सोमवार, अप्रैल 25, 2011

इन्हें चाहिए जिंदगी की संजीवनी


चंदन स्वप्निल
किस्सा : व्यापारी जो रिक्शा चलाने लगा
जालंधर के एक व्यापारी ने बताया उनका कारोबार कोलकाता के बड़े बाजार तक फैला हुआ है। उनका छोटा भाई था। कुछ समय के लिए वह नई दिल्ली पढ़ाई करने गया था। वहां पता नहीं हॉस्टल में कैसी संगत उसे मिली कि वह स्मैक जैसे खतरनाक नशे का आदि हो गया। जब हमें पता चला तो वह घर में ही छुप-छुपकर पीने लगा। हमने उसे नशामुक्ति केंद्र में भर्ती कराया, जब वो थोड़ा ठीक होकर आ गया तो उसकी शादी कर दी। शादी के कुछ दिन सही गुजरे, लेकिन फिर उसने वही क्रम अपना लिया। उसकी इस लत से तंग आकर उसकी पत्नी तलाक देकर चली गई।  वह अपने नशे की पूर्ति के लिए घर में ही चोरी करने लगा। जब हमने उसका ध्यान रखना शुरू किया, तो वह घर से ही भाग गया। दो साल पहले पता चला कि वह दिल्ली में रिक्शा चला रहा था, तब हम उसे वहां से पकडक़र लाए और नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया। लेकिन यहां पर भी वह ज्यादा दिन तक नहीं टिका और फिर से भाग खड़ा हुआ और अभी तक उसका कुछ पता नहीं चला है। उसकी वजह से शहर में हमारी बदनामी अलग से हुई।
 फोटो---अस्पताल


नशामुक्ति केंद्र जालंधर जिले का एकमात्र नशा छुड़ाओ केंद्र है। जल्द ही जिले का दूसरा सरकारी नशामुक्ति केंद्र गांव कैरों में खुलने जा रहा है। कुछ साल पहले तक पुलिस ने युवकों में बढ़ती नशे की लत को देखते हुए जिले में पांच प्राइवेट नशामुक्ति केंद्र खोले थे, लेकिन वे केंद्र लोगों के लिए लूट का केंद्र बन गए थे। जिसके चलते एक-एक कर वे बंद होते चले गए। हुआ यंू कि जिले में तत्कालीन एसएसपी नरेंद्र भार्गव ने पांच प्राइवेट नशामुक्ति केंद्र खोले थे। ये केंद्र किसी का भी नशा छुड़ाने में विफल रहे थे, बल्कि इन केंद्रों ने लोगों से मरीजों को ठीक करने के लिए मनमाने पैसे वसूलने शुरू कर दिए थे। इससे लोगों का इनसे मोहभंग हो गया, नतीजतन ये बंद हो गए।
तरनतारन नशामुक्ति केंद्र में इस वक्त कुल सात मरीज भर्ती हैं। मैं जब यहां पहुंचा तो स्टाफ नर्स ने मुझसे पूछा कि क्या नया मरीज है? क्या स्मैक पीते हो? मेरे यह बताने पर कि मैं दैनिक भास्कर से हूं और यहां पर नशामुक्ति केंद्र का जायजा लेने आया हूं। इतना सुनते ही वो खिलखिला कर हंसते हुए बोलीं, माफ करना, दरअसल यहां पर केवल नशा पीडि़त ही आते हैं। नर्स परमिंद्र ने बताया कि इस केंद्र में अधिकतर मरीज भिखीविंड, झब्बाल, पट्टी और खेमकरण से आते हैं। यहां पर कुल १० बेड हैं। किसी भी मरीज को दस दिन के लिए भर्ती किया जाता है, जिसके एवज में दो हजार रुपये फीस ली जाती है। ट्रीटमेंट के दौरान मरीज को दवा के साथ काउंसिलिंग भी की जाती है। दस दिन के बाद मरीज का फालोअप  किया जाता है। यहां पर अपना इलाज करा रहे नवे वरियां गांव के गुरदेव, भगूपुर गांव के जरनैल सिंह, हरिंदरपाल सिंह, बोहडू गांव के चरणजीत सिंह, सरहाली के बलविंदर सिंह ने बताया कि उन्हें कुछ बेहतर महसूस हो रहा है। इसके अलावा वे धीरे-धीरे नशे की गिरफ्त बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं।
इस तरह बनाते हैं शिकार
बार्डर क्षेत्र में अधिकतर युवा स्मैक, कैप्सूल, इंजैक्शन जैसे नशे के आदि हो चुके हैं। नशे का धंधा करने वाले पहले इन बेरोजगार युवकों को अपनी महफिल में शामिल कर फ्री में पुडिय़ा सप्लाई करते हैं। जब उन्हें लगने लगता है कि अब ये लोग इसके आदि हो चुके होते हैं, तो वे उस युवक से सुविधानुसार सौ से दौ सौ रुपये प्रति पुडिय़ा वसूलना शुरू कर देते हैं। देखने को यह मिला कि इन गांवों में एक नशेड़ी कम से दिन में तीन बार तो पुडिय़ा या इंजैक्शन लेता है। पुलिस और एनजीओज का सर्वे मानें तो करीब ७० फीसदी परिवार नशे की चपेट में हैं। इनमें से अधिकतर ने एकदूसरे की संगत में रहकर नशा करना सीखा। कैप्सूल का नशा मुख्य रूप से वे लोग करते हैं, जब उनके लिए स्मैक जैसे महंगे नशे को खरीद पाना संभव नहीं हो पाता है।
