शुक्रवार, नवंबर 29, 2013

लोधियाना किला, ऐसे बना लुधियाना



15वीं सदी में शहर के सतलुज के किनारे एक रणनीति के तहत दिल्ली के शासक सिकंदर लोधी ने किले का निर्माण कराया। तब इस क्षेत्र में डकैतों को काफी आतंक था। यहां के लोगों ने उस समय दिल्ली के शासक लोधी से मदद मांगी थी। उसने अपने दो सेनापतियों के साथ सिपाहियों को भेजा। उन्हीं लोगों ने इस किले का निर्माण कराया थ।
यह 5.6 एकड़ में फैला हुआ था। मगर अब इसके अधिकांश भाग पर लोगों को कब्जा है। इसे सतलुज नदी के किनारे बनाया गया था। मगर बाद में सतलुज ने अपना रास्ता बदल लिया। उसके बाद अवैध ढंग से कब्जा करने वालों की किस्मत खुल गई। उन्होंने इसके बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई कब्जा करने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। सुल्तान लोधी ने किले में रहने के लिए अपने दो जनरल, यूसुफ खान और निहंग खान प्रतिनियुक्त किए थे। किले तक पहुंचने के लिए ग्रैंड ट्रंक रोड और किले के सामरिक महत्व के रूप में विकसित पथ भी इसके साथ जुड़ा।
किले लोधी के लिए और बाद में अन्य मुस्लिम शासकों के बाद उसे मजबूत स्थिति प्रदान की है. इसके महत्व को स्वीकार करते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने। उन्होंने सतलुज नदी की दूसरी तरफ एक बहुत मजबूत गढ़ बनाया. 19 वीं सदी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह ने दिल्ली में कमजोर मुस्लिम शासन का फायदा उठाया और किले की बहुत प्रतिरोध के बिना नियंत्रण स्थापित कर लिया। अपने शासन के पतन के साथ किला चुपचाप ब्रिटिश सेना के हाथों में पारित कर दिया।
किला न केवल ब्रिटिश शासन के दौरान, यहां तक कि आजादी के बाद जब भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट को यहां तैनात किया गया था। उन्होंने कुछ दशकों तक इसे अच्छी तरह सेे संभाले रखा. लेकिन इसके प्रस्थान के बाद खाली किला देखरेख के अभाव में गिरने लगा। रखरखाव और मरम्मत के अभाव की वजह से जगह-जगह से ढहने लगा है। नतीजतन, कई स्थानों पर किले की संरचना पूरी तरह से गायब हो गई है। वर्तमान में यहां केवल बाहरी दीवार के खंडहर, दो बड़े प्रवेश द्वार की एक सुरंग जो सतलुज के नीचे से फिल्लौर तक जाती है, कुछ जीर्ण बैरकों के अलावा कुछ नहीं है।
महाराजा रणजीत सिंह ने एक बड़ी और रहस्यमय सुरंग खोदी थी, जो सतलुज नदी के उस पार अपने आवासीय महल के साथ लोधी फोर्ट फिल्लौर शहर में जुड़ा हुआ है। अब सिर्फ सुरंग का प्रवेश द्वार दिखता है, जबकि पथ मलबे और अन्य अपशिष्ट पदार्थ से अवरुद्ध हो चुका है।
स्थानीय निवासियों ने इसकी बाहरी दीवारों पर खुदाई कर दी है। इसके चारों तरफ बने घरों से पता ही नहीं चलता कि बीच में कोई किला है। इसके मुख्य द्वार पर भी कोई ऐसा बोर्ड नहीं है, जो ऐतिहासिकता को प्रमाणित करे। यहां कोई बोर्ड हस्ताक्षर या किले में जगह के इतिहास के बारे में ऐसा कुछ नहीं लिखा है, जो यहां आने वालों को बताए कि इस स्थान की महत्ता क्या है?

