कौन कहता है कि हवाओं और नदियों के रूख मोड़े नहीं जा सकते। पटियाला में थापर इंजीनियरिंग कॉलेज के 8 स्टूडेंट्स ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया है कि बड़े बिजनेसमैन भी दांतों तले उंगली दबा ले। बी-टैक सेकेंड ईयर के स्टूडेंट्स ने गांव की महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें खुद के पैरों पर खड़े करने की जिद में बिना किसी तजुर्बे के डिटर्जेंट इंडस्ट्री ही खोल दी। पटियाला के डकाला कस्बे के गांव खेड़ा जट्टा में पिछले महीने मार्च में खोली गई इस इंडस्ट्री में अब इसी गांव की 10 महिलाओं को रोजगार मुहैय्या करवाया जा रहा है। मार्च में इंडस्ट्री शुरू करने के पहले हफ्ते में ही आधे किलो सर्फ के 100 पैकेट बनाकर मार्केट में बेच सफलता का ऐसा स्वाद चखा कि अब दूसरे महीने में ही हफ्ते में 600 पैकेट बनाने का लक्ष्य तय कर लिया है। खुद सुनिए इन होनहार स्टूडेंट्स की जुबानी इनकी सफलता की कहानी-
मैं मयंक मंगला, हर्ष कोठारी, हिमांशु शर्मा, दिव्या आहलुवालिया, शौर्य प्रताप, रीया जैन, प्रिंयका, विशाल और सिद्धार्थ गोयल एक ही क्लास में पढ़ते है। समवैचारिक होने के कारण सभी के मन में समाज में पिछड़ी महिलाओं के लिए कुछ करने का जजबा था। कॉलेज के एक्स स्टूडेंट हर्ष कोठारी द्वारा बनाई संस्था कलम से जुड़ कर हम भिखारियों को पढ़ाने का काम करने लगे। इसी दौरान एक महिला भिखारी के माध्यम से हम गांव खेड़ा जट्टा पहुंचे। वहां महिलाओं के पिछड़े हालातों को देखकर फैसला कर लिया कि इनके लिए कुछ करना है। एक स्टूडेंट्स ने सर्फ बनाने का अाइडिया दिया। सब लोग नैट पर सर्फ बनाने की जानकारियां जुटाने लगे। कुछ साथी फील्ड में निकले और सर्फ बनाने वाली फर्मों में जाकर बारीकियां सीखी। हम करीबन डेढ़ महीने में बढ़िया क्वालिटी का सर्फ बनाना सीख गए। सर्फ भी ऐसा जो भारतीय कानून के मापदंडो पर खरा उतरता हो। जैसे आम तौर पर सभी सर्फ कंपनियां अपने प्रोडक्ट में फोसफेट कैमिकल डालती है जो बैन है। हमने फैसला लिया कि हम इस कैमिकल के बगैर अपना सर्फ मार्केट में उतारेंगे। इसके बाद पैकेजिंग, रजिस्ट्रेशन, टैक्सेशन, प्रोडक्ट्स, कॉस्ट स्ट्रक्चर, कैमिकल्स की गुणवत्ता पर स्ट्डी की।
फिर अगला सवाल था कि काम कहां करे? गांव खेड़ा जट्टा की ही एक जरूरतमंद महिला ने अपने घर का एक कमरा मुफ्त में हमें सर्फ बनाने के लिए दे दिया। हमने गांव की ही ऐसी 10 जरूरतमंद महिलाओं को चुना जिन्हें रोजगार की सख्त जरूरत थी। इन्हें इस कमरे में सर्फ बनाना सिखाया। पहले हफ्ते 100 पैकेट बनाकर नाम रखा- स्टेलो डिटर्जेंट। कीमत रखी 79 रु प्रति आधा किलो। अब सवाल था कि इसे बेचे कहां? कौन खरीदेगा? कौन करेगा हम पर भरोसा? अपने ही थापर इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचे और अपने टीचर्स व साथियों को बताया। सब प्रभावित हुए और हाथों हाथ 100 पैकेट बिक गए। हमारा हौंसला बढ़ा। हमने अगले हफ्ते 200 पैकेट हफ्ते में बनवाए। फिर हम इन्हें लेकर पंजाबी यूनिवर्सिटी, थापर यूनिवर्सिटी और रेलवे की वर्कशाप में पहुंचे। यहां स्टॉल लगाई। लोगों को बताया तो सब साथ देने को आगे आए।
हर महिला की 1 पैकेट पर 10 फीसदी कमीशन
आधा किलो सर्फ के एक पैकेट पर हर महिला को 10 फीसदी कमीशन दी जाती है। अगर वो महिला खुद अपने स्तर पर यह सर्फ बेचती है तो उसकी यह कमीशन 10 से बढ़ाकर 20 फीसदी हो जाती है। फिलहाल एक महिला एक हफ्ते में सिर्फ 2 दिन करीबन 3-3 घंटे लगाकर करीबन 20 पैकेट बना रही है। इस तरह वो फिलहाल 800 से 1 हजार रु कमा रही है।
पहले सारा बोझ पति पर था, अब हाथ बंटाती हूं- परमजीत कौर
गांव खेड़ा जट्टां की ही महिला परमजीत कौर कहती है कि पति दिहाड़ी करते है। पहले सारा बोझ उन पर था, अब ऐसे रोजगार मिला कि हफ्ते में सिर्फ 2 दिन 2 से 3 घंटे काम करके हम अपने लायक पैसा कमाने लग गए। बच्चों की ख्वाइशों से लेकर अपनी जरूरतों को अब अपने पैसे से पूरा करके जो आनंद लिया वो पहले कभी नहीं आया।
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