नशा पीडि़तों की दास्तां
झब्बाल के सोनू ने बताया कि उसने स्मैक, कैप्सूल, बूट पॉलिश, आयोडैक्स से लेकर हर तरह का नशा किया। उसके नशे की लत के कारण उसकी पारिवारिक स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती चली गई। आठ साल पहले उसकी शादी हुई थी, जिससे उसके दो बेटियां भी हैं। उसकी नशे की लत इतनी बढ़ गई कि वह घर के बर्तन तक बेचकर आने लगा। हारकर उसकी पत्नी और मां उसे तरनतारन के नशामुक्ति केंद्र लेकर आई। वहां पर लगभग एक साल लगातार इलाज करवाया। बीच-बीच में वह फिर से अपने दोस्तों की संगत में नशा शुरू कर देता। हारकर घरवालों ने उसे बांधकर रखना शुरू कर दिया और साथ में डाक्टर के कहे अनुसार रोजाना दवाई देते रहे। इस तरह अब उसने दो साल से नशे से तौबा कर रखी है। अब वह खेतीबाड़ी के जरिए अपनी दोनों बेटियों का भविष्य संवारना चाहता है। वह कहता है कि अगर आपको कोई फ्री में भी स्मैक की पुडिय़ा दे तो उसे न लें, क्योंकि पहले वो आपको फ्री में पिलाएंगे बाद में लत पड़ जाने पर उसके लिए मनमानी कीमत वसूलेंगे।
तौबा..तौबा...
बादल सैणी (परिवर्तित नाम) बुरी संगत में पडक़र मैं नशे का आदि हो गया था। पहले मैं घरवालों से छुपकर पीता था, लेकिन जब घरवालों को पता चल गया तो मैं खुलआम नशा करने लगा। इसके चलते मेरी आए दिन घरवालों से लड़ाई हो जाती थी। एक दिन मेरे घरवालों ने मुझे जबर्दस्ती नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करा दिया। उस वक्त तरनतारन जिले में प्राइवेट नशामुक्ति केंद्र हुआ करते थे, जोकि मरीज को ठीक करने के एवज में भारी कीमत वसूलते थे। मुझे एक दिन नशे की तलब जगी और मैं वहां से भाग निकला। काफी दिन मैं इधर-उधर भटकता रहा, एक दिन मेरे घरवालों ने मुझे ढूंढ निकाला और कमरे में ले जाकर विस्तर के साथ संगल लगाकर बांध दिया। फिर मुझे वे लोग सिविल अस्पताल के नशामुक्ति केंद्र ले गए, वहां पर काफी लंबा इलाज चला और अब मैंने पिछले १० महीने से नशे को हाथ भी नहीं लगाया है। अब मैं बीएड की तैयारी में जुट गया हूं। मेरी तमन्ना स्कूल टीचर बनकर आज की पीढ़ी को नशे के खिलाफ जागरूक करना है।
लोगों के पैसे लेकर भाग गया
भिखीविंड के इंद्रजीत (परिवर्तित नाम) की दास्तां बड़ी दर्दनाक है। इंद्रजीत की मां गुरशरण कौर की आंखें लगभग भर आती हैं, जब वो अपने एकमात्र बेटे को याद करती हैं। वह बताती हैं कि करीब चार साल पहले इंद्र ने दिल्ली की एक लडक़ी से लव मैरिज की थी। शादी के कुछ दिन तक बड़ा ठीकठाक चलता रहा, इंद्र अपने कम्प्यूटर सेंटर पर बैठा करता था। यहीं पर उसकी दोस्ती कुछ बुरी संगत वालों से हो गई। बकौल गुरशरण हमें यह पता ही नहीं चला कि कब उनका बेटा नशे की चपेट में आ गया। वो कई दफा बिन बताए घर से गायब रहने लगा। एक दिन वह कई चला गया। हमने सोचा कि फिर लौट आएगा, सात-आठ दिन बीतने के बाद एक व्यक्ति हमारे घर आया और कहने लगा कि इंद्रजीत ने उससे दो लाख रुपये उधार लिए थे, कह रहा था कि कि कुछ कप्यूटर पाट्र्स खरीदने है। इसके बाद गुरशरण ने कई जगह तलाशा लेकिन उसका कहीं कोई पता नहीं चला। दरअसल इंद्रजीत कई लोगों से इसी तरह से पैसे लेकर नशे में उड़ा चुका है, जिन लोगों ने उसे पैसे दिए थे, वे बार-बार मुझसे तकादा करने आते हैं। मुझे नहीं पता मेरा बेटा कहां और किस हालत में है। उसकी पत्नी भी अपने मायके वापस चली गई है।
