गुरुवार, मार्च 29, 2018

नगरीय सीमा के जितनी नजदीक होगी जमीन, उतना कम मिलेगा मुआवजा


नए भूमि अधिग्रहण एक्ट के तहत हरियाणा ने अब बनाए नियम। फैक्टर संशोधन की अधिसूचना जारी। बड़ी विकास परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करना सरकार के लिए हुआ मुश्किल। ग्रामीण क्षेत्रों में देना होगा कलेक्टर रेट का चार गुणा मुआवजा। 


हरियाणा में विकास योजनाओं के लिए अवाप्त की जाने वाली जमीन नगरीय सीमा के जितनी नजदीक होगी, उतना ही कम मुआवजा मिलेगा। जबकि 30 किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाली जमीन के लिए बाजार दर से चार गुणा तक मुआवजा दिया जाएगा। पिछली कांग्रेस सरकार के समय बने भूमि अधिग्रहण एक्ट ( द राइट टू फेयर कंपनसेसन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्वीजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड री-सैटलमेंट एक्ट 2013) के तहत करीब 4 साल बाद हरियाणा सरकार ने नियम बना लिए हैं। इन नियमों को करीब 20 दिन पहले ही कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी दी गई। अब पिछले सप्ताह ही इन नियमों को अधिसूचित किया गया है। 
राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक नियम बनाने में देरी इसलिए हुई, क्योंकि यह एक्ट कांग्रेस नीत यूपीए सरकार में बना था। मौजूदा एनडीए सरकार इसमें संशोधन करना चाहती थी। इसके लिए एक-दो बार विधेयक भी बने, लेकिन वे राज्यसभा से पास नहीं हो सके। इसलिए अब पुराने एक्ट के तहत ही हरियाणा सरकार ने अपने नियम बनाकर लागू किए हैं। इनमें एक्ट के मुताबिक जमीन अधिग्रहण के लिए मुआवजा तय करने के उद्देश्य से 1 से 2 तक का फैक्टर तय किया गया है। जबकि पड़ोसी प्रदेश पंजाब में अभी भी 1.2 का फैक्टर ही प्रभावी है। इससे किसानों को काफी फायदा होगा। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि जमीन की बाजार दर पर सोलेशियम भी पहली बार 100 प्रतिशत किया गया है। जबकि इससे पहले वर्ष 1984 में यह 30 प्रतिशत और उससे पहले 15 प्रतिशत ही था। नए एक्ट के मुताबिक  उस क्षेत्र में हुई सर्वाधिक रेट पर हुई रजिस्ट्रियों को आधार मानकर बाजार दर तय की जाएगी। 
जमीन अधिग्रहण करना अब आसान नहींः इस भूमि अधिग्रहण एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण करना बहुत मुश्किल हो गया है। यही वजह कि पिछले 4 साल में हरियाणा तो क्या अधिकतर राज्यों में विकास परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया है। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की मानें तो इस एक्ट में अधिग्रहीत की गई जमीन इतनी ज्यादा महंगी पड़ने लगी है कि उसमे विकास प्रोजेक्ट न तो संभव हो पाएंगे और न ही वायबल। 
इसीलिए सरकार ने निकाली ई-भूमि पोर्टल की गलीः चूंकि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत विकास कार्यों के लिए जमीन जुटाना सरकार के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। इसलिए नई लैंड पॉलिसी बनाकर ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से ही जमीन जुटाए जाने की गली निकाली गई। इसमें सरकार की ओर से किसी भी क्षेत्र में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की इच्छा जाहिर की जाती है। फिर, संबंधित