शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2012

स्मृति शेष: अध्यात्म और शास्त्रीय संगीत को समर्पित रहे दिवंगत सोढी


सिखों के चौथे गुरु रामदास के 16वें वंशज गुरु हरेश सोढी का पूरा जीवन अध्यात्म और संगीत को समर्पित रहा। उनके जीवन का आधा हिस्सा जहां अध्यात्म के नाम रहा वहीं बाद में पुराने संगीत को विकसित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। गुरु नानक देव जी की एक पोथी और एक माला आज तक इनके पास सुरक्षित रही है। इसी कारण इनकी गद्दी का नाम पोथीमाला के नाम से विख्यात हुआ। अध्यात्म के क्षेत्र में जहां इन्होंने लोगों का मार्गदर्शन किया वहीं क्षेत्र की भलाई के लिए भी इनके किए गए कार्यों ने समाज में विकास के रास्तों को प्रशस्त किया। 1995 में इन्होंने अपनी गद्दी अपने बेटे युवराज सिंह सोढी को दे दी और अपना बाद का जीवन इन्होंने शास्त्रीय और सूफियाना संगीत को बढ़ावा देने में लगाया। यही कारण है कि उन्होंने गुमनाम, उपेक्षित और उभरती प्रतिभाओं को मंच देने के लिए फीदा चैनल की स्थापना की। चैनल का मकसद था कि पथ भ्रष्ट करने वाले संगीत से युवाओं को बचाया जाए और उनको ऐसे संगीत से जोड़ा जाए जो सभ्याचार को विकसित करने वाला हो। भारत और पाकिस्तान के कई सूफी कलाकारों, $गजल गायकों को इन्होंने अपने चैनल के जरिए बेहतरीन मंच दिया। आज वे दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके दिए मार्गदर्शन, उनके द्वारा किए गए कार्यों और अध्यात्म तथा संगीत की दुनिया में उनकी बेहतरीन भूमिका के लिए हमेशा उन्हें याद रखा जाएगा।

मंगलवार, फ़रवरी 21, 2012

पांच लाख की आय वालों को अलग से रिटर्न भरने की जरूरत नहीं


अब एक साल में पांच लाख रुपए तक की आय वालों को अलग से आयकर रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी। मंगलवार को इस आशय की अधिसूचना वित्त मंत्रालय ने जारी कर दी। यह नियम कराधान वर्ष 2012-13 से लागू होगा।
 इससे 85 लाख से ज्यादा लोग लाभान्वित होंगे। जिन्हें वेतन अथवा वेतन और बैंक में जमा राशि से ब्याज के रूप में प्रतिवर्ष 10 हजार रुपए तक मिलते हों। ये दोनों साल भर में कुल मिला कर पांच लाख रुपए से ज्यादा नहीं होने चाहिएं। अलग से आयकर रिटर्न भरने की छूट तभी मिलेगी जब नियोक्ता द्वारा दिया गया कर कटौती वाला फॉर्म 16 होगा। हां, आयकर रिफंड लेना हो तो अलग से भी रिटर्न भरना पड़ेगा। इस अधिसूचना के जारी होने से पहले तक आयकर कानून 1961 के तहत सभी वेतनभोगियों को अलग से भी आयकर रिटर्न भरना पड़ता था। जिनकी आय वेतन के अलावा कहीं और से नहीं है उन्हें एक ही जानकारी दो अलग अलग रिटर्न में भरनी पड़ती थी।

