चंदन
स्वप्निल.
नॉर्थ
इंडिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर मार्केट पटियाला में राजपुरा रोड पर स्थित है। साल 2005 के दौरान
नई ट्रैक्टर मार्केट की स्थापना 40.25 एकड़ में की गई थी। यहां इस समय 282 दुकानें
हैं। इससे पहले ये मार्केट शहर के अंदर हुआ करती थी। अब इस मार्केट में दो पार्क
और दो कार पार्किंग हैं। सड़कें बेहद चौड़ी हैं लेकिन इन पर मार्केट का सामान पसरकर
काबिज हो चुका है। इसे कबाड़ी मार्केट के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर पुराने
माल को असेंबल कर ट्रैक्टर और जनरेटर तैयार करके बेचे जाते हैं।
यहां पर
नोटबंदी के बाद कारोबार के असर का जायजा लेने गये, तो इस दौरान पूरी मार्केट में एक भी
ग्राहक नहीं मिला। दुकानदार सड़कों पर ही अपने झुंड बनाकर गप्पे मारते दिखे।
नोटबंदी के बाद कारोबार में गिरावट जरूर आई है, उसका असर इनके चेहरों पर साफ पढ़ा जा
सकता था। जिधर नजर डालें हर ओर केवल कबाड़, गाड़ियों के कल-पुर्जे, जनरेटर और
पुराने ट्रैक्टर जो दुकानों से बाहर बरामदे से लेकर सड़कों तक अपना विस्तार कर चुके
हैं, यही
दिख रहा था।
ट्रैक्टर
मार्केट के प्रधान व कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ चुके सरूप सिंह
सहगल बताते हैं कि उनके बुजुर्ग पाकिस्तान से पटियाला आकर बस गये थे। उस दौरान
गाड़ियों का कारोबार शुरू किया था। कोई 30 साल पहले सरूप सिंह ने मार्केट में
नये लान्च हुए ट्रैक्टरों के काम में हाथ डाला था। लेकिन मार्केट में पहले जैसा
फ्लो नहीं रहा। लोग अब सेकंड हैंड माल को कम ही तरजीह देते हैं। अब रही सही कसर
नोटबंदी ने निकाल कर रख दी है। जमीदार जब गेहूं और धान की कटाई करता है, उस वक्त
उसके पास खरीद फरोख्त के लिए पैसा होता है। तब लोग इस मार्केट का रुख करते हैं। इस
वक्त किसान भी कैश के लिए तरस रहा है। जाहिर है कि फिर खरीदार नहीं मिलने से यहां
के दुकानदारों के सामने फाकाशाही जैसी नौबत ही आन पड़ी है।
दुकानदार
बीबा सहगल ने बताया कि इससे लिए वे लोग अब आगे माल नहीं खरीद हैं, क्योंकि
उनके पास जो पड़ा है उसे ही कोई खरीदार नहीं मिल रहा। वैसे राजस्थान, दिल्ली और
पंजाब से लोग यहां पर केवल ट्रैक्टर ही नहीं जनरेटर खरीदने भी आते रहे हैं।
नोटबंदी से पहले मार्केट में रोजाना 7 से 10 ट्रैक्टर बिकते थे। अब हाल ये है कि
हफ्ते में 5 से 7 ट्रैक्टर
ही बिक रहे हैं। इसमें भी जो ग्राहक आ रहा है वो कैश लेकर तो आ ही नहीं रहा।
ग्राहक चैक देता है और हम चैक लेने का रिस्क नहीं ले सकते। कल को दिक्कत हुई तो
कौन ग्राहक के पीछे चक्कर काटता फिरेगा। अब तो सभी दुकानदारों का हाल ये है कि
महीने में गुजारा चलाने लायक इनकम भी नहीं हो रही।
पिछले 35 दिनों में नोटबंदी का असर इतना पड़ा है कि कुछ
दुकानदारों ने अपना स्टाफ भी घटा दिया। इससे बेरोजगारी भी पैर पसार रही है। पास ही
एक चाय वाले ने अपना खोका लगा रहा रखा था। पूछने पर उसने बताया कि पहले ग्राहक आते
थे, तो उसकी चाय की अच्छी
कमाई हो जाती थी। अब पिछले 35 दिन से अब केवल दुकानदार ही चाय पीते हैं। इससे उसकी आय भी कम हो गई है।
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