रविवार, जून 01, 2014

पंजाब मेें नशाखोरी


पंजाब की याद दिलाते हैं जिसके बारे में सिकंदर महान ने अपनी मां को लिखा था, यह शेरों और बहादुरों की धरती है, जहां की जमीन पर कदम-कदम पर मानो इस्पात की दीवारें हैं, जो मेरे सैनिकों की परीक्षा ले रही है, इसी पंजाब के बारे में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, यह वह वीर भूमि है, जो किसी भी बाहरी हमले को पहले अपनी नंगी छाती पर झेलती है।चाहे वो मुसलिम शासकों के लगातार हमले झेलना रहा हो। यहां की मिटटी में ही एक एग्रेशन आ चुका है। वहीं दूसरी ओर सुखबीर पंजाब का चेहरा है जो बुरी तरह निस्तेज है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर वे कौन से हालात हैं जिनके चलते पंजाब में नशे की ऐसी लहर उठी। 

यह एक किस्‍सा ही काफी है, पूरे नशे की कहानी बयां करने को। दोआबा में खासकर नवांशहर की बात करें तो यहां मेरा गांव लंगड़ाेआ बहुत बदनाम है। मैं खुद बचपन से अब तक देखता आ रहा हूं कि यहां की सैंसी बिरादरी में महिलाएं बड़े धड़ल्‍ले से स्‍मैक बेचती हैं। कई बार पकड़ी गईं, छूट गई, लेकिन उन महिलाओं ने यह पुश्‍तैनी धंधा नहीं छोड़ा। नतीजतन पूरा गांव की जवानी नशे की चपेट में आ गई। मेरे ही सामने का घर जटटों का है, उनका काफी लंबे-चौड़े खेत हैंं। उनके बड़े बेटे के दो बेटे हैंं। एक मानसिक रूप से अपाहिज और छोटा नवांशहर एक कॉलेज में पढ़ने जाता था। इस दौरान वह कब-कब एक सरदार का बेटा सिगरेट की लत लगा बैठा। फिर स्‍मैक, हेरोइन भी टयूवबेल पर छुप-छुपकर पीने लगा। बाप को पता चला, तो उसका इलाज कराना शुरू किया। आखिरकार एक ही वारिस था वह भी नशे की जद में जा रहा था। मैं जब भी पिंड जाता तो उसका बाप मुझसे कहता कि यार तुम पढे-लिखे हो हम तो अब रिटायर फौजी ठहरे। इसे तुम ही कुछ समझाओ। हमारी तो यह सुनता नहीं है और झूठ बोलता है। ऐसे में यह अपनी ही जिंदगी खराब करेगा। हमारी तो कट गई। मैं उसे उसका दोस्‍त बनके समझाता, वह कहता चाचा हुण तां मैं छडड चुकेआं, हां कदी जरूर कीता सी। खैर फिर उसने अपने इस बेटे को यूके भेज दिया। वहां पर उसका इलाज भी हुआ और वह पढाई के बाद एक अच्‍छी नौकरी भी कर रहा है।

पंजाब में हालात खराब होने की और भी वजहें हैं, इनमें से एक प्रमुख कारण है अफगानिस्तान और पाकिस्तान से इसकी निकटता तथा दुनिया के नशे के कारोबार के नक्शे पर इसकी अहम स्थिति,पाकिस्तान के साथ लगने वाली पंजाब की सीमा के पूरे 553 किलोमीटर के इलाके में बिजली के तारों की घेराबंदी की गई है। लेकिन इसका कोई खास असर नहीं है, क्योंकि इसमें बिजली गर्मियों में शाम छह बजे के बाद और जाड़ों में शाम चार बजे के बाद ही चालू की जाती है, सीमा का कुछ हिस्सा पानी से भरा है, लेकिन वह तस्करों की पसंद का रास्ता नहीं है क्योंकि बिजली बंद होने के कारण पहले वाला रास्ता उनको अधिक मुफीद पड़ता है। अगर आप नशे की लत से जद्दोजहद कर रहे तरनतारन जिले की खेमकरन सीमा चौकी पर जाएंगे तो वहां आपको सडक़ पर यह चेतावनी लिखी नहीं मिलेगी कि शराब पीकर वाहन न चलाएं बल्कि इसके बजाय वहां लिखा होगा कि ड्रग्स लेकर वाहन न चलाएं।

