आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भारत के जनमानस तक सूचना शिक्षा व मनोरंजन के उद्देश्य से अपने आदर्श बहुजन हिताय बहुजन सुखाय तथा सत्यम सुंदरम को प्रदर्शित करते आ रहे हैं रेडियो एवं टेलीविजन के प्रसारण में गुणवत्ता आए सरकारी नियंत्रण तथा अफसरशाही के बंधनों से मुक्ति मिल सके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही साथ जनमानस के उन्नयन में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कैसे सार्थक हो आदि प्रश्नों पर कई वर्षों से बहस होती आई है 1948 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक संवैधानिक सभा में भाषण देते हुए कहा था वास्तव में हमारा उद्देश्य और आस्वायत्त निगम बनाने का है यद्यपि नीतियों एवं अन्य दिशानिर्देशों के जरिए सरकार नियंत्रण रखती है लेकिन फिर भी सरकारी विभागों को इस के कार्यकलापों में कोई दखलंदाजी नहीं होती है 1964 में इंदिरा गांधी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पद ग्रहण किया तो उन्होंने एक समिति का गठन किया इस समिति के अध्यक्ष ए के चंदा थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1966 में पेश की समिति के अध्यक्ष ने रिपोर्ट में लिखा था कि प्रसारण जैसे संवेदनशील माध्यम को सरकारी नियमों और दिशा निर्देशों से नहीं चलाया जा सकता लेकिन उनकी इस बात पर गौर नहीं किया गया इसके बाद 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो आकाशवाणी एवं दूरदर्शन को स्वायत्तता देने संबंधी दिशा निर्देश सुलझाने दिशा-निर्देश समझाने हेतु वर्गीज समिति का गठन किया गया इस समिति ने सुझाव दिया कि आकाशवाणी और दूरदर्शन को पूर्ण स्वायत्तता और विश्वास का पूर्ण दायित्व इन माध्यमों के पास रहे समिति की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा नया विधेयक प्रस्तुत किया परंतु इसके कार्यक्रम में आने से पूर्व ही 1979 मे लोकसभा भंग हो गई इसके 10 वर्ष पश्चात 29 दिसंबर 1990 को राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने प्रसार भारती विधेयक संसद मेंंंंं प्रस्तुत किया जिसे पास तो कर दिया गया पर लागू नहीं किया जा सका इस विधायक के अनुसार दूरदर्शन और आकाशवाणी दो अलग अलग विभाग होंगे जिसके प्रबंधन केेेे लि एक निगम होगा निगम के प्रबंध के लिए एक 9 सदस्यों का निदेशक मंडल होगा जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति की अनुशंसा पर करेंगे नियुक्त समिति में राज्यसभा के सभापति भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 10 सदस्य रखे जाने की बात कही गई। यह कहा गया कि यह परिषद सुनिश्चित करेगी कि प्रसार भारती निर्बाध सूचना प्राप्तत करने के नागरिक के अधिकार का उल्लंघन नहीं करें और राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक विविधता में एकता बनाए रखेंें प्रसार भारतीय के बारे में शिकायत सुनकर उसे दूर करने की चेष्टा भी परिषद द्वारा होगी विधेयक में प्रावधान था कि प्रसाार भारती संसद के माध्यम से भारत की जनता के प्रति उत्तरदाई होगा निगम देश की एकता अखंडता और संविधान में निहित लोकतांत्रिक व सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखकर कार्य करेगा केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के हित में समय-समय पर प्रसारण रोकने के निर्देश देने का अधिकार होगा जिसकी प्रति संसद में रखनी होगी यद्यपि यह विधेयक 1990 में लागू ना हो सका और लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद इस पर गौर नहीं किया गया तब 1997 में सरकार ने पुणे इस विधेयक को संसद में रखा और प्रसार भारती के नाम से भारतीय प्रसारण निगम की रचना की यह निगम अस्तित्वव में आया 23 नवंबर 1997 को आर एस एस गिल इसके पहले सीईओ नियुक्त किए गए।
patarkar mann jab bhi kahin ghumkaree par nikal padta hai to kuch kamaal ho jata hai
