रविवार, जनवरी 31, 2010

बेचारा मत कहना!


बारह साल की बच्ची के सिर से एक दिन अचानक मां-बाप का साया उठ गया। करीबी रिश्तेदार उसे सहारा देना तो दूर उसके घर पर कब्जा करने की कोशिश करने लगे। कोई और होता तो टूट ही जाता, लेकिन पर्ल जसरा किसी और मिट्टी की बनी थी। मामा की मदद से उसने न सिर्फ अपना घर बचाया बल्कि कच्ची उम्र में ही ठान लिया कि वह किसी भी दूसरे अनाथ बच्चों को बेसहारा, रोने के लिए नहीं छोड़ देगी। 17 साल की उम्र में ही उसने दो बच्चियों को अपनाया।

सात साल पूरे होते उसका कुनबा 120 तक पहुंच गया है। पर्ल के घर पर शाम चार से सात बजे तक पास की झुग्गी-झोपड़ियों से आने वाले बच्चे जुटने लगते हैं। वह इनके साथ थोड़ा ज्ञान और ढेर सारा प्यार बांटती है। चार महीनों से पर्ल के पास आ रहा लगन कहता है, ‘दीदी के पास आकर टाइम पता ही नहीं चलता। मैं तो बस इन्हीं के साथ रहना चाहता हूं।’ शायद लगन को ज्यादा इंतजार न करना पड़े क्योंकि पर्ल जल्द ही अपने घर को ही स्कूल बिल्डिंग में तब्दील करना चाहती है।

अनाथ बच्चों के लिए यह जज्बा उसमें रातों-रात नहीं आया। जब अचानक चार माह के अंतराल में उसके माता-पिता दोनों ही नहीं रहे तो 12 साल की पर्ल को लगा कि जिंदगी बेमतलब हो गई। पर जिंदगी तो चलती रहती है। पर्ल के घर में काम करने वाली कृष्णा की गोद ली हुई 4 साल की बच्ची ने पर्ल का जीवन बदल दिया। वह बच्ची चल-फिर नहीं सकती थी। पर्ल की दिन-रात की सेवा ने बच्ची को न सिर्फ उसके पैरों पर खड़ा किया, बल्कि उसे चलना-फिरना और पढ़ना भी सिखा दिया। अब वह स्कूल जाती है।

अब यही उसका मिशन बन गया जो उसे दूसरों से अलग करता है। हां! रविवार को फुर्सत के क्षणों में वह ग्राफिक डिजाइनिंग व पेंसिल स्केचिंग से अपनी कल्पना को आकार देती है। बाकी समय वह एक एनजीओ के लिए काम कर आजीविका कमाती है जिसका बड़ा हिस्सा स्कूल में लगता है।

उसके काम से प्रभावित होकर बहुत से लोग उसे डोनेशन देते हैं। प्रधानमंत्री के भाई सुरजीत सिंह कोहली ने इस बार क्रिसमस पर्ल के घर पर उसके बच्चों के साथ मनाया, लेकिन जब उन्होंने दान देने के लिए चेकबुक निकाली तो पर्ल ने विनम्रता से कहा, ‘बच्चों को चंद लम्हों की खुशी देने के लिए शुक्रिया। दान तो मैं बाद में भी आप से ले सकती हूं’।

क्या उसे डर या अकेलापन नहीं सताता? अमृतसर निवासी 24 वर्षीय पर्ल जसरा कहती हैं- ‘भावनात्मक तौर पर पुरुष से ज्यादा मजबूत महिला होती है। मैं तो प्रकृति से जो भी ग्रहण कर रही हूं, उसे उसी को समर्पित कर इंसान होने का फर्ज अदा कर रही हूं।’

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