गुरुवार, अक्टूबर 10, 2013

अब हेयर वॉश के लिए बीयर शैंपू


 पानी और चाय के बाद सबसे पॉपुलर बेवरेज बीयर को माना जाता है। लेकिन बीयर अब सिर्फ पीने की चीज नहीं रह गई है, बल्कि इसने न्यू डेस्टिनेशन हासिल कर ली है और वो है पार्क एवेन्यू बीयर शैंपू। इसकी टैग लाइन है चीयर्स टू मैन हेयर। बीयर को अब हेयर वॉश के तौर पर भी यूज किया जाने लगा है। पीने वाली बेवरेज बीयर स्पेशली हेयर वॉश
के लिए बीयर शैंपू से तैयार किया गया है।  भले ही यह मैन शैंपू के नाम से प्रमोट हो रहा हो लेकिन इसकी खरीदार लड़कियां भी हैं। दरअसल बियर में माल्ट प्रोटीन बालों को एक्स्ट्रा चमक और बाउंस देता है जिसकी वजह से लोग पहले ड्रिंक बीयर से ही हेयर वॉश किया करते थे, लेकिन अब स्पेशली हेयर वॉश के लिए बीयर देश के कुछ चुनिंदा शहरों में लॉन्च की गई हैं। विदेशी ब्रांड्स में इसकी कीमत लगभग 900 रुपए के आसपास रहती है लेकिन कंपनी ने 100 एमएल की बॉटल 60 रुपए में पेश किया है। बीयर से बने प्रोडक्ट में सिर्फ बीयर शैंपू ही नहीं बल्कि लिप बाम भी शामिल है। आमतौर पर मिलने वाली लिप बाम 20 रुपए से लेकर 200 रुपए तक की कीमत में होती हैं, लेकिन बीयर लिप बाम की कीमत 900 रुपए है। ग्रेप ऑइल और शिया बटर वाली बीयर फेस क्रीम भी अब मार्केट में आने लगी हैं।

