शनिवार, मई 08, 2010

एक अधूरी कविता

 रोज ये पंछी आते हैं
तुम्हारे दर पे दस्तक देने

उन बेचारे ख्वाबों का क्या करें
जो तुम्हारी याद दिलातें हैं

कुछ तुमने अपने चेहरे पे
ऐसे जुल्फ गिरा ली है
                                                                                 

ये ख्वाब बुनकर भला
 हम क्या करें

 जो फिर तितली बनकर
 कल उड़ जाएँगे एक नये दर पे

इन आँखों तले हमने
एक खवाहिश छुपा राखी है

क्या तुमने इन खवाहिशों की
तितली कभी पकड़ी है

ये कैसी मीठी तन्हाई है
जेहन पे छाई  है        
          

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...