शाम ढलते ही जुदा हो जाते हैं 200 गांवों के लोग
चंदन स्वप्निल
गांव मुठियांवाली (तरनतारन). हम तरनतारन के गांव मुठियांवाली पहुंचे। गांव से फाजिल्का 10 किलोमीटर, हरिके 35 किलोमीटर, खेमकरण 25 किमी और फिरोजपुर 22 किमी दूर है। पिछले 50 साल से लोग दरिया पर पुल बनाने की मांग कर रहे हैं।
इस दरिया के आर-पार करीब 200 गांव हैं और इन्हें आपस में जोड़ने के लिए बेड़ा (छोटी नौका) ही सहारा है। बेड़ा सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक चलता है। चार बजे बेड़ा अंतिम फेरी लगाता है, उसके बाद इन गांवों के बीच संपर्क टूट जाता है। दरिया में बहाव अधिक होने पर बेड़ा बंद कर दिया जाता है।
गांव के लोग कई बार इलाका के सांसद, विधायकों और मंत्रियों से पुल बनाने के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनकी मांग नहीं सुनी गई है। इस गांव से बाजार भी काफी दूर है। 12वीं पास हरप्रीत रोज बेड़े पर अपना बाइक रखकर उस पार खेती करने जाता है।
ग्रामीणों के मुताबिक दूसरी ओर दरिया पार फिरोजपुर जिले के धीराघर, हारफके, मल्ला वालां और बगे वाला सहित 100 से अधिक गांव हैं, जबकि इतने ही गांव दरिया के इस पार भी हैं। इन 200 गांवों की हजारों एकड़ जमीन दरिया के आरपार पड़ती है। यहां पर पुल नहीं होने से ट्रैक्टर, ट्राली, कार, मोटरसाइकिल आदि बेड़े में ही लादकर लेकर जाते हैं।
बाबा ने दिया बेड़ा ठेका वसूलती है सरकार
बेड़ा डूबने की घटना के बाद कार सेवा के बाबा सुखदेव सिंह ने दो नए बेड़े दिए। इस बेड़े का ठेका राज्य सरकार वसूलती है। बाबा ने बेड़ा चलाने के लिए दो नाविक भी रखे हंै। उनका वेतन वह किराए में से देते हैं। उस पार जाने के लिए बेड़े के इंतजार में बैठे हरदेव सिंह, मुखतार सिंह, परमजीत सिंह, धरमिंदर सिंह ने बताया कि उनके लिए इस बेड़े में बैठना मजबूरी है। उन्हें अपने खेतों की देखभाल के लिए हर दिन यह दरिया पार करना पड़ता है।
तब डोली भी लाता है बेड़ा
यह बेड़ा केवल गांवों को जोड़ने वाला ही नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन का मेल भी करवाता है। नाविक बख्शीश कहते हैं कि जिस दिन बारात जानी होती है, उस दिन बेड़े को फूलों से सजाया जाता है।
लोग शादी के वक्त इसकी पहले से ही बुकिंग करवा जाते हैं, फिर पूरी बारात इसी पर सवार होकर उस पार के गांवों में जाती है। फिर जब दूल्हा अपनी दुल्हन को वापस लेकर आता है, तो डोली भी इसी बेड़े से इस पार गांव में पहुंचती है।
बेड़े का किराया
प्रति सवारी पांच रुपए, मोटरसाइकिल 10 रुपए, कार और ट्रैक्टर 50 रुपए.
