गुरुवार, अप्रैल 05, 2018

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सबसे आम लक्षण, जो बता देते हैं कि आपकी सेहत नहीं है ठीक

अंतरनिहित संक्रमण और अस्वस्थ्य स्थितियाँ होने पर हमारा शरीर कुछ लक्षणोँ के जरिए हमेँ आगाह करता है। आमतौर पर नजरअंदाज कर दिए जाने वाले ये लक्षण हमारा ध्यान समस्या की ओर आकर्षित करने के लिए होते हैं। इसके अलावायह जानना भी बेहद जरूरी होता है कि किस अस्वस्थ्य व्यक्ति को संक्रामक बीमारी हुई हैताकि हम सब बीमारी की चपेट में आने से खुद का बचाव कर सकेँ।
पटियालाभारत में तमाम सामाजिक-आर्थिक व सांस्कृतिक कारणोँ के चलते बहुत सारे लोग समय पर डॉक्टर के पास नहीं जाना चाहते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि लोगोँ को खुद ही पता नहीं चल पाता है कि उनकी सेहत के साथ कुछ गलत चल रहा है। विभिन्न कारणोँ से जब वक्त पर जांच नहीं हो पाता है तब डॉक्टर को यह तय करने में भी समस्या होती है कि कौन सा मरीज गम्भीर रूप से बीमार है और किसकी समस्या एडवांस स्टेज पर पहुंच चुकी है। हालांकिकिसी भी मरीज को देखकर यह पता लगाना बिल्कुल आसाम होता है कि वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हैक्योंकि ऐसे कई लक्षण होते हैं जो हमेँ हमारी सेहत की स्थिति को लेकर हमेँ अलर्ट कर देते हैं।

कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल, पटियाला  के कंसल्टेंट  इंटर्नल मेडिसन डॉ. प्रशांत भट्ट कहते हैंदरअसलहमारा शरीर अपने आप में सबसे जटिल तकनीक है और यह तमाम लक्षणोँ के जरिए हमेँ हमारी सेहत की स्थिति को लेकर संदेश देता रहता हैजिससे यह पता लग जाता है कि हमारा सिस्टम ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है। हालांकि कई ऐसी अंतरनिहित समस्याएँ होती हैं जिनकी जांच अथवा पहचान कर पाना सच में कठिन होता हैलेकिन अधिकतर समस्याओँ में स्पष्ट लक्षण सामने आते हैं। इनमेँ से कुछ आम लक्षण होते हैंखराब सेहत और नींद से जुडी समस्या,शरीर में शक्ति कम होने और जल्दी से थक जाने का एहसास होनापेशाब का गाढा पीला होनाशरीर के वजन में अचानक बदलाव आनालगातार खांसी और फ्लू अथवा बार-बार कोल्ड होना या लम्बे समय तक चलने वाली बाउल और ब्लैडर से जुडी समस्या। यह शरीर का अपना तरीका होता है जिसके जरिए वह यह बताता है कि सब कुछ ठीक नही चल रहा है और आपको इलाज की जरूरत है। ऐसे में व्यक्ति को बिना किसी देरी के डॉक्टर के पास जाना चाहिए।“
खराब नींद के कई कारण हो सकते हैंऔर इसका एक आम लक्षण हो सकता है बहुत अधिक तनाव्। स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल आइडियली रात के समय कम हो जाना चाहिए ताकि व्यक्ति रात में आसानी से दो जाएऔर शरीर को आराम मिलेलेकिन रात में कॉर्टिसोल हार्मोन का स्तर सामान्य से अधिक होने पर इंसोमनिया हो जाता हैजिसकी वजह से शरीर का आपना रिपेयर सिस्टम ऑफ हो जाता है। नींद के पैटर्न में बदलाव और सुबह के समय नींद खुलन पर तरो-ताजा महसूस न हो तो भी समस्या होती है। अवसादतनावडिप्रेशनसांस लेने में समस्याडायबीटीजऔर यहाँ तक कि किडनी की समस्याएँ होने पर भी आपकी रात की नींद प्रभावित हो सकती है।
 डॉ. प्रशांत भट्ट कह्ते हैंअन्य लक्षणोँ में से एक पेशाब का गाढा होना इस बात की पहचान है कि आपके शरीर में पानी की कमी हो गई है अथवा कोई अन्य समस्या है। यह इस बात का लक्षण भी हो सकता है कि हमारा सिस्टम शरीर के कचरे को पूरी तरह से फिल्टर नहीं कर रहा है। यह पीलियाहेपेटाइटिसऔर लिवर व किडनी से जुडी तमाम बीमारियोँ का लक्षण भी हो सकता है। थकान और चक्कर आना कई बीमारियोँ जैसे कि एनीमियाडायबीटीजडिप्रेशनथायरॉइडस्लीप एप्निया आदि का लक्षण हो सकता है। अगर हमारे शरीर में कोई अंतरनिहित संक्रमण होता है तो हमारा शरीर स्लो हो जाता हैजो कि प्रतिरोधक क्षमता की टेस्टिंग होती है। बेवजह वजन बढने का कारण जहाँ हार्मोनल बदलाव अथवा कुछ खास दवाओँ जैसे कि कॉर्टिकोस्टेरॉइडआदि का इस्तेमालवहीँ अचानक वजन घटने का कारण कैंसरसीओपीडीडिप्रेशनएचआईवी/एड्स,टीबीऔर अन्य कई बीमारियोँ के कारण हो सकता है।“
बार-बार फ्लू और कोल्ड हो जाना आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की पहचान हैजिसके चलते आप संक्रमण और यहाँ तक कि कैंसर की चपेट में भी आ सकते हैं। ब्लैडर और बाउल सम्बंधी समस्याओँ का लम्बे समय तक चलना प्रॉस्टेट कैंसर (जिसमेँ पेशाब की बारम्बारता में बदलाव स्पष्ट लक्षण होता है)कोलोन अथवा ओवेरियन कैंसर (कब्ज या डायरिया)इंफ्लेमेटरी डिसॉर्डर जैसे कि क्रॉन्स डिजीज व अन्य समस्याओँ के कारण हो सकता है।
प्रॉसीडिंग ऑफ द रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित एक स्टडी रिपोर्ट में बताया गया है किइसके लिए वैज्ञानिकोँ ने एक प्रयोग किया जिसमेँ 16 स्वस्थ्य वयस्क व्यक्तियोँ को प्लेसबो बैक्टीरिया का इंजेक्शन दिया गया जिसकी वजह से उनका इम्यून सिस्टम प्रभावित हुआ और उन्हे हल्के फ्लु जैसे लक्षण सामने आए। इसके बारे में अनजान सहभागियोँ की प्लेसबो लेने से पहले और इसके बाद तस्वीर ली गई। इन तस्वीरोँ को 62 अप्रशिक्षित मेडिकल प्रोफेशनल्स को सिर्फ 5-5 सेकंड के लिए दिखाया गया और इसके आधार पर उन्हेँ यह जज करने के लिए कहा गया कि कौन सी तस्वीर स्वस्थ्य व्यक्ति की है और कौन सी बीमार लोगोँ की। परिणाम बेहद प्रोत्साहित करने वाले आए, 52% लोगोँ की तस्वीरेँ देखकर यह पहचान लिया गया कि वे किस समय बीमार थे और 70% मामलोँ में यह पता लगा लिया गया कि वे कब स्वस्थ्य थे।
डॉ. प्रशांत भट्ट कहते हैंयह रिसर्च इस बात की पुष्टि करता है कि किसी भी व्यक्ति को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि वह स्वस्थ्य है अथवा नहीँ। और अस्वस्थ्य व्यक्तियोँ की जांच कराकर यह तय किया जा सकता है कि उन्हेँ संक्रामक समस्या तो नहीँ। समय पर यह पता लग जाने से बीमारी के प्रसार रोकने के उपयुक्त उपाय किए जा सकते हैं। यह भी जरूरी है कि बीमार लोगोँ को जहाँ तक हो सके घर में रहने की सलाह दी जाएऔर पूरी तरह स्वस्थ्य होने के बाद ही बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ताकि बीमारी का प्रसार अन्य लोगोँ तक न हो।“