क्षेत्र के ऐसे जमीन मालिकों से प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं जो अपनी जमीन सरकार को देना चाहते हैं। इसमें अपनी जमीन का रेट वे खुद तय करते हैं। इसके बाद इच्छुक विक्रेताओं से संबंधित विभाग जमीन  का मोल-भाव करते हैं। इस तरह आपसी राजीनामे के आधार विभागों को आम तौर पर कलेक्टर रेट अथवा उससे 20-30 प्रतिशत ज्यादा दर पर जमीन मिल जाती है। इसके लिए हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) को नोडल एजेंसी बनाया गया है। एचएसआईआईडीसी ही अब अपना लैंड बैंक बना रही है।
अब 5 साल तक उपयोग न होने पर वापस लौटाई जा सकेगी जमीनः अगर किसी विकास परियोजना के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का 5 साल तक उपयोग नहीं होता है तो वह जमीन किसानों को वापस लौटाई जा सकेगी। अथवा सरकार उसे अपने लैंड बैंक में रख सकेगी या उसका अन्य उपयोग कर सकेगी। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक पुराने एक्ट में यह प्रावधान नहीं था, लेकिन नए एक्ट की धारा 101 में यह प्रावधान किया गया है। चूंकि हरियाणा में कुछ जमीनें ऐसी भी हैं जो यह एक्ट प्रभाव में आने से पहले (यानी 1 जनवरी, 2014 से  पहले) अवार्ड पारित हो चुके थे। उन्हें भी लौटाए जाने के लिए हरियाणा सरकार ने नियमों में प्रावधान किया है। इसका विधेयक पारित करके राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा हुआ है। इसके बाद इसमें धारा 101ए नई जोड़ी जाएगी। 
यूं समझिए जमीन मुआवजे का गणितः आपकी जमीन शहरी सीमा (म्युनिसिपल लिमिट) से 20 किमी दूरी पर है। इसका बाजार भाव 20 लाख रुपए प्रति एकड़ है। इसमें 1.50 गुणा का फैक्टर लगेगा। इस तरह जमीन का बाजार भाव स्वतः ही 30 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गया। इस पर 100 प्रतिशत सोलेशियम भी जोड़ा जाएगा। यानी आपकी जमीन की कीमत 60 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गई। लैंड-बिल्डिंग अटैच करने का शुल्क 5 लाख रुपए और इस पर भी 100 फीसदी सोलेशियम यानी 10 लाख रुपए और जुड़ जाएंगे। इस तरह आपकी जमीन का कुल मुआवजा 70 लाख रुपए प्रति एकड़ हो जाएगा। इस राशि पर सोशल इम्पैक्ट स्टडी अधिसूचित होने की तारीख से अवार्ड पारित तक की अवधि के लिए 12 प्रतिशत सालाना की दर से ब्याज भी देय होगा। लेकिन, इसमें यह देखना होगा कि अधिग्रहण की जा रही जमीन के चारों कोनों की दूरी शहरी सीमा से 20 किलोमीटर हो। अगर, किसी छोर से यह दूरी शहरी सीमा से कम बैठती है तो मुआवजा राशि उसी अनुसार कम हो जाएगी। 
इसलिए कम है शहरी सीमा के निकट जमीन का मुआवजाः राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक शहरी सीमा (म्युनिसिपिल लिमिट) में  फैक्टर 1 इसलिए रखा गया है, क्योंकि वहां के कलेक्टर रेट पहले ही ज्यादा होते हैं। शहर से जितनी दूर जाएंगे, उसी अनुसार कलेक्टर रेट भी कम होते जाते हैं। इसलिए शहर से जमीन जितनी दूर होगी, उतना मुआवजा बढ़ता जाएगा, ताकि किसान को नुकसान न हो। इसमें शहरी सीमा के 10 किलोमीटर तक फैक्टर 1.25, जबकि 10 से 20 किलोमीटर तक 1.50 फैक्टर लगेगा। शहरी सीमा से 30 किलोमीटर तक की दूरी पर 1.75 और इससे ज्यादा दूरी पर 2 फैक्टर जोड़ा जाएगा। वहां कलेक्टर रेट कम होने पर फैक्टर की वजह से मुआवजा राशि बढ़ जाएगी। 
