारी कांड के दौरान वह पहली बार विवाद में आए। एसजीपीसी के तत्कालीन प्रधान गुरचरन सिंह टोहरा और जगदेव सिंह तलवंडी ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को एक पत्र लिखकर राजनीतिक भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया। यहीं पहली बार उन्हें आरएसएस के हित साधने वाला बताया गया। 1980 में जब कांग्रेस आई तो उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया है और वह धर्म युद्ध मोर्चा के दौरान जेल चले गए।
वह राजीव लोंगोवाल समझौते के खिलाफ थे, लेकिन जब पार्टी में यह बात आई कि जो भी समझौते के खिलाफ चलेगा उसे टिकट नहीं मिलेगा, तो सभी ने उसे माना। सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में उन्हें स्पीकर बनाने की बात चली, लेकिन वह नहीं माने और मुख्यमंत्री के बाद दूसरा बड़ा पद देने के लिए बरनाला तैयार नहीं थे। ऐसे में जब बरनाला ने दरबार साहिब में पुलिस भेजी तो वह रि-वोल्ट करके सरकार से बाहर आ गए। इसी दौरान जिन लोगों ने खालिस्तान के लिए यूएनओ के महासचिव बुतरस घाली को पत्र लिखा उनमें प्रकाश सिंह बादल के भी हस्ताक्षर थे।
बादल हमेशा बहाव के साथ ही चले हैं। 1994 में जब मिलिटेंसी खत्म हो गई तब उन्होंने जोर आजमाइश शुरू की। अजनाला व गिदड़बाहा उपचुनाव के दौरान उन्हें ऐसा ही मौका मिला। 97 में उन्होंने भाजपा के साथ पूर्ण बहुमत लेकर सरकार बनाई, लेकिन इस सरकार में भी उन्हें गुरचरण सिंह टोहरा से भय सताता रहा। आखिर टोहरा के एक बयान कि मुख्यमंत्री और पार्टी प्रधान का पद किसी एक व्यक्ति के पास नहीं होना चाहिए, को आधार बनाकर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। उनके इसी कदम ने उन्हें 2002 में सत्ता से बाहर कर दिया। 2007 में वे फिर से सत्ता में लौटे। अब 2012 में उन्होंने 46 वर्ष का रिकॉर्ड तोड़ा। उसका कारण दलित वोट बैंक का अकाली दल की ओर मुडऩा और हिंदू वर्ग को टिकटें देना रहा है। इसी ने एक ऐसा माहौल बनाया कि किस्मत के धनी प्रकाश सिंह बादल पांचवीं बार मुख्यमंत्री बन रहे हैं।

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...