दरअसल पंजाब की सिर्फ भौगोलिक स्थिति राज्य के युवाओं की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार नहीं है। एक मायने में हरित क्रांति से आई समृद्धि भी इसके लिए जिम्मेदार है, ग्रामीण इलाकों की शिक्षित-अर्धशिक्षित युवा पीढ़ी अब अपने बाप-दादों की तरह किसानी को आजीविका का साधन बनाना नहीं चाहती। लेकिन विडंबना यह है कि इसके अलावा उनके पास नौकरियां भी नहीं हैं। पंजाब के माझा क्षेत्र में पडऩे वाले ब्रह्मपुर गांव के किसान दलबीर सिंह बताते हैं, मेरे बेटे को कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बस कंडक्टर का काम करना पड़ा था। अब वह मेरे साथ ही खेत में काम करता है। यहां नौकरियां हैं ही नहीं। यदि ये युवा ऐसे बिना काम के घूमेंगे तो नशे की गिरफ्त में आसानी से पड़ जाएंगे।

दोआबा और माझा इलाके में केवल अफीम की भूसी यानी भुक्की और डोडा का इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि इससे बनने वाले अन्य नशे मसलन स्मैक और हेरोइन भी यहां खूब चलन में हैं। इतना ही नहीं अधिकारियों के लिए सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि राजनीतिक दलों ने दवा दुकानदारों को खुली छूट दे रखी थी कि वे युवाओं को उनकी मर्जी के मुताबिक खतरनाक नशीली दवाएं दे दें।
पंजाब की इस त्रासदी का एक दूसरा त्रासद पहलू यह है कि इसका समाधान खुद एक बीमारी की तरह फैल रहा है। राज्य में जहां-तहां अवैध नशा मुक्ति केंद्र खुल चुके हैं। इन केंद्रों में ज्यादातर मरीजों का वैज्ञानिक तरीके से इलाज तो होता नहीं है उल्टे पचास फीसदी से ज्यादा मरीज एक बार यहां से छुट्टी मिलने के बाद दोबारा यहां भर्ती जरूर होते हैं। पंजाब में बीते दिनों निजी नशा मुक्ति केंद्रों से जुड़ी हुई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जहां भर्ती मरीजों को प्रबंधन द्वारा शारीरिक प्रताडऩा दी गई। अमृतसर-रोपड़ के कुछ निजी क्लीनिक तो यह भी दावा करते हैं कि वे दो लाख रुपये में लेजर थेरपी से लोगों का नशा छुड़वा सकते हैं। कुछ जगह यह दावा किया जाता है कि एक चिप लगाकर वे लोगों का इलाज कर सकते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पंजाब में ऐसे हास्यास्पद दावे करने वाले क्लीनिक भी लाखों की कमाई कर रहे हैं। मुक्तसर शहर में आदेश अस्पताल के अधीक्षक डॉ एस कृष्णन इसकी वजह बताते हैं कि ज्‍यादातर परिवारवाले नहीं जानते कि वे नशेड़ी आदमी के साथ क्या करें, वे या तो उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं या फिर यह सोचते हैं कि पैसे से वे उसका इलाज करवा सकते हैं। कुछ परिवारों को लगता है कि संबंधित व्यक्ति उनकी प्रतिष्ठा पर धब्बा है। इसलिए उसे इन सेंटरों में रख दिया जाए।


कॉलेज जाने वाला हर तीसरा युवा नशा करता है
राज्य में नशे का अंधेरा इतना घना हो चुका है कि दूर-दूर तक उम्मीद की कोई रोशनी नजर नहीं आती। आखिर ऐसा क्यों है। पंजाब के युवाओं में नशे की लत ऐसा कोई रहस्य नहीं है जिसके बारे में किसी को पता न हो। साल 2009 में जब पंजाब की अकाली दल सरकार ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के सामने यह माना था कि राज्य के 75 फीसदी युवा नशे की गिरफ्त में हैं, तब इस मुद्दे पर कुछ सरगर्मी देखी गई थी। लेकिन अपनी पंजाब यात्रा के दौरान जब कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा था कि राज्य के 10 में से 7 युवा नशे के आदी हैं तो इस पर खूब हायतौबा मची। तीन साल पहले कोर्ट में यही तथ्य रखने वाली राज्य सरकार ने इसे हकीकत से दूर और पंजाब की छवि खराब करने वाला गैरजिम्मेदाराना बयान बताकर आलोचना की तो वहीं पंजाब की सरकार में साझेदार भाजपा के एक बड़े तबके ने इसे सच माना।

लेकिन आंकड़ों और तथ्यों की बारीकियों से आगे निकलते हुए जब हम पंजाब में इस समस्या की हकीकत देखने का फैसला करते हैं तो हमें जल्दी ही एहसास हो जाता है कि युवाओं के लिए त्रासदी बन चुकी इस समस्या को आप चाहकर भी अनदेखी नहीं कर सकते। गलियों में आपको जहां इंजेक्शन से नशा करते युवा मिलेंगे, वहीं कुछ लोग सुल्‍फा; खराब गुणवत्ता वाली ब्राउन हशीश बेचते नजर आ जाएंगे।