डिफेंस इलाका होना ही बाधा : विधायक ननू
फिरोजपुर शहरी हलके से विधायक सुखपाल सिंह ननू कहते हैं कि उन्होंने इस दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन डिफैंस क्षेत्र पास ही होने के कारण यहां पर पुल बनाने की सहमति नहीं मिल पाई। यहां पर पुल तभी बन पाएगा, जब रक्षा मंत्रालय चाहेगा।
आर्मी चाहे तो अपनी तरफ से एक अस्थायी पुल का निर्माण कर सकती है। उन्होंने यहां से 15 किलोमीटर दूर वंडाला में दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है, जिसकी निर्माण लागत 74 करोड़ आंकी गई है। यह पुल बन जाने से लोगों को काफी सहूलियत होगी।
हो चुका है हादसा
गांव बरनाला के पूर्व सरपंच सुरजीत सिंह ने बताया कि करीब चार साल पहले क्षमता से अधिक सवारी होने से बेड़ा मझधार में डूब गया था। आधा दर्जन से अधिक लोग जान से हाथ धो बैठे।
उस वक्त मौके पर पहुंचे नेताओं ने वाहवाही लूटने के लिए उनके परिवारों को मुआवजा देने के साथ-साथ वहां पर पुल बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन वक्त बीतते ही नेता अपने वादे को भूल गए। पुल बनना तो दूर की बात रही, मृतकों के परिजनों को मुआवजा भी नहीं मिला।
इस दरिया के आर-पार करीब 200 गांव हैं और इन्हें आपस में जोड़ने के लिए बेड़ा (छोटी नौका) ही सहारा है। बेड़ा सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक चलता है। चार बजे बेड़ा अंतिम फेरी लगाता है, उसके बाद इन गांवों के बीच संपर्क टूट जाता है। दरिया में बहाव अधिक होने पर बेड़ा बंद कर दिया जाता है।
गांव के लोग कई बार इलाका के सांसद, विधायकों और मंत्रियों से पुल बनाने के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनकी मांग नहीं सुनी गई है। इस गांव से बाजार भी काफी दूर है। 12वीं पास हरप्रीत रोज बेड़े पर अपना बाइक रखकर उस पार खेती करने जाता है।
ग्रामीणों के मुताबिक दूसरी ओर दरिया पार फिरोजपुर जिले के धीराघर, हारफके, मल्ला वालां और बगे वाला सहित 100 से अधिक गांव हैं, जबकि इतने ही गांव दरिया के इस पार भी हैं। इन 200 गांवों की हजारों एकड़ जमीन दरिया के आरपार पड़ती है। यहां पर पुल नहीं होने से ट्रैक्टर, ट्राली, कार, मोटरसाइकिल आदि बेड़े में ही लादकर लेकर जाते हैं।
बाबा ने दिया बेड़ा ठेका वसूलती है सरकार
बेड़ा डूबने की घटना के बाद कार सेवा के बाबा सुखदेव सिंह ने दो नए बेड़े दिए। इस बेड़े का ठेका राज्य सरकार वसूलती है। बाबा ने बेड़ा चलाने के लिए दो नाविक भी रखे हंै। उनका वेतन वह किराए में से देते हैं। उस पार जाने के लिए बेड़े के इंतजार में बैठे हरदेव सिंह, मुखतार सिंह, परमजीत सिंह, धरमिंदर सिंह ने बताया कि उनके लिए इस बेड़े में बैठना मजबूरी है। उन्हें अपने खेतों की देखभाल के लिए हर दिन यह दरिया पार करना पड़ता है।
तब डोली भी लाता है बेड़ा
यह बेड़ा केवल गांवों को जोड़ने वाला ही नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन का मेल भी करवाता है। नाविक बख्शीश कहते हैं कि जिस दिन बारात जानी होती है, उस दिन बेड़े को फूलों से सजाया जाता है।
लोग शादी के वक्त इसकी पहले से ही बुकिंग करवा जाते हैं, फिर पूरी बारात इसी पर सवार होकर उस पार के गांवों में जाती है। फिर जब दूल्हा अपनी दुल्हन को वापस लेकर आता है, तो डोली भी इसी बेड़े से इस पार गांव में पहुंचती है।
बेड़े का किराया
प्रति सवारी पांच रुपए, मोटरसाइकिल 10 रुपए, कार और ट्रैक्टर 50 रुपए.
डिफेंस इलाका होना ही बाधा : विधायक ननू
फिरोजपुर शहरी हलके से विधायक सुखपाल सिंह ननू कहते हैं कि उन्होंने इस दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन डिफैंस क्षेत्र पास ही होने के कारण यहां पर पुल बनाने की सहमति नहीं मिल पाई। यहां पर पुल तभी बन पाएगा, जब रक्षा मंत्रालय चाहेगा।
आर्मी चाहे तो अपनी तरफ से एक अस्थायी पुल का निर्माण कर सकती है। उन्होंने यहां से 15 किलोमीटर दूर वंडाला में दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है, जिसकी निर्माण लागत 74 करोड़ आंकी गई है। यह पुल बन जाने से लोगों को काफी सहूलियत होगी।
हो चुका है हादसा
गांव बरनाला के पूर्व सरपंच सुरजीत सिंह ने बताया कि करीब चार साल पहले क्षमता से अधिक सवारी होने से बेड़ा मझधार में डूब गया था। आधा दर्जन से अधिक लोग जान से हाथ धो बैठे।
उस वक्त मौके पर पहुंचे नेताओं ने वाहवाही लूटने के लिए उनके परिवारों को मुआवजा देने के साथ-साथ वहां पर पुल बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन वक्त बीतते ही नेता अपने वादे को भूल गए। पुल बनना तो दूर की बात रही, मृतकों के परिजनों को मुआवजा भी नहीं मिला।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com