रोज ये पंछी आते हैं
तुम्हारे दर पे दस्तक देने
उन बेचारे ख्वाबों का क्या करें
जो तुम्हारी याद दिलातें हैं
कुछ तुमने अपने चेहरे पे
ऐसे जुल्फ गिरा ली है
ये ख्वाब बुनकर भला
हम क्या करें
जो फिर तितली बनकर
कल उड़ जाएँगे एक नये दर पे
इन आँखों तले हमने
एक खवाहिश छुपा राखी है
क्या तुमने इन खवाहिशों की
तितली कभी पकड़ी है
ये कैसी मीठी तन्हाई है
जेहन पे छाई है
patarkar mann jab bhi kahin ghumkaree par nikal padta hai to kuch kamaal ho jata hai
शनिवार, मई 08, 2010
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