शनिवार, मई 15, 2010

44 साल बाद भी अपनी राजधानी नहीं

  

देश को दो प्रधानमंत्री देने वाला पंजाब पुनर्गठन के 44 साल बाद भी पूर्णता के लिए तरस रहा है। पंजाब ने हर दिशा में प्रगति की है, लेकिन पूर्णता हासिल नहीं कर सका है। हर पंजाबी को इस बात का मलाल है कि चंडीगढ़ अभी तक इसे नहीं मिला है। आजादी मिलने के बाद पंजाब के पुनर्गठन की मांग उठने लगी थी। पंजाबी भाषा के आधार पर सूबे को लेकर अकाली दल ने आंदोलन चलाया। लंबे संघर्ष के बाद एक नवंबर 1966 को पंजाब का पुनर्गठन हुआ और राज्य तीन हिस्सों पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में बंट गया।

पंजाब और हरियाणा को चंडीगढ़ सांझी राजधानी के रूप में मिला। चंडीगढ़ पर पंजाब का हक बनता है, लेकिन आज तक इसका समाधान नहीं किया जा सका। चंडीगढ़ पंजाबियों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। अगर चंडीगढ़ पंजाब को मिल जाए तो कई राज्यस्तरीय सरकारी दफ्तर चंडीगढ़ शिफ्ट हो जाएंगे।

चंडीगढ़ पर केवल पंजाब का हक है। अकालियों ने इसके लिए काफी संघर्ष किया है। केन्द्र के भेदभाव के कारण चंडीगढ़ पंजाब को नहीं मिल पाया। मुद्दा फिर उठाया जाएगा।

प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री

बॉर्डर स्टेट होने के कारण पंजाब को रक्षा यूनिवर्सिटी मिलनी चाहिए। यह पुरानी मांग है। मुद्दे को केंद्र के समक्ष उठाएंगे। चंडीगढ़ तो पंजाब को ही मिलना चाहिए।

मोहिन्दर केपी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

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