गुरुवार, जनवरी 12, 2017

कैप्टन अमरिंदर जिसे पटियालवी महाराजा कहते हैं उसके खानदान के शौक

राज घराने से तालुक रखने वाले पंजाब कांग्रेस सुप्रीमो कैप्टन अमरिंदर सिंह खाना बनाने के शौकीन हैं, उनके बाप दादाओं के शौक भी निराले थे उनके दादा महाराजा भूपिंदर सिंह की ही बात करें तो उन्होंने साल के केलेंडर के मुताबिक 365 शादियां कर डाली थीं, यानि एक रात एक रानी संग बिताते थे।
कैप्टन अमरिंदर के दादा थे ऐसे
-इतिहासकारों के मुताबिक महाराजा भूपिंदर सिंह की 10 महारानियों समेत कुल 365 रानियां थीं।
-महाराजा की रानियों के किस्से तो अब इतिहास में दफन हो चुके हैं,जबकि उनके लिए बनाए गए महल अब ऐतिहासिक धरोहर बन चुके हैं।
-365 रानियों के लिए पटियाला में भव्य महल बनाए गए थे।
-रानियों के स्वास्थ्य की जांच के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम भी इन महलों में ही रहती थी।
-उनकी इच्छा के मुताबिक,उन्हें हर चीज मुहैया करवाई जाती थी।
कुछ यूं 365 रानियों संग रातें बिताते थे महाराजा भूपिंदर सिंह
-दीवान जरमनी दास के मुताबिक, महाराजा भूपिंदर सिंह की दस पत्नियों से 83 बच्चे हुए थे जिनमें 53 ही जी पाए थे।
-महाराजा अपनी 365 रानियों संग कैसे रहते थे इसको लेकर इतिहास में एक किस्सा बहुत मशहूर है।
-कहते हैं कि महाराजा पटियाला के महल में रोजाना 365 लालटेनें जलाई जाती थीं। हर लालटेन पर उनकी 365 रानियों के नाम लिखे होते थे।
-जो लालटेन सुबह पहले बुझती थी महाराजा उस लालटेन पर लिखे रानी के नाम को पढ़ते थे और फिर उसी के साथ रात गुजारते थे।
ये शौक हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के...
-कैप्टन अमरिंदर सिंह खाना बनाने कीे शोकीन हैं, वे नॉनवेज और वेज दोनों किस्म के खानों के शौकीन हैं।
-कैप्टन अमरिंदर के कुर्ते-पायजामे की कीमत कपड़े की वैरायटी के अनुसार 5 से 10 हजार रुपए होती है। कैप्टन को सर्दी में शेरवानी पसंद हैं।
ये करते हैंं पसंद...
घड़ी, डिजिटल केसिओ, शूज़ हाई क्वालिटी लेदर, चश्मा सिंपल स्पैक्ट्स, मोबाइल, सैमसंग, शौक किताबें लिखना, मिलिट्री इतिहास पढऩा, गार्डनिंग, फोटोग्राफी पहनावा गर्मियों में कुर्ता-पायजामा (पायजामा टाइट चूड़ीदार, कुर्ता हाफ बाजू), सर्दियों में शेरवानी-जैकेट भी, खाना वेज-नॉनवेज दोनों। कॉफी ज्यादा पीते हैंं।