रविवार, फ़रवरी 12, 2012

बे सहारा बीसीसीआई का यह है सच

पिछले दिनों सहारा समूह ने बीसीसीआई के साथ 31 दिसंबर 2013 तक के प्रायोजन करार से कदम खींचने की ਘਾषणा कर दी। सब जानते हैं कि खेल प्रायोजन में सहारा समूह हमेशा बढ़-चढक़र हिस्सा लेता रहा है, पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसी सहारा ने टीम इंडिया से अपने भावनात्मक रिश्ते एक झटके में तोड़ दिए। वैसे यह भी सच है कि सहारा प्रमुख सुब्रतो राय एक खेलप्रेमी के अलावा बिजनेस के क्षेत्र के भी मंजे हुए खिलाड़ी हैं। उनके इसी पक्ष को ध्यान में रखकर क्रिकेट के सूत्रों से प्रा:त जानकारी के अनुसार तस्वीर का दूसरा पहलू प्रस्तुत है-
 क्रिकेट बोर्ड के मुनाफा दर में गिरावट
 बीसीसीआई की २०११ की वार्षिक रिपोर्ट (बोर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट पर उपलब्ध) में चौंकाने वाले आंकड़े मिले हैं। पता चला है कि बोर्ड के मुनाफा की दर लगातार गिर रही है। पिछले साल बीसीसीआई (टीम इंडिया, रणजी आदि) की ग्रॉस इनकम (सकल आय) 805.04 करोड़ रुपए रही। लेकिन इसी अवधि में बोर्ड का कुल खर्च 782.37 करोड़ रुपए आया। जाहिर है बोर्ड को केवल 22.67 करोड़ रुपए का सर:लस (अधिशेष) हासिल हो सका। यह स्थिति किसी भी इन्वेस्टर के लिए चिंता खड़ी करने के लिए काफी है।
 मगर आईपीएल लगा रहा :छलांग पर छलांग–
 दूसरी तरफ आईपीएल की सकल आय 973.38 करोड़ रुपए रही और उसका कुल खर्च 854.62 करोड़ रुपए आया। यानी आईपीएल ने 118.76 करोड़ की सर:लस कमाई की। उधर, आईपीएल की ही शाखा चैंपियंस लीग, जो बहुतों की नजर में एक निरर्थक टूर्नामेंट है, ने भी 247.97 करोड़ रुपए की सकल आय की। उसके आयोजन में कुल 199.68 करोड़ रुपए खर्च हुए और सर:लस इनकम 48.29 करोड़ रुपए रही।
 कुल मुनाफे में बोर्ड के हाथ 22.67 करोड़ ही
 तो आईपीएल और चैंपियंस लीग को जोडक़र 189.72 करोड़ रुपए के संयुक्त अधिशेष में बीसीसीआई (टीम इंडिया, रणजी आदि) का योगदान सिर्फ 22.67 करोड़ रुपए का ही आता है। 167.05 करोड़ रुपए का शेष सर:लस टी-20 रुट से आया। साफ है कि बीसीसीआई का अनुमानित मुनाफा गिर रहा है।
 ...और अब 2,200 करोड़ का झटका
 सहारा के हाथ खींच लेने से बीसीसीआई 2,200 करोड़ रुपए से अधिक (1700 करोड़ रुपए फ्रेंचाइजी फी के साथ ही ५३४ करोड़ रुपए की टीम इंडिया स्पांसरशिप फी) के झटके के फेर में फंसा है। चिंता की बात यह है कि आईपीएल के राजस्व पर भी इस :तलाक– का असर दिखाई देने की आशंका है। 2010 में बोर्ड ने पुणे वॉरियर्स और कोच्चि टस्कर्स की फ्रेंचाइजी बेचने के एवज में 323 करोड़ की इनकम फीस वसूली थी। इस नुकसान के अलावा आईपीएल के मैच भी अब 76 से 59 ही रह जाएंगे। यानी दर्शकों से होने वाली इनकम पर भी बट्टा।
 सकल आय    कुल खर्च   सर:लस
 बीसीसीआई
 (टीम इंडिया-रणजी आदि) 805.04 करोड़  782.37करोड़ 22.67 करोड़
 आईपीएल           973.38 करोड़    854.62 करोड़  118.76 करोड़
 चैंपियंस लीग         247.97 करोड़   199.68 करोड़   48.29 करोड़ 
 (टी-20)  (बीसीसीआई की २०११ की वार्षिक रिपोर्ट, रुपए मे)
विश्वमोहन मिश्रा. 