बुधवार, सितंबर 04, 2013

स्कूल के शिक्षकों ने ज्ञान नहीं बढ़ाया, हां, पैसा जरूर कमाया


पढ़ाई के दिनों में मुझे ऐसा कोई टीचर याद नहीं आता, जिन्हें मैं किसी अच्छी वजह से याद रखूं। शायद यही वजह है कि हमारे असम गु्रप के साथी आज उन शिक्षकों को मिलने भी नहीं जाते। कई स्कूलों में भटक-भटक कर पढ़ाई की। असम में अकेला था, पिताजी अपने काम पर सुबह निकल जाते और देर रात लौटते। कोई पढ़ाने वाला था, नहीं और सरकारी स्कूल में पढ़ाई कैसी और कितनी होती है सब जानते हैं। इसलिए ट्यूशन लेनी पड़ी। ८वीं की परीक्षा से ऐन पहले मैंने अपने स्कूल के हिंदी टीचर की ट्यूशन के नोट्स अपने दोस्त राकेश शर्मा को दे दिए, टीचर गुस्सा हो गए और कह दिया कि तुम ट्यूशन पढऩे मत आना। बाद में समझ आया कि वे ट्यूशन बच्चों को उनकी कमजोरी दूर करने और ज्ञान बांटने के मकसद से नहीं बिजनेस के मकसद से पढ़ाते हैं, आजकल वे हमारे उसी हाई स्कूल के पिं्रसिपल है, पता नहीं अब वे बच्चों का कैसा भविष्य संवार रहे होंगे। मेरा मानना है कि अगर कोई बच्चा आपके पास ट्यूशन लेने आ रहा है, इसका मतलब सीधे तौर पर यही है कि उसे घर में या तो कोई पढ़ाने वाला नहीं है या फिर वह अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करना चाहता है। अफसोस हमारे समय में टीचर ट्यूशन को शुद्ध रूप से पैसा कमाने का जरिया समझते थे। बाद में मैंने एक मैथ्स टीचर से ट्यूशन रखी। ट्यूशन पढऩे ५ किलोमीटर पैदल जाता था। कभी-कभार हमें लोकल पैसेंजर कोयले के इंजन वाली का सहारा मिल जाता था। उस ट्रेन के गार्ड मेरे दोस्त राकेश शर्मा के पिताजी हुआ करते थे, वे हमें देखते ही ट्रेन में बिठा लेते थे। बिना टिकट हम सभी दोस्त उसी ट्रेन में अपना साइकिल और कुछ मेरे जैसे पैदल चढ़ जाते थे। फिर वो ट्रेन हमारे टीचर के घर से ठीक आधा किलोमीटर पहले रुकती थी। दरअसल यह ट्रेन वर्कशॉप के कर्मचारियों की सुविधा के लिए चलाई गई थी। खैर, परीक्षा के दिनों में मुझे एक सवाल दिक्कत दे रहा था और मुझे भरोसा था कि यह जरूर परीक्षा में आएगा। कल परीक्षा है और मैं अपने दोस्त गुरविंदर सिंह के साथ स्पेशली उसकी मोपेड पर सर के घर डांगतल गया। सर का मूड नहीं था, कहने लगे अरे बअुओ यह सवाल नहीं आएगा। हमें निराश होकर बिना समझे हीं लौटना पड़ा। अगले दिन वहीं सवाल परीक्षा में आया था, और उस वक्त मेरी क्या मन:स्थिति रही होगी समझ ही सकते हैं। खैर गुरविंदर ने किसी तरह आधा-अूधरा सवाल ही अटेंप्ट किया और मैं छोड़ चुका था। बहुत गुस्सा भी आया और बुरा भी लगा।
तरूण सर आपका आभारी, जिन्होंने इकनॉमिक्स का फलसफा समझाया
जब कॉलेज में गए थे, एक साल तो यूं ही इकनॉमिक्स बिना समझे ही निकल गया, लेकिन प्लस टू में मैंने बोंगाईगांव कॉलेज के लेक्चरार श्री तरूण बहादुर जी से इकनॉमिक्स की ट्यूशन ली। सर ने मेरी प्लस वन की रही इको की कमजोरी तो दूर की ही और प्लस टू की इको भी जबर्दस्त तरीके से समझाई कि इको में मुझे मजा आना लगा, हालांकि मैंने प्लस टू हिंदी हायर सेंकेंडरी स्कूल से ही की थी। लेकिन इकनॉमिक्स मैंने तरूण सर से ही समझा और नतीजा ये रहा कि जब रिजल्ट आया तो मेरे इकनॉमिक्स में ही सबसे ज्यादा नंबर थे। उस वक्त यह नहीं मालूम था कि कभी पत्रकार भी बनूंगा। खेैर, आज भी इको के इनफलेशन, मार्केट, बैंकिंग काफी काम आ रही है।
मेरे करिअर के गुरु
घर में दीदी नीलम शर्मा अंशु ने फ्रीलांस करना शुरू किया था। पत्रकार तो मैं फ्रीलांस था। जनसत्ता कोलकाता के समाचार संपादक श्री अमित प्रकाश जी, सबरंग के इंचार्ज श्री अरविंद चतुर्वेद जी की बदौलत पत्रकारिता में लिखने का क्रम शुरू हुआ। दीदी के साथ इनसे यदा-कदा छोटी मुलाकातों में जो समझ पाया कि पत्रकारिता समाज को बदलने का जबर्दस्त टूल है, बस इस पेशे की लत लग गई। जब कोलकाता में प्रभात खबर की लांचिंग होनी थी, असली ब्रेक मुझे श्री ओम प्रकाश अश्क जी ने तत्कालीन संपादक ने दिया। उन्होंने आंख मूंद कर इस नौजवान पर भरोसा जताया और मेरी प्रतिभा को तराशा। सही मायने में पत्रकारिता की एबीसीडी मैं अश्क भैय्या से ही सीख पाया। हम सभी प्यार से उन्हें भैय्या और बाबा बुलाते हैं। उन्होंने मेरे जैसे कई युवाओं को पत्रकारिता में मौका दिया। इसी बीच श्री हरिवंश जी के कोलकाता अल्प प्रवास के दौरान जो कुछ भी पत्रकारिता का मिशन उनसे सीख सका, उसकी अलख अनवरत जलाए रखी है। इस दौरान दादा(श्री दीपक रस्तोगी) जी प्रभात खबर से जुड़े। उन्होंने मुझे करियर ग्रोथ कैसे और किस तरह की जाती है समझाया। बस फिर क्या था निकल पड़ा एक और मंजिल की ओर। अमर उजाला जालंधर में संपादक श्री अकू श्रीवास्तव जी से प्रोफशनल व खोजपरक पत्रकारिता का फलसफा समझा। फिर दैनिक भास्कर से जुडऩा हुआ तो इसी ने तो मेरी करिअर की दिशा और दशा बदलकर रख दी। हॉर्ड हीटिंग जर्नलिज्म श्री निधीश त्यागी जी ने दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के तत्कालीन संपादक जी से सीखने को मिला। तत्कालीन पंजाब एडिटर श्री नवनीत गुर्जर जी ने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देकर मुझे निरंतर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। जबकि किसी खबर या हेडिंग को लेकर मैं कन्फयूज हुआ तो उन्हें सधिकार पीक ऑवर में डिस्टर्ब किया और नवनीत सर ने तत्काल मुझे समाधान सुझाया। पंजाब चुनाव के दौरान कमलेश किशोर सिंह सर से यही सीखा कि स्पेशल स्टोरीज को इनोवेशन के जरिए परफेक्शन के हाई लेवल तक कैसे पहुंचाते हैं। आज शिक्षक दिवस पर मैं आपको बतौर अपने गुरु को शत-शत नमन करता हूं।

