बुधवार, फ़रवरी 05, 2014

अनोखे बैलेंस के खेल, हर हुनर है कमाल का


गांव किला रायपुर ग्रामीण खेल
ये एक ऐसा ओलंपिक है, जिसमें नाच रहे हैं घोड़े, हो रही है कुछ अलग तरह की रेस, बिलकुल अजब अनोखे खेल। ऐसे ओलंपिक जो किसी बड़े शहर में नहीं बल्कि एक गांव में हो रहे हैं, लेकिन इनकी ख्याति दुनिया के हर कोने तक जा फैली है। 1933 से अब तक हो रहे हैं ये ग्रामीण किला रायपुर खेल, जिन्हें मिनी ओलंपिक के नाम से भी जानते हैं। इसके खेल और खिलाड़ी है भी हैं बिल्कुल जुदा। यहां बैलेंस और फर्राटा रेस का कुछ अलग अंदाज में होता है खेल। यहां खिलाड़ी दिखाते हैं अपना दम और पारंपरिक खेल। हैरतंगेज स्टंट, इसमें बड़े-बड़े सितारे तो नहीं लेकिन इनका हुनर कमाल कर देने वाला होता है। यहां उम्र का कोई बंधन नहीं है क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे हरेक अपना खेल दिखाता है। यहां बैलगाडिय़ों की फॉर्मूला वन रेस का तो हरेक दीवाना है। इसे देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटती है। इतना सबकुछ एक स्टेडियम में एक साथ कई खेलों का प्रदर्शन देख दर्शकों के दिलों में उत्सुकता का ज्वार भाटा ऐसे ठाठें मारता है कि जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। ओलंपिक गांव किला रायपुर स्टेडियम में जब जांघ पर थाप देकर प्रतिद्वंदी टीम को ललकारती है तो हर ओर से सीटियां ही बजती हैं।
एहनां दियां ब्रेकां नईं हुंदियां
बैलगाड़ी रेस शुरू हो रही थी, जिसका इंतजार सुबह से खेल मैदान में मौजूद हर एक दर्शक को था। लौ वीर जी तैयारी पेहली हीट दी... मैदान में यह आवाज सुनाई दी। मारो वी तालियां मेला हुण शुरू होया, और देखते ही देखते तालियों की गडग़ड़ाहट से पूरा मैदान गूंज ऊठा। फिर से आवाज आई छड्ड दियो मदान एहणा दियां ब्रेका नई हुंदियां। नजरें घूमी तो बैलों पर सवार युवा थ्री नॉट थ्री गोली की तरह हवा को मार करते हुए मैदान के एक छोर से फीनिश लाइन तक दौड़ते आ रहे थे। मैदान में जमघट तो सुबह से ही था, लेकिन शोर-शराबा और तालियों को ज्यादा शोर बैलगाड़ी रेस के दौरान सुनाई दिया। मिनी ओलंपिक्स के इतिहास में पहली बार 95 बैलगाडिय़ां ने भाग लिया है। यह भी अब तक का एक रिकॉर्ड दर्ज हुआ है। अजब अनोखे अद्भुत रूरल मिनी ओलंपिक्स का विभिन्न खेलों के साथ-साथ बैलगाडिय़ों की दौड़ के लिए खास रहा। इस मिट्टी के जोशीले हर धावक के जज्बे को सलाम
ये किला रायपुर का ग्रामीण चार दिवसीय खेल मेला था, जो रविवार को खत्म हुआ। यह सिर्फ  एक परंपरा का खेल मेला नहीं, वरन ये पंजाब की सौंधी मिट्टी की खुशबू और उसके लालों की बहादुरी के गीतों भरा एक उत्सव है। यहां जब बैल, घोड़े, खच्चर, ट्रैक्टर, ऊंट दौड़ते हैं, तो उनके आगे हरकारों की तरह मैदान में उपस्थित हर बंदे का जोश छलांगें मार-मारकर दौड़ता है। यहां जब कोई बहादुर, क्या बुजुर्ग-क्या गबरू अपना हैरतंगेज करतब दिखाता है, तो हर जिंदादिल जोरदार शाबाशी दिए बिना नहीं रह पाता है। यहां चीयर करने के लिए किराए के लोगों की जरूरत नहीं होती। जनाब न यहां दर्शकों को बुलाने के लिए किसी दूसरे तमाशों का तामझाम करने की जरूरत पड़ती है। ये तो किला रायपुर के ग्रामीण खेल का आकर्षण है, जो हर शख्स इस चार दिन के उत्सव में खुद-ब-खुद खिंचा चला आया। इसका गवाह देश-विदेश से पहुंचे लाखों दर्शक हैं।
85 साल के जवां तेजा विजेता
गांव फुलावाल के 85 साल के जवां तेजा सिंह ने 100 मीटर की रेस जीती। तेजा सिंह कहते हैं कि वह 20 साल से लगातार इसमें हिस्सा ले रहे हैं और हर बार उन्हें कोई शिकस्त नहीं दे पाया। बकौल तेजा, वो किला रायपुर के अलावा पंजाब की ग्रामीण खेलों में न तो इनाम पाने के लिए दौड़ते हैं और न ही पदक की आस में। उनका दौडऩे के पीछे सिर्फ यही मकसद है कि युवा उन्हें देखकर कुछ सीख सकें। अगर युवा नशे की गिरफ्त से दूर रह सके, तो इस उम्र तक आदमी सेहतमंद रह सकता है।