मंगलवार, जून 12, 2018
प्रसार भारती
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भारत के जनमानस तक सूचना शिक्षा व मनोरंजन के उद्देश्य से अपने आदर्श बहुजन हिताय बहुजन सुखाय तथा सत्यम सुंदरम को प्रदर्शित करते आ रहे हैं रेडियो एवं टेलीविजन के प्रसारण में गुणवत्ता आए सरकारी नियंत्रण तथा अफसरशाही के बंधनों से मुक्ति मिल सके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही साथ जनमानस के उन्नयन में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कैसे सार्थक हो आदि प्रश्नों पर कई वर्षों से बहस होती आई है 1948 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक संवैधानिक सभा में भाषण देते हुए कहा था वास्तव में हमारा उद्देश्य और आस्वायत्त निगम बनाने का है यद्यपि नीतियों एवं अन्य दिशानिर्देशों के जरिए सरकार नियंत्रण रखती है लेकिन फिर भी सरकारी विभागों को इस के कार्यकलापों में कोई दखलंदाजी नहीं होती है 1964 में इंदिरा गांधी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पद ग्रहण किया तो उन्होंने एक समिति का गठन किया इस समिति के अध्यक्ष ए के चंदा थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1966 में पेश की समिति के अध्यक्ष ने रिपोर्ट में लिखा था कि प्रसारण जैसे संवेदनशील माध्यम को सरकारी नियमों और दिशा निर्देशों से नहीं चलाया जा सकता लेकिन उनकी इस बात पर गौर नहीं किया गया इसके बाद 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो आकाशवाणी एवं दूरदर्शन को स्वायत्तता देने संबंधी दिशा निर्देश सुलझाने दिशा-निर्देश समझाने हेतु वर्गीज समिति का गठन किया गया इस समिति ने सुझाव दिया कि आकाशवाणी और दूरदर्शन को पूर्ण स्वायत्तता और विश्वास का पूर्ण दायित्व इन माध्यमों के पास रहे समिति की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा नया विधेयक प्रस्तुत किया परंतु इसके कार्यक्रम में आने से पूर्व ही 1979 मे लोकसभा भंग हो गई इसके 10 वर्ष पश्चात 29 दिसंबर 1990 को राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने प्रसार भारती विधेयक संसद मेंंंंं प्रस्तुत किया जिसे पास तो कर दिया गया पर लागू नहीं किया जा सका इस विधायक के अनुसार दूरदर्शन और आकाशवाणी दो अलग अलग विभाग होंगे जिसके प्रबंधन केेेे लि एक निगम होगा निगम के प्रबंध के लिए एक 9 सदस्यों का निदेशक मंडल होगा जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति की अनुशंसा पर करेंगे नियुक्त समिति में राज्यसभा के सभापति भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 10 सदस्य रखे जाने की बात कही गई। यह कहा गया कि यह परिषद सुनिश्चित करेगी कि प्रसार भारती निर्बाध सूचना प्राप्तत करने के नागरिक के अधिकार का उल्लंघन नहीं करें और राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक विविधता में एकता बनाए रखेंें प्रसार भारतीय के बारे में शिकायत सुनकर उसे दूर करने की चेष्टा भी परिषद द्वारा होगी विधेयक में प्रावधान था कि प्रसाार भारती संसद के माध्यम से भारत की जनता के प्रति उत्तरदाई होगा निगम देश की एकता अखंडता और संविधान में निहित लोकतांत्रिक व सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखकर कार्य करेगा केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के हित में समय-समय पर प्रसारण रोकने के निर्देश देने का अधिकार होगा जिसकी प्रति संसद में रखनी होगी यद्यपि यह विधेयक 1990 में लागू ना हो सका और लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद इस पर गौर नहीं किया गया तब 1997 में सरकार ने पुणे इस विधेयक को संसद में रखा और प्रसार भारती के नाम से भारतीय प्रसारण निगम की रचना की यह निगम अस्तित्वव में आया 23 नवंबर 1997 को आर एस एस गिल इसके पहले सीईओ नियुक्त किए गए।
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