आज मुझे व्यंगयकार व हास्य कवि स्वर्गीय हरिओम जी की एक कविता याद आ गई, जो मैंने कोलकाता नेताजी इंडोर स्टेडियम में एक हास्य कवि सम्मेलन में सुनी थी, जै, जै सोनिया माता, इटली की तू देवी, जै जै सोनिया माता...। वजह साफ है कि महारानी का राज अभी खत्म नहीं हुआ है, विक्टोरिया चली गई तो क्या हुआ, सोनिया माता और उनका बाबा ओह! सॉरी, प्रिंस का राज तो है। तभी तो हम अब भी गुलाम ही हैं, पिछले दिनों सबने देश की आजादी की ६६ वी बरसी मनाई, चौंकिए मत, मैं बरसी ही कहूंगा। क्योंकि कौन कहता है कि हम आजाद हुए थे, कम से कम यूपीए सरकार तो हमे पग-पग पर यही समझाइश दे रही है। जिस देश में विचारों की आजादी न हो, तो भला वह देश कैसे आजाद हो सकता है। केंद्र सरकार ने सद्भावना कायम रखने के ड्रामे के नाम पर आपकी, हमारी सबकी वैचारिक स्वाधीनता की आजादी तो कह कर छीन ली है। तभी तो सोशल साइट्स ट्विटर के छह पीएमओ के नाम से चलने वाले एकाउंट बंद करवा दिए गए। दरअसल यह सरकार अब अपनी बुराई और छिछली कतई बर्दाशत नहीं कर पा रही है। जो ६ एकाउंट बंद करवाए गए, अगर उनका गत झांके तो आपको हैरानी होगी कि इन्होंने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं की कि जिससे देश में सांप्रदायिकता व दंगे भडक़े हों। दरअसल यह तो अक्सर हमारे निरीह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी सरकार का मजाक ही तो उड़ाते थे। यह वही मनमोहन है, जब २६ जनवरी की परेड में सारी दुनिया आकाश में हमारे वायुसेना के कर्तव्य देख रही थी और यह बेचारे निरीह नजरे झुकाए बेअसर बैठे थे। शायद इसलिए देश में कुछ भी हो जाए इन पर कोई असर नहीं होता। और यह भी तब जबकि उनके मीडिया मैनेजर पंकज पचौरी है, जिन्हें आप मुझसे बेहतर जानते हैं।
ट्विटर एकाउंट बंद करना महज एक ड्रामा है, दरअसल सरकार अपनी इतनी बेइज्जती करवा चुकी है कि वह अब इस तरह की टुच्ची हरकतों पर उतर आई है, हो सकता है कि कल अखबारों में कार्टून छपने पर भी बैन लग जाए। यानी आपकी सोच पर दहशत और खौफ का पहरा। क्या यह सरकार इमरजेंसी लागू करने की तैयारी कर रही है या उस और कदम बढ़ा चुकी है। इतना तो तय है कि आज जब सारी दुनिया हमारी अर्थव्यवस्था पर नजरें गड़ाएं बैठी है कि कब यह सरकार कुछ साहसी कदम या फैसले लेगी जिससे विश्व की अर्थव्यवस्था को कुछ मदद मिल सके। लेकिन सवाल ही पैदा नहीं होता हम तो हम हैं, भला अगला चुनाव भी तो जीतना चाहते हैं, लेकिन तब तक पता नहीं यह देश का कितना बेड़ा गर्ग कर चुके होंगे। अभी तो बस २० एसएमएस तक पाबंदी है, वो २१वां नाजायज एसएमएस कब और किसका होगा?
न छेड़ बांसुरी का राग/ इससे राग नहीं
बैराग निकेलगा ना।
यह हाथ न पकडऩा/ यह हाथ नहीं
डूबता सहर है
असम, १९८३ जनवरी से अप्रैल मेें भी क्या सोशल साइट्स ने सांप्रदायिक सौहाद्र्र को नुकसान पहुंचाया था? जब असम में ३००० बंगाली मुसलमान मार डाले गए थे, जबकि सरकार यह आंकड़ा केवल १८०० ही बताती थी। उस वक्त इतनी दहशत थी कि असम से हिंदू बंगाली भी पलायन कर गए थे। दरअसल असम के दंगों की समस्या वहां की अवैध घुसपैठ रही है, जिसे कांगे्रस अपना वोट बैंक का हथियार बनाकर सरकार बनाने में कामयाब रही है और रहती है। दरअसल असम के हालिया दंगों के पीछे भी केंद्र की साजिश कही जा सकती है। क्या आपने आज तक कभी सुना था कि किसी राज्य सरकार ने विशेष ट्रेन चलाई हो। क्योंकि कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और इधर कांगे्रस की। अब आप समझ ही गए न कि ये ड्रामा हुआ ही क्यों?
अरे, भारतवासियो अब भी चेत जाओ, बता दो कि हम न डरे थे कभी न डरेंगे। वैचारिक स्वतंत्रता हमसे न कोई छीन पाया है और न कोई छीन पाएगा। मैं तो लिखूंगा और खूब लिखूगा, देखें वो अहले जमाना क्या कर गुजरता है या फिर मेरा अपना वजूद..।
सडक़ों पर चलते चलते थक गए हैं पेड़/ बेरहमी के साथ हो रही हैं छांव की मौत/ कौन देखता है/है किसमें हिम्मत रोकने की
आलने में बिलखते यतीम वोट/यहां तो महज मसंदों का बास है
यह शहर नहीं एक तालिबान का नगर है/मत सुन भटके आदमी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com