गुरुवार, मार्च 29, 2018

पंजाब की 20 में दस स्टूडेंट यूनियन गैंगस्टर्स व अपराधिक मामलों में शामिल

राज्य के विभिन्न कॉलेजों व यूनिवर्सिटी में बेशक स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव की पाबंदी है लेकिन मौजूदा समय में बीस स्टूडेंट्स यूनियन बन चुकी है। इन यूनियन में से दस स्टूडेंट्स यूनियन सीधे तौर पर गैंगस्टरर्स व अपराधिक मामलों में जुड़ी है, यहां तक कि राजनीतिक पार्टी की स्टूडेंट्स यूनियन के नाम भी कई अपराधिक मामलों में थानों की एफआईआर में दर्ज हैं। गैंगस्टर्स व हथियारों के प्रभाव में आने वाले स्टूडेंट्स को गैंगस्टर अपना निशाना बनाकर अपने साथ जोड़ रहे हैं। कत्ल, लूटपाट व रंजिश के चलते दुश्मनों पर फायरिंग करने जैसे मामलों में शामिल लोगों ने पंजाबी यूनिवर्सिटी में अपना गढ़ बना रखा है। वहीं अन्य स्टूडेंट यूनियन शांति-पसंद होने के बावजूद इन अपराधिक गतिविधियों वाली यूनियन से बच नहीं पाते हैं। कॉलेज कैंपस व यूनिवर्सिटी लेवल पर होनी खूनी झड़प पढ़ाई खत्म होने के बाद जारी हैं, जिस वजह से गैंगस्टर ग्रुप बने हुए हैं।
यह स्टूडेंट्स यूनियन एक्टिव हैं पंजाब में
इस समय पंजाब स्टूडेंट यूनियन(पीएसयू), डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (डीएसओ), सेकुलर यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसवाईएफआई), आर्गेनाईजेशन ऑफ पंजाबी यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स (ओपस), स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ पंजाबी यूनिवर्सिटी (सोपू), स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एसओआई), यूथ आर्गेनाईजेशन ऑफ इंडिया(वाईओआई), नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), गांधी ग्रुप स्टूडेंट यूनियन (जीजीएसयू), आल इंडिया यूथ एसोसिएशन (एआईयूए), आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), स्टूडेंट एसोसिएशन पंजाब (सैप), आजाद ग्रुप, गरचा ग्रुप लुधियाना के अलावा अन्य कई स्टूडेंट्स यूनियन राज्य के कॉलेजों व यूनिवर्सिटी में चल रही है। हालांकि इन यूनियन के चुनाव नहीं होते बल्कि सीधे तौर पर प्रधान व मेंबर चुनकर स्टूडेंट्स को जोड़ा जाता है।
किस केस में कौन सा ग्रुप है अपराधी
एसवाईएफआई ग्रुप- नवंबर 2014 में पुलिस वर्दी में गाड़ी पर नीली बत्ती लगाकर लोगों को लूटने वाले गिरोह के मेंबर जगसीर सिंह उर्फ जग्गी कलवाणु व गुरिंदर बाबा को सीआईए स्टाफ पटियाला ने गिरफ्तार किया था। दोनों ही पंजाबी यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। जग्गी डिफेंस की स्टडी कर रहा था। गुरिंदर बाबा ने पीयू में दविंदर बाबा से हाथ मिलाया था और इन लोगों की एसवाईएफआई में गतिविधियां चल रही थी। 
सोपू ग्रुप- बनूड़ में पार्षद के पति दिलजीत सिंह के कत्लकांड में आरोपी संपत नेहरा ने पंजाबी यूनिवर्सिटी में अपना ग्रुप बनाया हुआ था। इसमें अमन गुरदासपुरिया सहित अन्य लोग एक्टिव थे। यह वही लोग थे, जिनपर साल 2009 में फिजीकल कॉलेज में युवक के कत्ल का आरोप लगा था। अमन गुरदासपुरिया जेल में बंद होने के बावजूद सोपू को चला रहा है। 
एसओआई- एसओआई के मेंबरों का वाईओआई ग्रुप के साथ अक्सर मारपीट की घटनाएं है, जिस संबंध में शहर के कई पुलिस थानों में केस दर्ज हैं। हालांकि यह दोनों यूनियन पिछले तीन साल से ज्यादा एक्टिव नहीं दिख रही। 
वाईओआई- पंजाबी यूनिवर्सिटी के गेट पर धनौला ग्रुप के साथ रंजिश के कारण चार साल पहले दोनों गुटों के बीच फायरिंग हुई थी। इस घटना में कुछ लोग जख्मी हुए थे और बाहरी राज्य की जायलो गाड़ी पर गोलियां लगी थी। मामला थाना अर्बन इस्टेट में दर्ज है।  
एनएसयूआई- मोदी कॉलेज पटियाला के बाहर अगस्त 2017 में एनएसयूआई के जिला प्रधान रिदम सेठी पर इसी संस्था के रूरल विंग के मेंबरों ने हमला कर दिया था। राजिंदरा अस्पताल में दाखिल जिला प्रधान की कंप्लेंट पर कोतवाली थाना में केस दर्ज हुआ था। 
जीजीएसयू- लुधियाना के गांव रसूलरां में जन्म लेने वाला रूपिंदर गांधी पंजाब यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट या फुटबाल खिलाड़ी था। खेल व जोशीले स्वभाव के कारण वह मशहूर हुआ और यूथ का आईकान बना लेकिन उसके छोटे झगड़े गैंगस्टर की लड़ाई में बदल गई। महज 22 साल की उम्र में साल 2004 में उसका कत्ल हो गया। उसकी मौत के बाद भी युवा स्टूडेंट्स जीजीएसयू को स्पोर्ट कर रहे हैं। 
सैप ग्रुप- इस ग्रुप से जुड़ा मनु बुट्टर निवासी पातड़ां फायरिंग व रंजिश के कारण दूसरे गुटों के साथ भिड़ने को लेकर अक्सर कंट्रोवर्सी में रहा है। 