शुक्रवार, जुलाई 15, 2016

पटियाला के राजा-रंक

पटियाला में जहाँ महाराजा भूपेन्द्र सिंह का महल अपनी शान पर इतरा रहा है, तो उसी से कुछ क़दम दूर फव्वारा चौक पर उनकी सत्ता को चुनौती देकर प्राण तजने वाले सेवा सिंह ठीकरीवाला की प्रतिमा के तेवर भी कम नहीं है। राजाओं के शहर में एक बग़ावती रंक की यह गर्वीली मौजूदगी जिस विरोधाभास को दिखाती है, वह हम जैसे लोकतांत्रिक समाज में ही संभव है। संयोग से कुछ मिलता-जुलता प्रसंग आज भी दोहराया जा रहा है। महाराजा भूपेन्द्र सिंह के पोते कैप्टन अमरिन्दर सिंह इसी महल में रहते हैं। वे अाने वाले विधानसभा चुनाव में बादलों (प्रकाश सिंह बादल और बेटे सुखबीर सिंह बादल को संयुक्त रूप से यही कहा जाता है)  को धूल चटाकर राज्य के मुखिया बनना चाहते हैं और उनके ही महल के पीछे रहने वाला एक आम आदमी डॉ धर्मवीर गांधी उन्हें चुनौती दे रहा है।आम आदमी पार्टी यानी आप के रूप में। यह पार्टी राज्य में बादलों और कांग्रेस के लिए तगड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। एक नौजवान पूछता है-आपके राज्य में आप की क्या स्थिति है?
पटियाला में कुछ और भी ख़ूबसूरत विरोधाभास हैं। एक तरफ़ यह बाबुओं का शहर कहा जाता है तो दूसरी ओर महलों की भव्यता, ऐतिहासिक इमारतों का वैभव और तबियत हरी कर देने वाले बडे बडे बाग़ीचे हैं। जो भी चीज़ है, शानदार है। पंजाब की इस सांस्कृतिक राजधानी में राज्य सरकार के लगभग सोलह मुख्यालय हैं। राष्ट्रीय स्तर के संस्थान अलग हैं। पटियाली सलवारों, चोटियों में बाँधे जाने वाले परांदों, फुलकारी वाले क़ुरतों, पटियाली पगड़ी और जूतियों के अलावा जो चीज़ मशहूर है, वह है पटियाली पैग। जिमखाना क्लब में शाम को इस पैग के लिए शहर भर की क्रीम आबादी जिसमें महिलाएँ भी शामिल हैं, जुटती है।  रजवाड़ों के मनोरंजन और महाराजाओं के सोशेलाइट होने के लिए बनाया गया यह क्लब सौ साल पूरे कर चुका है। एक एकड़ क्षेत्र में फैले क्लब में सदस्यता के तीन-तीन लाख रुपए देकर भी तीन हज़ार सदस्य हैं। यानी बाबुओं के शहर में बडे आदमी बहुत हैं तो रात को आठ बजे बंद हो जाने वाले बाजार के बीच देर रात तक जाम छलकाने वाले भी कम नहीं हैं। सफ़र में सादे भोजन की चाहत और विशाल गुरुद्वारे के दर्शन की मंशा मोतीबाग गुरुद्वारे की तरफ़ खींच लाई। दो बडे गुरुद्वारों में एक मोतीबाग गुरुद्वारा कैप्टन अमरिंदर के मोतीबाग महल के पास ही है। लंगरों में आमतौर पर सादी रोटी और दाल मिलती है। लेकिन इस गुरुद्वारे में शाही भोजन था। दस तरह के अचार, लस्सी और अंत में आइसक्रीम। साथ आए दैनिक पास्कर (पंजाब में भ को प बोलने के कारण कई लोग दैनिक भास्कर को इसी तरह पुकारते हैं। ऐसे ही वहाँ भाईजी पाजी हो गए) के संपादक चंदन स्वप्निल ने बताया कि जिसके घर नया अचार डलता है, पहला घान गुरुघर में ले आता है। शाही प्रसाद के बारे में उनकी कैफियत थी-महाराजाओं का गुरुद्वारा है!

अब लौटकर सेवा सिंह पर आइए। वह अंग्रेज़ी साम्राज्य के विरोध का झंडा बुलंद कर रहा था। पटियाला के महाराजा चूँकि अंगरेजों के समर्थक थे इसलिए वह उनकी सत्ता के मुक़ाबले में खडा था। उसे जेल में डालकर यातनाएँ दी गईं जहाँ वह देश की आज़ादी के लिए क़ुर्बान हो गया। यह विडंबना है कि देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाली कांग्रेस में अंग्रेज़ों के तलवे चाटने वाले परिवार के वंशज पार्टी के सिरमौर हैं और आज़ादी के सिपाही का यादगारी जश्न आप पार्टी के लोग मना रहे हैं। वही, महाराजा के महल के पीछे रहने वाला आम आदमी। मैंने एक स्थानीय पत्रकार से इस चुनाव के मुद्दों के बारे में पूछा। यह भी जानना चाहा कि कैप्टन की पाकिस्तानी प्रेमिका अरुषा आलम का मामला कितना रंग लाएगा? वह गाहे-बगाहे चंडीगढ़ डेरा डालती रहती हैं। उनका जवाब सुनकर चौंका-बिल्कुल नहीं। पंजाब के लोग मानते हैं कि महाराजाओं के लिए रंगरेलियाँ कोई गुनाह नहीं। इन सज्जन ने चुटकी ली-दीवान जरमनी दास की किताब महाराजा में महल के क़िस्से आज भी गुदगुदाते हैं और निजी तौर पर ख़राब भी लगते हैं लेकिन महलों में सब स्वीकार्य था। जनता ने भी तब विरोध नहीं किया तो अब क्या करेगी।
शिव कुमार विवेक 

