सोमवार, अप्रैल 25, 2011

चार माह का राशन जमा करना मजबूरी उनकी


गुरदासपुर उज्ज दरिया से

उज्ज दरिया के उस पार २० हजार की आबादी वाले करीब १५ गांव पड़ते हैं। यहां के लोगों की मांग थी कि दरिया पर एक पुल का निर्माण किया जाए, क्योंकि बारिश के दिनों में इस इलाके के सभी गांव करीब चार महीने के लिए हर तरह के संपर्क से कट जाते हैं। इसे देखते हुए अब यहां पर पुल निर्माण का काम शुरू हुआ है। इस इलाके में गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले लोगों की संख्या अधिक है। रोजगार की समस्या तो उनके सामने है। वहीं मूलभूत समस्या भी कम नहीं है। उज्ज दरिया के वासियों को सेहत समस्या से लेकर आम परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। यहां पर अधिकतर घरों में अब भी लकड़ी वाला चूल्हा ही जलता है। लोगों को यहांरसोई गैस सिलेंडर ६०० से ७०० रुपए ब्लैक में मिलता है।  पुल बनने के बाद अमृतसर से जम्मू जाने वालों के लिए दूरी कम हो जाएगी। यही नहीं अमरनाथ यात्रा के दौरान ट्रैफिक कंजेशन हो जाने पर उसे इस ओर से निकाला जा सकेगा।
ढिंडा गांव के सरपंच कुलदीप सिंह अपना दर्द कुछ इस तरह जाहिर करते हैं कि उज्ज दरिया पर पुल बनना तो शुरू हो चुका है, अब देखना यह है कि यह कब तक बनकर तैयार होता है। फिलहाल अस्थायी पुल से ही काम चलाना पड़ रहा है, लेकिन बारिश के दिनों में यह पुल भी हटा लिया जाता है। बारिश आएगी और रावी नदी अपना कहर फिर बरपाएगी। हर बार की तरह इस दफा भी उन्हें करीब चार महीने का राशन पहले ही भंडार करके रखना पड़ेगा। यहां जिंदगी की गुजर- बसर बेहद मुश्किल है। इन गांवों में कोई डाक्टर भी मौजूद नहीं है। जिले से संपंर्क टूटने पर इलाज के लिए भी कोई विकल्प नहीं रह जाता। इस समय दौरान वे किसी कामकाज  से भी नहीं जा सकते हैं।
वह कहते हैं कि बमियाल के उज्ज दरिया के इस पार १५ गांव पड़ते हैं। सरकारी मदद नाममात्र ही मिलती है। किसानों के पास रोजगार मिल जाए तो ठीक हैं, नहीं तो मजदूरी के लिए भी बमियाल के पार जाना पड़ता है। इधर गांववासी छोटे-मोटे काम जैसे लोहार, बढ़ईगिरी का काम करके गुजर बसर करते हैं। इस इलाके में एकमात्र कठुआ वाली ही लोकल बस आती है या फिर कोई ऑटोरिक्शा वाला भूल भटके इधर आ जाता है, तो उन्हें आने-जाने में आसानी हो जाती है। हां, यह पुल बन जाने का उन्हें बड़ा फायदा मिलेगा। कम से कम वे रोजगार के लिए बाहर जा सकेंगे साथ ही राशन जमा करने से निजात मिल जाएगी।
गांव धनवाल की श्रेष्ठा देवी ने बताया कि अगर कोई दरिया के तेज बहाव को किश्ती से पार करने की कोशिश करता है, तो उसे सांप के डंसने की आशंका बनी रहती है। उनके इलाके में कई मौतें हो चुकी हैं। कुछ महीने पहले ही एक महिला इस तेज बहाव में बह गई थी और उसकी लाश  पाकिस्तान पहुंच गई थी। उज्ज दरिया पर पिछले साल से करीब दस करोड़ रुपए की लागत से स्थायी पुल बनना शुरू हो चुका है। यह पुल इस साल में पूरा होने की उम्मीद है। इस पुल के बनने से सालों से रावी का कहर झेल रहे लोगों को काफी राहत मिलेगी।
ये हैं गांव
धनवाल, दोस्तपुर, सरोश, मलोहत्र, कोट भट्टियां, खोजकी चक्क, खोजकी चक्क छोटा, ढिंडा, सिंबल, सकोल, कोटली जवाहर, पलाह छोटा, पलाह बड़ा, कलोत्र आदि मुख्य गांव हैं।

