मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

रेलवे में सफर के दौरान ऐसे करें शिकायत


 वेबसाइट-www. custmorcare.indianrailway.gov.in पर ऑनलाइन यात्री अपना पीएनआर नंबर और नाम देकर शिकायत कर सकता है।
 www.irctc.co.in-पर यात्री खानपान, टूरिस्ट स्कीम, ई-टिकट से जुड़ी समस्या की शिकायत कर सकता है।
 एसएमएस-9717630982 नंबर पर यात्री अपना पीएनआर नंबर और नाम लिखकर शिकायत कर सकता है। इसमें टे्रन में गंदगी और खानपान की शिकायत कर सकता है। रेलवे का दावा है कि 90 मिनट का समस्या का हल होगा।
 टोलफ्री नंबर-1800-111-321 पर यात्री टे्रन में खानपान से जुड़ी ही शिकायत कर सकता है। यह नंबर टिकट के पीछे लिखा होता है। सुबह सात से लेकर रात दस बजे तक सात दिन चालू रहता है। क्योंकि टे्रन में सुबह सात से लेकर दस बजे तक ही खानपान की सघ्लाई होती है।
 शिकायत पुस्तिका में- गार्ड और कंडक्टर के पास शिकायत पुस्तिका होती है। यात्री अपना टिकट दिखाकर पूरे अधिकार के साथ शिकायत पुस्तिका लेकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। गार्ड और कंडक्टर मना नहीं कर सकता है। यदि मना करता है तो स्टेशन पर उतरने पर डिघ्टी एसएस आफिस में जाकर उनके खिलाफ शिकायत की जा सकती है।
स्टेशन पर पर ऐसे करे शिकायत
 यदि आपके स्टेशन पर आपको किसी प्रकार की कोई समस्या नजर आ रही है तो आप घ्लेटफार्म टिकट लेकर या यात्रा टिकट के आधार पर डिघ्टी एसएस आफिस में जाकर उस मामले की शिकायत कर सकते है। यह अधिकार रेलवे अपने प्रत्येक यात्री को देता है।
 - मंडल के अधिकारियों और स्टेशन अधीक्षक व उससे उंचे पद के अधिकारियों को सीधे पत्र लिखकर शिकायत की जा सकती है।

मंगलवार, दिसंबर 17, 2013

परीक्षा देने आए हजारों प्रत्‍याशियों के साथ पंजाब सरकार का मजाक


रविवार को चंडीगढ़ की सभी सडक़ों पर अचानक की दिल्ली जैसे जाम का नजारा था। दो-तीन किलोमीटर तक लंबी वाहनों की कतारें लगी हुई थीं। एक सिगनल क्रास करने में हमें अपनी कार से कम से कम सात से आठ बार ग्रीन सिगनल का इंतजार करना पड़ा। वजह थी पंजाब सरकार के एफसीआई इंस्पेक्टर की परीक्षा। इस बार बादल सरकार ने इस परीक्षा का जिम्मा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ को दिया था। जिसमें कोई दो लाख प्रत्याशी परीक्षा देने पंजाब से यहां पहुंचे थे। लेकिन बदइंतजामी यह रही कि कोई 50 हजार प्रत्याशी परीक्षा केंद्र पर पहुंच ही नहीं सके।
चंडीगढ़ से लुधियाना लौटते वक्त बस में कई ऐसे उम्मीदवार मिले। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई। बता रहे थे कि बदइंतजामी इतनी थी कि पीयू ने आसपास के गांवों के कॉलेजों में सेंटर बना रखे थे और वहां पहुंचने का कोई साधन भी उपलब्ध नहीं कराया गया। दो शिफ्ट में परीक्षा थी। जिनकी बसें मिस हो गईं, वे तीन-तीन घंटे तक पहले तो बस के लिए इंतजार करते रहे कि किसी तरह चंडीगढ़ के मेन बस अड्डे पर पहुंचे। इसके लिए उन्हें जीटी रोड पर कई किलोमीटर पैदल चलकर सफर तय करना पड़ा। इनमें लड़कियों को तो बस अड्डे तक पहुंचते पहुंचते रात हो गई और उनके गंतव्य की आखिरी बसें जा चुकी थीं।
इस बीच खबर यह आई कि पेपर लीक हो चुका है। अब यह पेपर दोबारा लिया जाएगा। एक तो वैसे ही पंजाब में बेरोजगारी इस कदर बढ़ चुकी है कि ये दोनों बाप-बेटा मिलकर पंजाब का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। ऊपर से बेरोजगारों को नौकरियों के गफ्फे देने में बादल सरकार पीछे नहीं है। ऐसे में इन बेरोजगारों के साथ यह सरासर मजाक ही कहा जाएगा। क्योंकि उन्हें चंडीगढ़ तक का सफर करना ही आसान नहीं था। ऊपर से उनके लिए न कहीं पेयजल की व्यवस्था और न शौचालय आदि का प्रबंध, उनकी मुश्किलों को बढ़ाने के लिए नाकाफी थी।
क्या सरकार को नहीं चाहिए था कि वह पंजाब के सभी जिलों में ही परीक्षा केंद्र बनाकर इस समस्या का हल निकाल सकती थी। इससे प्रत्याशियों को अपने जिले में ही आसानी से परीक्षा देने की सुविधा होती।