सोमवार, अप्रैल 18, 2016

RG समझदार हो गये, wait for punjab CM candidate

पिछले दिनों राहुल गांधी संपादकों से मिले, उनसे एक सवाल सभी ने पूछा पंजाब में कांग्रेस का सीएम कैंडीडेट कौन होगा? बेहद चालाकी से वे इस सवाल को गोलमोल कर गए। बोले कांग्रेस के नव निर्वाचित विधायक ही अपना सीएम कैंडीडेट चुनेंगे। इस बार वे कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाम ऐलान कर गत चुनाव की तरह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते। हालांकि इसके पीछे प्रशांत किशोर की एक रणनीति काम कर रही है। सस्पेंस कायम रहे। क्योंकि जनता में भी उत्सुकता रहेगी कि आखिर कौन होगा सीएम कैंडीडेट।                                         वहीं आम आदमी पार्टी भी अपना सीएम चेहरा सामने न लाकर सस्पेंस कायम रखे हुए है। ऐसे में कांग्रेस की तरफ से भी ऐसी ही समझदारी दिखाना कुछ कुछ उस दूरअंदेशी सोच की ओर ही इशारा करता है। बहरहाल राहुल गांधी और प्रशांत किशोर की टीम अभी कैप्टन अमरिंदर सिंह के ग्राउंड कनेक्ट की ओर ज्यादा तरजीह दे रही है। ये थिंक टैंक अभी ऐसा कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहता कि अगर कैप्टन को सीएम कैंडीडेट घोषित कर दिया जाता है तो पार्टी में चार गुट ऐसे हैं, जो अभी शिद्दत से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, वे पीछे हटकर दूसरी रणनीति पर काम करने लगेंगे। अगर ऐसा होता है तो गुटबाजी का शिकार कांग्रेस को फिर से विपक्ष का ही मुहं देखना पड़ेगा। वहीं प्रशांत किशोर ने कैप्टन के पोस्टर में उनहें पहली बार नीली पग पहने दिखाया है। इसके पीछे भी सोच यही दर्शाती है कि कैप्टन अकाली दल के उस टकसाली वोट बैंक में सेंध लगा सकें। इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी की टीम भी कांग्रेस को सत्ता के गलियारे तक पहुंचाने के लिए कमर कस चुकी है। कैप्टन ब्रांड को चमकाने के लिए पहले कॉफी विद कैप्टन की शुरुआत हुई है। इसके बाद अगले चरण में यह पूछेंगे पंजाब का कैप्टन कैसा होना चाहिए। क्योंकि प्रशांत किशोर को यह पता चला है कि उन्होंने अपने इर्द गिर्द एेसे नेताओं का चक्रजाल बुन रखा है, जो कैप्टन से किसी को मिलने ही नहीं देते। वे कैप्टन के इस औरा को भी मिटाना चाहते हैं।

बुधवार, जनवरी 13, 2016

रफी ने कबड्‌डी में गीदड़ की आवाज निकाल डरा दिया था

रफी साहब की थी तमन्ना, गांव में 3-4 शो करवा दो, गांव शहर बन जाएगा
फीको अपने गांव कोटला सुल्तान सिंह के लिए बहुत कुछ करना चाहता था, किसी ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