बुधवार, जनवरी 08, 2014

शामली-मुज़फ्फरनगर के दंगा राहत शिविर के हालात

उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर, शामली, बाघपत, मेरठ, और सहारनपुर जिलों के ग्रामीण इलाकों में सितम्बर के पहले हफ़्ते में हुए दंगों के बाद से हज़ारों मुसलमान चार महीने से राहत शिविरों में रह रहे हैं | पिछले हफ़्ते से, उत्तर प्रदेश सरकार ने जबरन शिविर बंद करने और लोगों को वहाँ से निकालने की नीति अपना ली है| परिणामस्वरूप दंगा-पीड़ित लोग और भी ज़्यादा परेशान और असुरक्षित हो गए हैं |
पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) की तरफ से एकपांच सदस्यीय जांच दल  28 से 30 दिसंबर 2013 के बीच राहत शिविरों का दौरा करने गया | उद्देश्य था कि शिविरों में रह रहे लोगों के हालत और उन्हें हो रही परेशानियों का जायजा लेना | टीम ने 8 शिविरों का दौरा किया और 60 से भी ज्यादा गाँवों के लोगों से बातचीत की | शामली ज़िले में टीम ने मलकपुर, बर्नावी, कांधला, और मदरसा (शामली शहर) शिविरों का दौरा किया | मुज़फ्फरनगर ज़िले में टीम ने लोई, शाहपुर, जोगिया-खेडा और जॉला शिविरों का दौरा किया | इसके साथ, टीम ने 5 अन्य शिविरों के लोगों से मुलाक़ात की | कुल मिलाकर पीयूडीआर. ने 13 शिविरों के लोगों से बातचीत की| टीम ने शामली के ज़िला अधिकारी, मुज़फ्फरनगर के अतिरिक्त ज़िला अधिकारी, फुगाना थाना के थाना अधिकारी, लोई और जोगिया खेडा गाँव के प्रधान, सवास्थ्य-कर्मियों, शिक्षकों, पत्रकारों, धार्मिक संगठनों के सदस्यों, शिविर समितियों के सदस्यों, और अन्य गैर-सरकारी संस्थाओं से जुड़े राहत कर्मियों से बातचीत की |
 जबरन राहत शिविरों से दंगा-पीड़ितों का निकाला जाना
दुर्भाग्य से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की सुनवाई और मीडिया द्वारा पीड़ितों के हालातों के बारे में लगातार ख़बरें दिए जाने का उल्टा असर हुआ है | प्रशासन अब शिविरों को बंद करने पर तुल गया है और लोगों को हटाने के लिए अब तरह-तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं | जैसे कि पीड़ितों के खिलाफ़ सरकारी ज़मीन पर अनधिकृत रूप से रहने के लिए मामला दर्ज़ कराना, राहत शिविर समितियों पर दबाव डालना, बड़े पैमाने पर लोगों को डराने के लिए पुलिस और अफसरों की मौजूदगी और दंगा पीड़ितों कि बड़ी बस्तियों को तोड़ना |
29 और 30 दिसंबर को लोई शिविर में रह रहे खरड गाँव के सौ से भी ज़्यादा परिवारों को किसी सरकारी बैरक में अस्थायी रूप से स्थानांतरित किया जा रहा था | उन्हें यह कहकर हटाया जा रहा था, की ऐसा उन्हें ठण्ड से बचाने और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए किया जा रहा है | इन्हें अभी तक पुनर्वास मुआवज़ा नहीं मिला है |
यह स्पष्ट है की दंगों के बाद लोग अपने गाँव वापस जाने के ख्याल से ही असुरक्षित महसूस कर रहे हैं | उन मामलों में यह असुरक्षा और भी ज्यादा है जिन में हमलावरों के खिलाफ केस तक दर्ज़ नहीं किया गया है और हमलावर उन्हें धमकाते हुए खुले घूम रहे हैं | इसके बावजूद अन्य गावों के परिवारों को शिविर छोड़कर अपने-अपने गाँव जाने के लिए कहा जा रहा था  |
 सरकारी एजेंसियों द्वारा राहत मुहैय्या कराने में उदासीनता
हमारी टीम ने पाया की एक भी राहत शिविर ऐसा नहीं था जिसे सरकार ने शुरू किया हो या जिसका प्रबंधन सरकार द्वारा किया जा रहा हो | ज़्यादातर राहत शिविर मुसलमान-बाहुल्य गाँवों के पास पाए गए, जहां पीड़ित लोग दंगों के दौरान भागकर आये थे | हर शिविर में हमें प्रशासन की ओर से राहत सामग्री और सुविधाएं मुहैय्या कराने में उदासीनता के बारे में बताया गया | शिविर शुरू होने के 2 हफ्ते बाद से ही प्रशासन द्वारा राहत सामग्री उपलब्ध कराई जानी शुरू की गयी | 1 अक्टूबर के बाद प्रशासन ने शिविरों में खाद्य सामग्री भेजनी भी बंद कर दी गई, जॉला और जोगिया खेडा शिविरों में भी हमें ऐसा बताया गया | शीत लहर के निकट आने और 21 नवम्बर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशासन को राहत सामग्री दोबारा मुहैय्या कराने के आदेश के बाद भी गरम कपड़े या कम्बल उपलब्ध नहीं करवाए गए |
दिसंबर में जब प्रार्थियों ने, शिविरों में हुई 39 मौतों के बारे में सबका ध्यान केन्द्रित किया, तब जाकर प्रशासन ने 5 शिविरों में प्रत्येक परिवार के लिए दवाइयाँ और 200मी.ली. दूध बांटना शुरू किया |
शिविरों में बहुत सारे विद्यालय जाने वाले छात्र भी हैं | हालांकि कुछ जगहों पर प्राथमिक विद्यालयों की सुविधाएं उपलब्ध करवाई गईं हैं पर बड़ी कक्षाओं के बच्चों की पढ़ाई रुक गई है | पास के विद्यालयों में दाखिला देने से मना किया जा रहा है | सबसे बुरा प्रभाव तो छात्राओं पर हुआ है | और जिन बच्चों की पिछले साल बोर्ड की परीक्षा थी वे तो इम्तिहान देने का मौका खो ही चुके हैं | इन बच्चों ने न सिर्फ अपना एक साल गवाया है, बल्कि अब इनकी आगे की पढ़ाई बंद हो जाने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं |स्वास्थ्य सुविधायें न के बराबर हैं | ज़्यादातर शिविरों में थोड़ी-बहुत दवाइयां ही बांटी जा रही  हैं | शामली के ज़िला अधिकारी ने इस बात पर खेद भी जताया और इसका दोष खुद के ज़िले में उदासीन स्वास्थ्य सेवाओं पर मढ़ दिया | कई महिलाओं ने शिविरों में ही बच्चों को जन्म दिया है और कई गर्भावस्था के आखिरी पढ़ाव पर हैं | एक अच्छे स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सुविधायें पूरे ज़िले में कहीं उपलब्ध नहीं हैं, शिविरों में तो दूर की बात है | इन महिलाओं को पौष्टिक खाना उपलब्ध करवाने का प्रयास भी नहीं किया गया है | फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक समिति का गठन किया गया है जो शिविरों में हुई 34 बच्चों की मृत्यु के कारणों कि जांच कर रही है.
दिसंबर में राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायलय में दर्ज़ कराये गए एक शपथ-पत्र में कहा गया है की सितम्बर महीने में 58 शिविर चल रहे थे | शपथ-पत्र के अनुसार यह आंकड़ा घटकर दिसंबर में 5 हो गया था (4 शामली में और 1 मुज़फ्फरनगर में ) | हमारी टीम द्वारा यह कथन बिलकुल असत्य पाया गया | शिविर-वासियों ने बताया की 25 गाँवों में राहत शिविर चल रहे हैं | इनमें से कुछ गाँवों में एक से अधिक शिविर भी हैं | हमारी टीम द्वारा 13 ऐसी जगहों का दौरा स्वयं किया गया और अभी भी शिविर चल रहे हैं | कई पीड़ित लोगों को ठण्ड के कारण पास के घरों में शरण दिलाई जा चुकी है | इसलिए जितने लोग हमें शिविरों में दिखे, वे ज़ाहिर तौर पर असल में शिविरों में रह रहे लोंगों से कम ही थे |
30 दिसंबर को लोई शिविर में टीम की मुलाक़ात मुज़फ्फरनगर के अतिरिक्त ज़िला अधिकारी से हुई | उन्होंने जो बताया उससे सबसे ज़्यादा अचम्भित हुए | उनका कहना था कि शाहपुर गाँव में कोई शिविर नहीं चल रहा | ठीक एक घंटे के बाद टीम ने शाहपुर में 3 क्रियाशील शिविर देखे |
सरकारी सूची से इतने सारे शिविरों का छूट जाना प्रशासन के बेरुखे व्यवहार को दर्शाता है | परिणामस्वरूप हज़ारों पीड़ित लोग राहत के लिए निजी संस्थाओं पर निर्भर हैं | यह खुले तौर पर जनता को गुमराह करने का प्रयास है |
दंगा प्रभावित लोगों के गुमराह करने वाले आंकडे
राहत शिविरों में जिला प्रशासन द्वारा स्वयं निरीक्षण न किए जाने का एक परिणाम यह हुआ है कि दंगा-पीड़ितों की संख्या का कोई एक निष्पक्ष आंकड़ा नहीं है | 4अक्टूबर 2013 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित हार्मनी कमिटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में कुल आतंरिक तौर पर विस्थापित लोगों की संख्या 33,696 बताई गई है | इनमें लगभग 74% लोग मुज़फ्फरनगर के शिविरों में रह रहे थे, 22% कैराना, 3.3 % शामली और 0.7 % बागपत के शिविरों में | दिसंबर तक सर्वोच्च न्यायलय में जमा किये गए सरकारी शपथ-पत्र में शिविरों में रह रहे कुल पीड़ितों की संख्या 5,024घोषित की गई |
इस आंकड़े की असत्यता राहत शिविरों पर उपलब्ध शिविर-वासियों के रिकॉर्ड से साफ़ साबित हो जाती है | राहत सामग्री के आबंटन के दौरान, प्रत्येक शिविर में राहत समिति द्वारा बनाए गए पीड़ितों के रिकॉर्ड, एकमात्र सबसे सटीक रिकॉर्ड हैं | सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस बनाम उत्तर प्रदेश सरकार  (याचिका क्र. 170 वर्ष 2013) के मामले में प्रार्थियों द्वारा दर्ज़ कराये गए अतिरिक्त शपथ-पत्र के अनुसार 6 दिसंबर तक राहत शिविरों में 27,882 लोग रह रहे थे | हमारी टीम द्वारा 13 शिविरों के दौरे के बाद विस्थापित लोगों का जो अनुमानित आंकड़ा निकाला गया है, वह लगभग इस आंकड़े से मेल खाता है |

