रविवार, मार्च 28, 2010

कसूर की खता

कसूर की खता

राकेश बहल.
भारत-पाक सीमा. सतलुज नदी का पानी पाकिस्तान स्थित चमड़ा फैक्टरियों के अवशिष्ट के कारण प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषण के कारण पानी काला हो गया है। पानी में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटाशियम के अलावा सीसा, मैग्नीज, जस्ता, निकिल और लौह जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व जहरीले तत्व निर्धारित स्तर से काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं। नदी जल के कारण भूमिगत जल भी प्रदूषित हो गया है और पीने लायक नहीं रह गया है। प्रदूषित पानी से कई तरह की खतरनाक बीमारियांे की चपेट में लोग आ रहे हैं।

इलाके में रहने वाले किसानों की खेती को गहरा धक्का लग रहा है, मवेशियों की संख्या कम हो रही है। सतलुज में पाकिस्तान की ओर से आने वाले कसूर नाले का प्रदूषण देखने के लिए मैं उस स्थान तक गया जहां से नाला हमारी सीमा में प्रवेश करता है। नाले के कारण सीमा से सटे गांवों के लोगों भारी परेशानी में हैं।

नाले की गंदगी भूमिगत जल का क्या हाल कर रहा है उसका पता आसपास के गांवों में अपंग और बीमार हो गए लोगों को देखकर चल जाता है। राजोके गांव के तोता सिंह का दस साल के बेटा गगनदीप अपंग हो गया है। गांव टिंडीवाला के नंबरदार तेजा सिंह के अनुसार लोग चर्म रोग समेत कई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं और जानवर मर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह समस्या पुरानी है, लेकिन दो-तीन सालों से नाले में प्रदूषण बढ़ गया है।

गंदे पानी के मामले में भारत 121 वें स्थान पर

दुनिया के 123 देशों में जहां बड़ी संख्या में लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए बाध्य हैं, उन देशों में भारत का नंबर 121 वां है, जबकि हमारा पड़ोसी देश बंगलादेश साफ पानी उपलब्धता के मामले में हमसे 80 व श्रीलंका और पाकिस्तान हमसे 40 स्थान ऊपर हैं।

पाकिस्तान की ओर से आने वाला यह नाला भारतीय सीमा में सतलुज से आकर मिलता है।

मशहूर कसूर

फिरोजपुर से मात्र 13 किमी. की दूरी पर स्थित यह शहर विभाजन से पहले से ही चमड़े के काम के लिए मशहूर है। यहां पर करीब तीन सौ चमड़ा फैक्टरियां हैं।

भविष्य विकलांगदूषित पानी की मार सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ रही है। किसी का एक पैर काम नहीं करता तो कोई हाथों से नकारा हो गया है। सरकार कुछ नहीं कर रही। देश के भविष्य का निर्माण करने वालों की कौन सुध लेगा।

बीमारियों का गढ़

फिरोजपुर में पड़ते हुसैनीवाला बैराज इलाके में पानी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। इसी मिलावटी पानी को पी लोग बीमार हो रहे हैं। पानी को देखकर इसकी भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सतलुज नदी

यह नदी नौ स्थानों से भारत में प्रवेश करती है और नौ स्थानों से ही पाकिस्तान में जाती है।

कैसी बीमारियां

एस्कॉर्ट फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टर अमिताभ मोहन जयरथ ने बताया कि चमड़ा फैक्ट्रियों से निसृत होने वाले खतरनाक रसायन से हुआ जल प्रदूषण डायबिटीज का कारक होता है। इन फैक्ट्रियों के कारण प्रदूषित हुए जल के कारण जन्म के समय कठिनाई पेश आ सकती है और पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाली बीमारी के होने का भी खतरा रहता है। लंबे समय तक ऐसे जल का सेवन कैंसर के खतरे को बढ़ाता है।