रविवार, फ़रवरी 05, 2012

आत्महत्या की राह चले


पश्चिम बंगाल में अब 'ममता का राज' है पर किसान सत्ता की बेदर्दी झेल रहे हैं । आलू और धान की तैयार फसल नहीं बिक रही । बिचौलिए हावी हैं और इन्होंने खरीद रोक रखी है । समर्थन मूल्य से बेहद कम कीमत पर भी फसल नहीं बिक रही है । मजबूरन किसान आत्महत्या कर रहे हैं

कोलकाता से दीपक रस्तोगी 

बगाल के किसान सत्ता बदलने में तो कामयाब हो गए पर अपनी किस्मत नहीं बदल पा रहे हैं । सत्ता की अनदेखी के चलते इनकी किस्मत फूटी लग रही है । बढ़ते कर्ज का भार संभालने में असमर्थ सपने कड़वी सचाई के सामने बेपर्दा हो रहे हैं । खेतों में पककर तैयार फसल बिचौलियों के रहमोकरम की बाट जोह रही हैं । उनके परिवारों के सामने अनाहार का संकट मुंह बाए खड़ा है । फूटी किस्मत का रोना रोते किसान अब आत्महत्या का रास्ता चुनने को मजबूर हो रहे हैं।

१३ जनवरी, मालदा का हबीबपुर । १४ जनवरी, बर्द्धमान का पूर्वस्थली । १५ जनवरी, बर्द्धमान का कालना । १६ जनवरी, हुगली का हरीपाल । २९ जनवरी बर्द्धमान का केतुग्राम । ३० जनवरी गाजल । नए साल में शायद ही कोई दिन ऐसा छूटा हो जिसमें कहीं न कहीं, किसी न किसी किसान ने जान न दी हो। किसानों द्वारा फांसी लगा लेने या कीटनाशक पी लेने की खबरें रोजाना छप रही हैं । जांच के नाम पर प्रशासन के रूटीन दावे भी आ रहे हैं - निजी कारणों से जान दी लेकिन दस्तावेजी सबूत और इन किसानों के परिजनों के बयान एक गंभीर स्थिति का खुलासा कर रहे हैं । विडंबना यह कि इन मौतों के तुरंत बाद स्थानीय प्रशासन किसानों के परिजनों से कोई निजी वजह दिखाते हुए स्वीकृति लिखवाने में जुट जाता है।

सरकारी स्तर पर ऐसी घटनाओं को शुरू से ही दबाने की कोशिश की जा रही है जबकि अक्टूबर-नवंबर से ही किसानों की पीड़ा सामने आने लगी थी । बर्द्धमान के भातार इलाके में नवंबर के महीने में पांच किसानों ने आत्महत्या कर ली थी । इन सभी मामलों में परिजनों से बातचीत करने पर प्रशासन के संवेदनहीन रवैए की कहानी सामने आई है । १८ नवंबर को कालटिकारी गांव के १८ साल के युवक किसान सफर मोल्ला ने कीटनाशक पीकर जान दे दी । बंगाल में हाल के सीजन में किसी किसान द्वारा आत्महत्या की यह पहली घटना थी । जब वह १२ साल का था तब उसके पिता बगैर इलाज के चल बसे थे। पिछले छह साल से वह खेती-मजदूरी कर अपना और अपनी मां का खर्च चला रहा था । उसपर ९० हजार रुपए का कर्ज था। उसने दो सौ क्विंटल धान उगाया था लेकिन वह बेच नहीं पा रहा था । सफर की मां रिजा के अनुसार, "कर्ज के चलते मेरा बेटा बेहद तनाव में था। घर खर्च भी चला पाना मुश्किल हो रहा था।" लेकिन इस कांड की जांच करने पहुंची पुलिस ने सफर की मां और पड़ोसियों से "लिखित बयान" ले लिया कि "किसी निजी मसले पर रात को मां से झगड़ा होने के बाद उसने आत्महत्या कर ली ।"