  'दंगा-पीड़ित' गाँवों और लोगों कि श्रेणी में डाले जाने में खामियां
राहत समितियों द्वारा हमें बताया गया की 162 गाँव के परिवारों ने अपना घर छोड़कर शिविरों में शरण ली है | स्वयं हमने 60 गाँवों के लोगों से बातचीत की | हालांकि सरकारी तौर पर सिर्फ 9 गाँव ही दंगा-ग्रस्त करार दिए गए | इसलिए सिर्फ 9 ही गाँवों के लोगों को सरकारी पुनर्वास पैकेज का फायदा मिल सकता है |
सबसे अधिक हत्याएं होने के आधार पर जो 9 गाँव दंगा-ग्रस्त घोषित किये गए हैं, उनके नाम हैं - लाक, लिसाड़, बहावड़ी, कुटबा, कुटबी, मोहम्मदपुर रायसिंह, काकरा,फुगाना, और मुंडभर | सरकारी पैकेज के अनुसार इन 9 गाँवों से लगभग 1800परिवारों को दंगा-ग्रस्त चिन्हित किया गया है | ये सभी सरकारी पैकेज के तहत एक मुश्त राशि 5,00,000 रूपए प्राप्त करने के हक़दार हैं |
पर इन 9 गाँवों के लोगों के अलावा भी कई ऐसे लोग हैं जो अपने घर लौटने की स्थिति में नहीं है | उन्होंने अपने हिन्दू पड़ोसियों द्वारा धमकियों और बेइज्ज़ति का सामना किया है | सशस्त्र दंगाइयों द्वारा उनके घरों में तोड़-फोड़ और औरतों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है | जब वे पुलिस के साथ अपने घर वापस गए तो उनके घरलूटे जा चुके थे | और कुछ मामलों में जहां परिवार के लोग दंगों के दौरान भाग कर नहीं आ सके थे, वे अब तक (तीन महीने बाद भी) लापता हैं |
ये गाँव और यहाँ के मुसलमानों को दंगा-ग्रस्त नहीं माना जा रहा है और इसलिए वे पुनर्वास के हक़दार नहीं हैं | इनमें से कई लोगों ने, जिनसे हमारी टीम ने बात के दौरान बताया कि वे 7 या 8 सितम्बर की रात को घर से खाली हाथ, सिर्फ दो कपड़ों में भागकर आये थे |
  संदिग्ध पुनर्वास पैकेज और उसकी शर्तें
राज्य सरकार का हर परिवार के लिए 5 लाख रुपयों के एक मुश्त पुनर्वास पैकेज में बहुत समस्याएँ हैं | यह पैकेज न तो गाँव में घर के आकर पर आधारित है और न ही घर में बसे परिवारों की संख्या पर | इसलिए 9 चिन्हित गावों में से भी, शिविर में रह रहे हर परिवार को 5 लाख रूपए नहीं मिल पाए हैं | जहां एक ही घर में एक से ज़्यादा परिवार रह रहे थे, वहाँ यह परेशानी सबसे ज्यादा देखने को मिली | इन परिवारों में, सिर्फ परिवार के मुखिया को ही रूपए दिए गए और सयुंक्त परिवार के बाकी छोटे परिवारों को नहीं दिए गए |
इसके अलावा, पुनर्वास की शर्तों के अनुसार अगर लाभार्थी कभी भी अपने घर वापस जाते हैं, तो उन्हें यह 5 लाख रूपए लौटाने पड़ेंगे | पीड़ितों के पास मौजूदा स्थिति में, जहां वे खुले आसमान के नीचे टेंटों में रह रहे हैं और घर वापस लौटने की उम्मीद बहुत कम है, पुनर्वास स्वीकार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है | इसके बाद एक बार अगर उनसे यह रुपये खर्च हो जाते हैं, तो मजदूरी करने वाले ये परिवार कभी इन रुपयों को लौटा नहीं पाएंगे | इस प्रकार सरकारी नीति यह सुनिश्चित करती है की पीड़ित व्यक्ति कभी अपने घर लौट ही न पाएं | ऐसे में यह पुनर्वास पैकेज वास्तव में एक ऐसा क्षतिपूरक पैकेज है जो हर तरह से लोगों को हुई उनकी क्षति की भरपाई करने में नाकामयाब साबित होता है |
दूसरी तरफ, सरकार ने पीड़ितों के घरों और सामुदायिक संपत्ति जैसे मस्जिद, ईदगाह, मदरसे, कब्रिस्तान आदि की सुरक्षा के लिए कोई ज़िक्र नहीं किया है | ये संपत्तियां समय के साथ उन्हीं लोगों के हाथों में पड़ जाएंगी जो मुसलामानों के खिलाफ हिंसा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं | इससे भविष्य में साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने के लिए एक अच्छे आर्थिक फायदे के रूप में भी देखा जा सकता है |
आखिर में, इस पूरी प्रक्रिया में जो बात बिलकुल छिप जाती है वह है राज्य कीअभियोज्यता | मुख्य रूप से, क्योंकि राज्य पीड़ितों को साम्प्रदायिक हिंसा से बचा नहीं पाया, क्योंकि अपराधी आज भी आज़ाद घूम रहे हैं, और क्योंकि पीड़ितों को अच्छी सुरक्षा नहीं मिल पा रही है, इसीलिए आज पीड़ित अपनी जिंदगियों में वापस लौटने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं | ऐसे में यह पुनर्वास पैकेज और कुछ नहीं बस राज्य की असफलता को छिपाने के लिए एक चाल नज़र आती है |
  हत्या, बलात्कार, आगजनी, और लूट के मामलों में पुलिस की बेहद ढीली पड़ताल
फैक्ट-फाइंडिंग टीम को ज्ञात हुआ की पुलिस जान-बूझकर सबूत मिटाने और पड़ताल को विलंबित करने का प्रयास कर रही है | इस तरह से, सी आर पी सी के सेक्शन167(2) में पड़ताल के लिए निर्धारित अधिकतम अवधि (90 दिन) निकलती जा रही है | और जघन्य अपराधों के दोषी बेल पर छूट रहे हैं | सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (याचिका क्र. 170 वर्ष 2013) के मामले में प्रार्थियों द्वारा दर्ज़ कराये गए अतिरिक्त शपथ-पत्र के अनुसार कम से कम 5 ऐसे दोषियों को बेल मिल भी चुकी है और अब इनको बिना कोर्ट वॉरेंट के गिरफ्तार करना असम्भव है | निम्नलिखित कम से दो ऐसे मामलों में पुलिस की संदिग्ध भूमिका स्पष्ट होती है |

