मंगलवार, जून 12, 2018

आकाशवाणी की शुरुआत और एफएम का वर्चस्व

आकाशवाणी का विकास
माना जाता है कि दुनिया में पहला नियमित रेडियो प्रसारण अमेरिका के पिट्सबर्ग में सन् 1920 में किया गया था। इंग्लैंड में मारकोनी की कंपनी ने 23 फरवरी 1920 में चेम्सफोर्ड में पहली बार सफल प्रसारण किया। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने नवम्बर 1922 में काम करना शुरू कर दिया। भारत में भी रेडियो प्रसारण इसी काल में आरंभ हो गया। अगस्त 1921 में द टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक एवं टेलीग्राफ विभाग के साथ मिलकर अपने बॉम्बे स्थित कार्यालय से पहला रेडियो प्रसारण किया। गवर्नर ने पहले प्रसारण का आनंद 175 किलोमीटर दूर पूना स्थित अपने कार्यालय में लिया। जल्दी ही इसके बाद कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में रेडियो क्लब गठित किये गये। आरंभ में ब्रिटिश सरकार रेडियो को लेकर काफी उलझन में रही। उसे आशंका थी कि कहीं रेडियो का उपयोग आजादी आंदोलन के नेता जनता में अपनी बात पहुंचाने के लिए ना करने लगे वहीं सरकार स्वयं भी रेडियो के माध्यम से भारतीयों को अपने प्रभाव में रखना चाहती थी। आरंभ में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने रेडियो प्रसारण किया लेकिन इस कंपनी के घाटे में चले जाने के बाद रेडियो प्रसारण का काम ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
आजादी के समय भारत में आकाशवाणी के केवल छह स्टेशन थे। इनके अलावा रजवाड़ों में भी कुल पांच रेडियो स्टेशन काम कर रहे थे। रेडियो सेटों की संख्या सरकारी रिकोर्ड के अनुसार 248000 थी। देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री सरदार पटेल बने। आजादी के बाद सरकार ने आकाशवाणी के विकास की वृह्द योजना बनायी जिसके तहत देश के सभी हिस्सों में रेडियो स्टेशन एवं स्टूडियो स्थापित करना तय किया गया। इस पायलेट प्रोजेक्ट के तहत जालंधर, जम्मू, पटना, कटक, गुवाहाटी, नागपुर, विजयवाड़ा, श्रीनगर, इलाहाबाद, अहमदाबाद, धारवार और कोझीकोड में स्टेशन खोले गये। अनेक स्टेशनों की प्रसारण क्षमता बढ़ायी गयी। और इस प्रकार मात्र तीन सालों में ही आकाशवाणी केन्द्रों की संख्या बढ़कर 21 हो गयी और अब 21 फीसदी जनसंख्या द्वारा 12 प्रतिशत भूभाग पर रेडियो सुना जाने लगा।
बाद में देश की पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत रेडियो के विकास के लिए अलग से धन राशि मुहैया कराई गयी। भारतीय नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती भौगोलिक रूप से देश का विशाल होना तो थी ही इसके अलावा पर्याप्त धन का अभाव भी रेडियो के प्रसार में आड़े आ रहा था। पहली पंचवर्षीय योजना के तहत कुल 3.52 करोड़ की राशि आकाशवाणी के विकास के लिए आबंटित की गयी। नये स्टेशनों का खुलना जारी रहा। इस योजना के दौरान पूना, राजकोट, जयपुर और इंदौर में नये स्टेशन खोले गये। योजना के अंत में आकाशवाणी देश के लगभग 50 फीसदी आबादी और 30 प्रतिशत भूभाग पर सुने जाने लगे।
डॉक्टर केसकर के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद आकाशवाणी पर फिल्म संगीत के प्रसारण पर रोक लगाकर शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित किया गया। इसी दौरान रेडियो सीलोन पर प्रसारित बिनाका हिट परेड पर लोगों ने भारतीय फिल्म संगीत सुनना आरंभ कर दिया। अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम बिनाका गीतमाला भारतीयों में खूब लोकप्रिय हो गया। रेडियो सीलोन से मुकाबला करने के लिए 1957 में आकाशवाणी ने अपनी विविध भारती सेवा आरंभ की। आकाशवाणी ने साठ के दशक में हरित क्रांति समेत सभी विकास योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल में सरकार ने आकाशवाणी को अपने विचारों को जनता में प्रचारित करने का एक माध्यम बना दिया। आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी सत्ता में आई तो उसने वर्गीज समिति का गठन करके सरकार माध्यमों को स्वायत्ता देने की पहल की। जनता सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल पायी।
