रविवार, जनवरी 31, 2010

बंजर होती जमीन को फिर बनाया


Swapnil जिस 30 एकड़ जमीन को प्रीतपाल के पिता बलदेव सिंह पिछले पचीस सालों से जोत रहे थे, उसने पिछली सदी का अंत आते-आते अन्न उगलना लगभग बंद कर दिया था। अमृतसर के खू हलवाइयां गांव में 1976 में जहां 10-15 फीट पर पानी मिल जाता था वहीं 2004 में 40 गहरे बोरिंग से भी बमुश्किल जरूरत भर पानी मिल रहा था।


उस साल एक एकड़ जमीन से मात्र दो क्ंिवटल धान मिला। उसने अमृतसर स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) के कृषि विज्ञान केंद्र और फार्म सलाहकार सेवा केंद्र की मदद ली। भूमिगत पानी और मिट्टी के टेस्ट कराने पर पाया गया कि पानी ठीक था लेकिन भूमि क्षारीय।


Field पीयूए वैज्ञानिकों की सलाह पर उसने अपने खेत में प्रति एकड़ पांच टन जिप्सम दो किस्तों में डाला। भरपूर पानी लगाया ताकि जिप्सम मिट्टी के निचले स्तर तक पहुंच सके। इसके बाद देसी रुड़ी खाद और हरी खाद डाली। यह एक साथ मिलकर एसिड का निर्माण करती हैं और क्षारीय जमीन की उर्वरा शक्ति को वापस लाती है।


दो साल तक यह प्रक्रिया दोहराने से धान उत्पादन में थोड़ा इजाफा हुआ। इसके बाद गेहूं की बिजाई की। चार साल बाद उसके प्रति एकड़ खेत में बारह क्विंटल धान पैदा होने लगा। अभी प्रीतपाल ने वरसीम (पशुओं का चारा), तौरी, सरसों और गेहूं की बिजाई की है। वह और मेहनत करके अपने खेतों में सब्जियां और विविध तरह की फसलें बोकर पैदावार बढ़ाना चाहता है।


यहीं नहीं अभी उसे वरसीम और सरसों की फसल के दौरान मधुमक्खी पालन से करीब ढाई क्ंिवटल शहद मिल जाता है। बेहतर मिट्टी व पानी संरक्षण, पैसे और मानव श्रम का बेहतर इस्तेमाल और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाकर क्षार जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए प्रीतपाल को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों सम्मानित किया जा चुका है।


—प्रीतपाल सिंह : 098157-61741


चंदन स्वप्निल (डिप्टी न्यूज एडिटर, जालंधर) राजासांसी (अमृतसर) से

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