गुरुवार, मार्च 29, 2018

हिंदी का पहला गद्यकार पटियाला के निरंजनी थे

हिंदी गद्य का पहला अर्विभाव 1741 में हुआ
हिन्दी गद्य के विकास में पटियाला का योगदान अतुलनीय है साल 1741 में पटियाला में हिंदी गद्य का उद्भव हुआ था यह सवाल यह सवाल बड़ा दिलचस्प है इसे आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी प्रमाणित किया है राम प्रसाद निरंजनी का भाषा योग वशिष्ठ हिंदी का पहला गद्य कहा गया है इस बात का प्रमाण रामधारी सिंह दिनकर की संस्कृति के चार अध्याय में भी मिलता है यह पुस्तक 1955 में छपी थी पुस्तक में पेज नंबर 466 पर दर्ज है कि हिंदी गद्य का निश्चित रूप से सुस्पष्ट प्रमाण हमें राम प्रसाद निरंजनी के भाषा योग वशिष्ट नामक ग्रंथ में मिलता है ।पंजाबी यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के पूर्व विभागा अध्यक्ष डॉक्टर हुकुमचंद राजपाल कहते हैं कि यह बड़ी हैरत की बात हैकी जिसके ग्रंथ को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी गद्य का आदि ग्रंथ कहा है उसे पटियाला के लोग ही नहीं जानते यही नहीं आचार्य हजारी हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी लिखा है की एक बड़ी अहम बात है कि पटियाला नगर के हिंदी कवि सैकड़ों वर्षो से अपनी पहचान बनाने के लिए जूझते रहे हैं। बकौल डॉ राजपाल पंजाबी भाषी होने के कारण भी ये कवि हिंदी कविता को उस मुकाम पर नहीं ले जा सके जहां वह इसे लेकर जाने के इक्षुक थे।निरंजनी के ग्रंथ में जो हिंदी लिखी गई है वह आज की हिंदी से मिलती जुलती है। श्री योग वशिष्ठ भाषा दो भागमें प्रकाशित हुआ जिसे साधु राम प्रसाद जी महाराज निरंजनी ने पटियाला नरेश की परम जिज्ञासु भक्त दो बहनों के इस अपार संसार से उद्धरण हेतु कथा श्रवण प्रसंग की थी। पंजाबी यूनिवर्सिटी म बाल्मीकि चेयर पर पीठासीनडॉक्टर इंद्रमोहन सिंह बताते हैं महर्षि वाल्मीकि के श्री योग वशिष्ठ भाषा का हिंदी अनुवाद गद्य के विषय में जान आ गया पटियाला दरबार के संरक्षण में यह उल्लेखनीय कार्य निरंजनी ने संपन्न किया श्री योग वशिष्ठ भाषा कीलोकप्रियता एवं राज दरबार की आस्था परंपरा निष्ठा का अनुमान इसके मुख्य शीर्षक से लगाया जा सकता हैश्रीमत पटियाला नगर नरेश की बहनों परम जिज्ञासु भक्ता दोनों बहनों के इस अपार संसार के उद्धरण हेतु कथा श्रवण प्रसंग से साधु राम प्रसाद जी महाराज निरंजनी जी कृत पटियाला की साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत का परिचय हमें लोक चेतना के शायर से मिलता है। वे इन बहनों को कहानियां सुनाया करते थेजो इसमें लिखा गया है।
इतिहासकार डाॅ. कुलवंत ग्रेवाल बताते हैं कि पटियाला में हिंदी का पहला कवि महाराजा पटियाला अमर सिंह के दरबार में केशव पहले कवि थे। साल 1771 में उन्होंने महाराजा अमर सिंह की शान में अमर सिंह की बार पहला काव्य ग्रंथ हिंदी में लिखा। 
डॉ इंद्रमोहन सिंह ने श्री योगवशिष्ठ पर यूनिवर्सिटी में एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया था जिसमें देश विदेश से विद्वान और चिंतक थाली में सम्मिलित हुए। श्री निरंजनी निर्मल अखाड़े से संबंध रखते थे। इसमें छह प्रकरण लिखे गये हैं।
संसारआत्मा-परमात्मा क्या है?
श्री राम और महर्षि वशिष्ठ के संवाद और कथा सूत्रों से जीवन समाज और परिवेश व्यवस्था को सम्यक आधार प्रदान करता है। इसमें अध्यात्म विद्या का जिक्र है। महिलाएं इसकी कथाएं बड़ी चाव से सुनती हैं।

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