डूंगर गाँव के मेहेरुदीन (पुत्र रफीक) का मामला ऐसा ही है | डूंगर गाँव मुज़फ्फरनगर ज़िले के फुगाना थाने में पड़ता है | मेहरुदीन का शव 8 सितम्बर को, निर्वस्त्र अवस्था में उन्हीं के गाँव के पवन जाट के घर में गले से लटका हुआ पाया गया था | ग्राम प्रधान और अन्य प्रभावशाली जाटों के दबाव में शव को गाँव के पास के कब्रिस्तान में दफ़नवा दिया गया था | आज मेहेरुदीन का परिवार कहता है की उनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई थी | परिवार अब शिविर छोड़कर कांधला शहर में रह रहा है | पर इसी गाँव के तीन लोग इस पूरी घटना के साक्षी थे और उनका वर्णन एफ़.आई.आर. में भी है | उनको जान की धमकियां भी आने लगी हैं | इनके बयान वीडियो पर रिकॉर्ड किये गए हैं और एफ़.आई.आर. के साथ जमा किये गए हैं | पुलिस अधिकारियों को एक अलग पत्र लिखकर शव का पोस्ट-मोर्टेम करने के लिए अनुरोध भी किया गया है, पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी है | विधि के अनुसार पुलिस को चाहिए था की वह वारदात के मौके पर एक पंचनामा बनाती और परिवार के अनुसार बताये गए मृत्यु के कारण को उसमें दर्ज करती | पर इस मामले कोई पंचनामा बनाया ही नहीं गया है | एफ़.आई.आर. दर्ज़ कराने के बाद भी पोस्ट-मोर्टेम के लिए शव को खोद कर निकला नहीं गया है|

एक अन्य मामले में भी पुलिस की दुष्टता सामने आती है | आमिर खान (पुत्र रैसुद्दीन) जो की अन्छाढ़ गाँव, थाना बिनौली, बाघपत ज़िले के निवासी थे, 8 सितम्बर को अपने माता, पिता, बीवी, और छोटे भाई के साथ अपना गाँव छोड़कर शेखपुरा में अपने रिश्तेदार के घर चले गए थे | 12 सितम्बर को परिवार से सलाह करके आमिर अपने गाँव वापस यह देखने के लिए गये कि हालात सामान्य हुए हैं या नहीं | जब आमिर देर शाम तक वापस नहीं लौटे, तब उनके माता, पिता और बीवी ने गाँव जाकर देखने का फैसला किया | 6 बजे के आस पास जब वे अपने घर पहुंचे तब उन्होंने आमिर के शव को छत से लटका हुआ पाया | उनकी चीखें सुनकर लोग इकठ्ठा हो गए और ग्राम प्रधान को बुलवाया गया | दो ग्राम निवासियों, संजीव और उसके पिता जगबीरा ने आमिर के परिवार को गाली देना शुरु कर दिया और आमिर द्वारा उधार लिए हुए 80,000 रूपए लौटाने को कहने लगे | ग्राम प्रधान समरपाल ने आमिर का शव दफ़नवा दिया और घोषित कर दिया कि किसी के भी पूछने पर यही कहा जाए कि आमिर की मृत्यु बीमारी से हुई थी | जाट परिवारों द्वारा पुलिस को बुलवाया गया और यही बताया गया | आमिर के परिवार द्वारा लगातार पोस्ट-मोर्टेम किये जाने के अनुरोध को नज़रंदाज़ कर दिया गया और उनसे जबरन अंगूठे के निशान ले लिए गए | इन तीन लोगों को फिर अपने ही घर में, उधार चुकाने के एवज में संजीव, जगबीरा और समरपाल द्वारा, बंधक बना कर रखा गया | जब 30 सितम्बर को उन्होंने अपने रिश्तेदारों की मदद से रूपए लौटाए तब उन्हें छोड़ा गया | इसके बाद परिवार जॉला गाँव के शिविर में चला गया, जो की बुद्धाना थाना, ज़िला मुज़फ्फरनगर में पड़ता है | परिवार ने फिर से पुलिस को पोस्ट-मोर्टेम करवाने के लिए कहा है पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है |
डी. मंजीत और आसीश गुप्ता, सचिव, PUDR, संपर्क - 9868471143, 9873315447

मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

पंजाब में आज तक नहीं पकड़ा गया कोई एसिड बेचने वाला


लुधियाना एसिड अटैक केस में शुक्रवार को विक्टिम की मौत के बाद पंजाब पुलिस अब जागी है। पीडि़़ता की मौत के बाद हरकत में आई पंजाब पुलिस ने जहां अब एसिड अटैक के केसेज में ढील बरतने वाले अपने ही अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं, वहीं आरोपियों के खिलाफ 24 घंटे में कार्रवाई सुनिश्चित करने की भी बात कही है। डीजीपी कार्यालय ने ऐसे केसों में सभी जिलों के एसएसपी को 24 घंटे में कार्रवाई और आरोपियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए हैं। ऐसा न होने पर संबंधित जिले के अफसर जवाबदेह होंगे और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उस दुकानदार को भी गिरफ्तार किया जाएगा, जिससे आरोपी ने एसिड खरीदा होगा। उसके खिलाफ साजिश में शामिल होने का केस दर्ज किया जाएगा। पंजाब पुलिस के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो साल में राच्य में एसिड अटैक के 27 केस सामने आए हैं। इनमें मुख्य तौर पर लुधियाना, पटियाला, फगवाड़ा, मोहाली, फिरोजपुर, संगरूर आदि जिलों में हुई वारदातें शामिल हैं।
एसिड सेल रोकने के लिए क्या किया सरकार ने:-लुधियाना एसिड अटैक केस के बाद राच्य के मुख्य सचिव ने स्वास्थ्य विभाग और फूड एंड सप्लाई विभाग को निर्देश दे चुके हैं कि दुकानों पर एसिड सेल रोकने के लिए कार्रवाई की जाए। इसमें पुलिस के साथ मिलकर अभियान चलाया जाएगा। हालांकि इसके बाद भी अभी राच्य में एसिड सेल पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लग पाई है। अभी भी एसिड सेल को लेकर सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस को अनदेखा किया जा रहा है। अभी तक राच्य में ऐसा कोई केस सामने नहीं आया है, जिसमें एसिड बेचने वाले किसी दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई की गई हो।
ज्यादा ध्यान कैंसर के इलाज पर, जले की खास चिंता नहीं
न्यू चंडीगढ़ में 260 एकड़ में एक मेडिसिटी विकसित की जा रही है जिसमें टाटा कैंसर रिसर्च सेंटर एंड हॉस्पिटल के साथ एक कैंसर हॉस्पिटल की शुरुआत की जा रही है। मेडिकल सर्विसेज का सुधार तो तय है लेकिन इसमें समय लगेगा। राज्य में फोर्टिस, मैक्स, अपोलो हॉस्पिटल्स बर्न केयर सर्विसेज प्रदान कर रहे हैं लेकिन वे काफी महंगी है। सरकारी हॉस्पिटल्स में सुविधाओं का स्तर बेहतर नहीं है और पंजाब के अधिकांश एसिड अटैक या बर्न मामलों के मरीजों को पीजीआई, चंडीगढ़ ही आना पड़ता है।  प्रोग्रेसिव पंजाब सम्मिट में फोर्टिस करीब एक हजार करोड़ रुपए के निवेश से न्यू चंडीगढ़ में फोर्टिस सेंटर खोलने का ऐलान कर चुका है। मैक्स हेल्थकेयर ने भी मोहाली स्थित मैक्स हॉस्पिटल में 45 करोड़ रुपए के निवेश से 100 नए बेड्स की क्षमता विस्तार शुरू करने का ऐलान किया है।
मैक्स मोहाली में है अल्ट्रामार्डन बर्न केयर यूनिट: मैक्स हॉस्पिटल, मोहाली के डॉ. नरेश कौशल का कहना है कि हॉस्पिटल में एक पूरा बर्न केयर यूनिट है और मरीजों को हर प्रकार की आधुनिक केयर प्रदान की जाती है। एसिड और बर्न मामलों में मरीजों को प्राथमिक केयर से लेकर स्पेशलाइ'ड केयर तक प्रदान की जाती है। मरीजों को संपूर्ण इलाज के दौरान प्लास्टिक सर्जरी से पुराना लुक प्राप्त करने में भी मदद की जाती है।
6-7 सालों में मिला है 2200 करोड़: पंजाब को बीते 6-7 साल में ही 2200 करोड़ रुपए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए दिए गए हैं, इसके बावजूद पंजाब में मेडिकल सेवाओं का स्तर नहीं सुधर पाया है। राज्य में इस तरफ व्यापक ध्यान देने की जरूरत है। सडक़ हादसों के दौरान अक्सर सिर में लगने वाली चोटों के इलाज के लिए पंजाबभर से मरीजों को पीजीआई चंडीगढ़ ही रेफर किया जाता है, क्योंकि लुधियाना के अलावा कहीं भी इमरजेंसी सेवाएं प्रदान करने वाले न्यूरो सर्जन उपलब्ध ही नहीं हैं। कुछ ऐसा ही हाल बर्न केयर सुविधाओं का भी है।
एसिड के इलाज के लिए एडवांस सेंटर की दरकार
एसिड अटैक पीडि़त के ट्रीटमेंट के लिए नर्दन रीजन को भी नेशनल बर्न केअर हॉस्पिटल (एनबीसीएच) जैसे एडवांस सेंटर की जरूरत है। पीजीआई और सफदरजंग रीजनल बर्न सेंटर के पास पास बर्न इंजरी के मरीजों के इलाज के लिए एक्सपर्टाइज और बुनियादी ढांचा तो है। लेकिन एसिड अटैक या बर्न इंजरी के मरीजों की स्पेशल केअर के लिए अलग से बड़ा संस्थान नही है। पीजीआई का प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट ऐसे मरीजों के ट्रीटमेंट के लिए बर्न यूनिट में सुविधाएं हैं। लेकिन एसिड अटैक या बर्न इंजरी के बाद बिगड़ती हालत में होने वाले मल्टी ऑरगन इंफेक्शन के लिए स्पोर्ट सिस्टम दूसरे डिपार्टमेंट से लेना पड़ रहा है। इन हालात में एसिड अटैक या बर्न, थर्मल या इलेक्ट्रिक इंजरी के बाद गंभीर मरीजों के लिए एडवांस सेंटर की जरूरत है।
