· पंजाब में, 5 साल से कम उम्र के प्रत्येक 1000 बच्चोँ में से शहरी और ग्रामीण इलाकोँ में क्रमशः 24 और 39 बच्चोँ की मौत हो जाती है।
· राज्य में 5 साल से कम उम्र के बच्चोँ की मृत्यु दर के मामले में उनकी माताओँ की बचपन और किशोरावस्था में खराब सेहत भी जिम्मेदार होता है।
दुनिया भर में तकरीबन 56 लाख बच्चे 5 साल की उम्र से पहले मृत्यु के शिकार हो गए हैं। भारत में यह संख्या 9 लाख है, जिसके साथ दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र की मृत्यु दर में भारत की भागीदारी 16% है।
पंजाब में प्रत्येक 1000 बच्चोँ में से 33 की मौत 5 साल की उम्र से पहले हो जाती है। शहरी इलाकोँ में यह अनुपात जहाँ 1000 पर 24 का है वहीँ ग्रामीण इलाकोँ में यह अनुपात बढकर 1000 पर 39 मौतोँ का हो जाता है।
कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल, पटियाला के डॉ नीरज अरोड़ा, सलाहकार निनाटोलॉजिस्ट और बाल चिकित्सा विशेषज्ञ कहते हैं, “भारत में 0 से 59 माह के बच्चोँ की मृत्यु कई कारणोँ से होती है, इनमेँ जन्म के समय कम वजन, प्रेग्नेंसी और जन्म के समय की जटिलताएँऔर संक्रमण आदि शामिल हैं। जिन बीमारियोँ की वजह से बच्चे मरते हैं उनमेँ मुख्य रूप से डायरिया, मलेरिया, न्युमोनिया और श्वसन सम्बंधी संक्रमण शामिल है।हालांकि, पोषण की कमी और खराब ग्रोथ जैसे कारण ऐसे नजर नहीं आते हैं, लेकिन देशभर में लाखोँ बच्चे इन कारणोँ से भी अपनी जान गंवाते हैं। दुर्भाग्यवश भारत अब भी 5 साल से नीचे की उम्र में होने वाली मौतोँ क मामले में अब भी सबसे आगे है।“
बहुत सारे बच्चे जहाँ समय से पहले मृत्यु, बीमारियोँ और संक्रमण की वजह से मर जाते हैं, वही बहुत सारे मामलोँ में पोषण की कमी भी जीवन की सम्भावना को बेहद कम कर देती है। 0 से 5 साल की उम्र तक सम्पूर्ण विकासऔर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के लिए बच्चोँ को भरपूर पोषण की जरूरत होती है। जिन परिवारोँ के पास पोषक आहार उपलब्ध नहीं है अथवा इसे खरीदने की उनकी क्षमता नहीं है, उन परिवारोँ के बच्चोँ का विकास प्रभावित होता है, जिसके चलने उनका दिमाग अविकसित रह जाता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और उनकी सेहत खराब रहती है।
एक अन्य कारक ऐसा भी है जो बच्चे की सेहत को सीधे-सीधे प्रभावित करता है लेकिन अक्सर उसे अनदेखा कर दिया जाता है, यह कारक है माँ की सेहत, जो न सिर्फ गर्भावस्था में 9 महीने तक बच्चे को अपने पेट मे पालती है, बल्कि नवजात बच्चे के पोषण और आहार का प्राथमिक स्रोत भी होती है।
डॉ नीरज अरोड़ा कहते हैं, “यह समझना बेहद जरूरी है कि भारत की 70% किशोर लडकियाँ एनीमिया ग्रस्त हैं और खराब पोषण के साथ जी रही हैं। इनमेँ से लगभग आधी लडकियोँ का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य से कम है। इस सबका असर भविष्य में उनके गर्भ और बच्चे पर भी पडने वाला है। अकेले पंजाब में ही, 42% गर्भवती महिलाएँ एनीमिया से ग्रसित हैं। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि क्योँ प्रत्येक 1000 बच्चोँ में 29 की मौत 5 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है।“
अध्ययनोँ में पाया गया है कि पढी-लिखी माओँ के बच्चोँ के सर्वाइवल का चांस अधिक रहता है, और दूसरी तरफ 20 साल से कम उम्र में माँ बनने वाली महिलाओँ के बच्चोँ के 5 साल से कम उम्र में मरने का खतरा सबसे अधिक रहता है। इससे साबित होता है कि पढी-लिखी माँएँ अपना और अपने बच्चे का बेहतर खयाल रख सकती हैं, वहीँ ऐसी लडकियाँ जो किशोरावस्था के अंतिम पडाव में पहुंचते-पहुंचते माँ बन जाती हैं उनकी सेहत बच्चा पालने के लिए अनुकूल नहीं होती है, खासतौर से समाज के गरीब तबके की लडकियोँ के मामले में।
गर्भावस्था में माँ की सेहत कैसी रहती है, इससे भी बच्चे की सेहत और सर्वाइवल पर असर पडता है। एक गर्भवती महिला को गर्भ सम्बंधी सारी सावधानियाँ बरतने, देखभाल और डॉक्टरी सलाह की जरूरत होती है, जो कि राज्य के अधिकतर हिस्सोँ में नही हो पाता है।
चूंकि अधिकतर बच्चोँ की मौत उन बीमारियोँ से होती है जिनसे बचाव सम्भव है, ऐसे में ग्रामीण और गरीब इलाकोँ में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओँ का बेहतर होना अनिवार्य है। पूरे राज्य में कुपोषण की समस्या को गम्भीरता से लेने की जरूरत है। अच्छी स्वास्थ्य देखभाल के साथ गरीब और सुविधा विहीन लोगोँ हेतु पोषण के सस्ते विकल्प उपलब्ध होने चाहिए।
पंजाब में अंडर 5 मृत्यु दर को नीचे लाने के लिए कई स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है, जिसमेँ माँ और बच्चे को बेहतर देखभाल उपलब्ध कराना, पोषण और इलाज के लिए सस्ती व सुलभ सुविधाएँ मुहैया कराना बेहद जरूरी है।
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