मंगलवार, दिसंबर 03, 2013

तेजाब पीडि़तों का मुफ्त इलाज और सर्जरी राज्य सरकार की जिम्मेदारी


तेजाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन जारी की थी। अब सभी राज्यों को चार महीने में यानी 31 मार्च तक उसी के आधार पर नियम बनाने होंगे। कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि तेजाब पीडि़तों का मुफ्त इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का खर्च राज्य सरकार को ही उठाना होगा। इसके अलावा एसिड अटैक के मामलों की जांच  एसडीएम को करनी होगी कि तेजाब किसने और क्यों बेचा था। सुप्रीम कोर्ट ने तेजाब पीडि़तों के लिए हरियाणा सरकार की योजना को आदर्श माना है। हरियाणा सरकार तेजाब पीडि़तों के इलाज और प्लास्टिक सर्जरी का पूरा खर्च उठाती है। अभी तक बिहार, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी ने ही तेजाब बिक्री की गाइड लाइन तैयार की हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सार:-

  • 18 साल के कम उम्र के व्यक्ति को तेजाब नहीं बेचा जाएगा
  • खरीदार को पता व आईडी देना होगा 
  • एसिड अटैक गैर जमानती जुर्म होगा
  • पीडि़त को राज्य सरकार 3 लाख रु. का मुआवजा देगी
  • एक लाख रुपए हमले के 15 दिन के भीतर अदा करने होंगे