अस्सी के दशक में रेडियो पर लाइसेंस फीस समाप्त कर दी गयी। देश के दूरदराज इलाकों में भी आकाशवाणी केन्द्रों का प्रसार हुआ लेकिन टेलीविजन की लोकप्रियता का असर रेडियो पर पड़ने लगा और शहरों में रेडियो श्रोताओं में कुछ कमी आयी। इसका एक कारण आकाशवाणी में नयेपन का अभाव भी था। नब्बे के दशक में उदारीकरण और वैश्वीकरण का तेजी से प्रसार हुआ। सरकार ने निजी निर्माताओं को एफ.एम. चैनलों पर टाइम स्लॉट बेचना आरंभ कर दिया। ये प्रयोग काफी सफल भी रहा। इसी दौरान आकाशवाणी ने स्काई रेडियो और रेडियो पेजिंग सेवा आरंभ की।
सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. रेडियो आरंभ हो गया। ये आकाशवाणी के लिए एक नये युग की शुरूआत थी जब उसका मुकाबला प्राइवेट चैनलों से होने वाला था। प्रतिस्पर्धा में आकाशवाणी ने भी एफ.एम. गोल्ड और रेनबो चैनल आरंभ किये।
एफ.एम. रेडियो क्रांति
नब्बे के दशक की शुरूआत में उदारीकरण की आर्थिक नीतियों के बाद से ही देश में निजी रेडियो चैनलों की जमीन तैयार होने लगी थी। सन् 1993 में आकाशवाणी ने निजी निर्माताओं से कार्यक्रम बनवाना आरंभ किया और ये प्रयोग लोकप्रिय भी रहा। दिल्ली और मुंबई में टाइम्स और मिड डे समूह ने आकाशवाणी के लिए कार्यक्रम बनाये। सन् 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में हवाई तरंगों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया। मार्च 2000 में सरकार ने देश के 40 बड़े शहरो में 108 रेडियो स्टेशनों के लाइसेंसे देने के लिए खुली बोली लगायी। निजी कंपनियां रेडियो बाजार का सही अनुमान नहीं लगा पायी। अत्यधिक बोली लगा देने के कारण बाद में कंपनियों को अहसास हुआ कि रेडियो चैनल चलाना घाटे का सौदा होगा क्योंकि सरकार को भी मोटी रकम लाइसेंस फीस के रूप में दी जानी थी। सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. चैनल रेडियो सिटी बैंगलौर से आरंभ हुआ। इसके बाद देशभर में एफ.एम. रेडियो चैनलों के खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। अनेक कंपनियों ने आरंभिक दौर में घाटा भी उठाया। इस दौर में केवल मैट्रो शहरों में ही चैनल खोले गये थे। नये एफ.एम. चैनलों ने स्थानीय सूचनाओं और स्वाद के मुताबिक कार्यक्रम परोसना आरंभ किया। सड़क पर जाम, बाजार में सेल, स्कूलों में दाखिला और अन्य स्थानीय समस्याओं को उठाने के साथ-साथ लोकप्रिय संगीत के बलबूते जल्दी ही एफ.एम. चैनल आम लोगों की पहली पसंद बन गये।
सन् 2003 में सरकार ने डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को लाइसेंस फीस में कमी लाने के साथ-साथ नियमों में थोड़ी ढ़ील देनी चाहिए। दूसरे दौर में सन् 2006 में सरकार ने देश के 91 शहरों में रेडियो स्टेशनों की बोली से करीब 100 करोड़ की कमाई की। समाचार पत्र समूह-दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, मलयालम मनोरमा, मातृभूमि, हिन्दुस्तान टाइम्स, डेली थांती इत्यादि- के अलावा जी समूह, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों ने इस बोली में हिस्सा लिया। सन् 2006 में सरकार ने एक समिति का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य रेडियो चैनलों में समाचार एवं समसामयिक कार्यक्रमों को अनुमति देने के बारे में सरकार को सलाह देना था। समिति ने सिफारिश दी कि सरकार को चैबीस घंटे टेलीविजन समाचार चैनलों की तर्ज पर रेडियो समाचार चैनल आरंभ करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए।

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