पीजीआई के पास सुविधाएं:-पीजीआई के पास एसिड,बर्न, इलेक्ट्रिक या थर्मल इंजरी के बाद ट्रीटमेंट का जि मा प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट पर है। डिपार्टमेंट के पास ऐसी किसी भी इंजरी के बाद स्किन डैमेज हुए हिस्से को ठीक करने के लिए तो सुविधाएं और स्पेशलाइजेशन है। लेकिन इन मरीजों को अगर इंफेक्शन के बाद मल्टी ऑरगन प्राब्लम आने लगती है तो उसके लिए एनेस्थिसिया, नेफ्रोलॉजी और दूसरे डिपार्टमेंट के डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ती है। लेकिन एनबीसीएच सिर्फ बर्न, केमिकल, इलेक्ट्रिकल और थर्मल इंजरी के ट्रीटमेंट की स्पेशलाइजेशन के लिए जाना जाता है लेकिन यहां पर किसी दूसरे अंग पर पडऩे वाले प्रभाव को रोकने के लिए स्पेशलाइज फैकल्टी हैं। हालांकि पीजीआई के पास किसी भी तरह की बर्न इंजरी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए क्ले ट एंड पेलेट सर्जरी, क्रेनिओफेशिअल सर्जरी की सुविधा, टिश्यू ट्रांस्फर के लिए माइक्रोसर्जिकल ऑप्रेशन, स्किन री-ट्रांसप्लांटेशन, कंप्लीट स्पेक्ट्रम ऑफ हेंड इंजरी और एंडोस्कोपिक प्लास्टिक सर्जरी की सुविधा है। लेकिन इंफेक्शन बढऩे पर दूसरे डिपार्टमेंट की स्पोर्टलेनी पड़ रही है। यहां पर बर्नयूनिट के आईसीयू में 8 बेड और वेंटीलेटर के अलावा इमरजेंसी में भी 10 मरीजों के ट्रीटमेंट की सुविधा के साथ कुछ 53 मरीजों के ट्रीटमेंट का इंतजाम है।
एबीसीएच के पास सुविधाएं :-नेशनल बर्न स्किन हॉस्पिटल में एक्यूट बर्न सीक्वल ड्रेसिंग, कोला जेन एप्लीकेशन, डेब्रीडेमेंट ऑफ पोस्ट बर्न स्किन ग्रा िटंग, ड्रेसिंग विद वेसलीन बेटाडीन जैसी सुविधाएं हैं। एनबीएसएच के पास पोस्ट बर्न सीक्वल हाइपरट्रोफिक स्केर के तौर स्पेशल ट्रीटमेंट की सुविधा है। फिर यहां पर इंजरी में जली आंखों, नेक, एलबो, कान और दूसरे अंगों को हुए नुकसान को ठीक करने के लिए स्किन ग्रा िटंग हो रही है। ये ट्रीटमेंट पूरा होने के बाद सर्जिकल  असेस्मेंट के तौर स्किन ग्रा िटंग, जेड प्लास्टी, ज्वाइंट ट्रीटमेंट के लिए एक्स प्लास्टी और के वायरिंग की सुविधा है।
शराइनर बर्न इंस्टिट्यूट है मिसाल :-केमिकल, बर्न, थर्मल या इलेक्ट्रिकल इंजरी के बाद ट्रीटमेंट के लिए  लोरिडा का शराइनर बर्न इंस्टीट्यूट को प्रीमियर इंस्टीट्यूट माना जाता है। ऐसे मरीजों के ट्रीटमेंट के लिए इस इंस्टीट्यूट के पास मेडिकल, सर्जिकल और री-हेब्लीटेटिव ट्रीटमेंट की एडवांस सुविधा है। इन सुविधाओं में आग या एसिड अटैक के बाद पेशेंट को दर्द से बचाने के लिए पेन मेनेजमेंट पर सबसे पहले जोर दिया जाएगा। फिर फिजिकल एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी के लिए 3डी इमेजिंग के बाद सर्जरी की जाती है। किसी भी तरह की बर्न, केमिकल, थर्मल या इलेक्ट्रिकल इंजरी के बाद बाहरी घाव के बाद हड्डियां या ज्वाइंट को हुए नुकसान के लिए आईपी ज्वाइंट ट्रीटमेंट जैसी तकनीक उपलब्ध है। ऐसे मरीजों के लिए पोस्ट ट्रॉमा री-कंस्ट्रक्शन सेंटर अलग हैं। ऐसे मरीजों को मानसिक तौर पर किसी भी मरीज में आई हीनभावना को दूर करने के लिए फेमिली स्पोर्ट ग्रुप की मदद लेते हैं।
परसेंटज नही ज म की गहराई है अहम:-पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार बताते हैं कि पीजीआई और सफदरजंग जैसे संस्थानों के पास एक बराबर सुविधाएं हैं। लेकिन एसिड या इलेक्ट्रिक इंजरी के बाद मरीजों के जले होने नही बल्कि उस अटैक के बाद कितनी गहराई तक असर हुआ, इस पर मरीज की स्थिति डिपेंड करती है। आग से 70 फीसदी जले हुए मरीज की जगह कई बार एसिड या इलेक्ट्रिकल इंजरी के बाद मरीज सिर्फ 15 फीसदी जला होता है। लेकिन उस ज म की गहराई इतनी ज्यादा होती है कि उसका ट्रीटमेंट काफी पेचीदा होता है।
एसिड अटैक में इसलिए होता है इंफेक्शन:- एसिड अटैक के पीडि़त में कई बार इंफेक्शन की संभावना ज्यादा होती है। क्योंकि एसिड या केमिकल अटैक के बाद पीडि़त के मुंह से कई बार तेजाब या दूसरा केमिकल मुंह से अंदर चला जाता है। ऐसे में पहले फेफड़े या फिर किडनी तक इंफेक्शन बढऩे पर दूसरे अंग डैमेज होने लगते हैं।

मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

रेलवे में सफर के दौरान ऐसे करें शिकायत


 वेबसाइट-www. custmorcare.indianrailway.gov.in पर ऑनलाइन यात्री अपना पीएनआर नंबर और नाम देकर शिकायत कर सकता है।
 www.irctc.co.in-पर यात्री खानपान, टूरिस्ट स्कीम, ई-टिकट से जुड़ी समस्या की शिकायत कर सकता है।
 एसएमएस-9717630982 नंबर पर यात्री अपना पीएनआर नंबर और नाम लिखकर शिकायत कर सकता है। इसमें टे्रन में गंदगी और खानपान की शिकायत कर सकता है। रेलवे का दावा है कि 90 मिनट का समस्या का हल होगा।
 टोलफ्री नंबर-1800-111-321 पर यात्री टे्रन में खानपान से जुड़ी ही शिकायत कर सकता है। यह नंबर टिकट के पीछे लिखा होता है। सुबह सात से लेकर रात दस बजे तक सात दिन चालू रहता है। क्योंकि टे्रन में सुबह सात से लेकर दस बजे तक ही खानपान की सघ्लाई होती है।
 शिकायत पुस्तिका में- गार्ड और कंडक्टर के पास शिकायत पुस्तिका होती है। यात्री अपना टिकट दिखाकर पूरे अधिकार के साथ शिकायत पुस्तिका लेकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। गार्ड और कंडक्टर मना नहीं कर सकता है। यदि मना करता है तो स्टेशन पर उतरने पर डिघ्टी एसएस आफिस में जाकर उनके खिलाफ शिकायत की जा सकती है।
स्टेशन पर पर ऐसे करे शिकायत
 यदि आपके स्टेशन पर आपको किसी प्रकार की कोई समस्या नजर आ रही है तो आप घ्लेटफार्म टिकट लेकर या यात्रा टिकट के आधार पर डिघ्टी एसएस आफिस में जाकर उस मामले की शिकायत कर सकते है। यह अधिकार रेलवे अपने प्रत्येक यात्री को देता है।
 - मंडल के अधिकारियों और स्टेशन अधीक्षक व उससे उंचे पद के अधिकारियों को सीधे पत्र लिखकर शिकायत की जा सकती है।

मंगलवार, दिसंबर 17, 2013

परीक्षा देने आए हजारों प्रत्‍याशियों के साथ पंजाब सरकार का मजाक


रविवार को चंडीगढ़ की सभी सडक़ों पर अचानक की दिल्ली जैसे जाम का नजारा था। दो-तीन किलोमीटर तक लंबी वाहनों की कतारें लगी हुई थीं। एक सिगनल क्रास करने में हमें अपनी कार से कम से कम सात से आठ बार ग्रीन सिगनल का इंतजार करना पड़ा। वजह थी पंजाब सरकार के एफसीआई इंस्पेक्टर की परीक्षा। इस बार बादल सरकार ने इस परीक्षा का जिम्मा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ को दिया था। जिसमें कोई दो लाख प्रत्याशी परीक्षा देने पंजाब से यहां पहुंचे थे। लेकिन बदइंतजामी यह रही कि कोई 50 हजार प्रत्याशी परीक्षा केंद्र पर पहुंच ही नहीं सके।
चंडीगढ़ से लुधियाना लौटते वक्त बस में कई ऐसे उम्मीदवार मिले। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई। बता रहे थे कि बदइंतजामी इतनी थी कि पीयू ने आसपास के गांवों के कॉलेजों में सेंटर बना रखे थे और वहां पहुंचने का कोई साधन भी उपलब्ध नहीं कराया गया। दो शिफ्ट में परीक्षा थी। जिनकी बसें मिस हो गईं, वे तीन-तीन घंटे तक पहले तो बस के लिए इंतजार करते रहे कि किसी तरह चंडीगढ़ के मेन बस अड्डे पर पहुंचे। इसके लिए उन्हें जीटी रोड पर कई किलोमीटर पैदल चलकर सफर तय करना पड़ा। इनमें लड़कियों को तो बस अड्डे तक पहुंचते पहुंचते रात हो गई और उनके गंतव्य की आखिरी बसें जा चुकी थीं।
इस बीच खबर यह आई कि पेपर लीक हो चुका है। अब यह पेपर दोबारा लिया जाएगा। एक तो वैसे ही पंजाब में बेरोजगारी इस कदर बढ़ चुकी है कि ये दोनों बाप-बेटा मिलकर पंजाब का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। ऊपर से बेरोजगारों को नौकरियों के गफ्फे देने में बादल सरकार पीछे नहीं है। ऐसे में इन बेरोजगारों के साथ यह सरासर मजाक ही कहा जाएगा। क्योंकि उन्हें चंडीगढ़ तक का सफर करना ही आसान नहीं था। ऊपर से उनके लिए न कहीं पेयजल की व्यवस्था और न शौचालय आदि का प्रबंध, उनकी मुश्किलों को बढ़ाने के लिए नाकाफी थी।
क्या सरकार को नहीं चाहिए था कि वह पंजाब के सभी जिलों में ही परीक्षा केंद्र बनाकर इस समस्या का हल निकाल सकती थी। इससे प्रत्याशियों को अपने जिले में ही आसानी से परीक्षा देने की सुविधा होती।

मंगलवार, दिसंबर 03, 2013

तेजाब पीडि़तों का मुफ्त इलाज और सर्जरी राज्य सरकार की जिम्मेदारी


तेजाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन जारी की थी। अब सभी राज्यों को चार महीने में यानी 31 मार्च तक उसी के आधार पर नियम बनाने होंगे। कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि तेजाब पीडि़तों का मुफ्त इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च राज्य सरकार को ही उठाना होगा। इसके अलावा एसिड अटैक के मामलों की जांच  एसडीएम को करनी होगी कि तेजाब किसने और क्यों बेचा था। सुप्रीम कोर्ट ने तेजाब पीडि़तों के लिए हरियाणा सरकार की योजना को आदर्श माना है। हरियाणा सरकार तेजाब पीडि़तों के इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का पूरा खर्च उठाती है। अभी तक बिहार, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी ने ही तेजाब बिक्री की गाइड लाइन तैयार की हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सार:-