बुधवार, अगस्त 14, 2013

रद्दी में मिला गांधी जी का खत, खरीदारों ने किए लाखों ऑफर


पटियाला में करियाना की दुकान करने वाला राम चंद गांधी बड़े भक्त हैं। रामचंद को महात्मा गांधी द्वारा हस्तलिखित एक पत्र रद्दी से मिला, जोकि गांधी जी ने साबरमती के लैटरहेड पर 3 दिसम्बर 1928 को पंडि़त जवाहर लाल नेहरू को लिखा था। पत्र अंग्रेजी में लिखा गया है जिसमें उन्होंने लंबे समय बाद पंडि़त नेहरू से मिलने की बात लिखी है।
करीब 35 साल पहले गांधी जी द्वारा हस्तलिखित पत्र उन्हें रद्दी अखबारों के बीच मिला था। उस समय वह अखबारों की रद्दी से लिफाफे बनाने का काम करते थे। जब उनकी नजर पत्र पर पड़ी तो उन्हें गांधी जी द्वारा हस्तलिखित पत्र देखकर बड़ा गर्व महसूस हुआ और उन्होंने पत्र को फ्रेम में लगाकर इसको दुकान में टांग रखा है।
रामचंद के अनुसार जिस किसी की नजर गांधी जी के इस पत्र पर पड़ती है तो वह जरूर आश्चर्यचकित होता है। इस पत्र को खरीदने के लिए उनके पास लाखों रुपए तक का ऑफर आ चुका है, लेकिन वह किसी कीमत पर भी पत्र को नहीं बेचेंगे। इस पत्र को चुराने के लिए भी  फोन काल भी आए लेकिन वह अपनी बात पर अडिग रहे।
रामचंद का कहना है कि लोग आज महात्मा गांधी जी का नाम केवल निजी फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि सियासी लोग उनके जन्मदिन पर अपनी फोटो छपवाने के लिए आगे आते हैं, लेकिन बड़े शर्म की बात है इसके बाद उन्हें याद तक नहीं किया जाता है।

