नेल्सन मंडेला की जेल का दौरा किया प्रतिभा पाटिल ने
अभिजित मिश्र रॉबेन आइलैंड (केपटाउन)।
... रॉबेन
टापू आज उन सभी लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है जो स्वतंत्रता व सम्मान के साथ
जीने के अधिकार का समर्थन करते हैं। ये टापू रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका के
संघर्ष की कहानी को समेटे हुए है। ये विपरीत परिस्थितियों व निर्मम ताकतों पर
मानवता की जीत का प्रतीक है। ये जगह हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता संग्राम के
सिपाहियों को कैसे हालात का सामना करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका की आजादी के नायक
नेल्सन मंडेला को यहां 17 साल
कैद में रखा गय। इस टापू व मंडेला के सेल नंबर 5 का
दौरा भीतर तक झकझोर रहा है। शक्ति, साहस व
बलिदान की यह गाथा सदियों तक युवाओं को इंसाफ व आजादी की रक्षा करने के लिए
प्रेरणा देती रहेगी।
राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने शनिवार को केपटाउन
से करीब 11
किलोमीटर दूर रॉबेन आइलैंड की मैक्सिमम सिक्योरिटी जेल का दौरा करने के बाद विजिटर
बुक पर अपने ये शब्द दर्ज कर दिए। वह यहां रंगभेद के खिलाफ अथक संघर्ष करने वाले
नेल्सन मंडेला और उनके जैसे तमाम लोगों के दर्द से रूबरू होने आई थीं। दक्षिण
अफ्रीका के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को यहां 17 साल तक
6 वर्ग मीटर की कोठरी
में कैद रखा गया था। 11 फरवरी 1990 को रिहा होने से पहले मंडेला ने कुल 27 साल सलाकों के पीछे गुजारे। ब्रिटिश सरकार
की रंगभेदी नीतियों व कानून के खिलाफ आवाज उठाने वाले अश्वेत लोगों के यातना
केंद्र के रूप में बदनाम रहे रॉबेन टापू में पैन अफ्रीकन कांग्रेस के संस्थापक
राबर्ट मैंगलिसो सोबुकवे ने भी लंबा वक्त गुजारा है।
बहुत झेला नेल्सन ने
इसी जेल में सात साल कैद रहे 46 वर्षीय स्पार्क मिलवाना अब इस हैरिटेज जेल
के गाइड हैं। वे बताते हैं कि मंडेला को यहां जबरदस्त यातना झेलनी पड़ी। उन्हें
छोटी से काल कोठरी में नंगे पैर 23 घंटे
बिताने पड़ते थे। सिर्फ तीन कंबल और एक बाल्टी, यही
सामान था उनकी कोठरी में। सघ्ताह में एक दिन उन्हें बाहर निकाला जाता था और चूना
पत्थर की खदान में काम पर लगा दिया जाता। उनके हाथों से खून निकलने लगता और छाले
पड़ जाते। डॉक्टर सघ्ताह में एक ही दिन आता था।
जबान पर भी लगाम
स्पार्क बताते हैं कि यहां जेल में बंद कैदी किसी से बात
नहीं कर सकते थे। कोठरी के भीतर सेंसर लगा हुआ था, जरा भी आवाज होने पर कोठरी के बाहर लगा लाल
रंग का बल्ब सायरन के साथ बजने लगता था। जेल अधिकारी आते और शुरू हो जाता यातना का
नया दौर। कैदियों को उनके मूलस्थान, रंग व
अपराध के आधार पर छांटा जाता था। सबसे खराब जिंदगी अश्वेतों की थी, जिन्हें कभी पूरे बाजू की शर्ट-पैंट व
जूते-मोजे नहीं दिए जाते थे। एक बार रेडक्रास की टीम मंडेला से मिलने पहुंची तो
उन्हें जबरन फुल पैंट व शर्ट पहना दी गई। अफ्रीका में 11 जबानें बोली जाती हैं, लेकिन यहां कैदियों को सिर्फ अंग्रेजी या
अफ्रीकन में बोलने की इजाजत मिलती थी, ताकि
जेल स्टाफ समझ सके। इसका उल्लंघन करने पर पीटना या भूखा रखना आम था। रॉबेन टापू को
1959 में जेल में तब्दील
किया गया और 1961 से 1991 के बीच यहां 3000 से ज्यादा राजनीतिक कैदी बंद रहे। इस टापू
का इस्तेमाल कुष्ठ रोगियों को भी रखने में किया गया, जिसके निशान आज भी यहां अलग कब्रिस्तान व
चर्च के रूप में मौजूद हैं। इन रोगियों व उनके बच्चों के साथ भी अमानवीय सलूक किया
जाता था।
जेल से बाहर निकली आत्मकथा
वर्ष 1983 से 2000 तक इसी जेल में बंद रहे स्पार्क याद करते
हैं कि कैसे मंडेला ने जेल में रह कर अपनी आत्मकथा लिखी और उसे एक पेड़ के नीचे
दबा दिया, लेकिन
जेल अधिकारियों ने इसे खोद निकाला। बहरहाल, मंडेला
इसकी एक प्रति मैक महाराज (सत्येंद्रनाथ रघुननन) तक पहुंचाने में सफल रहे, जो भारतीय मूल के व्यवसायी होने के साथ
तत्कालीन परिवहन मंत्री भी थे। अधिकारियों ने इसे कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन माना
और मंडेला को सजा भी मिली, लेकिन
रेत मुट्ठी से निकल चुकी थी। मैक महाराज ने मंडेला की यह कहानी प्रकाशित करा दी, जो लांग वॉक टू फ्रीडम के नाम से बेस्टसेलर
साबित हुई। जेल से रिहाई के बाद जब मंडेला राष्ट्रपति बने तो उन्होंने मैक महाराज
के इस अहसान का बदला उन्हें दोबारा परिवहन मंत्री बनाकर चुकाया। उनके पदभार ग्रहण
करने पर मंडेला ने कहा - ये मेरी तरफ से आपको सूचना परिवहन करने का तोहफा है। मैक
इन दिनों राष्ट्रपति जैकब जूमा के आधिकारिक प्रवक्ता हैं।
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