सोमवार, अप्रैल 25, 2011

कोरियर के जरिए पहुंचती है नशे की खेप

पंजाब में हैरोइन की नाममात्र खपत, बार्डर से पहुंचती है दिल्ली-मुंबई

भारत-पाक सीमा गांव गज़ल से
शाम के छह बजने को हैं, चारों ओर धुंध पसर चुकी है। मैं डिफेंस ड्रेन के ऊपर खड़ा हूं। मेरे दाएं और बाएं ओर गांव के अधकच्चे मकान हैं। मेरे सामाने यहां से महज आधा किलोमीटर दूर सीमा पर लगी फैंसिंग नजर आ रही है। अभी कुछ लोग एक वृद्धा का दाह-संस्कार का लौटे हैं, जो बेहतर इलाज के इंतजार में दम तोड़ चुकी है। यह वही गांव है, यहां १६ जनवरी की मध्य रात्रि को सुरक्षा बलों ने पांच पैकेट हैरोइन के बरामद किए थे। फायरिंग में धुंध का फायदा उठाकर दो तस्कर वापस पाकिस्तान भागने में सफल रहे थे।
मैंने गांववासियों से यह जानने की कोशिश की कि आखिर तस्कर कैसे इतनी ऊंची बाढ़ को पार कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इसी गांव के कुछ लोग खेती करने उस पार आते-जाते रहते हैं। सीमा के उस पार पाकिस्तानी गांव लगते हैं। पाक के गांववासी भारतीयों को लालच देकर फंास लेते हैं, इसी के चलते वह कोरियर बनकर नशे की खेप को इस पार पहुंचाते हैं। अधेड़ दिखने वाले गुरदीप ने बताया कि बाहरी क्षेत्र के लोग मिलीभगत कर नशे की खेप भारत में पहुंचा देते है। लेकिन कई बार वह लोग सुरक्षा बलों को देखकर नशे की खेप को पास में लगते खेतों में फेंक कर फरार हो जाते है। ऐसी हरकत में कई बार बीएसएफ व पुलिस खेत मालिक को ही दोषी बनाकर पेश कर देती है, जोकि सरासर गलत है।
ऐसे होता है खेप पहुंचाने का खेल
गांव के ही एक तस्कर ने बताया कि हेरोइन और स्मैक आदि की खेप पहुंचाने के पहले भारतीय युवक (तस्कर) पाकिस्तानी सिम से फोन कर उधर बैठे तस्करों से संपर्क कर लेते हंै। उसी बातचीत के जरिए खेप पहुंचाने का समय तय होता है। फैंसिंग के पार खेतों की देखभाल करने गए भारतीय किसान को  पाकिस्तानी पैसे का लोभ दिखाकर उसे वहां का सिम दे देत हैं। दरअसल वह सिम उन्हें किसी और ने नहीं बल्कि पाकिस्तान में बैठे तस्करों ने उपलब्ध कराया होता है। खेती से लौटते समय वे लोग सिम इस तरह से छुपा लेते हैं, जो चैकिंग के दौरान पकड़ में नहीं आते। कई बार तो इनकी सैटिंग इतनी जबर्दस्त होती है कि उधर से इनके  खेत में ही निर्धारित स्थान पर सिम रखा हुआ मिलता है। सिम मोबाइल में डालते ही एक्टीवेट हो जाता है। और यही पाकिस्तानी सिम तस्करी को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इनके संपर्क का जरिया बनता है। इसके बाद तय दिन और स्थान पर माल पहुंचाने की बात हो जाती है। यह सब सेटिंग हो जाने के बाद वे लोग (भारतीय तस्कर) बिना नंबर और मडगार्ड वाली मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते हैं। जाते समय वे लोग इस बाइक को डिफेंस ड्रेन में छुपा देते हंै। खेप पहुंचाने के लिए तस्कर रात का वक्त ही मुनासिब समझते हैं। भारतीय तस्कर सर्च लाइट को धता बताते हुए, जिस वक्त नशे की खेप सीमा पार से इस ओर फेंकी जाती है, तब इधर मौजूद भारतीय तस्कर अंधेरे का फायदा उठाते हुए अपनी बाइक स्टार्ट करता है और माल को सबंधित थाना क्रास करवा देता है। इसके एवज में उसे कोरियर के तौर पर एक बार खेप पहुंचाने के पचास हजार से एक लाख रुपए तक अदा किए जाते हैं। तस्कर ने बताया कि पाकिस्तान से अपने आका से मिले निर्देश के मुताबिक संबंधित थाने को क्रास करते ही आगे एक और व्यक्ति कोरियर के रूप में उसका इंतजार कर रहा होता है। वह सारी खेप उसे थमाकर और उधर से संबंधित कोरियर वाला उसकी पेमैंट अदा कर देता है। अब यह दूसरे कोरियर की जिम्मेदारी होती है कि वह कार या किसी अन्य वाहन में ऐसी जगह नशे की खेप को छुपाए, जो चैकिंग में पकड़ में न आए। संबंधित दूसरा कोरियर को उक्त माल सुरक्षित दिल्ली या मुंबई तय स्थान पर पहुंचाना होता है। इस तरह से यह सारी नशे की खेप पंजाब से निकलते हुए दिल्ली और मुंबई जा पहुंचती है।
फैक्ट : ७० फीसदी नशे का शिकार
जहां तक तरनतारन जिले में नशाखोरी का सवाल है, तो देखने में यह आया है कि यहां पर अधिकतर लोग स्मैक, देसी शराब, कैप्सूल, इंजैक्शन जैसे सस्ते नशे
के आदि है। इनमें से बहुत कम लोग हैं, जो हैरोइन जैसा महंगा नशा करते हंै।

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