मंगलवार, जून 12, 2018

300 साल से मेहमान को चिमटे से उठाकर देते हैं बीड़ी

22 साल से कैथल के मालखेड़ी नहीं पीते बीड़ी-सिगरेट, बुजुर्ग हुक्का भी नहीं गुड़गुड़ाते, रिश्तेदार को भी धूम्रपान करने से रोकते हैं ग्रामीण
देसां म्हं देस हरियाणा, जैसा नाम वैसी ही अजब-गजब संस्कृति और रहन-सहन है यहां के गांवों की। गांवों की अपनी खासियत, रोचक किस्से और परंपरा है। आज हम ऐसे ही दो गांवों की कहानी आपको बता रहे हैं, कैथल का मालखेड़ी और जींद का खेड़ीबुल्ला। इन दोनों गांवों में लोग धूम्रपान नहीं करते।
जट सिख बाहुल्य वाला खेड़ीबुल्ला गांव धूम्रपान न करने के कारण दूसरे गांवों से अलग है। प्रदेश में जहां हुक्का-पानी देना सबसे बड़ी मेहमानवाजी समझी जाती है। अगर इस गांव के लोगों को मेहमान को बीड़ी देनी पड़ जाए तो उसे चिमटे से उठाकर देते हैं। इस रिवाज के चलते अधिकतर मेहमान गांव में आने के बाद बीड़ी या हुक्का पीने से गुरेज ही करते हैं। 300 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी कायम है। कुछ इसी तरह कैथल से 20 किलोमीटर दूर खनौरी रोड पर स्थित मालखेड़ी गांव में पिछले 22 साल से बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते। बुजुर्गों ने भी हुक्का गुड़गुड़ाना बंद किया हुआ है।

डॉक्टर ने मालखेड़ी वालों को बताए थे धूम्रपान के नुकसान
मालखेड़ी में प्राइवेट पॉलीटेक्निकल कॉलेज में प्रोफेसर दर्शन सिंह ने बताया कि ये उनदिनों की बात जब वे छोटे थे, तब बीड़ी-सिगरेट का प्रचलन शुरू ही हुआ था। बुजुर्गों ने इसका सेवन किया तो उन्हें तकलीफ हुई। डॉक्टरों ने बीड़ी-सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। फिर गांव ने फैसला लिया कि अब गांव में धूम्रपान नहीं होगा। बीड़ी-सिगरेट तो बंद हुई, इसके साथ ही हुक्का भी बंद कर दिया गया। 22 साल से ये फैसला कायम है। गांव में कोई रिश्तेदार धूम्रपान करता है तो उससे पहले क्षमा मांगकर बीड़ी-सिगरेट न पीने की अपील की जाती है। मालखेड़ी गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी है। हर बिरादरी के लोगों के चौपाल बने हुए हैं। जाट समाज की दो चौपाल व कश्यप, वाल्मीकि, हरिजन, ब्राह्मण समाज की एक-एक चौपाल हैं। किसी भी बात को गांव में ही चर्चा करके हल किया जाता है। 12वीं पास सरपंच पूनम ने बताया कि हमें गर्व है कि ऐसे गांव में रह रहे हैं, जहां कोई धूम्रपान नहीं करता है।

खेड़ीबुल्ला :गुरुद्वारा बना तो हुक्का भी हुआ बंद :
सदियों पहले खेड़ीबुल्ला गांव बसाने वाले गुरदत सिंह (कैथल की रियासत के राजा उदयसिंह के वजीर) ने धूम्रपान न करने जो पहल की थी, अब वह परंपरा बन गई है। गांव के युवा भी इसे बखूबी निभा रहे हैं। 1100 की आबादी वाले खेड़ीबुल्ला गांव में किसी भी मौके पर कोई भी सगा संबंधी या रिश्तेदार किसी के घर आता है तो उसकी खातिरदारी में ग्रामीण कभी भी हुक्का-बीड़ी या सिगरेट नहीं देते। गांव की एक दुकान पर बीड़ी-सिगरेट तो उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण या दुकानदार उन्हें हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कभी बारात की खातिरदारी हुक्के से नहीं की। कई ग्रामीणों की उम्र 90 से ऊपर है। ग्रामीणों का मानना है कि शायद हुक्का-बीड़ी पीते तो इतने साल कभी नहीं जीते। बीड़ी-सिगरेट या हुक्का न पीने का किसी पर कोई दबाव नहीं है। पंचायत या ग्रामीणों ने इसके लिए कोई भी नियम-कायदा नहीं बनाया है, सब अपनी मर्जी से इस परंपरा को निभा रहे हैं। सरपंच अंग्रेज सिंह ने बताया कि पहले बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए अलग से हुक्का होता था। 15 साल पहले बने गुरुद्वारे के बाद गांव में रखे इस हुक्के को भी हटा दिया गया। अब केवल एक दुकान पर बीड़ी ही बिकती है, उसे भी ग्रामीण हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव में सबसे ज्यादा संख्या में किसान है तो एक बड़ी संख्या में सेना में भी भर्ती हैं। अधिकतर गांवों के युवा सेना को ही अपना भविष्य के रूप में चुनते हैं।

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