सोमवार, अप्रैल 25, 2011

रोजगार के नहीं है साधन


कोई तकनीकी योजना नहीं होने से यहां पर रोजगार का साधन ही नहीं पनप सका है। मजदूरी है इनकी रोजी-रोटी की आस।
गांवों में नहीं पहुंची बीपीएल स्कीम : सरपंचों ने बताया कि उनके गांवों को बीपीएल के लिए लाभपात्र में शामिल ही नहीं किया गया।
१९७५ में मैंने बीए पास की थी। दरअसल देखा जाए तो सीमा पर बहुत ज्यादा दिक्कतें नहीं हैं। हमने अपनी ख्वाहिशों का दायरा बढ़ा लिया है। अब घरवालों को मोबाइल, वाशिंग मशीन, बाइक सबकुछ चाहिए। लेकिन इन सबके लिए यहां पर पैसा जुटाना काफी मुश्किल है। हमारे लिए यहां पर सिवाय खेतीबाड़ी के आय का और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। युद्ध की आशंका के बादल सदा मंडराते रहते हैं, यही वजह है कि इधर सडक़ें भी कच्ची हैं।
सरपंच निशान सिंह, गांव चौंतरा, गुरदासपुर

इस गांव में सरकार को चाहिए कि वह पक्के मकान बनाकर दे। छप्पड़ भी विवाद की जड़ हैं, उसे निपटाया जाए। कारगिल युद्ध के दौरान यह गांव उजड़ गए थे, जो फिर दोबारा बसाए गए हैं। अभी तक गांव में ५० शौचालय बनाए गए हैं। वल्र्ड बैंक का प्रोजेक्ट मिला है, गांव में पानी की टंकी लगवाने के लिए। लेकिन गांव की पंचायत के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपनी हिस्सेदारी इसमें दे सके। गांव से केवल १३ हजार रुपए जमा हुए हैं और १२ हजार जुट नहीं पा रहे हैं, ऐसे में यह प्रोजेक्ट भी इस गांव के हाथ से फिसल जाएगा।
सरपंच लखबीर कौर, थेह कलां
गृहिणी तरविंदर कौर कहती है कि महंगाई ने उनकी कमर तोडक़र रख दी है। सस्ता राशन कहीं भी नहीं मिलता है। ऐसे में वे दाल का स्वाद भूल ही गए हैं। गांव डलीरी में सबकी रसोई मजदूरी पर ही चलती है।
बारिश में तबाह होती है फसल
गट्टी राजोके और इसके साथ लगते सभी गांव दरिया की जमीन पर बसे हैं। अधिकतर लोगों ने गिरदवारी करवा रखी है। बारिश के दिनों में दरिया उफान पर होता है और इसके साथ लगती सारी फसल तबाह हो जाती है। इन गांवों में लोगों को नित्य क्रिया भी खेतों में जाकर निपटानी पड़ती है, यहां पर कोई भी शौचालय सरकार ने नहीं बनवाया है।



गलती सर्वशिक्षा अभियान की, भुगतते बच्चे :


गांव टेंडीवाला के प्राइमरी स्कूल में टीचर बच्चों को पढ़ाता है कि जन गन मन..हमारा राष्ट्रगान है, लेकिन इसे राष्ट्रगीत भी कहा जाता है। जब टीचर को बताया कि वह बच्चों को गलत जानकारी दे रहे हैं, तो वे सर्वशिक्षा अभियान की ओर से प्रकाशित किताब का हवाला देते हुए दिखाते हैं कि इसमें जो लिखा गया है, हम वही पढ़ा रहे हैं। अब इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर शिक्षा का कैसा स्तर है और जो बच्चे यहां से पढ़ लिखकर निकलेंगे, उनका ज्ञान भी कैसा होगा।

एक तस्वीर यह भी : खुशहाल जमींदार
यहां का किसान काफी खुशहाल दिखता है। हरित क्रांति का भरपूर फायदा मिला है। जमींदार मोटरसाइकिल पर सवार होकर आता है। इस क्षेत्र में दो तरह के किसान हैं, पहला सुस्त दूसरा चुस्त। सुस्त किसान गेहूं जैसी फसल लगाकर अराम फरमाता है। इसमें कोई तीन से चार बार पानी लगाना पड़ता है। दूसरा किसान अपने खेत में तीन प्यालियां बनाकर तीन तरह की सब्जियां उगाता है।
 जमींदार तरसेम सिंह मोटरसाइकिल पर सवार होकर आता है। अपने साथ चाय बनाने के लिए लाया दूध नीम के पेड़ के नीचे रखता है। दोपहर की रोटी वह पेड़ की एक डाल के साथ बांधकर टांग देता है। बिजली की तार पर कुंडी डालकर मोटर को चालू करता है। हुसैनीवाला बार्डर के गांवों पर जिधर नजर पड़ती थी, उधर लहलहाती फसल नजर आती थी।
इस क्षेत्र में दो तरह के किसान हैं, पहला सुस्त दूसरा चुस्त। सुस्त किसान गेहूं जैसी फसल लगाकर अराम फरमाता है। इसमें कोई तीन से चार बार पानी लगाना पड़ता है। दूसरा किसान अपने खेत में तीन प्यालियां बनाकर तीन तरह की सब्जियां उगाता है। इसके लिए तरसेम जैसे किसानों को खूब मेहनत करनी पड़ती है। वह सुबह ही आकर जहां खेत में जुट जाता है, फिर शाम ढलते ही जैसे ही बीएसएफ की सीटी बजती है, अपना काम खत्म कर घर के लिए रुखसत हो जाता है। महीने भर में उसकी फसल तैयार हो जाएगी और उसका अपनी लागत से तिगुना फायदा मिल जाएगा। अभी उसने बैंगनी, खीरा बीज रखा है और कुछ दिनों बाद उसके यहां खीरा इतना पैदा हो जाएगा कि उसे रोज २५ मजदूर लगाकर इसे तोडक़र मंडी में बेचने जाना पड़ेगा।

उस पार खेती, बर्बाद कर जाते हैं पाकिस्तानी सूअर : कई किसानों की खेती फेंसिंग के उस पार है। जब बीएसएफ गेट खोलती है, तो वे उस पार जाते हैं। उनकी फसल को कई बार उस पार सूअर नष्ट कर जाते हैं।

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