बुधवार, मई 09, 2012

राष्ट्रपिता के घर पहुंचीं राष्ट्रपति



महात्मा गांधी के संघर्ष की कालजयी गाथा है सर्वोदय
 अभिजित मिश्र डरबन (दक्षिण अफ्रीका)।
 सबके लिए खुशहाली और सम्मान से भरी जिंदगी - सर्वोदय। यही नाम रखा था बापू ने डरबन में अपने घर का। फीनिक्स सेटलमेंट में स्थापित यह चार कमरों का मकान आज भी रंगभेद के खिलाफ महात्मा गांधी के संघर्ष की कालजयी गाथा सुना रहा है। बापू ने यहीं रहकर हजारों सत्याग्रही तैयार किए, जिनका बलिदान दक्षिण अफ्रीका की आजादी के इतिहास के पन्नों में दर्ज है। राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल आज जब यहां पहुंची तो यह एक अविस्मरणीय क्षण था। मेजबान थे राष्ट्रपिता और मेहमान थीं राष्ट्रपति।
 पाटिल स्थानीय समय के मुताबिक दिन में 11 बजे यहां पहुंचीं। सबसे पहले उन्होंने परिसर में स्थापित बापू की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए। इससे पहले वे अपने जूतों को उतारना नहीं भूलीं। फिर उन्होंने रुख किया सर्वोदय का। उन्होंने पूरे घर को देखा और दीप जलाने के लिए पहुंची। लाइटर ऐन मौके पर धोखा दे गया। इससे पहले कि दूसरा लाइटर मंगाया जाता, राष्ट्रपति ने खुद नीचे रखी माचिस उठाकर जलाई और दीप प्रज्जवलित कर दिया। बाहर निकलने से पहले उन्होंने विजिटर बुक पर हस्ताक्षर भी किए। राष्ट्रपति को देखने व सुनने के लिए यहां फीनिक्स सेटलमेंट ट्रस्ट के ट्रस्टी रगबीर कलीदीन, उनकी पत्नी मधुमती समेत भारतीय मूल के काफी लोग मौजूद थे।
 कहानी सर्वोदय की
 1904 में फीनिक्स सेटलमेंट की स्थापना के साथ ही यह घर महात्मा गांधी ने परिवार सहित रहने के लिए बनाया था। वे यहां पत्नी कस्तूरबा व बेटे मनिलाल के साथ बिजली-पानी के बगैर रहे। 1940 में यह मकान ध्वस्त होने के कगार पर आ गया तो मनिलाल की पत्नी सुशीला व उनकी बेटी सीता गांधी ने 1950 में सर्वोदय का पुनर्निमाण किया। मकान बनाने में महात्मा गांधी के मित्र हरमन कालेनबाय ने उनकी मदद की। 1985 के इंडाना दंगों में सर्वोदय को जला दिया गया। तब डरबन के मशहूर हेरिटेज आर्किटेक्ट रोडने हारबर ने तस्वीरों की मदद से इसे दोबारा बनाया। 27 फरवरी 2000 को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थाबो मबेकी ने इसे बतौर स्मारक राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
 क्या है फीनिक्स सेटलमेंट
 डरबन से 20 किलोमीटर उत्तर में 1904 में फीनिक्स सेटलमेंट की स्थापना महात्मा गांधी ने की थी। तब यहां चारों तरफ गन्ने के खेत थे।100 एकड़ में बनाए गए इस सेटलमेंट का मकसद रंगभेद के खिलाफ लडऩे वालों के परिवारों को एक स्थान पर बसाना था, ताकि वे बिना किसी चिंता के सामाजिक असमानता के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रख सकें। गांधी जी ने यहां हर परिवार को दो एकड़ जमीन दी। मनिलाल की दूसरी बेटी इला ने इसे कुटुंब नाम भी दिया था। सेटलमेंट में बाजार व डेयरी फार्म भी बनाया गया, ताकि लोगों की दैनिक जरूरतें पूरी हो सकें। यहां रहने वाले सभी लोग नियमित रूप से गांधी जी की प्रार्थना सभाओं में शामिल हुआ करते थे। 1913 में इस परिसर को सुचारू रूप से चलाने के लिए बापू ने फीनिक्स सेटलमेंट ट्रस्ट की स्थापना की। उनके जाने के बाद 1917 में मनिलाल इसके रेजिडेंट ट्रस्टी बनाए गए। गांधी जी ने यहां 1903 में ही इंडियन ओपिनियन नाम से अखबार शुरू किया और इसके लिए प्रिंटिंग प्रेस भी लगाया। शुरुआत में इसे चार भाषाओं तमिल, हिंदी,गुजराती व अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया। बाद में तमिल व ंिहंदी संस्करण बंद कर दिए गए। यह अखबार1961 तक जारी रहा, जिसके बाद प्रेस परिसर में क्लीनिक व क्रेच खोल दिया गया। अक्तूबर 2000 में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा ने ओपिनियन को दोबारा शुरू कराया। गांधी जी ने सेटलमेंट परिसर में एक स्कूल भी स्थापित किया था। 1985 के दंगों में यह स्कूल भी राख हो गया। इसके बाद सेटलमेंट ट्रस्ट ने पूरे परिसर को नए सिरे से तैयार किया। अब यहां स्मारक के रूप में बापू की विरासत सुरक्षित है।
 लुलु से मिलीं पाटिल
 फीनिक्स सेटलमेंट से निकलने के बाद राष्ट्रपति सीधे डा. जॉन लांगलिबलेले दुबे के घर पहुंची जो अब हेरिटेज स्मारक है। 1871 में पैदा हुए जॉन अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस से संस्थापक व पहले अध्यक्ष थे। गांधी जी के करीबी रहे जॉन का निधन 1946 में हुआ था। वे ओहलैंज इंस्टीट्यूट यहां राष्ट्रपति ने जॉन की बहन लुलु से मुलाकात की, जो इस समय 81 साल की हैं। लुलु ने उन्हें जॉन व बापू से जुड़े कुछ संस्मरण भी बताए। इस मौके पर जॉन की पोती नोलवांडले व तीन पड़पोतियां नोमांजी, नोमंटू व नोबंटू भी मौजूद थीं, जिन्हें राष्ट्रपति ने उपहार भी दिए। राष्ट्रपति ने जॉन का पूरा घर देखा और उनकी कब्र पर फूल भी चढ़ाए।
  

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