शुक्रवार, नवंबर 29, 2013

यार, 5 रुपये और दो, सिगरेट भी तो पीनी है ऐसे थे साहिर लुधियानवी


माना के हम जमीं को न गुलजार कर सके
कुछ खाक तो कम कर गए, गुजरे जिधर से हम

अब्दुल हई यानी साहिर लुधियानवी 8 मार्च 1920 को जमीदार फजल मुहम्मद के घर जन्मे। लेकिन पिता का घर का ऐशो आराम नसीब न हुआ। अब्दुल की मां ने उनके जन्म के बाद ही उनके पिता से जायदाद में अपना हिस्सा मांगा। नतीजतन पिता ने साहिर की मां को अपने घर से निकाल दिया। पिता के रवैये ने साहिर को इतना एकाकी, तन्हा और डरा-सहमा बना दिया कि उन्होंने अपनी एक अलग ही दुनिया बना ली। ये दुनिया थी, उनकी सोच, नज्मों की और मोहब्बतों की। जोकि इस दुनिया से काफी इतर थी। साहिर जितने खुशमिजाज दोस्त माने जाते थे, असल में वह उससे कहीं ज्यादा भावुक इंसान थे।
उनकी भावकुता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पढ़ाई के दौरान एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज फार ब्वायज की एक दीवार को अपने गम का साथी बनाया था। वे घंटों दीवार पर बैठते और रो कर अपने मन में छुपे गुबार को निकाल देते।  साहिर को प्रकृति से भी प्यार था। उन्होंने अपनी जवानी के दिनों में कॉलेज में एक पौधा लगाया था। जो आज एक बड़ा पेड़ बनकर उनकी निशानी के रूप में वहां मौजूद है। कॉलेज के दिनों में उन्हें जगराओं के पास रहने वाली ईशर कौर से मोहब्बत हो गई थी। जवानी की दहलीज पर रखे शुरुआती कदमों के साथ जवां होती उनकी मोहब्बत के पैगाम उस समय कामरेड मदन गोपाल ही ईशर कौर तक पहुंचाते थे। लेकिन जब इस प्यार की खबर फाउंडर प्रिसिंपल एसीसी हारवे को लगी, तो उन्होंने साहिर को कॉलेज से निकाल दिया। ये वाक्या 1941 का है। उस वक्त साहिर बीए फस्र्ट ईयर के स्टूडेंट थे। इसका जिक्र भी साहिर ने कुछ यूं किया था-
'गर यहां के नहीं तो क्या,
यहां से निकाले तो हैं।
लेकिन वो साहिर की दुनिया थी, नज्मों की, मोहब्बतों की और यकीनन दोस्तों की भी। साहिर शाम के वक्त अपने दोस्त अजायब चित्रकार, सत्यपाल, प्रेम वारभटनी जो मलेरकोटला से आते थे और कृष्ण अदीब को अपनी नज्में सुनाया करते थे। यूं तो ये सभी दोस्त मिलनसार थे, लेकिन साहिर इनमें खुद को शायद कभी-कभी आर्थिक रूप से कमजोर मानते थे। अपनी महबूबा को कभी कोई कीमती तोहफा न देने का गम भी शायद इन्हें सालता था। इसका जिक्र साहिर ने कुछ यूं किया है -
'बना के ताज महल इस शंहशाह ने,
हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक।
यह भी सच्चाई है कि उस वक्त तक खुद साहिर ने कभी ताजमहल नहीं देखा था। इस नज्म को सुनकर साहिर के दोस्तों ने उसे 20 रुपये दिए और ताजमहल देखकर आने को कहा। इस पर साहिर का जवाब था, 'अरे यार, 5 रुपये और दो, सिगरेट भी तो पीनी है।Ó खैर जिंदगी यूं ही चल रही थी कि एक दिन नया मोड़ आया, जो ले गया उन्हें मुंबई। साहिर अपनी अम्मी सरदार बेगम के साथ मुंबई आए।
साहिर के मुबंई में रहते हुए ही ईशर कौर अपना सब कुछ छोडक़र वहां आ गई, लेकिन हफ्ते भर में उन्हें वापस आना पड़ा। साहिर ने वहां करीब डेढ़ साल संघर्ष किया। इस दौरान उनकी अम्मी ने उन्हें वहां से वापस चलने को भी कहा। लेकिन साहिर न माने, एक दिन अचानक उनकी मुलाकात एसडी बर्मन से हुई। एसडी बर्मन ने कहा, 'मैं धुन छेड़ूंगा, तुम अभी बोल बनाओ...Ó साहिर ने गीत लिखा, 'ये ठंडी हवाएं, लहरा के आएं..,Ó जिसे लता मंगेश्कर ने गाया था। उनका पहला गाना ही हिट रहा। इसके बाद साहिर ने जो किया, वो दुनिया के सामने है। हालांकि मुंबई में भी लता मंगेशकर, अमृता प्रीतम के साथ उनके प्रेम संबंधों के किस्से काफी सुने गए। लेकिन उन्होंने खुद अपना नाम किसी के साथ नहीं जोड़ा।
साहिर किसी की मदद में पीछे नहीं रहते थे और उसूलों के भी पक्के थे। उन्होंने अपनी सौतेली बहनों को अपने पास रखा था, आजादी की जंग में जिस शख्स ने उनकी अम्मी को रिफ्यूजी कैंप में बचाया था। जब उसे मदद की जरूरत थी, तो उसे मुंबई में अपने घर पर रखा। लेकिन जब उस इंसान ने मांगे ज्यादा कर दीं, तो उसे घर से निकाल दिया। एक बार जावेद अख्तर को उन्होंने 200 रुपये दिए थे। जावेद उन्हें ये उधार वापस करने की जब भी बात करते, साहिर उन्हें चुप करवा देते। लेकिन 1980 में जब साहिर को उनकी इंतकाल के बाद दफनाया जा रहा था, तो जावेद भी उन्हें अंतिम विदाई देने आए थे। और जब जावेद वापस जा रहे थे। कहते हैं कि एक शख्स जावेद के पास आया और कहा कि मैं जा यहां से जा रहा हूं, मेरी जेब खाली है, मुझे 200 रुपये दे दो। वो कौन था? कहां से आया था? ये कोई नहीं जानता।