मुआवजे के अलावा ये भी मिलेंगे लाभः अगर सरकार शहरीकरण के लिए जमीन अधिग्रहण करती है तो संबंधित किसान को 20 प्रतिशत जमीन विकसित करके देनी होगी। इसके बदले उससे जमीन की कीमत और उसे विकसित करने का खर्च मुआवजा राशि में से लिया जा सकता है। एनुइटी के तौर पर प्रभावित परिवारों में एक सदस्य को नौकरी अथवा 5 लाख रुपए प्रति परिवार की दर से मुआवजा, 50 हजार रुपए प्रति परिवार री-सैटलमेंट के तौर पर देना होगा। अगर, उस जमीन से किसी परिवार को बेदखल किया जाता है तो उसे कम से कम 50 वर्गगज का बना हुआ मकान। सामान और पशुओं की शिफ्टिंग के लिए 75 हजार रुपए अलग से देने होंगे। ऐसे परिवार को एक साल तक 3 हजार रुपए मासिक दिए जाएंगे। अनुसूचित जाति के परिवार के लिए यह राशि एकमुश्त 50 हजार रुपए होगी। 
जमीन के अभाव में अटके हैं ये प्रोजेक्टः - यमुना नगर से रादौर रोड को फोरलेन करने के लिए सीएम मनोहर लाल ने तीन साल पहले घोषणा की थी। जमीन का पेंच फंसा, तो घोषणा को ही रद्द कर दिया गया। बाद में करीब 33 करोड़ रुपए खर्च कर उसी रोड को बनाया गया। जमीन एक्वायर करने में दिक्कत यह भी है कि रादौर रोड के दोनों ओर दुकानें और मकान बन चुके हैं। 
 - यमुनानगर जिले में ट्रांसपोर्ट नगर का प्रोजेक्ट पिछले 20 साल से अटका पड़ा है। इसकी वजह भी जमीन न मिलना है। औरंगाबाद, कैल के पास और बूडिया रोड पर  पहले जगहों का चयन किया गया, लेकिन किसान जमीन देने को तैयार नहीं हुए। ट्रांसपोर्ट नगर के लिए करीब 40 से 50 एकड़ जमीन चाहिए। अब ट्रक सड़क किनारे खड़े रहते हैं। जिससे शहर में जाम की स्थिति बनी रहती है। 
 - सोनीपत के सेक्टर-5, 6, 2 के लिए जमीन का अधिग्रहण वर्ष 2005 में शुरू हुआ था। ये सेक्टर  अभी तक भी आबाद नहीं हुए हैं। इसकी वजह भी जमीन अधिग्रहण में मिले मुआवजे से किसान संतुष्ट नहीं हैं। यहां उनका मुआवजा 5 लाख रुपए प्रति एकड़ दिया गया। इसके खिलाफ वे कोर्ट चले गए। कोर्ट के आदेश पर वे इस जमीन का 60 लाख रुपए एकड़ की दर से मुआवजा ले चुके हैं। इसी तरह सोनीपत शहर में प्रस्तावित सेक्टर 16 और कुंडली में सेक्टर-58 भी लटके हुए हैं। किसानों ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है। सेक्टर-16 के लिए तो हुडा भी जमीन लेने से इनकार कर चुका है। अब यह जमीन रिलीज करने की स्थिति आ गई है। 
- सोनीपत में ही एजुकेशन सिटी की करीब 1000 एकड़ जमीन पर भी विवाद बना हुआ है। काफी जमीन हाईकोर्ट के आदेश पर हाल ही में रिलीज करनी पड़ी है। जो जमीन रिलीज की गई, वहां से हुडा ने एजुकेशन सिटी के लिए बनाए गए एसटीपी सीवर ट्रीटमेंट प्लाट की मुख्य सीवर पाइप लाइन दबाई थी। अब किसानों ने इस पाइप लाइन में रेत भर दिया। जिसके चलते प्रोजेक्ट लटक गया है। इस प्रोजेक्ट पर नौ करोड़ खर्च किए गए हैं। 
पर्याप्त मुआवजे के लिए किसानों को कोर्ट में देनी होती है दस्तकः 