हिंदी का पहला गद्यकार पटियाला के निरंजनी थे

हिंदी गद्य का पहला अर्विभाव 1741 में हुआ
हिन्दी गद्य के विकास में पटियाला का योगदान अतुलनीय है साल 1741 में पटियाला में हिंदी गद्य का उद्भव हुआ था यह सवाल यह सवाल बड़ा दिलचस्प है इसे आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी प्रमाणित किया है राम प्रसाद निरंजनी का भाषा योग वशिष्ठ हिंदी का पहला गद्य कहा गया है इस बात का प्रमाण रामधारी सिंह दिनकर की संस्कृति के चार अध्याय में भी मिलता है यह पुस्तक 1955 में छपी थी पुस्तक में पेज नंबर 466 पर दर्ज है कि हिंदी गद्य का निश्चित रूप से सुस्पष्ट प्रमाण हमें राम प्रसाद निरंजनी के भाषा योग वशिष्ट नामक ग्रंथ में मिलता है ।पंजाबी यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के पूर्व विभागा अध्यक्ष डॉक्टर हुकुमचंद राजपाल कहते हैं कि यह बड़ी हैरत की बात हैकी जिसके ग्रंथ को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी गद्य का आदि ग्रंथ कहा है उसे पटियाला के लोग ही नहीं जानते यही नहीं आचार्य हजारी हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी लिखा है की एक बड़ी अहम बात है कि पटियाला नगर के हिंदी कवि सैकड़ों वर्षो से अपनी पहचान बनाने के लिए जूझते रहे हैं। बकौल डॉ राजपाल पंजाबी भाषी होने के कारण भी ये कवि हिंदी कविता को उस मुकाम पर नहीं ले जा सके जहां वह इसे लेकर जाने के इक्षुक थे।निरंजनी के ग्रंथ में जो हिंदी लिखी गई है वह आज की हिंदी से मिलती जुलती है। श्री योग वशिष्ठ भाषा दो भागमें प्रकाशित हुआ जिसे साधु राम प्रसाद जी महाराज निरंजनी ने पटियाला नरेश की परम जिज्ञासु भक्त दो बहनों के इस अपार संसार से उद्धरण हेतु कथा श्रवण प्रसंग की थी। पंजाबी यूनिवर्सिटी म बाल्मीकि चेयर पर पीठासीनडॉक्टर इंद्रमोहन सिंह बताते हैं महर्षि वाल्मीकि के श्री योग वशिष्ठ भाषा का हिंदी अनुवाद गद्य के विषय में जान आ गया पटियाला दरबार के संरक्षण में यह उल्लेखनीय कार्य निरंजनी ने संपन्न किया श्री योग वशिष्ठ भाषा कीलोकप्रियता एवं राज दरबार की आस्था परंपरा निष्ठा का अनुमान इसके मुख्य शीर्षक से लगाया जा सकता हैश्रीमत पटियाला नगर नरेश की बहनों परम जिज्ञासु भक्ता दोनों बहनों के इस अपार संसार के उद्धरण हेतु कथा श्रवण प्रसंग से साधु राम प्रसाद जी महाराज निरंजनी जी कृत पटियाला की साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत का परिचय हमें लोक चेतना के शायर से मिलता है। वे इन बहनों को कहानियां सुनाया करते थेजो इसमें लिखा गया है।
इतिहासकार डाॅ. कुलवंत ग्रेवाल बताते हैं कि पटियाला में हिंदी का पहला कवि महाराजा पटियाला अमर सिंह के दरबार में केशव पहले कवि थे। साल 1771 में उन्होंने महाराजा अमर सिंह की शान में अमर सिंह की बार पहला काव्य ग्रंथ हिंदी में लिखा। 
डॉ इंद्रमोहन सिंह ने श्री योगवशिष्ठ पर यूनिवर्सिटी में एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया था जिसमें देश विदेश से विद्वान और चिंतक थाली में सम्मिलित हुए। श्री निरंजनी निर्मल अखाड़े से संबंध रखते थे। इसमें छह प्रकरण लिखे गये हैं।
संसारआत्मा-परमात्मा क्या है?
श्री राम और महर्षि वशिष्ठ के संवाद और कथा सूत्रों से जीवन समाज और परिवेश व्यवस्था को सम्यक आधार प्रदान करता है। इसमें अध्यात्म विद्या का जिक्र है। महिलाएं इसकी कथाएं बड़ी चाव से सुनती हैं।