जन्मदिन, 24 दिसंबर, 1924
मृत्यु, 31 जुलाई, 1980

आज रफी साहब का 91वां जन्मदिवस है। अमृतसर जिले के गांव कोटला सुल्तान सिंह में रफी अपने गांव के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन किसी ने कभी कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। दूसरी बेड़ियां शादी ने ऐसी डाली कि दोबारा गांव का रूख नहीं कर सके सुर सम्राट मोहम्मद रफी। मोहम्मद रफी को गांव में फीको कहकर पुकारा जाता था। फीको बहुत शरारती था। गांव के एलीमेंट्री स्कूल से उन्होंने प्राइमरी तक की पढ़ाई की। रफी साहब पढ़-लिखने में ठीक-ठीक ही थे। कई बार स्कूल में काम नहीं करने या शरारतें करने के कारण उन्हें डांट भी पड़ती थी। जब पढ़ाई समाप्त हो गई, तो वह तीन-चार महीने ऐसे ही बिना काम के घूमा करते थे। वह बाग में फल खाते और खेत से गन्ने तोड़कर चूसते था। फीको के पिता अली मोहम्मद खाना बनाने में माहिर थे। उनमें इतनी कला था कि एक ही देग (बड़ा बर्तन) में सात रंग के चावल पका देते थे। फीको के गले में मां सरस्वती का वास था। यूं कहें तो आवाज उनकी गुलाम थी तो गलत नहीं होगा। एक बार वे कबड्डी खेल रहे थे तो उन्होंने गीदड़ की आवाज से सभी को डरा दिया था।
याद आए तो पेड़ पर नाम पढ़ लेना
समय का पासा पलटा और फीको मोहम्मद रफी के काम से दुनिया में मशहूर हो गया। वह गांव के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे। रफी के बचपन के आड़ी कुंदन सिंह (अब कुंदन सिंह हमारे बीच नहीं रहे) ने बताया था कि 1953 में जब वह अमृतसर के एलेग्जेंड्रा ग्राउंड में शो करने के लिए आए तो वे भी अपने साथियों के साथ उन्हें मिलने के लिए गए। उसकी दिनचर्या इतनी व्यस्त थी कि तीसरे दिन एक सरदारजी ने उनकी मुलाकात करवाई। सरदार जी ने रफी से कहा कि तुहाडे पिंड तों कुज बंदे मिलन आए ने। रफी ने देखा तो झट दोस्त को गले से लगा लिया और बोले कि तुम गांववाले मिलकर मेरे 3-4 शो गांव में ही करवा दो। गांव के पास इतना पैसा हो जाएगा कि हमारा गांव, गांव नहीं शहर बन जाएगा। लेकिन उस समय के सरपंच ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। रिस्पांस नहीं मिलने की सूरत में रफी वहां से लुधियाना अगले शो के लिए चले गए। रफी ने गांव की पंचायत को मुंबई घूमने का न्यौता भी दिया था। फीको और कुंदन सिंह चौथी तक एक साथ पढ़े थे। 1937 में गांव छोड़ते वक्त फीको ने एक आम के पेड़ पर अपना नाम लिखते हुए दोस्त से कहा था कि जब भी मेरी याद आए तो यहां पर आकर मेरा नाम पढ़ लेना। अब वह पेड़ भी काटा जा चुका है।
लाके दंदा च मेखां मौज बंजारा ले गया

रफी साहब ने मुंबई में अपनी दूसरी शादी बिलकिस से रचाई। उसके बाद रफी को गांव की ओर रुख करने की फुर्सत ही न मिली। साल 1972 में रफी का एक शो हुआ था। जिसमें लोगों ने रफी को उनकी पसंद का गीत गाने को कहा तो उन्होंने पंजाबी गीत, लाके दंदा च मेखां मौज बंजारा ले गया, गाकर सभी का दिल लूट लिया था। 

सोमवार, जून 22, 2015

पंजाबी फिल्मों का सुपर स्टार सतीश कौल आज इलाज और पाई पाई को मोहताज

लोग चढ़दे सूरज नूं करन सलामां, डूबदे नूं कौन पुछदा  दस्तूर है

। एक समय था जब फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करना कठिन तो था पर उसमें टिक और भी मुश्किल था। सन 1970-71 के पास पंजाबी फिल्म जगत में रोमांच भी आया संजिंदगी भी। उन दिनों एक अति सुंदर हीरो ने फिल्मों में प्रवेश किया। वह थे कश्मीर के पंडित मोहन लाल कौल के घर 8 सितंबर 1954 को पैदा हुए सतीश कौल।
सतीश कौल छोटी उम्र में ही हिंदी फिल्म बंद दरवाजा में बतौर हीरो आ गए थे। बस फिर क्या फासले, भक्ति में शक्ति, मेरे सरताज अनेक हिंदी फिल्में और हिट पंजाबी फिल्म  मोरनी, लच्छी, दो पोस्ती, वीरा, राणों, धी रानी, भुलेखा, वेहड़ा लम्बड़ां दा, वोटी हथ सोटी के साथ अनेक फिल्में दीं। उन्होंने हिंदी पंजाबी मराठी तथा अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया। कौल के अच्छे दिनों में एक पंजाबी लड़की से प्यार और शादी भी हो गई। एक लड़का भी हो गया। कुछ देर के बाद दोनों का तलाक हो गया और वो साउथ अफ्रीका चली गई, जो दोबारा कभी न मिली।
सतीश का मलाल है कि उसके बाद रिश्ते तो बहुत बने पर कहीं न कहीं उसकी किस्मत या उसका खुद का कसूर था कि कहीं कामयाबी न मिली। जिंदगी की ऊंचाइयों के नीचे आसमान खाली था। न घर है ना ठिकाना। लुधियाना में एक्टिंग स्कूल खोला और लूटा दिया जो कुछ भी था। नटास के डायरेक्टर सभ्रवाल साहिब पटियाला ले आए। फिर एक चेन्नल के मालिक ने अपने एक्टिंग स्कूल का इंचार्ज बना दिया। हॉस्टल में एक दिन उन्हें चोट लग गई। उनके साथी मेहर मित्तल, गैरी संधू, प्रीति सप्रू तथा भावना भट्ट के अलावा बहुत कला प्रेमी मिलने आए और थोड़ी बहुत सहायता भी की। सतीश कौल ने सरबत दा भला ट्रस्ट का शुक्रिया किया, जो उनका इलाज करवा रहा है। आज कल सतीश कौल राजपुरा-बनूड़ के नजदीक ज्ञान सागर अस्पताल में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके पास पुराने कपड़ों का बैग, साधारण मोबाइल फोन के अलावा बस यादें ही बची हैं।