रोजगार के नहीं है साधन


कोई तकनीकी योजना नहीं होने से यहां पर रोजगार का साधन ही नहीं पनप सका है। मजदूरी है इनकी रोजी-रोटी की आस।
गांवों में नहीं पहुंची बीपीएल स्कीम : सरपंचों ने बताया कि उनके गांवों को बीपीएल के लिए लाभपात्र में शामिल ही नहीं किया गया।
१९७५ में मैंने बीए पास की थी। दरअसल देखा जाए तो सीमा पर बहुत ज्यादा दिक्कतें नहीं हैं। हमने अपनी ख्वाहिशों का दायरा बढ़ा लिया है। अब घरवालों को मोबाइल, वाशिंग मशीन, बाइक सबकुछ चाहिए। लेकिन इन सबके लिए यहां पर पैसा जुटाना काफी मुश्किल है। हमारे लिए यहां पर सिवाय खेतीबाड़ी के आय का और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। युद्ध की आशंका के बादल सदा मंडराते रहते हैं, यही वजह है कि इधर सडक़ें भी कच्ची हैं।
सरपंच निशान सिंह, गांव चौंतरा, गुरदासपुर

इस गांव में सरकार को चाहिए कि वह पक्के मकान बनाकर दे। छप्पड़ भी विवाद की जड़ हैं, उसे निपटाया जाए। कारगिल युद्ध के दौरान यह गांव उजड़ गए थे, जो फिर दोबारा बसाए गए हैं। अभी तक गांव में ५० शौचालय बनाए गए हैं। वल्र्ड बैंक का प्रोजेक्ट मिला है, गांव में पानी की टंकी लगवाने के लिए। लेकिन गांव की पंचायत के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपनी हिस्सेदारी इसमें दे सके। गांव से केवल १३ हजार रुपए जमा हुए हैं और १२ हजार जुट नहीं पा रहे हैं, ऐसे में यह प्रोजेक्ट भी इस गांव के हाथ से फिसल जाएगा।
सरपंच लखबीर कौर, थेह कलां
गृहिणी तरविंदर कौर कहती है कि महंगाई ने उनकी कमर तोडक़र रख दी है। सस्ता राशन कहीं भी नहीं मिलता है। ऐसे में वे दाल का स्वाद भूल ही गए हैं। गांव डलीरी में सबकी रसोई मजदूरी पर ही चलती है।
बारिश में तबाह होती है फसल
गट्टी राजोके और इसके साथ लगते सभी गांव दरिया की जमीन पर बसे हैं। अधिकतर लोगों ने गिरदवारी करवा रखी है। बारिश के दिनों में दरिया उफान पर होता है और इसके साथ लगती सारी फसल तबाह हो जाती है। इन गांवों में लोगों को नित्य क्रिया भी खेतों में जाकर निपटानी पड़ती है, यहां पर कोई भी शौचालय सरकार ने नहीं बनवाया है।



गलती सर्वशिक्षा अभियान की, भुगतते बच्चे :


गांव टेंडीवाला के प्राइमरी स्कूल में टीचर बच्चों को पढ़ाता है कि जन गन मन..हमारा राष्ट्रगान है, लेकिन इसे राष्ट्रगीत भी कहा जाता है। जब टीचर को बताया कि वह बच्चों को गलत जानकारी दे रहे हैं, तो वे सर्वशिक्षा अभियान की ओर से प्रकाशित किताब का हवाला देते हुए दिखाते हैं कि इसमें जो लिखा गया है, हम वही पढ़ा रहे हैं। अब इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर शिक्षा का कैसा स्तर है और जो बच्चे यहां से पढ़ लिखकर निकलेंगे, उनका ज्ञान भी कैसा होगा।

एक तस्वीर यह भी : खुशहाल जमींदार
यहां का किसान काफी खुशहाल दिखता है। हरित क्रांति का भरपूर फायदा मिला है। जमींदार मोटरसाइकिल पर सवार होकर आता है। इस क्षेत्र में दो तरह के किसान हैं, पहला सुस्त दूसरा चुस्त। सुस्त किसान गेहूं जैसी फसल लगाकर अराम फरमाता है। इसमें कोई तीन से चार बार पानी लगाना पड़ता है। दूसरा किसान अपने खेत में तीन प्यालियां बनाकर तीन तरह की सब्जियां उगाता है।
 जमींदार तरसेम सिंह मोटरसाइकिल पर सवार होकर आता है। अपने साथ चाय बनाने के लिए लाया दूध नीम के पेड़ के नीचे रखता है। दोपहर की रोटी वह पेड़ की एक डाल के साथ बांधकर टांग देता है। बिजली की तार पर कुंडी डालकर मोटर को चालू करता है। हुसैनीवाला बार्डर के गांवों पर जिधर नजर पड़ती थी, उधर लहलहाती फसल नजर आती थी।
इस क्षेत्र में दो तरह के किसान हैं, पहला सुस्त दूसरा चुस्त। सुस्त किसान गेहूं जैसी फसल लगाकर अराम फरमाता है। इसमें कोई तीन से चार बार पानी लगाना पड़ता है। दूसरा किसान अपने खेत में तीन प्यालियां बनाकर तीन तरह की सब्जियां उगाता है। इसके लिए तरसेम जैसे किसानों को खूब मेहनत करनी पड़ती है। वह सुबह ही आकर जहां खेत में जुट जाता है, फिर शाम ढलते ही जैसे ही बीएसएफ की सीटी बजती है, अपना काम खत्म कर घर के लिए रुखसत हो जाता है। महीने भर में उसकी फसल तैयार हो जाएगी और उसका अपनी लागत से तिगुना फायदा मिल जाएगा। अभी उसने बैंगनी, खीरा बीज रखा है और कुछ दिनों बाद उसके यहां खीरा इतना पैदा हो जाएगा कि उसे रोज २५ मजदूर लगाकर इसे तोडक़र मंडी में बेचने जाना पड़ेगा।