स्टूडेंट्स ने डिटर्जेंट इंडस्ट्री खोल गांव की महिलाओं को रोजगार दिया


कौन कहता है कि हवाओं और नदियों के रूख मोड़े नहीं जा सकते। पटियाला में थापर इंजीनियरिंग कॉलेज के 8 स्टूडेंट्स ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया है कि बड़े बिजनेसमैन भी दांतों तले उंगली दबा ले। बी-टैक सेकेंड ईयर के स्टूडेंट्स ने गांव की महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें खुद के पैरों पर खड़े करने की जिद में बिना किसी तजुर्बे के डिटर्जेंट इंडस्ट्री ही खोल दी। पटियाला के डकाला कस्बे के गांव खेड़ा जट्टा में पिछले महीने मार्च में खोली गई इस इंडस्ट्री में अब इसी गांव की 10 महिलाओं को रोजगार मुहैय्या करवाया जा रहा है। मार्च में इंडस्ट्री शुरू करने के पहले हफ्ते में ही आधे किलो सर्फ के 100 पैकेट बनाकर मार्केट में बेच सफलता का ऐसा स्वाद चखा कि अब दूसरे महीने में ही हफ्ते में 600 पैकेट बनाने का लक्ष्य तय कर लिया है। खुद सुनिए इन होनहार स्टूडेंट्स की जुबानी इनकी सफलता की कहानी-
मैं मयंक मंगला, हर्ष कोठारी, हिमांशु शर्मा, दिव्या आहलुवालिया, शौर्य प्रताप, रीया जैन, प्रिंयका, विशाल और सिद्धार्थ गोयल एक ही क्लास में पढ़ते है। समवैचारिक होने के कारण सभी के मन में समाज में पिछड़ी महिलाओं के लिए कुछ करने का जजबा था। कॉलेज के एक्स स्टूडेंट हर्ष कोठारी द्वारा बनाई संस्था कलम से जुड़ कर हम भिखारियों को पढ़ाने का काम करने लगे। इसी दौरान एक महिला भिखारी के माध्यम से हम गांव खेड़ा जट्टा पहुंचे। वहां महिलाओं के पिछड़े हालातों को देखकर फैसला कर लिया कि इनके लिए कुछ करना है। एक स्टूडेंट्स ने सर्फ बनाने का अाइडिया दिया। सब लोग नैट पर सर्फ बनाने की जानकारियां जुटाने लगे। कुछ साथी फील्ड में निकले और सर्फ बनाने वाली फर्मों में जाकर बारीकियां सीखी। हम करीबन डेढ़ महीने में बढ़िया क्वालिटी का सर्फ बनाना सीख गए। सर्फ भी ऐसा जो भारतीय कानून के मापदंडो पर खरा उतरता हो। जैसे आम तौर पर सभी सर्फ कंपनियां अपने प्रोडक्ट में फोसफेट कैमिकल डालती है जो बैन है। हमने फैसला लिया कि हम इस कैमिकल के बगैर अपना सर्फ मार्केट में उतारेंगे। इसके बाद पैकेजिंग, रजिस्ट्रेशन, टैक्सेशन, प्रोडक्ट्स, कॉस्ट स्ट्रक्चर, कैमिकल्स की गुणवत्ता पर स्ट्डी की।  
फिर अगला सवाल था कि काम कहां करे? गांव खेड़ा जट्टा की ही एक जरूरतमंद महिला ने अपने घर का एक कमरा मुफ्त में हमें सर्फ बनाने के लिए दे दिया। हमने गांव की ही ऐसी 10 जरूरतमंद महिलाओं को चुना जिन्हें रोजगार की सख्त जरूरत थी। इन्हें इस कमरे में सर्फ बनाना सिखाया। पहले हफ्ते 100 पैकेट बनाकर नाम रखा- स्टेलो डिटर्जेंट। कीमत रखी 79 रु प्रति आधा किलो। अब सवाल था कि इसे बेचे कहां? कौन खरीदेगा? कौन करेगा हम पर भरोसा? अपने ही थापर इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचे और अपने टीचर्स व साथियों को बताया। सब प्रभावित हुए और हाथों हाथ 100 पैकेट बिक गए। हमारा हौंसला बढ़ा। हमने अगले हफ्ते 200 पैकेट हफ्ते में बनवाए। फिर हम इन्हें लेकर पंजाबी यूनिवर्सिटी, थापर यूनिवर्सिटी और रेलवे की वर्कशाप में पहुंचे। यहां स्टॉल लगाई। लोगों को बताया तो सब साथ देने को आगे आए। 