गुरुवार, जून 06, 2013

एक रियासती गांव कलेरां


गांव कलेरां से
जिला नवांशहर का गांव कलेरां किसी वक्त एक रियासत हुआ करती थी। इसे महाराजा रणजीत सिंह के जगीरदार बाबा धर्म सिंह कलेरां ने बसाया था। इस रियासत के किले को किसानों ने धीरे-धीरे खेती की जमीन में तब्दील कर दिया। शेरशाह सूरी मार्ग से दो किलोमीटर की दूरी पर बसा यह रियासत गांव अब महज एक साधारण गांव है। गांव के अधिकतर लोग अपने समृद्ध विरसे से नावाकिफ हैं। लोगों का रहन-सहन काफी अच्छा है। चंद कच्चे मकान छोड़ दें, तो लगभग सभी की आलीशान कोठियां हैं। गांव कलेरां की कुल आबादी १४०० में से ८०० मतदाता हंै। यहां की समूची अर्थव्यवस्था खेतीबाड़ी पर निर्भर है।  पांच फीसदी सरकारी नौकरी कर रहे हैं। गिने-चुने लोग विदेशों में जाकर मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। साक्षरता की दर ८० फीसदी है, जिसमें १०वीं पास अधिक हैं और चंद डबल एमए व ग्रेजुएट हैं। युवाओं का रुझान कंप्यूटर कोर्सों की ओर ज्यादा है।
बुजुर्गों को चाहिए सामाजिक सुरक्षा और पेंशन
गांव की कुल आबादी में 20 फीसदी बुजुर्गों का भी योगदान है। रिटायर बिजनेसमैन गुरबख्श सिंह कहते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों को यही उम्मीद है कि आयकर छूट की सीमा बढ़ाई जाए। आजकल बच्चे गुस्से में मां-बाप को घर से निकाल देते हैं, इसलिए उनके लिए सामाजिक सुरक्षा एक अहम पहलू है, इसे और कड़ा किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पेंशन भी बढ़ाई जानी चाहिए। सुखबीर सिंह दस साल विदेश में मजदूरी करके यहां वापस आ गए। अब यहां पर वह खेती के साथ अपने पशुओं को संभालते हैं। उन्हें इस बजट में पशुओं के लिए सस्ता चारा चाहिए। करीब आठ महीने पहले जब वह पशुओं के लिए काढ़ा बनाते थे, उसमें केवल ८० रुपये का खर्च आता था, जो अब १९० रुपये में आता है। सरकार इस आसमां छूती महंगाई को हर हाल में कम करे। सुखबीर उम्मीद करते हैं कि सरकार घाटे का बजट पास नहीं करेगी। बिजली और रसोई गैस सस्ती होगी। गैस बुकिंग की अवधि २१ दिन से घटाई जानी चाहिए।
प्रणबदा, कैसे चलेगी रसोई
गृहिणी कुलदीप कौर छह महीने पहले ही यूके से लौटी हैं। गत वर्ष यूके जाने से पहले वह हर महीने दो हजार रुपए का राशन डालती थीं। अब उन्हें हर महीने पांच हजार किराने के लिए और एक हजार रुपये सब्जी के लिए खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा घर के अन्य सामान के लिए अलग से बजट रखना पड़ता है। इस बढ़ती महंगाई की रफ्तार में उन्हें कपड़े व अन्य सामान की शॉपिंग पर ब्रेक लगानी पड़ी है। उनके बच्चे भी कालेज जाते हैं, तो उन्हें भी पॉकेट मनी अब कम पडऩे लगी है। बस किराये के अलावा कई चीजों के दाम बढ़ गए। कुलदीप के बच्चों के खर्च बेशक जायज और मर्यादित है, लेकिन वह अब चाहकर भी उनकी पॉकेट मनी नहीं बढ़ा पा रही हैं। कुलदीप को बजट में सबसे पहली राहत के रूप में सस्ती दाल और चीनी चाहिए। कुलदीप का दर्द जुबान पर कुछ ऐसे आया,  'गरीबों को नीले कार्ड के जरिए सस्ता राशन मिल रहा है। अमीरों को महंगाई से कोई फर्क नहीं पड़ता। पिसता तो मध्य वर्ग ही है, जो मु_ी भर तनख्वाह में बिना किसी रियायत के घर चलाने के मजबूर है। Ó