उस पार खेती, बर्बाद कर जाते हैं पाकिस्तानी सूअर : कई किसानों की खेती फेंसिंग के उस पार है। जब बीएसएफ गेट खोलती है, तो वे उस पार जाते हैं। उनकी फसल को कई बार उस पार सूअर नष्ट कर जाते हैं।

मंगलवार, मार्च 01, 2011

गुमनाम




ये मीटिंग, ये स्टोरीज, ये वेल्यू एडिशन की दुनिया
ये इंसां के दुश्मन, कवार्क-पेजमेकर की दुनिया
ये डेडलाइन के भूखे एडिटर्स की दुनिया
ये पेज अगर बन भी जाए तो क्या है


यहां एक खिलौना है सब एडिटर की हस्ती
यह बस्ती है मुर्दा रिपोटर्रो की बस्ती
यहां पर तो रेजेज से इंफ्लेशन ही सस्ती
ये अपरेजल अगर हो भी जाए तो क्या है

हर एक कंप्यूटर है घायल, हर एक न्यूज बासी
डिजाइनर्स में उलझन, फोटोजर्नलिस्ट में उदासी
ये आफिस है या प्रापर्टी मैनेजमेंट की
सर्कुलेशन अगर बढ़ भी जाए तो क्या है

जला दो जला दो, फूंक डालो ये मॉनिटर
मेरे नाम का बस हटा दो ये आईएमएस यूजर
तुम्हारा है तुम भी संभालो ये कंप्यूटर
ये पेपर अगर चल भी जाए तो क्या है

ये चैनल का ड्रामा छिछोरी सी मस्ती
यहां मौत बिकती जिंदगी फिर भी सस्ती
नए चैनल पर बासी से चेहरे, उदासी से गहरे
कोई चैनल अगर चल भी जाए तो क्या है



बुधवार, सितंबर 22, 2010

रफी और किशोर पर कोलकाता मेट्रो स्टेशनों के नाम .

रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को घोषणा की कि प्रख्यात पाश्र्व गायकों मोहम्मद रफी और किशोर कुमार और सिख गुरू गोबिंद सिंह, कवि मोहम्मद इकबाल के नाम पर कोलकाता मेट्रो स्टेशनों के नाम रखे जाएंगे।



दक्षिण के 24 परगना जिले के जोका से शहर के मध्य में स्थित बी.बी.डी. बाग तक एक नई मेट्रो लाइन की नींव रखे जाने के मौके पर आयोजित समारोह में ममता ने कहा, ""हम मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के नाम पर स्टेशनों के नाम रखेंगे। कोलकाता में बहुत से सिख हैं और उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हुए हम एक स्टेशन का नाम गुरू गोबिंद सिंह के नाम पर रखेंगे।"" उन्होंने यह भी कहा कि अन्य स्टेशनों के नाम पूर्व भारतीय फुटबॉल खिल़ाडी गोश्थो पाल और गायिका मोहिनी चौधरी के नाम पर रखे जाएंगे। उन्होंने कहा, ""हम मोहिनी चौधरी के नाम पर भी एक स्टेशन का नाम रखेंगे। हम शहर के खेल केंद्र मैदान क्षेत्र की मैट्रो का नाम गोश्थो पाल के नाम पर रखेंगे। "सारे जहां से अच्छा" जैसा अमर गीत देने वाले मोहम्मद इकबाल को भी हम इसी तरह सम्मानित करेंगे।"" कोलकाता में 16.72 किलोमीटर की लंबाई में 13 स्टेशन बनेंगे और 2,619.02 करो़ड रूपये की लागत से उनका निर्माण होगा। ममता ने कहा कि अन्य सात स्टेशनों के नाम स्थानीय लोगों की राय लेने के बाद रखे जाएंगे।

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यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...