यही कहानी है बर्द्धमान जिले के रसूलपुर के ४० वर्षीय अमीय साहा की । उसके पास पांच बीघा जमीन थी जिससे उसका बेहद जुड़ाव था । कर्ज के चलते उसे जमीन का कुछ हिस्सा बेचना पड़ा था । उसकी जमीन पर ही चार जनवरी को उसका शव पड़ा मिला । उसने कीटनाशक पी लिया था । इस मामले में पुलिस ने उसकी पत्नी झरना और अन्य घरवालों से कुछ इस तरह का बयान हासिल किया, "परिवारिक विवाद में उसने आत्महत्या की ।" बर्द्धमान के भातार इलाके के एक किसान शेख नूरुल इस्लाम कहते हैं, "मेरे घर में करीब ३४० क्विंटल धान का अंबार लगा है । मैं बेच नहीं पा रहा हूं । दो लाख रुपए का कर्ज है । प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल रही । ऐसे में मेरे जैसे लोगों के सामने सूदखोरों से बचने का आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता है ।
विडंबना 

सरकारी बैंकों से लिया गया कर्ज अब भी बाकी है । मौजूदा मौसम की पैदावार कटने के बाद बाजार में बेच नहीं पा रहे बंगाल के किसान निराशा में आत्महत्या का रास्ता चुनने को मजबूर हो रहे हैं । आत्महत्या करने वाले किसानों का आंकड़ा अब ३० पार करने चला है । "चावल का कटोरा" कहे जाने वाले बर्द्धमान जिले में २२ किसान मौत को गले लगा चुके हैं । सभी मामलों में प्रशासन के पास लिखित बयान वाले "सबूत" मौजूद हैं कि आत्महत्या की वजहें पारिवारिक थीं या फिर उनमें से कोई-कोई मानसिक रूप से बीमार था जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है । बर्द्धमान में १२ लाख मीट्रिक टन धान की सरप्लस पैदावार हुई है जबकि चावल की सरकारी खरीद का अभियान अपने लक्ष्य से २० लाख मीट्रिक टन पीछे है । सरकारी मशीनरी अभी तक विपणन समितियां तक नहीं बना सकी हैं जबकि दावे सैकड़ों समितियों के गठन के किए जा रहे हैं । कुछेक जगहों पर समितियां बनी भी हैं और धान बेचा भी गया है तो किसानों को भुगतान नहीं मिल सका है। उधारी पर धान बिका है या फिर चेक मिले हैं, जो बाउंस हो रहे हैं । चावल मिलों के मालिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को तैयार नहीं क्योंकि पड़ोसी राज्यों से छह सौ से आठ सौ रुपए क्विंटल की दर पर धान मिल रहा है ।

अर्थशास्त्री दीपांकर दासगुप्त के अनुसार, "राज्य सरकार ने एक तो वाममोर्चा सरकार के जमाने में गठित विपणन समितियों को भंग कर दिया और नई समितियां ठीक से गठित नहीं हो पाईं । दूसरे, किसानों को बैंक एकाउंट के जरिए भुगतान का नियम बना दिया । ऐसे में किसान दोतरफा मार खा रहे हैं । जिन्हें बैंक एकाउंट से लेना-देना नहीं, वे चेक भुनाने के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं या फिर उनके चेक बाउंस हो रहे हैं । इस साल धान की फसल १५० लाख टन हुई है जो पिछले साल की तुलना में २० लाख टन अधिक है । ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा से किसानों को कोई फायदा नहीं क्योंकि सरकार अपनी खरीद के लक्ष्य में काफी पीछे है ।