राशन सस्ता होगा तभी आएंगे खरीदार
दुकानदार चमन लाल की टीस यही है कि ग्राहक दिल से खरीदारी नहीं कर पा रहा है। दाल और चीनी महंगी होने के चलते उनका मुनाफा बिलकुल ही कम हो गया है। बकौल चमन पांच सदस्यों के परिवार का राशन दो हजार रुपए में आता है, सरकार को इसे घटाकर एक हजार पर लाना चाहिए। चीनी अगर २० रुपए और दाल ४० रुपए प्रति किलो बिकेगी तो उनका भी मुनाफा बढ़ेगा। राशन सस्ता हो जाएगा तो ग्राहक भी खूब आएंगे।
सरपंच जसवीर सिंह कहते हैं कि वैसे उन्हें इस बजट में कोई उम्मीद नहीं है। सरकार हर गांवों में पशु अस्पताल खोलने को तरजीह दे। साथ ही पक्की सडक़ें और सीवरेज भी बनाया जाए। दवाएं सस्ती की जानी चाहिए। किसानों का कहना है कि उनके लिए खेती अब घाटे का सौदा हो चली है, क्योंकि अब इसमें उन्हें कोई बचत नहीं होती है। वे उम्मीद जता रहे हैं कि इस बजट में डीजल और खाद की कीमतें घटाई जाएं। इसके साथ ही उन्हें फसल की उचित कीमत मिलेगी।
दसवीं में सविता मल पंजाब में अव्वल रही थी, वो अब अमेरिका में डाक्टर है। उसके पिता बैंककर्मी सतविंदर कहते हैं कि महंगाई ने हर वर्ग की कमर तोडक़र रख दी है। इस बजट में नौकरी पेशा लोगों को कम से कम पांच लाख रुपये तक आयकर की छूट मिलनी चाहिए। क्योंकि इतने वेतन में आयकर चुकाने के बाद घर का सामान खरीदने और बच्चों की पढ़ाई की जरूरतें पूरी कर पाना संभव नहीं है। अगर सरकार आयकर छूट की सीमा बढ़ाती है, तो कम से एक आम आदमी अपनी रोजाना की जरूरतें आसानी से पूरा कर सकेगा। रेहड़ी लगाने वाले अनोखे लाल कहते हैं कि वह सारा दिन आसपास के गांवों में घूमकर सामान बेचते हैं। कोई साल भर पहले उन्हें रोजाना २०० रुपये की कमाई होती थी, जो अब महंगाई के चलते केवल सौ रुपये रह गई है। अब पूरे परिवार को पालने में रोजाना रसोई पर करीब ७० रुपये खर्च हो जाते हैं, ऐसे में कोई कैसे अच्छी गुजर-बसर की सोच सकता है। सरकार को सबसे पहले महंगाई पर लगाम लगानी चाहिए।
कोई गुड लक निकाले
हैरत की बात यह रही कि कलेरां के अधिकतर युवाओं को बजट के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिसमें कंपनी सैक्रेटरीशिप कर रहा हरदीप सिंह, कंप्यूटर कोर्स कर रही अमनदीप, बीए पास मनजीत जैसे कई युवाओं के नाम शामिल हैं। सेल्समैन परमिंदर बीए पास है, उसे मलाल है कि पढ़ाई करने के बावजूद अच्छी नौकरी नहीं मिली। इस बजट में उसे भी एक बेहतर नौकरी की आस है। डबल एमए सुखविंदर अभी तक बेरोजगार है। उसने बैंक का कोर्स भी कर रखा है, लेकिन नौकरी नहीं मिली। नौकरी नहीं मिलने से कई बेरोजगार युवा नशेड़ी बन रहे हैं।  सुखविंदर कहता है कि यह बजट उसका तभी होगा, अगर युवाओं के लिए कोई गुड लक निकाले और नौकरी के नए स्रोत पैदा किए जाएं।

