मंगलवार, जून 12, 2018

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी सड़क से बदल रही किस्मत

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी
सड़क से बदल रही किस्मत
केजीपी एक्सप्रेस वे देश में अपनी तरह का पहला ऐसा नेशनल हाईवे होगा, जो हरित एक्सप्रेस कहाएगा। साथ ही इसमें सौर ऊर्जा संचालित एलईडी लाइटें होंगी। देश का पहला ड्रिप सिचाई वाला हाईवे होगा। इसके निर्माण से आसपास के क्षेत्र की तस्वीर बदल रही है। सड़क किनारे जमीन महंगी हो रही हैं, नए निर्माण होने जा रहे हैं, गांवों का विस्तारीकरण होगा। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ने की उम्मीद है। व्यापार-कारोबार में बढ़ोत्तरी होगी। इसके सफर पर यह जानने की कोशिश की कि इसने लोगों के जीवन स्तर को कैसे प्रभावित किया है।

हाइवे से ठीक नीचे 15 सौ लोगों की आबादी का एक गांव है, मावी कलां। यहां पर खपरैल से बनी छोटी-छोटी झाेपड़ियां, इनमें जमा किया जा रहा है प्याज। 12वीं पास अनीश चंद महिला मजदूरों को लेकर प्याज साफ कराकर जमा करा रहा है। कहता है जब भाव आसमान छुएंगे तो ही वो इन्हें बेचेगा। अनीश तो अपने पिता के काम में हाथ बंटा रहा है। उसका सपना आर्मी में भर्ती होने का है, जिसकी वो तैयारी कर रहा है। एक्सप्रेस वे के निर्माण पर जरा कटु लहजे में कहता है कि अभी तो ये पूरा बना नहीं है तो कितनी जिंदगियां निगल गया है। आज भी एक हादसा हुआ है। कल पता नहीं और कितनी जाने ले लेगा। बकौल अनीश इस एक्सप्रेस वे के निर्माण से उनके गांव की तस्वीर में कोई फर्क नहीं आया है।

बुजुर्ग सत्यवीर ने बताया कि इस सड़क ने उसकी रोज़ी रोटी भी ठप कर रखी है। वो इस उम्र में मेहनत नहीं कर सकता, इसलिए खेरड़ा गांव के पुल के नीचे आकर खरबूजों की रेहड़ी लगाता है, जिससे करीब 100 रुपए ही कमा पाता है। हालांकि उसको उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कमाई बढ़ेगी।
खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे
कृष्ण कुमार कहते हैं कि नई सड़क बनने के बाद खेतीबाड़ी अब बची नहीं। जमीन सड़क में समा गई। यूपी में किसानों को करोड़ों का मुआवजा मिला, जबकि हरियाणा में लाखों भी बमुश्किल दिए गए। उनकी कमाई आधी रह गई है। सड़कें बनने से आसपास हरियाली बची नहीं। वहीं गांव 25 फुट नीचे हो गए हैं। खेतों से काटकर मिट्टी यहां भरी गई। इसके किनारे जाली की बाड़ लगा दी है। सड़क में आना जाना दो हिस्सों में बंट गया है। इससे यहां ठहराव खत्म हो गया है। नतीजतन कोई दुकानदारी की संभावना भी नहीं बची। उनकी एक और शिकायत है कि इन चौड़ी तेज रफ्तार सड़कों से दुर्घटनाएं भी बढ़ गई हैं, जिसकी वजह से लोग अब सड़क पार करने से भी डरते हैं। उनका कहना है कि हो सकता है कि एक्सप्रेस वे ने कुछ लोगों को बहुत फायदा पहुंचाया हो, लेकिन वे इसकी वजह से हाशिए पर जरूर चले गए हैं.
कहीं और की लगती हैं ये सड़क
सोनीपत से निकलकर जैसे ही कुंडली के राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचे, तो अचानक से यूं लगा कि जैसे-कि अमेरिका या इंग्लैंड के किसी इलाके में आ गए हों। ये सड़कें भारत को बहुत दूर ले जाने के लिए बनी हैं, लेकिन लोगों को उन पर चलने के काबिल भी बनाना होगा।

-----इतिहास के पन्नों से-------
जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी की चर्चा जरूर होती है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था, जिसने भारत के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ा था। सड़क किनारे पेड़, सराय, मील के पत्थर और डाक वितरण प्रणाली का विकास आदि ऐसी अवधारणाएं थीं जो न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के कई हिस्सों के लिए नई थीं।

पहला ड्रिप सिंचाई एक्सप्रेस वे : यह भारत का पहला ड्रिप सिंचाई वाला एक्सप्रेस वे है। जिसमें दोनों लेन के मध्य जो पौधे लगाए गए हैं उनके लिए ड्रिप सिंचाई सुविधा रखी गई है।

टावरनुमा टोल प्लाजा : केजीपी पर जो टोल प्लाजा बन रहा है वह दूर से देखने में टावरनुमा है। इसका तरह का टोल प्लाजा पहले किसी एक्सप्रेस वे पर नहीं बना है। यह पूरी तरह लोहे का है और दोनों लेन के बीच में प्लाजा है जिस पर तीन फ्लोर बनाए गए हैं। जिस पर करीब 25 करोड़ की लागत आई है, जबकि सामान्य प्लाजा 2 करोड़ में बनता है।
यमुना एक्सप्रेस वे की तर्ज पर टोल लगेगा। जिसके टेंडर होंगे फिर रेट तय होंगे।