जमीन अधिग्रहण के अधिकांश मामलों में सरकार की ओर से दिए जाने वाले मुआवजे से किसान संतुष्ट नहीं होते हैं। पर्याप्त मुआवजे के लिए ज्यादातर को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। ज्यादातर समय उन्हें इसमें सफलता ही मिलती है। कोर्ट में जाने से जमीन का मुआवजा कई गुणा बढ़ जाता है। इस पर ब्याज जोड़कर यह राशि काफी बन जाती है। ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें कोर्ट के आदेश से मुआवजा राशि 5 लाख रुपए से बढ़कर 50 लाख रुपए प्रति एकड़ से भी ज्यादा हो गई है। जमीन अधिग्रहण से जुड़े सोनीपत के ज्यादातर मामले हाईकोर्ट में लड़ने वाले वकील सतपाल खत्री का कहना है कि जमीन अधिग्रहण करने से पहले सरकार किसानों की राय तक नहीं लेती। इसलिए वे सरकार को जमीन देकर खुश नहीं होते। किसानों से एक तरह से जमीन जबरदस्ती छीनी गईं। ऐसे कई उदाहऱण हैं जिनमें सरकार ने 5 से 6 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया, जबकि कोर्ट ने उसी जमीन का मुआवजा 65 से 70 लाख रुपए प्रति एकड़ तक दिलाया है। जब तक कलेक्टर रेट से 4 गुणा मुआवजा नहीं मिलता तब तक किसान कोर्ट में लड़ता रहता है। 
किसान भी हो गए हैं जागरुकः
हरियाणा में जमीनों के अधिग्रहण को लेकर अब किसान भी काफी जागरुक हो गए हैं। जहां भी उन्हें  कम मुआवजा मिलता है वे तुरंत विरोध करके प्रोजेक्ट को ही रुकवा देते हैं। कोर्ट तक जाने की नौबत ही कम आती है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान बॉर्डर से अंबाला तक फोरलेन नेशनल हाइवे का काम लंबे समय से चल रहा है। इसमें कई बार व्यवधान आए। इसके लिए सरकार ने जमीन अधिग्रहण की, लेकिन मुआवजा 27 लाख रुपए प्रति एकड़ तय किया। किसान तुरंत तितरम मोड पर धरने पर बैठ गए। लिहाजा सरकार को उन्हें 47 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देना पड़ा। इसी तरह तितरम से क्यो़डक तक बाईपास का निर्माण चल रहा है। लेकिन हरसौला के किसान इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुआवजा केवल 6 एकड़ जमीन का ही मिला है। वे अब मिट्टी नहीं डालने दे रहे हैं। किसान बीरबल का कहना है कि उनके खाते में जानबूझकर मुआवजे के पैसे नहीं डाले जा रहे हैं। 
प्रोजेक्ट अटकने से यह पड़ता है असरः 
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया इतनी बोझिल, लंबी औऱ जटिल है कि इससे विकास कार्यों के बड़े प्रोजेक्ट पर प्रतिकूल असर पड़ता है। किसी भी प्रोजेक्ट की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाते वक्त जमीन की कीमत का सही आकलन नहीं होता है। जैसे ही जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू होती है तो किसान विरोध में उतर आते हैं। चूंकि जमीन अधिग्रहण की चार स्टेज होती हैं, इन्हें पूरा करने में ही 1 से 3 साल तक का वक्त लग जाता है। इस बीच, बाजार में निर्माण सामग्री के भाव बढ़ने के साथ-साथ लेबर भी महंगी हो जाती है। कई बार तो ठेकेदार भी काम छोड़कर चले जाते हैं। अगर किसान कोर्ट में चले जाएं तो प्रोजेक्ट और भी लेट हो सकता है। इससे प्रोजेक्ट की लागत कई गुणा बढ़ जाती है। इसका न तो सरकारों को राजनीतिक लाभ मिल पाता है और न ही स्थानीय लोगों को। इसे यमुना नगर जिले में बनने वाली दादूपुर-नलवी नहर प्रोजेक्ट से भी समझा जा सकता है। क्योंकि किसानों का जितना मुआवजा बनता है, उतना पैसा सरकार के पास नहीं है। जमीन लौटाने के लिए जो पैसा सरकार लेना चाहती है, उतना पैसा किसानों के पास नहीं है। इस तरह नहर भी नहीं बन पाई औऱ किसानों की जमीन भी खराब हो गई। 

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