रविवार, फ़रवरी 24, 2013

रेप ही होता था मेन डिमांड, आइटम सांग नही


टोटल रिकॉल : सिनेमा 
हीरो रणबीर कपूर का ड्रीम रोल है मोगेंबो। रणबीर कहते हैं कि विलेन की जिंदगी शानदार होती है। वो अमीर होता है, लड़कियों से घिरा होता है और बस अंत में उसे मरना होता है। विलेन की भूमिका निभाना मजेदार होता है और बकौल रणबीर वह एक बुरे आदमी का रोल जरूर करना चाहेंगे। रणबीर की इस बात में दम दिखता है।
बालीवुड में एक वो दौर था, जब विलेन ही पूरी मूवी का खास एक्ट्रेक्शन हुआ करता था। अमृतसर में एक मुलाकात के दौरान विलेन रंजीत ने रेप सीन का जिक्र छेड़ा था कि अब तो हर डायरेक्टर या प्रॉड्यूसर अपनी फिल्म कोहिट कराने के लिए किसी अन्य हिरोइन पर आइटम गीत का तडक़ा जरूर डालता है, कभी या काम हेलन या पद्मा खन्ना, बिंदू जैसी वैंप के जिम्मे हुआ करता था, जो अपनी मादक अदाओं के जलवे से कहर ढाया करती थीं। बेशक आजकल जो भी आइटम गीत आए वे जबरदस्त हिट हुए हैं। ७० दशक के बाद के सिनेमा की बात करें तो फिल्मों में आइटम सांग नहीं, बल्कि विलेन द्वारा रेप के सीन की जर्बदस्त डिमांड हुआ करती थी। अपने जमाने में रंजीत ने फिल्मों में नायिकाओं पर भी खूब कहर ढाया था।
रेप के मामले में प्रेम चोपड़ा का नाम सबसे पहले आता है। उनके नाम फिल्मों २५० रेप के सीन दर्ज हैं। वही दूसरे नंबर रंजीत १५० रेप और डैनी ११० रेप के साथ तीसरे नंबर पर आते हैं। जहां तक रेपिस्टों की टीम की बात हैं तो इसमें चौथे नंबर शक्ति कपूर ८०, अमजद खान ७०, बैड मैन गुलशन ग्रोवर २२, अजीत १२, अमरीश पुरी ९, जीवन ६ का क्रम है। इसमें सबसे मजेदार किस्सा शक्ति कपूर के साथ हुआ। हुआ यूं कि शक्ति कपूर ने लगातार छह फिल्मों मेंं एक ही हिरोइन अनीता राज के साथ रेप का सीन किया। कई बार ऐसा भी हुआ है कि हीरो की तुलना में विलेन अपनी अदाकारी के दम पर दर्शकों की ज्यादा तालियां बटोरने में सक्षम रहे हैं। जॉनी मेरा नाम में पद्मा खन्ना और प्रेमनाथ के उस सीन को कौन भूला होगा। इस फिल्म को हिट कराने में इस जोड़ी का जर्बदस्त हाथ रहा है। शायद यही वजह रही कि इसी दौरान रिलीज हुई राज कपूर की मेरा नाम जोकर इसके आगे बॉक्स आफिस पर पानी भी न मांग सकी।

रविवार, अक्टूबर 21, 2012

'King of Romance' Yash Chopra


September 27, 1932, Born in Lahore to a Punjabi family. Chopra moved to India after the Partition. Chopra's basic plan was to pursue a career in Engineering. His passion for film making led him to travel to Mumbai where he initially worked as an assistant director to I.S. Johar, and then for his director-producer brother B RChopra. The Chopra brothers made several more movies together during the late 50s and 60s.
 He began his career as an assistant director to his elder brother B R Chopra and directed his own first film ' 'Dhool Ka Phool'  in 1959. Chopra 's first commercial hit was a multi-starrer family drama Waqt.         In 1973, Chopra founded his own production company, Yash Raj Films, and launched it with "Daag: A Poem of Love" starr rajesh & sharmila.  
 '80s several films he directed and produced failed at box office. Chopra rose like phoenix with the grand hit movie Chandni thus beginning his journey of making romantic Hindi movies.  After that he directed  classic Lamhe  in 1991.
And this was the time Yash Chopra changed the face of ROMANCe in Bollywood.
Chopra who was one of the pillars in Bollywood, directed some of Indian cinema's most successful and iconic films "Deewar" which established megastar Amitabh Bachchan as the "angry youngman". The hit duo of Chopra and Bachchan worked together again in romantic drama "Kabhi Kabhie, Trishul, Silsila". Chopra is today known mostly for the romantic films like  'Silsila', Chandni, DDLJ, DTPH, Veer-Zaara, JTHJ. His association with SRK began with the 1993 romantic psyo thriller Darr, which turned out to be a superhit. Even though he lauched yash raj music under his banner.
         
          

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...