सोमवार, मार्च 22, 2010

एक चम्मच चायपत्ती पीती है 90 लीटर पानी

एक चम्मच चायपत्ती पीती है 90 लीटर पानी


जालंधर. हम पानी किस तरह बर्बाद करते हैं इसकी जानकारी ग्रीन पीस संस्था और डब्ल्यूएचओ की रिसर्च से मिलती है। एक बार नहाने पर 30 लीटर पानी और एक बार ब्रश करने पर एक लीटर पानी खर्च होता है।

एक चम्मच चायपत्ती हासिल करने के लिए 90 लीटर पानी लगता है और एक चम्मच कॉफी में 140 लीटर पानी खर्च होता है। एक किलो धान उत्पादन में 950 लीटर और एक किलो गेहूं 500 लीटर पानी लगता है। भारतीय व्यंजन पकाने की प्रक्रिया में 4500 लीटर पानी लग जाता है।

300 लीटर पानी खर्च कर एक लीटर बीयर तैयार होती है। नैशनल ज्योग्राफिक चैनल के डॉ. अर्नेस्ट अल्बर्ट के मुताबिक एक भारतीय साल में करीब 9,80, 000 लीटर पानी खर्च करता है। पसंदीदा परिधान जींस का हाल यह है कि कॉटन डेनिम जींस को बनाने में 6000 लीटर पानी खर्च होता है। एक किलो गोश्त पर 15 हजार लीटर और चाव से खाए जाने वाले पिज्जा तो हैरान ही करता है। एक किलो पिज्जा 12000 लीटर पानी पी जाता है। यही नहीं ब्रैड की एक स्लाइस बनाने में 40 लीटर पानी खर्च होता है।

कैसे कम हो बर्बादी

जिस रफ्तार में हमारी आबादी बढ़ रही है, उसी क्रम में भूजल स्तर घटता जा रहा है। हमें अब पानी के दोबारा इस्तेमाल पर गंभीरता से सोचना चाहिए। अब हमें अपने माडर्न लिविंग लाइफ स्टाइल में भी बदलाव लाना होगा, तभी हम इसका कुछ हल निकाल सकते हैं। हमें उन चीजों पर खास तरजीह देनी होगी, जिसमें कि पानी दोबारा रिचार्ज हो सके।

क्या है वॉटर फुटप्रिंट

किसी वस्तु के उत्पादन में खर्च होने वाले जल की मात्रा को उस वस्तु का वॉटर फुटप्रिंट कहा जाता है। इसी तरह एक व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल में लाई गई चीजों और सेवाओं के उत्पादन में खर्च होने वाले जल को उस व्यक्ति का वॉटर फुटप्रिंट कहते हंै।

मंगलवार, मार्च 16, 2010

शाम ढलते ही जुदा हो जाते हैं 200 गांवों के लोग

शाम ढलते ही जुदा हो जाते हैं 200 गांवों के लोग

चंदन स्वप्निल
गांव मुठियांवाली (तरनतारन). हम तरनतारन के गांव मुठियांवाली पहुंचे। गांव से फाजिल्का 10 किलोमीटर, हरिके 35 किलोमीटर, खेमकरण 25 किमी और फिरोजपुर 22 किमी दूर है। पिछले 50 साल से लोग दरिया पर पुल बनाने की मांग कर रहे हैं।


इस दरिया के आर-पार करीब 200 गांव हैं और इन्हें आपस में जोड़ने के लिए बेड़ा (छोटी नौका) ही सहारा है। बेड़ा सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक चलता है। चार बजे बेड़ा अंतिम फेरी लगाता है, उसके बाद इन गांवों के बीच संपर्क टूट जाता है। दरिया में बहाव अधिक होने पर बेड़ा बंद कर दिया जाता है।


गांव के लोग कई बार इलाका के सांसद, विधायकों और मंत्रियों से पुल बनाने के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनकी मांग नहीं सुनी गई है। इस गांव से बाजार भी काफी दूर है। 12वीं पास हरप्रीत रोज बेड़े पर अपना बाइक रखकर उस पार खेती करने जाता है।