सोलर वे : यह हाइवे पूरी तरह सोलर से कनेक्ट हैं। सभी लाइटें सोलर से ही चलेंगी। जिसके लिए एंट्री पर ही 250 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। जो देखने में खुद भी एक हाइवे जैसा ही प्रतीत हो रहा है। इसके बाद हाइवे पर 6 पैकेज में करीब 200 जगह पर सोलर प्वाइंट बनाए गए हैं।

500 दिन में निर्माण : सद्भाव के प्रोजेक्ट मैनेजर वी के देसाई ने बताया कि 2016 के बाद जब इसका दोबारा निर्माण शुरू हुआ तो उस समय सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई का डेडलाइन दी थी। मई 2016 में शुर हुआ लेकिन 8 महीने किसानों के विवाद के चलते काम बंद रहा। अन्य कार्यों विवादों आदि के कारण भी करीब 200 दिन कार्य नहीं हुआ। केवल 500 दिन में इसका काम पूरा किया गया है।

2 हजार टन का है ओवरब्रिज : खेखड़ा पर जो रेलवे ओवरब्रिज बन रहा है वो करीब 2 हजार टन लोहे का बना है। जिसकी एक साइड की लंबाई 70 मीटर और चौड़ाई 22 मीटर है। इसके नीचे कोई पिलर नहीं रहेगा। इस तरह का यह पहला ओवरब्रिज है।

हाइवे पर होंगे भारत दर्शन :

यह देश का पहला ऐसा एक्सप्रेस वे होगा जिस पर चलते हुए छुट्टी मनाने जैसी फिलिंग आएगी और भारत देश का मौका मिलेगा। इसके दोनों किनारों पर जगह-जगह देश के करीब 20 प्रसिद्ध स्मारकों के छोटे डेमो रखे गए हैं। जिसमें कहीं गेटवे ऑफ इंडिया तो कहीं इंडिया गेट और अशोक चक्र से लेकर कुतुब मीनार आदि के डेमो सड़क किनारे बनाए गए हैं जो काफी भव्य दिखते हैं।


केजीपी के बारे में वो सब जो शायद कुछ ही लोग जानते हैं -

आंकड़ों में एक्सप्रेस वे : मेजर ब्रिज 4 हैं, जिसमें यमुना नदी पर, हिंडन नदी पर, आगरा कैनाल और खेखड़ा ओवरब्रिज।

छोटे ब्रिज : 45

रेलवे ब्रिज : 6

फ्लाईओवर : 5

इंटरचेंज : 9

अंडरपास : 55

छोटे अंडरपास : 152

कलवर्टर्स : 113

वे साइड एमीनिटीज : 2

कुल लंबाई : 135 किलोमीटर
2006 में शुरू हुई थी प्लानिंग :
हरियाणा के कुंडली, पलवल और दिल्ली के गाजियाबाद को जोड़ने व दिल्ली को ट्रैफिक की समस्या से निजात दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बाहर रिंग रोड बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे की प्लानिंग 2006 में शुरू हुई थी। यह एक्सप्रेस-वे इसलिए बनाया है कि हरियाणा से यूपी आने-जाने वाले भारी वाहन दिल्ली में न घुसें। अभी इनके दिल्ली से गुजरने पर शहर में ट्रैफिक का बोझ बढ़ता है।

क्या है पूरा प्रोजेक्ट?
2006 में बनना शुरू हुए 271 किमी लंबे इस एक्सप्रेस वे के दो हिस्से हैं। पहला, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से गाजियाबाद होते हुए पलवल जाएगा। दूसरा, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से मानेसर हाेते हुए पलवल को जोड़ेगा।

क्या होगा फायदा?
एक्सप्रेस-वे पूरे होने से हरियाणा का एक प्रमुख हिस्सा पलवल प्रदेश के अन्य हिस्सों से कनेक्ट हो पाएगा। वहीं दिल्ली से होकर दूसरे राज्यों तक जाने वाले 80% वाहन सीधे इससे होकर जा सकेंगे। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल या जम्मू-कश्मीर तक जाने वालों को दिल्ली के ट्रैफिक में नहीं फंसना पड़ेगा। वहीं वायु-ध्वनि और धूल से होने वाले प्रदूषण में 25% तक की कमी आएगी।

कब पूरा होना था?
दोनों ओर के एक्सप्रेस-वे 2009 में बन जाने थे। बाद में कॉमनवेल्थ गेम के पहले 2010 में इन्हें बनाने की डेड लाइन तय की गई। इसके बाद भी तारीखें बढ़ती गईं। अब 2018 में ये शुरू हो रहे हैं, यानी नौ साल लेट हो गया। लेकिन दूसरा पहलु यह है कि इस पर भाजपा सरकार आने के बाद 201 में दोबारा कार्य शुरू हुआ था और 18 जुलाई 2018 में निर्माण पूरा करने की डेडलाइन खुद सुप्रीम कोर्ट ने रखी थी जबकि उसमें अभी समय है।

अभी शुरू किया तो क्या है खतरा : एक्सपर्ट के अनुसार हाइवे का काम पूरा होने में अभी समय है। बिना सही कनेक्टिविटी के शुरू करने में काफी खतरे हैं। इससे रोज सड़क पर दुर्घटनाएं होंगी। फिनिशिंग का कार्य भी काफी शेष है और बारिश आदि आने पर काफी परेशानियां इसमें आ सकती हैं। दुर्घटनाएं होंगी और लोगों की जान अगर इसकी वजह से गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...