बहरहाल यह तो एक बड़ी बीमारी की ओर छोटा सा इशारा भर है। पंजाब के दोआबा, माझा और मालवा इलाकों में नशे की समस्या बहुत बढ़ चुकी है। यहां लगभग हर तीसरे परिवार में कोई न कोई ऐसा मिल जाएगा जो नशे का आदी है। स्मैक से लेकर  हेरोइन और सिंथेटिक ड्रग्स तक, बुप्रेनॉर्फाइनए परवॉन स्पाए कोडेक्स सिरप जैसी दवाइयों से लेकर नकली कोएक्सिल और फेनारिमाइन इंजेक्शन तक यहां सब कुछ सुलभ है। पंजाब की जेलों में जितने लोग बंद हैं, उनमें से 30 फीसदी नशे से जुड़े कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए हैं। जो कोएक्सिल की बोतलों और इस्तेमाल की जा चुकी सुइयों से अटी पड़ी है। 16 साल का सुखबीर अपनी मां के पास जाने के लिए हमसे 30 रुपये मांगता है। वह कहता है, आपसे भीख नहीं मांग रहा हूं, बस मदद मांग रहा हूं। मैं एक जाट हूं। मेरा बड़ा सा फार्म है और अगली बार मिलने पर आपके पैसे लौटा दूंगा। सुखबीर इलाके के एक ठीकठाक किसान का बेटा है। हम उसे पैसे देने से इनकार करते हैं तो वह लगभग रोना शुरू कर देता है। आखिर में वह मान लेता है कि उसे एवीएल; फेनारिमाइन मैलेटद्, इंजेक्शन खरीदना है। यह घोड़ों और पालतू पशुओं के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। वह कहता है कि इस दवा में एक मरते हुए घोड़े को दोबारा जिंदा कर देने की ताकत है और इसे लेकर वह भी खुद को जिंदा महसूस करता है। सुखबीर कहता है कि अगर हम उसे 100 रुपये और देंगे तो वह हमें कस्बे की बेहतरीन जगह दिखाएगा। हमारे इनकार करने पर वह छलांग लगाते हुए एक ऐसी जगह में गुम हो जाता है, जिसे होना तो पब्‍लिक टॉयलेट चाहिए, लेकिन जो अब स्मैक व एवीएल इंजेक्शन जैसे नशे लेने वालों का अड्डा बन चुकी है।

एक क्‍लास में 40 थे अब सिर्फ दस बचे
अमतसर के अनगढ़ में जिम चलाने वाले 35 वर्षीय सतबीर सिंह, जो बॉडी बिल्डिंग के नेशनल चैंपियन भी रह चुके हैं।  सुखबीर जैसे लडक़ों को देखकर कहते हैं कि पंजाब का भविष्य पूरी तरह अंधकारमय है और इसका कुछ नहीं किया जा सकता। सतबीर कहते हैं, ल के दिनों में एक ही क्‍लास में हम 40 बच्चे थे। उनमें से मुझे मिलाकर केवल 10 ही जिंदा हैं। बाकी सारे स्मैक और ऐसे ही दूसरे नशों का शिकार बन गए। सुखबीर और सतबीर की जिंदगी में दोगुने का अंतर है। लेकिन ढेर सारी बातें ऐसी हैं, जिनकी आपस में तुलना हो सकती है बल्कि जो आपस में गुंथी हुई है। 16 साल का सुखबीर अगर 21वां जन्मदिन मना लेता है तो वह खुशनसीब होगा। वहीं 35 साल के सतबीर अपने ढेर सारे साथियों को मौत के मुंह में जाते देख चुके हैं। 16 की उम्र का सुखबीर अपने भावी जीवन के बारे में कुछ नहीं सोच पाता। वहीं 35 के सतबीर भविष्य के बॉडी बिल्डर तैयार कर रहे हैं, जो असली मर्द बनकर निखरेंगे। 16 साल का सुखबीर एक दूसरे नशेड़ी के हाथों अपने चेहरे पर ब्लेड के दो वार झेल चुका है। 35 साल के सतबीर अपने चार साल के बेटे पर झूठ-मूठ का मुक्का चलाते हैं और वह किसी प्रशिक्षित मुक्केबाज की तरह खुद को सफलतापूर्वक बचा लेता है। 16 साल का सुखबीर हर रोज अपने गांव से अनगढ़ आता है लेकिन वह किताबें खरीदने नहीं बल्कि अपने लिए नशे का अगला डोज तलाश करने आता है। 35 साल के सतबीर ने यहां जिम इसलिए शुरू किया कि उन्हें कोई दूसरा काम नहीं मिला।