कई बार छोड़ा नशे को
फोटो---
गांव धरमकोट सिंह के ३६ वर्षीय सतपाल सिंह ने बताया कि वह पिछले आठ दिन से तरनतारन के नशामुक्ति केंद्र में जाकर अपनी दवा ले रहा है। वह दिन में तीन बार इंजैक्शन लगाने का आदि है। ये इंजैक्शन पहले उसे दस रुपये में उपलब्ध था, जो अब ४० रुपये में मिलता है। गांव की मित्र मंडली की संगत में ही उसने स्मैक लेनी शुरू की थी, जब स्मैक खरीदने की उसकी हैसियत नहीं रही तो उसने इंजैक्शन लगाने शुरू कर लिए। उसकी दो बेटियां हैं, जो दूसरी और पांचवीं कक्षा में पढ़ती हैं। गत पांच साल में उसने नशे की लत में लाखों रुपये फूंक डाले। इसके चलते उसकी अक्सर घर में लड़ाई होती रहती है। इससे उसे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई और उसने किसी से नशामुक्ति केंद्र के बारे में सुन रखा था। वहां जाकर वह दवाई लेने लगा, इसका असर यह होने लगा कि वह दो-चार महीने के लिए नशे से तौबा कर लेता था, लेकिन स्थायी तौर पर कभी इसको सलाम नहीं कर पाया। पत्नी कंवलजिंद्र कौर कहती है कि वह अपने पति को काफी समझाती है कि आप कोई काम भी नहीं करते हो। बुढ़ापे में पिता ही खेतीबाड़ी करके घर चला रहे हैं। वह अपने पति को नशे की जद से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके चलते वह कई बार उस पर पाबंदी भी लगा देती है। उसे उम्मीद है कि इस ट्रीटमेंट से वह ठीक हो जाएगा। सतपाल कहता है कि इस अंचल में नशे की जड़ सभी मंत्री और नेता हैं। नेताओं ने अपना तस्करी का कारोबार बढ़ाने के लिए सभी ठेके बंद करा दिए। वे धड़ल्ले से अफीम का कारोबार बढ़ा रहे हैं। नए-नए में नशा छोडऩा आसान है, लेकिन जब अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं तो फिर इसे छोडऩा बढ़ा मुश्किल होता है।
पहले फ्री पिलाकर बनाते हैं शिकार
पंजाबी में एक कहावत है खेती खसमा सेती, खेती के ऊपर पति है और यह भी मेहनत मांगती है। और हमारे युवाओं ने अपने ख्वाब बड़े लंबे-चौड़े पाल लिए हैं, उसे पूरा करने के लिए मेहनत करने की हिम्मत उनमें नहीं बची है। यह कहना है बार्डर क्षेत्र में नशे के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में जुटी सरहदी लोक सेवा समिति के प्रदेश महामंत्री राजीव नेब का। राजीव बताते हैं कि बेरोजगार मेहनत कर नहीं सकते और नशा ही करना उन्हें आसान दिखता है। कुछ जमीदारों का जब कारोबार अच्छा चल निकला, तो गांव में अपनी शान दिखाने के लिए देसी से अंग्रेजी शराब पीनी शुरू कर दी और इतनी पीने लगे कि उसकी ज़द में समा गए। नशा बढऩे की जड़ शौक में एक दूसरे को पिलाने से शुरू होती है। नशे की टोली के भी अपने उसूल हैं, जो टोली आज नशा करने बैठती है, वह अगले दिन की बैठकी की जगह तय करके ही उठती है। राजीव बताते हैं कि पहले नशे की खेप अफगानिस्तान से पाकिस्तान समुद्री राह के जरिए भारत पहुंचती थी, लेकिन वहां पर सख्ती अधिक होने के चलते अब यह खेप पंजाब सीमा से पहुंचती है। सुरक्षा एजेंसियों और जनता में अविश्वास घर कर गया है। इस तस्करी के लिए दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराते हैं। हम यह भूल गए हैं कि हम इसके खिलाफ संघर्ष करना चाहते हैं या बदलना। ऐसे रोंके : केंद्र सरकार का विकास के लिए काफी धन आता है, जो बिना खर्चे वापस चला जाता है। दरअसल हमारे नेता खुद इसमें लिप्त हैं, तो कैसे यह काम रुक सकता है।
फैक्ट : शिकार
हैरोइन ३ फीसदी
स्मैक  २७ फीसदी
इंजैक्शन, कैप्सूल ६० फीसदी

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