लोधियाना किला, ऐसे बना लुधियाना



15वीं सदी में शहर के सतलुज के किनारे एक रणनीति के तहत दिल्ली के शासक सिकंदर लोधी ने किले का निर्माण कराया। तब इस क्षेत्र में डकैतों को काफी आतंक था। यहां के लोगों ने उस समय दिल्ली के शासक लोधी से मदद मांगी थी। उसने अपने दो सेनापतियों के साथ सिपाहियों को भेजा। उन्हीं लोगों ने इस किले का निर्माण कराया थ।
यह 5.6 एकड़ में फैला हुआ था। मगर अब इसके अधिकांश भाग पर लोगों को कब्जा है। इसे सतलुज नदी के किनारे बनाया गया था। मगर बाद में सतलुज ने अपना रास्ता बदल लिया। उसके बाद अवैध ढंग से कब्जा करने वालों की किस्मत खुल गई। उन्होंने इसके बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई कब्जा करने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। सुल्तान लोधी ने किले में रहने के लिए अपने दो जनरल, यूसुफ खान और निहंग खान प्रतिनियुक्त किए थे। किले तक पहुंचने के लिए ग्रैंड ट्रंक रोड और किले के सामरिक महत्व के रूप में विकसित पथ भी इसके साथ जुड़ा।
किले लोधी के लिए और बाद में अन्य मुस्लिम शासकों के बाद उसे मजबूत स्थिति प्रदान की है. इसके महत्व को स्वीकार करते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने। उन्होंने सतलुज नदी की दूसरी तरफ एक बहुत मजबूत गढ़ बनाया. 19 वीं सदी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह ने दिल्ली में कमजोर मुस्लिम शासन का फायदा उठाया और किले की बहुत प्रतिरोध के बिना नियंत्रण स्थापित कर लिया। अपने शासन के पतन के साथ किला चुपचाप ब्रिटिश सेना के हाथों में पारित कर दिया।
किला न केवल ब्रिटिश शासन के दौरान, यहां तक कि आजादी के बाद जब भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट को यहां तैनात किया गया था। उन्होंने कुछ दशकों तक इसे अच्छी तरह सेे संभाले रखा. लेकिन इसके प्रस्थान के बाद खाली किला देखरेख के अभाव में गिरने लगा। रखरखाव और मरम्मत के अभाव की वजह से जगह-जगह से ढहने लगा है। नतीजतन, कई स्थानों पर किले की संरचना पूरी तरह से गायब हो गई है। वर्तमान में यहां केवल बाहरी दीवार के खंडहर, दो बड़े प्रवेश द्वार की एक सुरंग जो सतलुज के नीचे से फिल्लौर तक जाती है, कुछ जीर्ण बैरकों के अलावा कुछ नहीं है।
महाराजा रणजीत सिंह ने एक बड़ी और रहस्यमय सुरंग खोदी थी, जो सतलुज नदी के उस पार अपने आवासीय महल के साथ लोधी फोर्ट फिल्लौर शहर में जुड़ा हुआ है। अब सिर्फ सुरंग का प्रवेश द्वार दिखता है, जबकि पथ मलबे और अन्य अपशिष्ट पदार्थ से अवरुद्ध हो चुका है।
स्थानीय निवासियों ने इसकी बाहरी दीवारों पर खुदाई कर दी है। इसके चारों तरफ बने घरों से पता ही नहीं चलता कि बीच में कोई किला है। इसके मुख्य द्वार पर भी कोई ऐसा बोर्ड नहीं है, जो ऐतिहासिकता को प्रमाणित करे। यहां कोई बोर्ड हस्ताक्षर या किले में जगह के इतिहास के बारे में ऐसा कुछ नहीं लिखा है, जो यहां आने वालों को बताए कि इस स्थान की महत्ता क्या है?