  • 18 साल के कम उम्र के व्यक्ति को तेजाब नहीं बेचा जाएगा
  • खरीदार को पता व आईडी देना होगा 
  • एसिड अटैक गैर जमानती जुर्म होगा
  • पीडि़त को राज्य सरकार 3 लाख रु. का मुआवजा देगी
  • एक लाख रुपए हमले के 15 दिन के भीतर अदा करने होंगे


शुक्रवार, नवंबर 29, 2013

यार, 5 रुपये और दो, सिगरेट भी तो पीनी है ऐसे थे साहिर लुधियानवी


माना के हम जमीं को न गुलजार कर सके
कुछ खाक तो कम कर गए, गुजरे जिधर से हम

अब्दुल हई यानी साहिर लुधियानवी 8 मार्च 1920 को जमीदार फजल मुहम्मद के घर जन्मे। लेकिन पिता का घर का ऐशो आराम नसीब न हुआ। अब्दुल की मां ने उनके जन्म के बाद ही उनके पिता से जायदाद में अपना हिस्सा मांगा। नतीजतन पिता ने साहिर की मां को अपने घर से निकाल दिया। पिता के रवैये ने साहिर को इतना एकाकी, तन्हा और डरा-सहमा बना दिया कि उन्होंने अपनी एक अलग ही दुनिया बना ली। ये दुनिया थी, उनकी सोच, नज्मों की और मोहब्बतों की। जोकि इस दुनिया से काफी इतर थी। साहिर जितने खुशमिजाज दोस्त माने जाते थे, असल में वह उससे कहीं ज्यादा भावुक इंसान थे।
उनकी भावकुता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पढ़ाई के दौरान एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज फार ब्वायज की एक दीवार को अपने गम का साथी बनाया था। वे घंटों दीवार पर बैठते और रो कर अपने मन में छुपे गुबार को निकाल देते।  साहिर को प्रकृति से भी प्यार था। उन्होंने अपनी जवानी के दिनों में कॉलेज में एक पौधा लगाया था। जो आज एक बड़ा पेड़ बनकर उनकी निशानी के रूप में वहां मौजूद है। कॉलेज के दिनों में उन्हें जगराओं के पास रहने वाली ईशर कौर से मोहब्बत हो गई थी। जवानी की दहलीज पर रखे शुरुआती कदमों के साथ जवां होती उनकी मोहब्बत के पैगाम उस समय कामरेड मदन गोपाल ही ईशर कौर तक पहुंचाते थे। लेकिन जब इस प्यार की खबर फाउंडर प्रिसिंपल एसीसी हारवे को लगी, तो उन्होंने साहिर को कॉलेज से निकाल दिया। ये वाक्या 1941 का है। उस वक्त साहिर बीए फस्र्ट ईयर के स्टूडेंट थे। इसका जिक्र भी साहिर ने कुछ यूं किया था-
'गर यहां के नहीं तो क्या,
यहां से निकाले तो हैं।
लेकिन वो साहिर की दुनिया थी, नज्मों की, मोहब्बतों की और यकीनन दोस्तों की भी। साहिर शाम के वक्त अपने दोस्त अजायब चित्रकार, सत्यपाल, प्रेम वारभटनी जो मलेरकोटला से आते थे और कृष्ण अदीब को अपनी नज्में सुनाया करते थे। यूं तो ये सभी दोस्त मिलनसार थे, लेकिन साहिर इनमें खुद को शायद कभी-कभी आर्थिक रूप से कमजोर मानते थे। अपनी महबूबा को कभी कोई कीमती तोहफा न देने का गम भी शायद इन्हें सालता था। इसका जिक्र साहिर ने कुछ यूं किया है -
'बना के ताज महल इस शंहशाह ने,
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक।
यह भी सच्चाई है कि उस वक्त तक खुद साहिर ने कभी ताजमहल नहीं देखा था। इस नज्म को सुनकर साहिर के दोस्तों ने उसे 20 रुपये दिए और ताजमहल देखकर आने को कहा। इस पर साहिर का जवाब था, 'अरे यार, 5 रुपये और दो, सिगरेट भी तो पीनी है।Ó खैर जिंदगी यूं ही चल रही थी कि एक दिन नया मोड़ आया, जो ले गया उन्हें मुंबई। साहिर अपनी अम्मी सरदार बेगम के साथ मुंबई आए।
साहिर के मुबंई में रहते हुए ही ईशर कौर अपना सब कुछ छोडक़र वहां आ गई, लेकिन हफ्ते भर में उन्हें वापस आना पड़ा। साहिर ने वहां करीब डेढ़ साल संघर्ष किया। इस दौरान उनकी अम्मी ने उन्हें वहां से वापस चलने को भी कहा। लेकिन साहिर न माने, एक दिन अचानक उनकी मुलाकात एसडी बर्मन से हुई। एसडी बर्मन ने कहा, 'मैं धुन छेड़ूंगा, तुम अभी बोल बनाओ...Ó साहिर ने गीत लिखा, 'ये ठंडी हवाएं, लहरा के आएं..,Ó जिसे लता मंगेश्कर ने गाया था। उनका पहला गाना ही हिट रहा। इसके बाद साहिर ने जो किया, वो दुनिया के सामने है। हालांकि मुंबई में भी लता मंगेशकर, अमृता प्रीतम के साथ उनके प्रेम संबंधों के किस्से काफी सुने गए। लेकिन उन्होंने खुद अपना नाम किसी के साथ नहीं जोड़ा।
साहिर किसी की मदद में पीछे नहीं रहते थे और उसूलों के भी पक्के थे। उन्होंने अपनी सौतेली बहनों को अपने पास रखा था, आजादी की जंग में जिस शख्स ने उनकी अम्मी को रिफ्यूजी कैंप में बचाया था। जब उसे मदद की जरूरत थी, तो उसे मुंबई में अपने घर पर रखा। लेकिन जब उस इंसान ने मांगे ज्यादा कर दीं, तो उसे घर से निकाल दिया। एक बार जावेद अख्तर को उन्होंने 200 रुपये दिए थे। जावेद उन्हें ये उधार वापस करने की जब भी बात करते, साहिर उन्हें चुप करवा देते। लेकिन 1980 में जब साहिर को उनकी इंतकाल के बाद दफनाया जा रहा था, तो जावेद भी उन्हें अंतिम विदाई देने आए थे। और जब जावेद वापस जा रहे थे। कहते हैं कि एक शख्स जावेद के पास आया और कहा कि मैं जा यहां से जा रहा हूं, मेरी जेब खाली है, मुझे 200 रुपये दे दो। वो कौन था? कहां से आया था? ये कोई नहीं जानता।

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...