इन स्थितियों में बिचौलियों की बन आई है । खाद्य व जनआपूर्ति विभाग के पास बिचौलियों की गतिविधियों के बारे में शिकायतों का अंबार लग रहा है । किसानों का गुस्सा सड़कों पर आ रहा है । बिचौलियों के साथ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत के तथ्य सामने आ रहे हैं । हावड़ा के श्यामपुर इलाके में दो विपणन समितियों को किसानों से धान खरीदने का काम मंत्रालय से मिला । इन समितियों ने बिचौलियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदे । वह फसल झारखंड के किसानों से छह सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर खरीदी गई थी । धोखाधड़ी का आलम यह है जिन किसानों के एकाउंट खुलवाए गए हैं, उनसे बैंक के "विदड्रॉल स्लिप" पर समर्थन मूल्य की दर १,०८० रुपए के हिसाब से भरवाई जा रही है । पैसा निकालने के बाद उन्हें छह सौ से ८३० रुपए की दर से नकद दिया जा रहा है । लिखित शिकायतें पाने के बाद प्रशासन अपनी जांच की औपचारिकताएं पूरी करने में लगा है । राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर ऐसे आरोप मढ़ने में व्यस्त हैं । धान और आलू की फसल के मामले में जमीनी हकीकत बिचौलियों पर राजनीतिक वरदहस्त की कहानी बयान करते हैं । समर्थन मूल्य चाहे जो भी हो, वाममोर्चा के जमाने में माकपा की लोकल समितियां अपने हिसाब से मूल्य निर्धारित करती थीं और राइस मिलों को धान बिकवा देती थीं या कोल्ड स्टोरेज से आलू निकालकर बाजार में बेचने की प्रक्रिया तैयार हो गई थी । वाममोर्चा सरकार के जमाने में स्वयंसेवी समूहों के जरिए खरीद की जाती थी । इस नेटवर्क में किसान रच-बस गए थे । स्वयंसेवी समूहों से खरीदने में कारोबारियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देना पड़ता था लेकिन ममता बनर्जी की नई सरकार ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों- नेशनल को-ऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल एग्रीकल्चरल को-ऑपरेटिव, एसेंशियल कमोडिटिज सप्लाई कॉरपोरेशन, बेनफेड और कॉन्फेड के जरिए फसल की खरीद का एलान किया है ।

पैदावार का मूल्य किसानों को नहीं मिल पाने के मुद्दे पर वाममोर्चा ही नहीं, सत्ताधारी गठबंधन की सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी सड़कों पर है । मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेता एक सुर में किसानों के मुद्दे को "अतिशयोक्ति" बताते हुए इसे वामो-कांग्रेस का मिला-जुला षड्यंत्र बता रहे हैंसरकारी बैंकों से लिया गया कर्ज अब भी बाकी है । मौजूदा मौसम की पैदावार कटने के बाद बाजार में बेच नहीं पा रहे बंगाल के किसान निराशा में आत्महत्या का रास्ता चुनने को मजबूर हो रहे हैं । आत्महत्या करने वाले किसानों का आंकड़ा अब ३० पार करने चला है । "चावल का कटोरा" कहे जाने वाले बर्द्धमान जिले में २२ किसान मौत को गले लगा चुके हैं । सभी मामलों में प्रशासन के पास लिखित बयान वाले "सबूत" मौजूद हैं कि आत्महत्या की वजहें पारिवारिक थीं या फिर उनमें से कोई-कोई मानसिक रूप से बीमार था जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है । बर्द्धमान में १२ लाख मीट्रिक टन धान की सरप्लस पैदावार हुई है जबकि चावल की सरकारी खरीद का अभियान अपने लक्ष्य से २० लाख मीट्रिक टन पीछे है । सरकारी मशीनरी अभी तक विपणन समितियां तक नहीं बना सकी हैं जबकि दावे सैकड़ों समितियों के गठन के किए जा रहे हैं । कुछेक जगहों पर समितियां बनी भी हैं और धान बेचा भी गया है तो किसानों को भुगतान नहीं मिल सका है। उधारी पर धान बिका है या फिर चेक मिले हैं, जो बाउंस हो रहे हैं । चावल मिलों के मालिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को तैयार नहीं क्योंकि पड़ोसी राज्यों से छह सौ से आठ सौ रुपए क्विंटल की दर पर धान मिल रहा है ।