हर महिला की 1 पैकेट पर 10 फीसदी कमीशन
आधा किलो सर्फ के एक पैकेट पर हर महिला को 10 फीसदी कमीशन दी जाती है। अगर वो महिला खुद अपने स्तर पर यह सर्फ बेचती है तो उसकी यह कमीशन 10 से बढ़ाकर 20 फीसदी हो जाती है। फिलहाल एक महिला एक हफ्ते में सिर्फ 2 दिन करीबन 3-3 घंटे लगाकर करीबन 20 पैकेट बना रही है। इस तरह वो फिलहाल 800 से 1 हजार रु कमा रही है।

पहले सारा बोझ पति पर था, अब हाथ बंटाती हूं- परमजीत कौर
गांव खेड़ा जट्टां की ही महिला परमजीत कौर कहती है कि पति दिहाड़ी करते है। पहले सारा बोझ उन पर था, अब ऐसे रोजगार मिला कि हफ्ते में सिर्फ 2 दिन 2 से 3 घंटे काम करके हम अपने लायक पैसा कमाने लग गए। बच्चों की ख्वाइशों से लेकर अपनी जरूरतों को अब अपने पैसे से पूरा करके जो आनंद लिया वो पहले कभी नहीं आया।

एग्रीकल्चर बिजली कनेक्शन पर सब्सिडी का खेल, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, नेता, अधिकारी ले रहे फायदा

दो बार मांगने पर भी कमीशन को नहीं दी एग्रीकल्चर के अलावा 20 लाख से ज्यादा आय वालों की जानकारी, सिर्फ बिजली बिल पर सब्सिडी छोड़ने की अपील की, किसी ने नहीं किया त्याग
-हरियाणा इलेक्ट्रिसिटी रेग्यूलेटरी कमीशन ने जानकारी के लिए सरकार को दो बार लिखी थी चिट्‌ठी
-जवाब मिला-ऐसे किसानों के नाम नहीं हो सकते चिह्नित
-हरियाणा में लाख हैं एग्रीकल्चर बिजली कनेक्शन

पूर्व मुख्यमंत्रियोंमंत्रियों और नेताओं समेत अमीर किसानों की ओर से एग्रीकल्चर कनेक्शन पर ली जा रही सब्सिडी पर सरकार में करीब तीन साल से चर्चा तो हो रही हैलेकिन इसे खत्म करने पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका। हरियाणा इलेक्ट्रिसिटी रेग्यूलेटरी कमीशन की ओर से सरकार को 2015-2016 और 2016-2017 में टैरिफ बदलने के वक्त दो बार चिट्‌ठी लिखकर एग्रीकल्चर के अलावा 20 लाख से ज्यादा आय वाले ऐसे लोगों के नाम मांगे थे जो एग्रीकल्चर कनेक्शन पर सस्ती बिजली ले रहे हैंलेकिन सरकार की ओर से इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। जवाब दिया कि उनके पास ऐसे लोगों की जानकारी नहीं हैजिनकी आय एग्रीकल्चर के अलावा 20 लाख से ज्यादा हो। हांनिगमों की ओर से इतना ही किया गया कि बिलों पर स्वेच्छा सब्सिडी छोड़ने की अपील छपवाई लेकिन इसके बाद भी अभी तक प्रदेश में एक भी नेतामंत्री या कोई अन्य बड़ा किसान ऐसा सामने नहीं आयाजिसने सब्सिडी छोड़ी हो। निगम सूत्रों का कहना है कि एग्रीकल्चर कनेक्शन के नाम पर सब्सिडी लेने वालों में नेतामंत्रियों के अलावा कई बड़े अफसर भी हैं,जिनके फार्म हाउस बने हुए हैं। उनके फार्म हाउस पर भी दस पैसे प्रति यूनिट या 15 रुपए प्रति हॉर्स पावर के हिसाब से बिजली सप्लाई हो रही है।जबकि उनका वेतन ही 20 लाख से ज्यादा है। आपको बता दें कि हरियाणा में करीब लाख कनेक्शन एग्रीकल्चर की कैटिगिरी में है। इनमें पूर्व सीएम ओपी चौटालाअभय के नाम के अलावा पूर्व सीएम हुड्डा पारिवारिक सदस्यों के नाम से तीन कनेक्शन हैं। वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु के परिवार के सदस्यों के नाम कनेक्शन हैं। इसी प्रकार अनेक विधायकों और नेता भी सब्सिडी का फायदा ले रहे हैं। बता दें कि एडवोकेट एचसी अरोड़ा ने इसी मामले को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में पीआईएल भी दाखिल कीजिस पर कोई ने सरकार से जवाब भी मांगा है। अगली सुनवाई मार्च में होगी।

कमीशन ने सरकार को क्या लिखा

जिनकी आय एग्रीकल्चर के अलावा 20 लाख से ज्यादा उन्हें फ्री न दी जाए बिजली
हरियाणा बिजली रेग्यूलेटरी कमीशन की ओर से सरकार को लिखा गया था कि जिनकी एग्रीकल्चर के अलावा 20 लाख से ज्यादा आय हैउनके नाम दिए जाएं। उनकी सब्सिडी खत्म कर उन्हें बिल दिया जाए। उन्हें बिजली फ्री नहीं दी जानी चाहिए।

कर्मचारियों की फ्री बिजली बंद करने की सिफारिशनिर्णय नहीं
बिजली निगम के कर्मचारियों को 50 से 100 तक जो भी यूनिट फ्री दी जाती हैउसे खत्म किया जाए। निगमों के अलावा कमीशन के कर्मचारी भी इसी प्रकार फायदा ले रहे हैंवह भी खत्म हो।

