सोमवार, अप्रैल 12, 2010

ek zindgi sima par sey


इक जिंदड़ी जेहड़ी बोझ बण गई

फिरोजपुर सीमा से केंद्र और राज्य की अनदेखी का शिकार गांव टेंडीवाला पाकिस्तान और सतलुज के खौफ में जीने को विवश है। चाहे पाक रेंजर्स की शरारत हो या उफनती सतलुज, इन्हें अपनी लहलहाती फसल का सर्वनाश देखना पड़ता है। इन गांवों को कोई भी सुविधा सरकार उपलब्ध नहीं करा पाई है। सड़क, यातायात के साधन, सेहत, शिक्षा, नौकरी की बात छोड़ भी दें, तो उन्हें बाड़ के पार खेती करने में भी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है।


कच्चे मकानों में रहने वालों को भी हिंदुस्तानी होने का गर्व है, लेकिन सरकार उनका बेड़ा गर्क कर रही है। अगर सीमा पर कोई घटना हो जाए तो कई दिनों तक बीएसएफ पहरेदारी लगा देती है जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।गांवों में अभी तक सीवरेज और पेयजल की सुविधा नहीं पहुंची है। नारकीय स्थिति में जी रहे ये गांव नित्य क्रिया के लिए अब भी खेतों में जाते हैं। जिनके पास थोड़ा बहुत पैसा है, उन्होंने अपने घर में अस्थायी शौचालय बना रखे हैं।


ऐसे घर भी अंगुलियांे पर गिने जा सकते हैं। जल निकासी नहीं होने से गंदा पानी छप्पड़ में जमा होता है। कपड़े धोने के लिए महिलाओं को नदी तक जाना पड़ता है। यहां आने पर लगता है कि जैसे वक्त ठहरा हुआ है और लोग 18वीं सदी में जी रहे हैं। गांववासियों को नहीं लगता है कि कोई राजनेता इनकी पीड़ा दूर कर सकता है।


भैणी दिलावर के राजिंदर सिंह कहते हैं कि इलाके में जन्म लेने वाले अपना टाइम पास करते हैं। किसी तरह का उत्साह नहीं बचा है। न सड़क है, न शौचालय। यह जिंदगी उनके लिए बोझ बन गई है। इन गांवों में डाक्टर बंगाली या आरएमपी जैसे झोलाछाप ही हैं। इस क्षेत्र की स्थिति इतनी बदतर है कि यहां आने के लिए कोई राजी नहीं होता है। इन गांवों से शहर जा बसे लोग कभी वापस नहीं लौटे। असुविधा के कारण कोई इस ओर रुख नहीं करता। लोगों को अपने बच्चों की शादी भी नजदीकी गांव में करनी पड़ती है। जिन लोगों को जहां पर कोई काम नहीं मिलता है, उन्हें फिरोजपुर शहर की ओर रुख करना पड़ता है।


गांव चंदीवाला का एकमात्र बीए पास राजकुमार कहता है कि इतनी मुश्किलों को पार पाकर उसने किसी तरह फिरोजपुर शहर से बीए पास की। लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिली। मजबूरन उसे अपने परिवार की देखभाल के लिए पशुओं के पीछे जाना पड़ता है। अगर स्थानीय युवकों को बीएसएफ में नौकरी मिल जाए और यहां की सीमा की सुरक्षा सौंपी जाए तो लोगों का रहन-सहन का स्तर ऊंचा तो होगा ही तस्करी पर भी रोक लग सकती है। स्थानीय लोग गलत धंधे में लिप्त लोगों को बेहतर पहचानते हैं।

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