सोमवार, नवंबर 17, 2014

वह अमृतसर में लल्ली के नाम से जानी जाती है

नामुमकिन कुछ भी नहीं है, अपना लक्ष्य तय करें और फिर आगे बढ़ जाएं। जिंदगी में मैेंने यही फॉमूर्ला अपनाया और सफल हुई। जिस काम को करने की ठान लो, उसमें सौ प्रतिशत सफलता हासिल करने का जज्बा रखो। यह कहना है लाफ्टर चैलेंज में शिरकत कर चुकी अंबरसरी कुड़ी भारती का। उनकी उपलबिधयों के लिए उन्हें गत दिनों कल्पना चावला अवार्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है। पिछले कई साल से पंजाब नाटशाला से जुड़ी भारती  उर्फ लल्ली आज अमृतसर के साथ पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं।
भारती ने बताया कि वह एक गरीब परिवार से संबंध रखती थी, जिस कारण उन्हें पढ़ाई में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उन्होंने एनसीसी भी ज्वाइन की। उनका कहना है कि जिंदगी में हार-जीत तो लगी रहती है। मैंने विपरीत परिस्थितियों में हारकर जीतना सीखा है।
उन्होंने बताया कि मैं शुरू से ही बड़ा बोलती थी, जिसके कारण मैं दोस्तों में वह हमेशा मजाक का पात्र बनी रहती थीं। भारती ने कालेज  के साथ साथ पंजाब नाटशाला में भी काम सीखना शुरू किया। इसके साथ उन्होंने कालेज के यूथ फेस्टिवल में अपनी कला का जबर्दस्त प्रदर्शन किया। इससे लोगों में उनकी छवि एक हास्य कलाकार के रूप में बन गई। इसके बाद मुझे लाफ्टर चैलेंज में काम करने का मौका मिला और मैंने अपनी आवाज और कलाकारी से एक अलग ही मुकाम हासिल किया।
लल्ली ने बताया कि आज वह अमृतसर में  लल्ली के नाम से जानी जाती हैं, वही वह दूसरे राज्यों में अमृतसरी गर्ल के नाम से भी जानी जाती हैं। उनका कहना है कि आज भी वे मनचाही कामयाबी नहीं हासिल कर पाई हैं।

