पटियाला
में जहाँ महाराजा भूपेन्द्र सिंह का महल अपनी शान पर इतरा रहा है, तो उसी से कुछ क़दम
दूर फव्वारा चौक पर उनकी सत्ता को चुनौती देकर प्राण तजने वाले सेवा सिंह
ठीकरीवाला की प्रतिमा के तेवर भी कम नहीं है। राजाओं के शहर में एक बग़ावती रंक की
यह गर्वीली मौजूदगी जिस विरोधाभास को दिखाती है, वह हम जैसे लोकतांत्रिक समाज में ही संभव
है। संयोग से कुछ मिलता-जुलता प्रसंग आज भी दोहराया जा रहा है। महाराजा भूपेन्द्र
सिंह के पोते कैप्टन अमरिन्दर सिंह इसी महल में रहते हैं। वे अाने वाले विधानसभा
चुनाव में बादलों (प्रकाश सिंह बादल और बेटे सुखबीर सिंह बादल को संयुक्त रूप से
यही कहा जाता है) को धूल चटाकर राज्य के
मुखिया बनना चाहते हैं और उनके ही महल के पीछे रहने वाला एक आम आदमी डॉ धर्मवीर
गांधी उन्हें चुनौती दे रहा है।आम आदमी पार्टी यानी आप के रूप में। यह पार्टी राज्य
में बादलों और कांग्रेस के लिए तगड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। एक नौजवान पूछता
है-आपके राज्य में आप की क्या स्थिति है?
पटियाला
में कुछ और भी ख़ूबसूरत विरोधाभास हैं। एक तरफ़ यह बाबुओं का शहर कहा जाता है तो
दूसरी ओर महलों की भव्यता, ऐतिहासिक इमारतों का वैभव और तबियत हरी कर देने
वाले बडे बडे बाग़ीचे हैं। जो भी चीज़ है, शानदार है। पंजाब की इस सांस्कृतिक राजधानी में
राज्य सरकार के लगभग सोलह मुख्यालय हैं। राष्ट्रीय स्तर के संस्थान अलग हैं।
पटियाली सलवारों, चोटियों
में बाँधे जाने वाले परांदों, फुलकारी वाले क़ुरतों, पटियाली पगड़ी और जूतियों के अलावा जो चीज़
मशहूर है, वह
है पटियाली पैग। जिमखाना क्लब में शाम को इस पैग के लिए शहर भर की क्रीम आबादी
जिसमें महिलाएँ भी शामिल हैं, जुटती है।
रजवाड़ों के मनोरंजन और महाराजाओं के सोशेलाइट होने के लिए बनाया गया यह
क्लब सौ साल पूरे कर चुका है। एक एकड़ क्षेत्र में फैले क्लब में सदस्यता के
तीन-तीन लाख रुपए देकर भी तीन हज़ार सदस्य हैं। यानी बाबुओं के शहर में बडे आदमी
बहुत हैं तो रात को आठ बजे बंद हो जाने वाले बाजार के बीच देर रात तक जाम छलकाने
वाले भी कम नहीं हैं। सफ़र में सादे भोजन की चाहत और विशाल गुरुद्वारे के दर्शन की
मंशा मोतीबाग गुरुद्वारे की तरफ़ खींच लाई। दो बडे गुरुद्वारों में एक मोतीबाग
गुरुद्वारा कैप्टन अमरिंदर के मोतीबाग महल के पास ही है। लंगरों में आमतौर पर सादी
रोटी और दाल मिलती है। लेकिन इस गुरुद्वारे में शाही भोजन था। दस तरह के अचार,
लस्सी और अंत
में आइसक्रीम। साथ आए दैनिक पास्कर (पंजाब में भ को प बोलने के कारण कई लोग दैनिक
भास्कर को इसी तरह पुकारते हैं। ऐसे ही वहाँ भाईजी पाजी हो गए) के संपादक चंदन
स्वप्निल ने बताया कि जिसके घर नया अचार डलता है, पहला घान गुरुघर में ले आता है। शाही
प्रसाद के बारे में उनकी कैफियत थी-महाराजाओं का गुरुद्वारा है!
अब
लौटकर सेवा सिंह पर आइए। वह अंग्रेज़ी साम्राज्य के विरोध का झंडा बुलंद कर रहा
था। पटियाला के महाराजा चूँकि अंगरेजों के समर्थक थे इसलिए वह उनकी सत्ता के
मुक़ाबले में खडा था। उसे जेल में डालकर यातनाएँ दी गईं जहाँ वह देश की आज़ादी के
लिए क़ुर्बान हो गया। यह विडंबना है कि देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाली कांग्रेस
में अंग्रेज़ों के तलवे चाटने वाले परिवार के वंशज पार्टी के सिरमौर हैं और आज़ादी
के सिपाही का यादगारी जश्न आप पार्टी के लोग मना रहे हैं। वही, महाराजा के महल के
पीछे रहने वाला आम आदमी। मैंने एक स्थानीय पत्रकार से इस चुनाव के मुद्दों के बारे
में पूछा। यह भी जानना चाहा कि कैप्टन की पाकिस्तानी प्रेमिका अरुषा आलम का मामला
कितना रंग लाएगा? वह
गाहे-बगाहे चंडीगढ़ डेरा डालती रहती हैं। उनका जवाब सुनकर चौंका-बिल्कुल नहीं।
पंजाब के लोग मानते हैं कि महाराजाओं के लिए रंगरेलियाँ कोई गुनाह नहीं। इन सज्जन
ने चुटकी ली-दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा में महल के क़िस्से आज भी गुदगुदाते
हैं और निजी तौर पर ख़राब भी लगते हैं लेकिन महलों में सब स्वीकार्य था। जनता ने
भी तब विरोध नहीं किया तो अब क्या करेगी।
शिव कुमार विवेक
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