ग्रामीणों के मुताबिक दूसरी ओर दरिया पार फिरोजपुर जिले के धीराघर, हारफके, मल्ला वालां और बगे वाला सहित 100 से अधिक गांव हैं, जबकि इतने ही गांव दरिया के इस पार भी हैं। इन 200 गांवों की हजारों एकड़ जमीन दरिया के आरपार पड़ती है। यहां पर पुल नहीं होने से ट्रैक्टर, ट्राली, कार, मोटरसाइकिल आदि बेड़े में ही लादकर लेकर जाते हैं।

बाबा ने दिया बेड़ा ठेका वसूलती है सरकार


बेड़ा डूबने की घटना के बाद कार सेवा के बाबा सुखदेव सिंह ने दो नए बेड़े दिए। इस बेड़े का ठेका राज्य सरकार वसूलती है। बाबा ने बेड़ा चलाने के लिए दो नाविक भी रखे हंै। उनका वेतन वह किराए में से देते हैं। उस पार जाने के लिए बेड़े के इंतजार में बैठे हरदेव सिंह, मुखतार सिंह, परमजीत सिंह, धरमिंदर सिंह ने बताया कि उनके लिए इस बेड़े में बैठना मजबूरी है। उन्हें अपने खेतों की देखभाल के लिए हर दिन यह दरिया पार करना पड़ता है।

तब डोली भी लाता है बेड़ा


यह बेड़ा केवल गांवों को जोड़ने वाला ही नहीं बल्कि दूल्हा-दुल्हन का मेल भी करवाता है। नाविक बख्शीश कहते हैं कि जिस दिन बारात जानी होती है, उस दिन बेड़े को फूलों से सजाया जाता है।


लोग शादी के वक्त इसकी पहले से ही बुकिंग करवा जाते हैं, फिर पूरी बारात इसी पर सवार होकर उस पार के गांवों में जाती है। फिर जब दूल्हा अपनी दुल्हन को वापस लेकर आता है, तो डोली भी इसी बेड़े से इस पार गांव में पहुंचती है।


बेड़े का किराया


प्रति सवारी पांच रुपए, मोटरसाइकिल 10 रुपए, कार और ट्रैक्टर 50 रुपए.


डिफेंस इलाका होना ही बाधा : विधायक ननू


फिरोजपुर शहरी हलके से विधायक सुखपाल सिंह ननू कहते हैं कि उन्होंने इस दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन डिफैंस क्षेत्र पास ही होने के कारण यहां पर पुल बनाने की सहमति नहीं मिल पाई। यहां पर पुल तभी बन पाएगा, जब रक्षा मंत्रालय चाहेगा।


आर्मी चाहे तो अपनी तरफ से एक अस्थायी पुल का निर्माण कर सकती है। उन्होंने यहां से 15 किलोमीटर दूर वंडाला में दरिया पर पुल बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है, जिसकी निर्माण लागत 74 करोड़ आंकी गई है। यह पुल बन जाने से लोगों को काफी सहूलियत होगी।


हो चुका है हादसा


गांव बरनाला के पूर्व सरपंच सुरजीत सिंह ने बताया कि करीब चार साल पहले क्षमता से अधिक सवारी होने से बेड़ा मझधार में डूब गया था। आधा दर्जन से अधिक लोग जान से हाथ धो बैठे।


उस वक्त मौके पर पहुंचे नेताओं ने वाहवाही लूटने के लिए उनके परिवारों को मुआवजा देने के साथ-साथ वहां पर पुल बनाने की घोषणा भी की थी। लेकिन वक्त बीतते ही नेता अपने वादे को भूल गए। पुल बनना तो दूर की बात रही, मृतकों के परिजनों को मुआवजा भी नहीं मिला।

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...