गुरुवार, सितंबर 11, 2014

पंजाब में ऐसा लॉ एंड ऑर्डर किस काम का


सीमावर्ती राज्य होने के कारण नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों पर ब्रेक लगाने में पंजाब पुलिस फिसड्डी ही साबित हुई है।
पंजाब पुलिस के पास ७० हजार से ज्यादा जवान है, फिर भी राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बेकाबू है। एक तरफ जहां पुलिस को अंदरूनी रूप से राज्य में चल रही आंतकी गतिविधियों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, वहीं बढ़ रही नशीले पदार्थों की तस्करी रोक पाने में पुलिस पूरी तरह से नाकाम रही है। बॉर्डर के साथ लगता राज्य होने के कारण पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवादी गतिविधियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। जिस प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति सही नहीं है, वहां का पूरा ढांचा ही पटरी से खिसक जाता है। विकास में बाधा भी इसी कारण आती है। उद्योग, टूरिज्म पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। सबसे बड़ी कमी है कि पुलिस अपना भरोसा पब्लिक कायम नहीं कर पाई है।
लगातार खराब होती स्थिति
राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति लगातार खराब हो रही है। लुधियाना में दो माह पहले हुए डीएसपी हत्याकांड में परिजनों को ही पुलिस पर विश्वास नहीं रहा है। डीएसपी का परिवार मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहा है। सबसे बड़ी कमी है कि पुलिस प्रशासन लोगों में भरोसा ही कायम नहीं कर सका। किसी भी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं है। अगर कोई अधिकारी सख्ती करके काननू व्यवस्था को लागू करने की कोशिश भी करता है तो उसका तबादला हो जाता है या फिर सस्पेंड कर दिया जाता है। मजे की बात यह है कि साल में एक एसएसपी का तीन या चार बार तबादला हो जाता है, जाहिर है कि ऐसे में वह काम कैसे कर सकता है। ज्यादातर बड़े पुलिस अधिकारी नेताओं या मंत्रियों की पसंद पर तैनात किए जाते हैं। अधिकारी कानून के तहत काम नहीं करके जैस नेता कहते हैं, उस तरह से काम करते हैं। अधिकारी अगर काननू के तहत अपने स्तर पर काम करने की कोशिश भी करते हैं, उनको खुड्डेलाइन लगा दिया जाता है।
आतंक के लिए विदेश से आता है पैसा
पंजाब में बेशक अब आतंकी गतिविधियां समाप्त हो चुकी हैं, लेकिन विदेशों में बैठे पूर्व आतंकी अंदरूनी रूप से इसे फिर से शुरू करने के लिए बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं। हाल ही में लुधियाना, पठानकोट और अन्य जगहों से पकड़े गए आतंकवादियों से पूछताछ के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि पंजाब में फिर से आतंकवादी गतिविधियां शुरू करने के प्रयास जारी हैं। इसके लिए बेरोजगारों को निशाना बनाया जा रहा है।
नशीले पदार्थों की तस्करी
पाकिस्तान की ओर से पंजाब में नशीले पदार्थों की तस्करी पर पुलिस लगाम नहीं लगा पा रही। सप्ताह में एक या दो बार हेरोइन की तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। बॉर्डर के साथ लगते इलाके के लोग भी तस्करी में शामिल है। इसके अलावा राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जमू-कश्मीर और चंडीगढ़ से नशीले पदार्थों की तस्करी से नशे का जाल फैलता जा रहा है। पंजाब में नशीले पदार्थों की खपत ज्यादा होने के कारण इसे नशीले पदार्थों की बड़ी मंडी माना जा रहा है। यहां तक कि पंजाब के ज्यादातर गांवों में लोग घर में ही शराब बना रहे हैं। इस पर रोक लगाने में पुलिस नाकाम साबित हुई है।
कोई नहीं मानता ट्रैफिक नियम
राज्य में ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं के बराबर होता है। हालांकि हर शहर में ट्रैफिक पुलिस के कर्मचारी तैनात रहते हैं। लगभग हर चौक पर ट्रैफिक लाइट की व्यवस्था है और ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करने वालों का चालान काटने का भी प्रावधान है। लेकिन राज्य में यही देखने में आया है कि अधिकतर लोग ट्रैफिक नियमों का पालन ही नहीं करते। ट्रैफिक पुलिस भी राज्य में यातायात नियमों का सख्ती से पालन कराने में नाकाम साबित हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण पुलिस के प्रयासों में कमी को ही माना जा सकता है। ट्रैफिक नियम तोडऩे वाले लोगों पर पुलिस पूरी तरह से शिकंजा नहीं कस पा रही है। कर्मचारी चालान काटने के बजाय रिश्वत लेकर काननू तोडऩे वालों को छोड़ देते हैं।