पूर्व चीफ इलेक्‍शन कमिश्‍नर एसवाई कुरैशी ने पंजाब में नशे की स्थिति को अनूठा बताते हुए बयान भी दिया था कि उन्होंने जितने राज्यों में चुनाव करवाए हैं, कहीं भी हालात इतने खराब नहीं थे। विधानसभा चुनाव की तारीख से एक सप्ताह पहले चुनाव आयोग के अधिकारियों ने तीन लाख कैप्सूल एविल के 2000 इंजेक्शन और रिकोडेक्स कफ सीरप के 3000 डिब्बे जब्त किए थे। 

खेमकरन के रास्ते में पड़ता है खालड़ा। यह सीमा पर बसा एक छोटा सा कस्बा है, जो नशीले पदार्थों की तस्करी के बड़े केंद्र के रूप में कुख्यात है। स्थानीय किसान कहते हैं कि नशे का ज्यादातर कारोबार बीएसएफ और सीमा के दोनों और मौजूद रेंजरों की नाक के नीचे होता है। नशीले पदार्थों को इधर से उधर करने में सबसे अधिक इस्तेमाल दोनों देशों की सीमाओं में खुलने वाली नाली की पाइपों और महिला तस्करों का होता है इस्‍तेमाल। बीएसएफ अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने कई बार स्थानीय महिलाओं को 50 किलो तक हेरोइन अपने शरीर में सिलकर ले जाते पकड़ा है।

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32 साल के विजय पाल सिंह मकबूलपुर के सबसे संपन्न लोगों में से हैं। गांव घुमाने की बात पर वे बड़ी मुश्किल से तैयार होते हैं।गांव से गुजरते हुए हमें आसपास के इलाकों से आए कई मजदूर दिखते हैं जो यहां लाहना यानी देसी शराब केलिए आते हैं और अपने लिए स्मैक लेकर चले जाते हैं। विजय पाल जो खुद एक नशेड़ी हैं, काफी मानमनोव्वल के बाद  इस बारे में बात करने को तैयार होते है।उनकी कहानी अपने आप में उस बुनियादी वजह का खुलासा करती है जिससे राज्य में नशे की लत इस हद तक फैली है। 
विजय पाल के दादा जब 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद भारत आए थे तब उनके पास काफी जमीन थी और आज भी वे यहां के बड़े किसान हैं।हमने जब विजय पाल से यह जानने की कोशिश की कि वे आखिर नशे में अपना जीवन क्यों बर्बाद कर रहे हैं तो वे अपनी मूंछों पर ताव देते हुए कहते हैं कि उनके पिता ने कहा था,पुत्‍तरजब हमारे पास इतनी सारी जमीन है तो तू क्यों काम करना चाहता है, लेकिन क्या वह काम करना चाहते हैं।हमारे यह पूछने पर विजय पाल का जवाब है,कोई यहां काम दिखा दे तो मैं तो करने को तैयार हूं आपको यहां कोई काम दिखता है।बातचीत आगे बढ़ती है तो हमें समझ में आता है कि यह युवा नशे में बहुत बुरी तरह उलझा हुआ है और जहां से फिलहाल वह निकलने की कोशिश भी नहीं करना चाहता।विजय पाल को लगता है कि वह अपने पड़ोसियों से कहीं ऊंचा दर्जा रखता है इसलिए गांव में कोई काम-धंधा शुरू नहीं कर सकता,वह इंग्लैंड जाना चाहता है। लेकिन अपने खिलाफ एक आपराधिक मामले की वजह से नहीं जा पा रहा है।् अपने बच्चों के लिए विजय पाल के  पास कोई सपना नहीं है्,उसे लगता है कि पुरखों की जमीन उसके बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए काफी है,वह कहता है, देखिएमुझे अपने पिता की इज्जत ऊपर वाले से भी प्यारी है और मैं उस पर दाग नहीं लगने दूंगा।



फैक्ट
पंजाब में 98 निजी नशा मुक्ति केंद्र हैं जिनमें से सिर्फ 17 सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों के हिसाब से पंजीकृत है। अभी तक सरकार की प्राथमिकता में यह मुद्दा कहीं नहीं हैण् ऐसे ही हालात रहे तो शायद कुछ ही सालों में पंजाब की वैश्विक पहचान यही समस्या होगी

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