राज्य सरकार के स्तर पर कवायद आदेश जारी करने और घोषणाओं तक ही सीमित है । इन एजेंसियों के साथ को-ऑर्डिनेशन की चेन नदारद है । बिचौलिए हावी हो रहे हैं । बिचौलियों के नेटवर्क में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हावी हैं । ऐसे में राइस मिल या कोल्ड स्टोर चला रहे कारोबारी जमकर मोल-भाव कर रहे हैं । १० हजार से अधिक राइस मिलों ने धान की खरीद रोक रखी है । खरीद हो भी रही है तो भविष्य में दाम चुकाने की शर्त पर । दूसरी ओर, आलू की नई फसल आ गई है और कोल्ड स्टोरेज में पिछली फसल का २५ लाख बस्ता आलू पड़ा हुआ है । जिन बिचौलियों ने बस्ते जमा कर रखे हैं, वे इसे निकाल नहीं रहे । दूसरी ओर, राज्य सरकार की कवायद इस आलू को दूसरे राज्यों और विदेश में निर्यात कराने के एलान तक ही सीमित है । आलू व्यवसायी समिति के अमर सरकार, बापीनाथ चक्रवर्ती, जगबंधु घोष जैसे किसानों का कहना है कि घोषणा के बावजूद सरकारी मार्केट समितियां सक्रिय नहीं हुई हैं । 




गुरुवार, फ़रवरी 02, 2012

२ज़ी गाड गिफट

2जी घोटाले की गाज उपभोक्ताओं पर भी गिरेगी। १२२ मोबाइल कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं। कंपनियों को चार माह में दोबारा लाइसेंस लेने के लिए बोली में शामिल होना है। सरकार भी इस बार पिछली बार सस्ते में दिए गए इन लाइसेंसों से ज्यादा पैसा वसूलकर अपनी स्थिति संभालने की कोशिश करेगी। पैसा जितना ज्यादा खर्च होगा, वह कंपनियां रिकवर भी जनता से ही करेंगी और इसी कारण कंपनियों के टैरिफ व प्लान महंगे हो जाएंगे और सुविधाओं में भी कटौती हो सकती है। मोबाइल कंपनियों के खर्च बढऩे से कॉल दरें महंगी हो सकती हैं। कंपनियां अगर अपने लाइसेंस नहीं बचा पाई तो लोगों को अपना नैटवर्क व घ्लान बदलने पड़ेंगे। लोगों को मिल रही सस्ती सुविधाएं कट जाएंगी। एक पैसा कॉल का घ्लान खत्म ही हो सकता है। यह साफ नहीं है कि रद्द हुए लाइसेंस के बदले नए आवंटन की जो प्रक्रिया होगी उसमें इन कंपनियों को शामिल किया जाएगा या नहीं। स्पैक्ट्रम का पूरा इस्तेमाल होगा तो कॉल ड्राप की समस्या खत्म हो जाएगी। नेटवर्क क्वालिटी बेहतर हो सकती है। लाइनों में आने वाली बाधा खत्म हो जाएगी। 

बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

शाबाश टीम इंडिया, आपने वादा निभाया,

गजब रहा आज का मैच, जैसाकि अनुमान था नतीजे का, वही हुआ। 
माही वादा करके पलटता नहीं है, यह उसने फिर साबित कर दिया। जब हम इंगलैंड के बाद ऑस्टे्रलिया की धरती पर टेस्ट, वन डे में जबरदस्त प्रदर्शन कर चुके हैं, फिर २०-२० में कैसे पीछे रहते हैं।
भई आपुण तो टीम इंडिया का जबरदस्त फैन है, जैसे पाक का चाचा, वैसे आपुण,। तुम ऐसे ही हारते रहो धौनी, हम तुम्हारे साथ हैं।
कोई बात नहीं आईपीएल में खेलो, पैसा तो वहीं से आएगा। जलवा, जज्बा और जुनून ऐसी ही कायम रखना। हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा। ऑस्टे्रेलिया से लौटेगो, तो भी अपण तुमहारा जबरदस्त इस्तकबाल करेगा। हमें आप से ही तो हैं ऐसी उम्मीदें।

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...