सोमवार, जून 22, 2015

पंजाबी फिल्मों का सुपर स्टार सतीश कौल आज इलाज और पाई पाई को मोहताज

लोग चढ़दे सूरज नूं करन सलामां, डूबदे नूं कौन पुछदा  दस्तूर है

। एक समय था जब फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करना कठिन तो था पर उसमें टिक और भी मुश्किल था। सन 1970-71 के पास पंजाबी फिल्म जगत में रोमांच भी आया संजिंदगी भी। उन दिनों एक अति सुंदर हीरो ने फिल्मों में प्रवेश किया। वह थे कश्मीर के पंडित मोहन लाल कौल के घर 8 सितंबर 1954 को पैदा हुए सतीश कौल।
सतीश कौल छोटी उम्र में ही हिंदी फिल्म बंद दरवाजा में बतौर हीरो आ गए थे। बस फिर क्या फासले, भक्ति में शक्ति, मेरे सरताज अनेक हिंदी फिल्में और हिट पंजाबी फिल्म  मोरनी, लच्छी, दो पोस्ती, वीरा, राणों, धी रानी, भुलेखा, वेहड़ा लम्बड़ां दा, वोटी हथ सोटी के साथ अनेक फिल्में दीं। उन्होंने हिंदी पंजाबी मराठी तथा अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया। कौल के अच्छे दिनों में एक पंजाबी लड़की से प्यार और शादी भी हो गई। एक लड़का भी हो गया। कुछ देर के बाद दोनों का तलाक हो गया और वो साउथ अफ्रीका चली गई, जो दोबारा कभी न मिली।
सतीश का मलाल है कि उसके बाद रिश्ते तो बहुत बने पर कहीं न कहीं उसकी किस्मत या उसका खुद का कसूर था कि कहीं कामयाबी न मिली। जिंदगी की ऊंचाइयों के नीचे आसमान खाली था। न घर है ना ठिकाना। लुधियाना में एक्टिंग स्कूल खोला और लूटा दिया जो कुछ भी था। नटास के डायरेक्टर सभ्रवाल साहिब पटियाला ले आए। फिर एक चेन्नल के मालिक ने अपने एक्टिंग स्कूल का इंचार्ज बना दिया। हॉस्टल में एक दिन उन्हें चोट लग गई। उनके साथी मेहर मित्तल, गैरी संधू, प्रीति सप्रू तथा भावना भट्ट के अलावा बहुत कला प्रेमी मिलने आए और थोड़ी बहुत सहायता भी की। सतीश कौल ने सरबत दा भला ट्रस्ट का शुक्रिया किया, जो उनका इलाज करवा रहा है। आज कल सतीश कौल राजपुरा-बनूड़ के नजदीक ज्ञान सागर अस्पताल में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके पास पुराने कपड़ों का बैग, साधारण मोबाइल फोन के अलावा बस यादें ही बची हैं।


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