बढ़ रही हैं आपराधिक वारदातें
राज्य में आपराधिक वारदातें भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। राज्य में ज्यादातर हत्याएं और मारपीट की वारदातें जमीन के झगड़ों के चलते होती हैं। इसके अलावा चोरी और लूटपाट के इरादे से भी हत्याओं के काफी केस सामने आ रहे हैं। चोरी और लूटपाट के मामलों में कई गैंग भी पुलिस की पकड़ में आ चुके हैं। बड़े शहरों लुधियाना, जालंधर, अमृतसर और पटियाला आदि में छीनाझपटी की वारदातें में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पुलिस की ढीली चाल के कारण आपराधिक तत्वों में पुलिस का खौफ ही नहीं रहा है।
शराब तस्करी और गांवों में बनती देसी शराब
पंजाब में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और चंडीगढ़ से शराब महंगी है। यही कारण है कि इन राज्यों से आए दिन भारी मात्रा में शराब की तस्करी हो रही है। राज्य के ज्यादातर गांवों में लोग घरों में देसी शराब तैयार करते हैं। तरनतारन के एरिया में सडक़ों के किनारे सरेआम शराब निकाले का सामान बेचा जाता है। मालवा में ज्यादातर लोग भुक्की का नशा करते हैं। यहां पर राजस्थान से भारी मात्रा में भुक्की की तस्करी हो रही है। एक और किसान कर्ज से दुखी होकर आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी ओर नशा नहीं मिलने पर दुखी होकर भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या अकाली दल की, लेकिन नशे की तस्करी पर रोक नहीं लग पाई। उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल युवाओं को नशे से दूर करने के लिए खेलों को बढ़ावा देने की बात तो करते हैं, लेकिन नशे की तस्करी रोकने के बारे में उनके पास कोई अभी ठोस नीति नहीं है।
लगातार बढ़ता चोरी-हत्या का ग्राफ
यही नहीं पंजाब में चोरी, छीनाझपटी और हत्याओं का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। पुलिस की कार्यप्रणाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लुधियाना में डीएसपी मर्डर मामले में उसके हाथ आज तक सुराग नहीं लग पाया है। डीएसपी की एक फरवरी २०१२ को लुधियाना के पास एक फार्महाउस में एक महिला के साथ हत्या कर दी गई थी। हर रोज शहरों में दुकानों के ताले टूटने, पेट्रोल पंप लूटने और महिलाओं से चेन और पर्स छीनने की घटनाएं आम हो चुकी हैं।
पुलिस कर्मचारियों का रवैया ठीक नहीं
सबसे बड़ी कमी यही है कि पुलिस कर्मचारियों का लोगों के साथ व्यवहार ही ठीक नहीं है। आम आदमी पुलिस के नाम से खौफ खाता है। शिकायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन जाने वाले लोगों को डराने धमकाने के मामले अकसर सामने आ रहे हैं। पुलिस से तंग आकर पुलिस स्टेशनों में आत्महत्याओं के मामले बढ़ रहे हैं। पुलिस हिरासत में मौतों का सिलसिला जारी है।
तस्करों से पुलिस-नेताओं की साठगांठ
ऐसे कितने ही मामले सामने आ चुके हैं कि पुलिस और नेताओं की तस्करों से मिलीभगत से ही तस्करी का धंधा चला रहा है। बॉर्डर एरिया में सबसे ज्यादा नशे का काराबोर है। यहां नेताओं के डर से पुलिस अधिकारी तस्करों का साथ देना ही सही मानते हैं। पुलिस की ढीली कार्यशैली के कारण ही तस्कर भी बरी हो जाते हैं।
अपना ही एक्ट लागू नहीं कर पाई सरकार
पुलिस प्रशासन में सुधार के लिए पंजाब सरकार ने पुलिस एक्ट २००८ तैयार किया था। इससे व्यवस्था सेसुधार की एक उम्मीद जगी थी। हैरानी की बात है कि सरकार अपने ही एक्ट को अब तक लागू नहीं कर पाई। एक्ट लागू क्यों नहीं हो पाया? सरकार की क्या मजबूरी है? ये तो सरकार की बता सकती है, लेकिन बेलगाम काननू व्यवस्था का खमियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।


