मंगलवार, जून 12, 2018

भारत में सिनेमा


भारत में सिनेमा की शुरुआत करने का लयूमेरे बंधुओं को जाता है दिसंबर 1895 को पेरिस में किए गए विश्व में सिनेमा प्रदर्शन के 7 महीने बाद ही 7 जुलाई 1896 को मुंबई के वाटसन होटल में भारत का पहला फिल्म प्रदर्शन ल्युमियरे बंधुओं ने किया द सेंचुरी ऑफ सिनेमेटोग्राफी अराइवल ऑफ द ट्रेन लेडीस एंड सोल्जर ऑन व्हील्स आदि पिक्चर्स को प्रदर्शित किया गया। पहली देसी फिल्म हरिश्चंद्र घाट बैठकर द्वारा बनाई गई जिसमें कुश्ती दिखा बंदर को प्रशिक्षित करते हुए एक व्यक्ति का चयन किया 1912 में आर सी शर्मा ने एनजी चित्र के साथ मिलकर पुंडलिक फिल्म बनाई पहली फीचर फिल्म मुंबई में न्यू मेरे के प्रदर्शन के 17 साल बाद आई दादा साहब फाल्के द्वारा निर्मित राजा हरिश्चंद्र मई 1913 को प्रदर्शित हुई जो कि अमुक फिल्म थी इसमें कथा विकास दर्शाने के लिए हिंदी टाइटल का प्रयोग किया गया मराठीभाषी होते हुए भी दादा साहब फाल्के ने महात्मा गांधी की भारतीय हिंदी भाषा के राष्ट्रीय विसरू को पहचान लिया इस फिल्म के निर्माण पर एक पूरी दिलीप उपलब्ध है जिसमें दादा साहब फाल्के को निर्देश देते हुए दिखाया गया है भस्मासुर मोहनी सत्यवान सावित्री लंका देना आदि साल की कुछ फिल्में रही राजा हरिश्चंद्र की सब फिल्मों का विस्तार हुआ महाभारत और रामायण की कथाएं भारतीय फिल्मों की फिल्मों को किया जाने लगा
1920 के आसपास मिथक की कथा व स्थान ऐतिहासिक कथाएं होने लगी क्योंकि अब तक मुंबई भारतीय फिल्मों का केंद्र बनना शुरू हो गए थे इसलिए महाराष्ट्र का मराठा इतिहास फिल्मों का जोड़ रहा बाबूराम मिस्त्री ने गौरवशाली मराठा इतिहास को अपनी फिल्मों में चित्रित किया एक और ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से भारतीय जनमानस पराजित मानसिकता में जी रहा था दूसरी और भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियां अंधविश्वास भी भारतीय जनता को दिग्भ्रमित की ऐसी स्थिति में भारतीय फिल्में अंग्रेजों का विरोध तथा अपनी परंपरा का अनुरक्षण का भाव प्रमुख समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई जाएगी मूक फिल्मों का दौर 1931 में आलम आरा के आगमन से खत्म हुआ इस फिल्म के निर्देशक थे अर्देशिर ईरानी इस फिल्म के साथ ध्वनि अंततः भारतीय सिनेमा में पहुंच गई इस फिल्म 10000 फीट लंबी थी जिसकी लागत ₹40000 थी ऐसी फिल्म के आसपास स्टूडियो व्यवस्था भी आरंभ हुई अभी तक फिल्म बनाना निजी प्रयास था लेकिन धीरे-धीरे फिल्म स्टूडियो उसका खबर भेजो कोलकाता में न्यू थियेटर्स मुंबई में मुंबई टॉकीज पुणे में प्रभात टॉकीज लाहौर में पंचशील स्टूडियो इस व्यवस्था के तहत मासिक वेतन के अंतर्गत कलाकार तकनीशियन काम करते थे 1938 में ईरानी ने मदर इंडिया फिल्म बनाई बाद में इसी नाम से महबूबा ने नरगिस को लेकर मदर इंडिया फिल्म बनाई इसी समय कोलकाता की नियुक्ति किस कंपनी ने सर्वाधिक विविधता पूर्ण फिल्में बनाई अब तक भारत फिल्म निर्माण में विश्व के चौथे नंबर पर आ गया था द्वितीय विश्वयुद्ध भारतीय राजनीति में गांधीजी की अद्भुत सक्रियता एवं महत्व अंग्रेजो के खिलाफ बढ़ता विरोध सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने का भाव ईसाई धर्म के प्रभाव से बचाने के लिए हिंदुत्व के महत्व को स्थापित करना गांधी जी को हरिजन उत्तरायण प्रभावित फिल्म का निर्माण चंदूलाल शाह ने 1940 में किया
 इसी दौरान दिलीप कुमार राज कपूर मधुबाला देवानंद नरगिस कामिनी कौशल जैसे अदाकार अपने आप को स्थापित कर चुके थे युद्ध की समाप्ति के सारे नियंत्रण समाप्त हो गए फिर निर्माण में कितनी वृद्धि हुई डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी जैसी ऑर्बिट फिल्में भी बनी जिन्होंने भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहना पाई और फिर एक दिलवाया जिसकी हर भारतीय प्रतीक्षा प्रतीक्षा थी आजादी मिली स्वदेश सुशासन की भावना के साथ हर प्रकार के कला कौशल पुनर्जागरण और विकास प्रारंभ हुआ विशाल और भव्य सेट के कारण फिल्में काफी सफल होने लगी धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा पर वेबसाइट का हावी होने लगी वी शांताराम महबूबा फिल्म भारतीय सिनेमा को सार्थक दिशा दी बंगाल में सत्यजीत राय का उदय हुआ जिन्होंने विश्व सिनेमा पर भारतीय सेना से परिचित कराया अब तक लोकप्रिय सिनेमा भारतीय सिनेमा का पर्याय बनते जा रहा था।
इसी बीच राजेश खन्ना ने लोकप्रियता की चरम सीमा को छूने और सुपरस्टार बन गए इस सुपरस्टार के अगले अधिकारी थे अमिताभ बच्चन जी ने अंग्रेजी यंग मैन की छवि से अपनी तत्कालीन युवा वर्ग को अभिव्यक्ति दी व्यवस्था के दामन से नाराज पर आक्रोशपूर्ण था 1973 में राजकुमार की बॉबी फिल्म आई और हर युवा दिल में इस प्रेम की आस साथ किया इस फिल्म में प्रेम कहानी के फार्मूले को स्थापित किया जिसे कुमार गौरव की लव स्टोरी आमिर खान की कयामत से कयामत तक सलमान खान कि मैंने प्यार किया, रितिक रोशन की कहो ना प्यार में आज तक  दोहराया जा रहा है  रंगमंच से रंगमंच से फिल्मों में आने की भी परंपरा रही है कि मैं बलराज साहनी गुजराती रंगमंच से संजीव कुमार नसरुद्दीन शाह शबाना आजमी सिमता पाटिल परेश रावल जैसे कलाकार रहे हैं 90 का दशक खान अभिनेताओं के नाम रहा नायिका में शर्मिला टैगोर आशा पारेख नंदा मुमताज मधुबाला श्रीदेवी रेखा माधुरी दीक्षित काजोल ऐश्वर्या राय आदि ने संभाली।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...