प्रदेश में सवा तीन लाख लोगों ने छोड़ी थी सब्सिडी
बात जब गैस सब्सिडी छोड़ने की आई तो प्रदेश में करीब सवा तीन लाख लोगों ने आगे आकर इसके लिए एप्लाई किया था। यानि उन्होंने सब्सिडी छोड़ी लेकिन नेताअधिकारी और अमीर किसान बिजली की सब्सिडी छोड़ने को तैयार नहीं है। गैस सब्सिडी लोगों के खाते में जाती है। अन्य योजनाओं के पैसे भी सरकार सीधे खाते में ट्रांसफर कर रही है लेकिन कमीशन की सिफारिश के बावजूद सरकार किसानों को बिजली की सब्सिडी उनके खाते में जमा कराने को तैयार नहीं है।

सरकार पर 7698 करोड़ का है सब्सिडी का भार
सरकार पर बिजली सब्सिडी का वर्ष 2017-18 में करीब 7698 करोड़ रुपए का भार है। जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह 6434 करोड़ रुपए के करीब रहा था। यदि अमीर किसान सब्सिडी छोड़े तो सरकार पर भी बोझ कम हो सकता है। यह पैसा सरकार को बिजली निगमों को देने होते हैं।

नगरीय सीमा के जितनी नजदीक होगी जमीन, उतना कम मिलेगा मुआवजा


नए भूमि अधिग्रहण एक्ट के तहत हरियाणा ने अब बनाए नियम। फैक्टर संशोधन की अधिसूचना जारी। बड़ी विकास परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करना सरकार के लिए हुआ मुश्किल। ग्रामीण क्षेत्रों में देना होगा कलेक्टर रेट का चार गुणा मुआवजा। 


