गांव किला रायपुर ग्रामीण खेल
ये एक ऐसा ओलंपिक है, जिसमें नाच रहे हैं घोड़े, हो रही है कुछ अलग तरह की रेस, बिलकुल अजब अनोखे खेल। ऐसे ओलंपिक जो किसी बड़े शहर में नहीं बल्कि एक गांव में हो रहे हैं, लेकिन इनकी ख्याति दुनिया के हर कोने तक जा फैली है। 1933 से अब तक हो रहे हैं ये ग्रामीण किला रायपुर खेल, जिन्हें मिनी ओलंपिक के नाम से भी जानते हैं। इसके खेल और खिलाड़ी है भी हैं बिल्कुल जुदा। यहां बैलेंस और फर्राटा रेस का कुछ अलग अंदाज में होता है खेल। यहां खिलाड़ी दिखाते हैं अपना दम और पारंपरिक खेल। हैरतंगेज स्टंट, इसमें बड़े-बड़े सितारे तो नहीं लेकिन इनका हुनर कमाल कर देने वाला होता है। यहां उम्र का कोई बंधन नहीं है क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे हरेक अपना खेल दिखाता है। यहां बैलगाडिय़ों की फॉर्मूला वन रेस का तो हरेक दीवाना है। इसे देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटती है। इतना सबकुछ एक स्टेडियम में एक साथ कई खेलों का प्रदर्शन देख दर्शकों के दिलों में उत्सुकता का ज्वार भाटा ऐसे ठाठें मारता है कि जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। ओलंपिक गांव किला रायपुर स्टेडियम में जब जांघ पर थाप देकर प्रतिद्वंदी टीम को ललकारती है तो हर ओर से सीटियां ही बजती हैं।
एहनां दियां ब्रेकां नईं हुंदियां
बैलगाड़ी रेस शुरू हो रही थी, जिसका इंतजार सुबह से खेल मैदान में मौजूद हर एक दर्शक को था। लौ वीर जी तैयारी पेहली हीट दी... मैदान में यह आवाज सुनाई दी। मारो वी तालियां मेला हुण शुरू होया, और देखते ही देखते तालियों की गडग़ड़ाहट से पूरा मैदान गूंज ऊठा। फिर से आवाज आई छड्ड दियो मदान एहणा दियां ब्रेका नई हुंदियां। नजरें घूमी तो बैलों पर सवार युवा थ्री नॉट थ्री गोली की तरह हवा को मार करते हुए मैदान के एक छोर से फीनिश लाइन तक दौड़ते आ रहे थे। मैदान में जमघट तो सुबह से ही था, लेकिन शोर-शराबा और तालियों को ज्यादा शोर बैलगाड़ी रेस के दौरान सुनाई दिया। मिनी ओलंपिक्स के इतिहास में पहली बार 95 बैलगाडिय़ां ने भाग लिया है। यह भी अब तक का एक रिकॉर्ड दर्ज हुआ है। अजब अनोखे अद्भुत रूरल मिनी ओलंपिक्स का विभिन्न खेलों के साथ-साथ बैलगाडिय़ों की दौड़ के लिए खास रहा। इस मिट्टी के जोशीले हर धावक के जज्बे को सलाम
ये किला रायपुर का ग्रामीण चार दिवसीय खेल मेला था, जो रविवार को खत्म हुआ। यह सिर्फ एक परंपरा का खेल मेला नहीं, वरन ये पंजाब की सौंधी मिट्टी की खुशबू और उसके लालों की बहादुरी के गीतों भरा एक उत्सव है। यहां जब बैल, घोड़े, खच्चर, ट्रैक्टर, ऊंट दौड़ते हैं, तो उनके आगे हरकारों की तरह मैदान में उपस्थित हर बंदे का जोश छलांगें मार-मारकर दौड़ता है। यहां जब कोई बहादुर, क्या बुजुर्ग-क्या गबरू अपना हैरतंगेज करतब दिखाता है, तो हर जिंदादिल जोरदार शाबाशी दिए बिना नहीं रह पाता है। यहां चीयर करने के लिए किराए के लोगों की जरूरत नहीं होती। जनाब न यहां दर्शकों को बुलाने के लिए किसी दूसरे तमाशों का तामझाम करने की जरूरत पड़ती है। ये तो किला रायपुर के ग्रामीण खेल का आकर्षण है, जो हर शख्स इस चार दिन के उत्सव में खुद-ब-खुद खिंचा चला आया। इसका गवाह देश-विदेश से पहुंचे लाखों दर्शक हैं।
85 साल के जवां तेजा विजेता
गांव फुलावाल के 85 साल के जवां तेजा सिंह ने 100 मीटर की रेस जीती। तेजा सिंह कहते हैं कि वह 20 साल से लगातार इसमें हिस्सा ले रहे हैं और हर बार उन्हें कोई शिकस्त नहीं दे पाया। बकौल तेजा, वो किला रायपुर के अलावा पंजाब की ग्रामीण खेलों में न तो इनाम पाने के लिए दौड़ते हैं और न ही पदक की आस में। उनका दौडऩे के पीछे सिर्फ यही मकसद है कि युवा उन्हें देखकर कुछ सीख सकें। अगर युवा नशे की गिरफ्त से दूर रह सके, तो इस उम्र तक आदमी सेहतमंद रह सकता है।
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