गुरुवार, अक्टूबर 10, 2013

अब हेयर वॉश के लिए बीयर शैंपू


 पानी और चाय के बाद सबसे पॉपुलर बेवरेज बीयर को माना जाता है। लेकिन बीयर अब सिर्फ पीने की चीज नहीं रह गई है, बल्कि इसने न्यू डेस्टिनेशन हासिल कर ली है और वो है पार्क एवेन्यू बीयर शैंपू। इसकी टैग लाइन है चीयर्स टू मैन हेयर। बीयर को अब हेयर वॉश के तौर पर भी यूज किया जाने लगा है। पीने वाली बेवरेज बीयर स्पेशली हेयर वॉश
के लिए बीयर शैंपू से तैयार किया गया है।  भले ही यह मैन शैंपू के नाम से प्रमोट हो रहा हो लेकिन इसकी खरीदार लड़कियां भी हैं। दरअसल बियर में माल्ट प्रोटीन बालों को एक्स्ट्रा चमक और बाउंस देता है जिसकी वजह से लोग पहले ड्रिंक बीयर से ही हेयर वॉश किया करते थे, लेकिन अब स्पेशली हेयर वॉश के लिए बीयर देश के कुछ चुनिंदा शहरों में लॉन्च की गई हैं। विदेशी ब्रांड्स में इसकी कीमत लगभग 900 रुपए के आसपास रहती है लेकिन कंपनी ने 100 एमएल की बॉटल 60 रुपए में पेश किया है। बीयर से बने प्रोडक्ट में सिर्फ बीयर शैंपू ही नहीं बल्कि लिप बाम भी शामिल है। आमतौर पर मिलने वाली लिप बाम 20 रुपए से लेकर 200 रुपए तक की कीमत में होती हैं, लेकिन बीयर लिप बाम की कीमत 900 रुपए है। ग्रेप ऑइल और शिया बटर वाली बीयर फेस क्रीम भी अब मार्केट में आने लगी हैं।