हरियाणा में विकास योजनाओं के लिए अवाप्त की जाने वाली जमीन नगरीय सीमा के जितनी नजदीक होगी, उतना ही कम मुआवजा मिलेगा। जबकि 30 किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाली जमीन के लिए बाजार दर से चार गुणा तक मुआवजा दिया जाएगा। पिछली कांग्रेस सरकार के समय बने भूमि अधिग्रहण एक्ट ( द राइट टू फेयर कंपनसेसन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड री-सैटलमेंट एक्ट 2013) के तहत करीब 4 साल बाद हरियाणा सरकार ने नियम बना लिए हैं। इन नियमों को करीब 20 दिन पहले ही कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी दी गई। अब पिछले सप्ताह ही इन नियमों को अधिसूचित किया गया है। 
राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक नियम बनाने में देरी इसलिए हुई, क्योंकि यह एक्ट कांग्रेस नीत यूपीए सरकार में बना था। मौजूदा एनडीए सरकार इसमें संशोधन करना चाहती थी। इसके लिए एक-दो बार विधेयक भी बने, लेकिन वे राज्यसभा से पास नहीं हो सके। इसलिए अब पुराने एक्ट के तहत ही हरियाणा सरकार ने अपने नियम बनाकर लागू किए हैं। इनमें एक्ट के मुताबिक जमीन अधिग्रहण के लिए मुआवजा तय करने के उद्देश्य से 1 से 2 तक का फैक्टर तय किया गया है। जबकि पड़ोसी प्रदेश पंजाब में अभी भी 1.2 का फैक्टर ही प्रभावी है। इससे किसानों को काफी फायदा होगा। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि जमीन की बाजार दर पर सोलेशियम भी पहली बार 100 प्रतिशत किया गया है। जबकि इससे पहले वर्ष 1984 में यह 30 प्रतिशत और उससे पहले 15 प्रतिशत ही था। नए एक्ट के मुताबिक  उस क्षेत्र में हुई सर्वाधिक रेट पर हुई रजिस्ट्रियों को आधार मानकर बाजार दर तय की जाएगी। 
जमीन अधिग्रहण करना अब आसान नहींः इस भूमि अधिग्रहण एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण करना बहुत मुश्किल हो गया है। यही वजह कि पिछले 4 साल में हरियाणा तो क्या अधिकतर राज्यों में विकास परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया है। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की मानें तो इस एक्ट में अधिग्रहीत की गई जमीन इतनी ज्यादा महंगी पड़ने लगी है कि उसमे विकास प्रोजेक्ट न तो संभव हो पाएंगे और न ही वायबल। 
इसीलिए सरकार ने निकाली ई-भूमि पोर्टल की गलीः चूंकि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत विकास कार्यों के लिए जमीन जुटाना सरकार के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। इसलिए नई लैंड पॉलिसी बनाकर ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से ही जमीन जुटाए जाने की गली निकाली गई। इसमें सरकार की ओर से किसी भी क्षेत्र में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की इच्छा जाहिर की जाती है। फिर, संबंधित क्षेत्र के ऐसे जमीन मालिकों से प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं जो अपनी जमीन सरकार को देना चाहते हैं। इसमें अपनी जमीन का रेट वे खुद तय करते हैं। इसके बाद इच्छुक विक्रेताओं से संबंधित विभाग जमीन  का मोल-भाव करते हैं। इस तरह आपसी राजीनामे के आधार विभागों को आम तौर पर कलेक्टर रेट अथवा उससे 20-30 प्रतिशत ज्यादा दर पर जमीन मिल जाती है। इसके लिए हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) को नोडल एजेंसी बनाया गया है। एचएसआईआईडीसी ही अब अपना लैंड बैंक बना रही है।
अब 5 साल तक उपयोग न होने पर वापस लौटाई जा सकेगी जमीनः अगर किसी विकास परियोजना के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का 5 साल तक उपयोग नहीं होता है तो वह जमीन किसानों को वापस लौटाई जा सकेगी। अथवा सरकार उसे अपने लैंड बैंक में रख सकेगी या उसका अन्य उपयोग कर सकेगी। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक पुराने एक्ट में यह प्रावधान नहीं था, लेकिन नए एक्ट की धारा 101 में यह प्रावधान किया गया है। चूंकि हरियाणा में कुछ जमीनें ऐसी भी हैं जो यह एक्ट प्रभाव में आने से पहले (यानी 1 जनवरी, 2014 से  पहले) अवार्ड पारित हो चुके थे। उन्हें भी लौटाए जाने के लिए हरियाणा सरकार ने नियमों में प्रावधान किया है। इसका विधेयक पारित करके राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा हुआ है। इसके बाद इसमें धारा 101ए नई जोड़ी जाएगी। 
यूं समझिए जमीन मुआवजे का गणितः आपकी जमीन शहरी सीमा (म्युनिसिपल लिमिट) से 20 किमी दूरी पर है। इसका बाजार भाव 20 लाख रुपए प्रति एकड़ है। इसमें 1.50 गुणा का फैक्टर लगेगा। इस तरह जमीन का बाजार भाव स्वतः ही 30 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गया। इस पर 100 प्रतिशत सोलेशियम भी जोड़ा जाएगा। यानी आपकी जमीन की कीमत 60 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गई। लैंड-बिल्डिंग अटैच करने का शुल्क 5 लाख रुपए और इस पर भी 100 फीसदी सोलेशियम यानी 10 लाख रुपए और जुड़ जाएंगे। इस तरह आपकी जमीन का कुल मुआवजा 70 लाख रुपए प्रति एकड़ हो जाएगा। इस राशि पर सोशल इम्पैक्ट स्टडी अधिसूचित होने की तारीख से अवार्ड पारित तक की अवधि के लिए 12 प्रतिशत सालाना की दर से ब्याज भी देय होगा। लेकिन, इसमें यह देखना होगा कि अधिग्रहण की जा रही जमीन के चारों कोनों की दूरी शहरी सीमा से 20 किलोमीटर हो। अगर, किसी छोर से यह दूरी शहरी सीमा से कम बैठती है तो मुआवजा राशि उसी अनुसार कम हो जाएगी। 
इसलिए कम है शहरी सीमा के निकट जमीन का मुआवजाः राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक शहरी सीमा (म्युनिसिपिल लिमिट) में  फैक्टर 1 इसलिए रखा गया है, क्योंकि वहां के कलेक्टर रेट पहले ही ज्यादा होते हैं। शहर से जितनी दूर जाएंगे, उसी अनुसार कलेक्टर रेट भी कम होते जाते हैं। इसलिए शहर से जमीन जितनी दूर होगी, उतना मुआवजा बढ़ता जाएगा, ताकि किसान को नुकसान न हो। इसमें शहरी सीमा के 10 किलोमीटर तक फैक्टर 1.25, जबकि 10 से 20 किलोमीटर तक 1.50 फैक्टर लगेगा। शहरी सीमा से 30 किलोमीटर तक की दूरी पर 1.75 और इससे ज्यादा दूरी पर 2 फैक्टर जोड़ा जाएगा। वहां कलेक्टर रेट कम होने पर फैक्टर की वजह से मुआवजा राशि बढ़ जाएगी। 