क्या करना चाहिए सरकार को : एक्सपर्ट
पुलिस पर राजनीतिक दबाव खत्म कर दिया जाए। पुलिस के काम में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हो जाए तो राज्य के हालात और बेहतर हो सकते हैं। पुलिस को हर क्षेत्र में राजनीति से दूर रखना होगा। कई मामलों में पुलिस अधिकारियों को राजनीतिज्ञों से सीधे हुक्म मिलने लगते हैं। इस तरह पुलिस की कमांड तोडऩा मौजूदा समय के साथ-साथ भविष्य के लिए भी खतरनाक है। पुलिस राजनीति से दूर रहकर काम करे, तो अच्छा रहेगा, नहीं तो राजनीतिज्ञों को और बढ़ावा मिलेगा।
पंजाब पुलिस की छवि में सुधार लाने के लिए एक तो थानों का माहौल खुशनुमा बनाना होगा, ताकि वहां जाने में किसी को डर न लगे। पिछले करीब 30 साल में थानों के माहौल में कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी सिर्फ समाज के मजबूत वर्ग के लोग ही थानों में बिना डर के जा रहे हैं। कमजोर वर्ग के लोग अब भी थानों में जाने से डरते हैं। इसलिए थानों के माहौल में अभी और सुधार लाने की जरूरत है। पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की गैरहाजिरी पर भी रोक लगानी होगी। शराब पीना गुनाह नहीं है, लेकिन ड्यूटी के दौरान शराब पीना गुनाह है। इस पर भी शिकंजा कसा जाना चाहिए।
मौजूदा समय में पंजाब पुलिस के सामने नशीले पदार्थों की तस्करी, एनआरआईज की प्रॉपर्टी की हिफाजत, साइबर क्राइम, राजनीतिक झगड़े, आतंकवाद को दोबारा सिर उठाने से रोकना और माइगं्रेट लेबर पर ध्यान रखना सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। नशीले पदार्थों का रुझान ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है, जो नौजवानों को अपनी जकड़ में ले रहा है। एनआरआईज की प्रॉपर्टी पर उनके रिश्तेदार ही कब्जे जमाने में लगे हैं। साइबर क्राइम अभी पंजाब में कम है, लेकिन भविष्य में यह बढ़ सकता है। बैंकों और अन्य जगहों पर डाटा सिक्योरिटी को लेकर पुलिस को सजग रहना होगा। राज्य में राजनीतिक रंजिश को लेकर होने वाले झगड़ों पर भी नकेल कसनी होगी। राजनेता अपने फायदे के लिए गांव और शहरवासियों में झगड़े करवा देते हैं। इस तरफ ध्यान रखना होगा। आतंकवाद का खतरा फिलहाल नहीं है, लेकिन पुलिस को ध्यान रखना होगा कि यह दोबारा सिर न उठाए। माइग्रेंट लेबर का भी पुलिस को ध्यान रखना होगा। पंजाब में वैसे भी लेबर कम होने के कारण महंगी हो रही है। किसानों और माइग्रेंट लेबर में लेनदेन को लेकर विवाद होते रहते हैं। पंजाब में अभी नक्सलवाद का खतरा तो नहीं है, लेकिन इसके लिए पंजाब पुलिस को सावधान रहना होगा, क्योंकि नक्सलवाद का एरिया बढ़ रहा है। दिन प्रतिदिन विभिन्न राज्यों के कई जिले इसकी चपेट में आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, ओडि़शा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कई अन्य राज्य इसकी चपेट में आ चुके हैं। पंजाब में बेरोगजार युवक नक्सलवाद की ओर आकर्षित हो सकते हैं। पुलिस को इसका ध्यान रखना होगा।
लोग ट्रैफिक नियम तोडऩा हेकड़ी समझते हैं। पकड़े जाने पर वे या तो किसी बड़े राजनीतिज्ञ से सिफारिश करवा लेते हैं या बड़े घरों से होने के कारण पुलिस उनसे नरम तरीके से पेश आती है। राज्य में ट्रैफिक नियमों का पालन कराने के लिए पुलिस को सख्ती से काम करना होगा। हालांकि जब पंजाब के यही लोग चंडीगढ़ में जाते हैं, तो वहां वे ट्रैफिक नियमों का पूरा पालन करते हैं, क्योंकि वहां ट्रैफिक नियमों के पालन को लेकर सख्ती है। लेकिन यही लोग पंजाब में आकर ट्रैफिक नियमों को तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसलिए पंजाब पुलिस को भी ट्रैफिक नियमों का पालन कराने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। वैसे भी अगर कोई व्यक्ति ट्रैफिक नियमों का पूरी तरह पालन करता है तो इससे उसके जीवन में भी काफी सुधार आ सकता है। इससे जीवन में अनुशासन में काम करने की आदत पड़ती है। हादसे कम होने से सुरक्षा की भावना बढ़ेगी और शराब पीने की आदत में कमी आएगी।
करप्शन खत्म करने के लिए पुलिस से पहले राजनैतिक इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए। पंजाब पुलिस और विजिलेंस करप्शन रोकने में पूरी तरह सक्षम है, बशर्ते इसके लिए पॉलिटिकल विल हो। पहले राजनीतिज्ञों को खुद ईमानदार होना होगा, तब समाज से करप्शन दूर किया जा सकता है। भ्रष्टाचार रोकने का एक ही तरीका है, इसके प्रति जीरो टॉलरेंस हो। पंजाब विजिलेंस के पास भ्रष्टाचार की जो भी शिकायत आए, उस पर बिना किसी सियासी दबाव के तुरंत कार्रवाई की जाए।
-एपी पांडे, रिटायर्ड डीपीजी, पंजाब पुलिस

वर्ष 2011 में पंजाब में हुए अपराध
अपराध रजिस्टर्ड केस ट्रेस आउट कन्विक्टिड
मर्डर 882 743 405
डकैती 28 25 16
सेंंधमारी 2488 1123 618
दंगा 0 0 0
304 आईपीसी 112 108 42
इरादा-ए-कत्ल 997 959 303
हर्टिंग 4757 4695 1309
पॉइजनिंग 36 31 4
किडनैपिंग 355 313 112
भगाना 326 284 23
बलात्कार 479 276 229
चोरी 3582 1787 917
382 आईपीसी 1202 768 264
लूट 236 170 47
411 आईपीसी 1345 1358 740
धोखाधड़ी 3571 3525 696
406-409 आईपीसी 281 276 96
कनाल कट 14 19 14
छिटपुट अपराध 13687 12021 4586
एनडीपीएस एक्ट 5464 5473 3855
आम्र्स एक्ट 831 811 490
करप्शन एक्ट 31 17

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