बुधवार, सितंबर 04, 2013

स्कूल के शिक्षकों ने ज्ञान नहीं बढ़ाया, हां, पैसा जरूर कमाया


पढ़ाई के दिनों में मुझे ऐसा कोई टीचर याद नहीं आता, जिन्हें मैं किसी अच्छी वजह से याद रखूं। शायद यही वजह है कि हमारे असम गु्रप के साथी आज उन शिक्षकों को मिलने भी नहीं जाते। कई स्कूलों में भटक-भटक कर पढ़ाई की। असम में अकेला था, पिताजी अपने काम पर सुबह निकल जाते और देर रात लौटते। कोई पढ़ाने वाला था, नहीं और सरकारी स्कूल में पढ़ाई कैसी और कितनी होती है सब जानते हैं। इसलिए ट्यूशन लेनी पड़ी। ८वीं की परीक्षा से ऐन पहले मैंने अपने स्कूल के हिंदी टीचर की ट्यूशन के नोट्स अपने दोस्त राकेश शर्मा को दे दिए, टीचर गुस्सा हो गए और कह दिया कि तुम ट्यूशन पढऩे मत आना। बाद में समझ आया कि वे ट्यूशन बच्चों को उनकी कमजोरी दूर करने और ज्ञान बांटने के मकसद से नहीं बिजनेस के मकसद से पढ़ाते हैं, आजकल वे हमारे उसी हाई स्कूल के पिं्रसिपल है, पता नहीं अब वे बच्चों का कैसा भविष्य संवार रहे होंगे। मेरा मानना है कि अगर कोई बच्चा आपके पास ट्यूशन लेने आ रहा है, इसका मतलब सीधे तौर पर यही है कि उसे घर में या तो कोई पढ़ाने वाला नहीं है या फिर वह अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करना चाहता है। अफसोस हमारे समय में टीचर ट्यूशन को शुद्ध रूप से पैसा कमाने का जरिया समझते थे। बाद में मैंने एक मैथ्स टीचर से ट्यूशन रखी। ट्यूशन पढऩे ५ किलोमीटर पैदल जाता था। कभी-कभार हमें लोकल पैसेंजर कोयले के इंजन वाली का सहारा मिल जाता था। उस ट्रेन के गार्ड मेरे दोस्त राकेश शर्मा के पिताजी हुआ करते थे, वे हमें देखते ही ट्रेन में बिठा लेते थे। बिना टिकट हम सभी दोस्त उसी ट्रेन में अपना साइकिल और कुछ मेरे जैसे पैदल चढ़ जाते थे। फिर वो ट्रेन हमारे टीचर के घर से ठीक आधा किलोमीटर पहले रुकती थी। दरअसल यह ट्रेन वर्कशॉप के कर्मचारियों की सुविधा के लिए चलाई गई थी। खैर, परीक्षा के दिनों में मुझे एक सवाल दिक्कत दे रहा था और मुझे भरोसा था कि यह जरूर परीक्षा में आएगा। कल परीक्षा है और मैं अपने दोस्त गुरविंदर सिंह के साथ स्पेशली उसकी मोपेड पर सर के घर डांगतल गया। सर का मूड नहीं था, कहने लगे अरे बअुओ यह सवाल नहीं आएगा। हमें निराश होकर बिना समझे हीं लौटना पड़ा। अगले दिन वहीं सवाल परीक्षा में आया था, और उस वक्त मेरी क्या मन:स्थिति रही होगी समझ ही सकते हैं। खैर गुरविंदर ने किसी तरह आधा-अूधरा सवाल ही अटेंप्ट किया और मैं छोड़ चुका था। बहुत गुस्सा भी आया और बुरा भी लगा।
तरूण सर आपका आभारी, जिन्होंने इकनॉमिक्स का फलसफा समझाया
जब कॉलेज में गए थे, एक साल तो यूं ही इकनॉमिक्स बिना समझे ही निकल गया, लेकिन प्लस टू में मैंने बोंगाईगांव कॉलेज के लेक्चरार श्री तरूण बहादुर जी से इकनॉमिक्स की ट्यूशन ली। सर ने मेरी प्लस वन की रही इको की कमजोरी तो दूर की ही और प्लस टू की इको भी जबर्दस्त तरीके से समझाई कि इको में मुझे मजा आना लगा, हालांकि मैंने प्लस टू हिंदी हायर सेंकेंडरी स्कूल से ही की थी। लेकिन इकनॉमिक्स मैंने तरूण सर से ही समझा और नतीजा ये रहा कि जब रिजल्ट आया तो मेरे इकनॉमिक्स में ही सबसे ज्यादा नंबर थे। उस वक्त यह नहीं मालूम था कि कभी पत्रकार भी बनूंगा। खेैर, आज भी इको के इनफलेशन, मार्केट, बैंकिंग काफी काम आ रही है।
मेरे करिअर के गुरु
घर में दीदी नीलम शर्मा अंशु ने फ्रीलांस करना शुरू किया था। पत्रकार तो मैं फ्रीलांस था। जनसत्ता कोलकाता के समाचार संपादक श्री अमित प्रकाश जी, सबरंग के इंचार्ज श्री अरविंद चतुर्वेद जी की बदौलत पत्रकारिता में लिखने का क्रम शुरू हुआ। दीदी के साथ इनसे यदा-कदा छोटी मुलाकातों में जो समझ पाया कि पत्रकारिता समाज को बदलने का जबर्दस्त टूल है, बस इस पेशे की लत लग गई। जब कोलकाता में प्रभात खबर की लांचिंग होनी थी, असली ब्रेक मुझे श्री ओम प्रकाश अश्क जी ने तत्कालीन संपादक ने दिया। उन्होंने आंख मूंद कर इस नौजवान पर भरोसा जताया और मेरी प्रतिभा को तराशा। सही मायने में पत्रकारिता की एबीसीडी मैं अश्क भैय्या से ही सीख पाया। हम सभी प्यार से उन्हें भैय्या और बाबा बुलाते हैं। उन्होंने मेरे जैसे कई युवाओं को पत्रकारिता में मौका दिया। इसी बीच श्री हरिवंश जी के कोलकाता अल्प प्रवास के दौरान जो कुछ भी पत्रकारिता का मिशन उनसे सीख सका, उसकी अलख अनवरत जलाए रखी है। इस दौरान दादा(श्री दीपक रस्तोगी) जी प्रभात खबर से जुड़े। उन्होंने मुझे करियर ग्रोथ कैसे और किस तरह की जाती है समझाया। बस फिर क्या था निकल पड़ा एक और मंजिल की ओर। अमर उजाला जालंधर में संपादक श्री अकू श्रीवास्तव जी से प्रोफशनल व खोजपरक पत्रकारिता का फलसफा समझा। फिर दैनिक भास्कर से जुडऩा हुआ तो इसी ने तो मेरी करिअर की दिशा और दशा बदलकर रख दी। हॉर्ड हीटिंग जर्नलिज्म श्री निधीश त्यागी जी ने दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के तत्कालीन संपादक जी से सीखने को मिला। तत्कालीन पंजाब एडिटर श्री नवनीत गुर्जर जी ने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देकर मुझे निरंतर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। जबकि किसी खबर या हेडिंग को लेकर मैं कन्फयूज हुआ तो उन्हें सधिकार पीक ऑवर में डिस्टर्ब किया और नवनीत सर ने तत्काल मुझे समाधान सुझाया। पंजाब चुनाव के दौरान कमलेश किशोर सिंह सर से यही सीखा कि स्पेशल स्टोरीज को इनोवेशन के जरिए परफेक्शन के हाई लेवल तक कैसे पहुंचाते हैं। आज शिक्षक दिवस पर मैं आपको बतौर अपने गुरु को शत-शत नमन करता हूं।

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...