मुआवजे के अलावा ये भी मिलेंगे लाभः अगर सरकार शहरीकरण के लिए जमीन अधिग्रहण करती है तो संबंधित किसान को 20 प्रतिशत जमीन विकसित करके देनी होगी। इसके बदले उससे जमीन की कीमत और उसे विकसित करने का खर्च मुआवजा राशि में से लिया जा सकता है। एनुइटी के तौर पर प्रभावित परिवारों में एक सदस्य को नौकरी अथवा 5 लाख रुपए प्रति परिवार की दर से मुआवजा, 50 हजार रुपए प्रति परिवार री-सैटलमेंट के तौर पर देना होगा। अगर, उस जमीन से किसी परिवार को बेदखल किया जाता है तो उसे कम से कम 50 वर्गगज का बना हुआ मकान। सामान और पशुओं की शिफ्टिंग के लिए 75 हजार रुपए अलग से देने होंगे। ऐसे परिवार को एक साल तक 3 हजार रुपए मासिक दिए जाएंगे। अनुसूचित जाति के परिवार के लिए यह राशि एकमुश्त 50 हजार रुपए होगी। 
जमीन के अभाव में अटके हैं ये प्रोजेक्टः - यमुना नगर से रादौर रोड को फोरलेन करने के लिए सीएम मनोहर लाल ने तीन साल पहले घोषणा की थी। जमीन का पेंच फंसा, तो घोषणा को ही रद्द कर दिया गया। बाद में करीब 33 करोड़ रुपए खर्च कर उसी रोड को बनाया गया। जमीन एक्वायर करने में दिक्कत यह भी है कि रादौर रोड के दोनों ओर दुकानें और मकान बन चुके हैं। 
 - यमुनानगर जिले में ट्रांसपोर्ट नगर का प्रोजेक्ट पिछले 20 साल से अटका पड़ा है। इसकी वजह भी जमीन न मिलना है। औरंगाबाद, कैल के पास और बूडिया रोड पर  पहले जगहों का चयन किया गया, लेकिन किसान जमीन देने को तैयार नहीं हुए। ट्रांसपोर्ट नगर के लिए करीब 40 से 50 एकड़ जमीन चाहिए। अब ट्रक सड़क किनारे खड़े रहते हैं। जिससे शहर में जाम की स्थिति बनी रहती है। 
 - सोनीपत के सेक्टर-5, 6, 2 के लिए जमीन का अधिग्रहण वर्ष 2005 में शुरू हुआ था। ये सेक्टर  अभी तक भी आबाद नहीं हुए हैं। इसकी वजह भी जमीन अधिग्रहण में मिले मुआवजे से किसान संतुष्ट नहीं हैं। यहां उनका मुआवजा 5 लाख रुपए प्रति एकड़ दिया गया। इसके खिलाफ वे कोर्ट चले गए। कोर्ट के आदेश पर वे इस जमीन का 60 लाख रुपए एकड़ की दर से मुआवजा ले चुके हैं। इसी तरह सोनीपत शहर में प्रस्तावित सेक्टर 16 और कुंडली में सेक्टर-58 भी लटके हुए हैं। किसानों ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है। सेक्टर-16 के लिए तो हुडा भी जमीन लेने से इनकार कर चुका है। अब यह जमीन रिलीज करने की स्थिति आ गई है। 
- सोनीपत में ही एजुकेशन सिटी की करीब 1000 एकड़ जमीन पर भी विवाद बना हुआ है। काफी जमीन हाईकोर्ट के आदेश पर हाल ही में रिलीज करनी पड़ी है। जो जमीन रिलीज की गई, वहां से हुडा ने एजुकेशन सिटी के लिए बनाए गए एसटीपी सीवर ट्रीटमेंट प्लाट की मुख्य सीवर पाइप लाइन दबाई थी। अब किसानों ने इस पाइप लाइन में रेत भर दिया। जिसके चलते प्रोजेक्ट लटक गया है। इस प्रोजेक्ट पर नौ करोड़ खर्च किए गए हैं। 
पर्याप्त मुआवजे के लिए किसानों को कोर्ट में देनी होती है दस्तकः 
जमीन अधिग्रहण के अधिकांश मामलों में सरकार की ओर से दिए जाने वाले मुआवजे से किसान संतुष्ट नहीं होते हैं। पर्याप्त मुआवजे के लिए ज्यादातर को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। ज्यादातर समय उन्हें इसमें सफलता ही मिलती है। कोर्ट में जाने से जमीन का मुआवजा कई गुणा बढ़ जाता है। इस पर ब्याज जोड़कर यह राशि काफी बन जाती है। ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें कोर्ट के आदेश से मुआवजा राशि 5 लाख रुपए से बढ़कर 50 लाख रुपए प्रति एकड़ से भी ज्यादा हो गई है। जमीन अधिग्रहण से जुड़े सोनीपत के ज्यादातर मामले हाईकोर्ट में लड़ने वाले वकील सतपाल खत्री का कहना है कि जमीन अधिग्रहण करने से पहले सरकार किसानों की राय तक नहीं लेती। इसलिए वे सरकार को जमीन देकर खुश नहीं होते। किसानों से एक तरह से जमीन जबरदस्ती छीनी गईं। ऐसे कई उदाहऱण हैं जिनमें सरकार ने 5 से 6 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया, जबकि कोर्ट ने उसी जमीन का मुआवजा 65 से 70 लाख रुपए प्रति एकड़ तक दिलाया है। जब तक कलेक्टर रेट से 4 गुणा मुआवजा नहीं मिलता तब तक किसान कोर्ट में लड़ता रहता है। 
किसान भी हो गए हैं जागरुकः
हरियाणा में जमीनों के अधिग्रहण को लेकर अब किसान भी काफी जागरुक हो गए हैं। जहां भी उन्हें  कम मुआवजा मिलता है वे तुरंत विरोध करके प्रोजेक्ट को ही रुकवा देते हैं। कोर्ट तक जाने की नौबत ही कम आती है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान बॉर्डर से अंबाला तक फोरलेन नेशनल हाइवे का काम लंबे समय से चल रहा है। इसमें कई बार व्यवधान आए। इसके लिए सरकार ने जमीन अधिग्रहण की, लेकिन मुआवजा 27 लाख रुपए प्रति एकड़ तय किया। किसान तुरंत तितरम मोड पर धरने पर बैठ गए। लिहाजा सरकार को उन्हें 47 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देना पड़ा। इसी तरह तितरम से क्यो़डक तक बाईपास का निर्माण चल रहा है। लेकिन हरसौला के किसान इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुआवजा केवल 6 एकड़ जमीन का ही मिला है। वे अब मिट्टी नहीं डालने दे रहे हैं। किसान बीरबल का कहना है कि उनके खाते में जानबूझकर मुआवजे के पैसे नहीं डाले जा रहे हैं। 
प्रोजेक्ट अटकने से यह पड़ता है असरः 
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया इतनी बोझिल, लंबी औऱ जटिल है कि इससे विकास कार्यों के बड़े प्रोजेक्ट पर प्रतिकूल असर पड़ता है। किसी भी प्रोजेक्ट की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाते वक्त जमीन की कीमत का सही आकलन नहीं होता है। जैसे ही जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू होती है तो किसान विरोध में उतर आते हैं। चूंकि जमीन अधिग्रहण की चार स्टेज होती हैं, इन्हें पूरा करने में ही 1 से 3 साल तक का वक्त लग जाता है। इस बीच, बाजार में निर्माण सामग्री के भाव बढ़ने के साथ-साथ लेबर भी महंगी हो जाती है। कई बार तो ठेकेदार भी काम छोड़कर चले जाते हैं। अगर किसान कोर्ट में चले जाएं तो प्रोजेक्ट और भी लेट हो सकता है। इससे प्रोजेक्ट की लागत कई गुणा बढ़ जाती है। इसका न तो सरकारों को राजनीतिक लाभ मिल पाता है और न ही स्थानीय लोगों को। इसे यमुना नगर जिले में बनने वाली दादूपुर-नलवी नहर प्रोजेक्ट से भी समझा जा सकता है। क्योंकि किसानों का जितना मुआवजा बनता है, उतना पैसा सरकार के पास नहीं है। जमीन लौटाने के लिए जो पैसा सरकार लेना चाहती है, उतना पैसा किसानों के पास नहीं है। इस तरह नहर भी नहीं बन पाई औऱ किसानों की जमीन भी खराब हो गई। 

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