सोमवार, अप्रैल 25, 2011

सूचना क्रांति तो दूर रही अखबार भी नहीं पहुंचता



भारत-पाक सीमांत गांवों से

खुशहाल कहे जाने वाले पंजाब राज्य के सीमावर्ती गांवों में ऐसे हजारों लोग जिनकी सुबह कभी अखबार से शुरू ही नहीं हुई। देश में सूचना क्रांति की धूम है और यह क्रांति अखबार के रूप में सीमावर्ती गांवों में अभी तक पहुंच नहीं सकी है। इन गांवों में शिक्षा का प्रसार काफी कम होने के कारण ज्यादातर लोगों की अखबार पढऩे में भी दिलचस्पी नहीं है। अगर इन गांवों के कुछ लोग अखबार पढऩे में दिलचस्पी रखते भी हैं, तो हॉकर इसमें कोई रुचि नहीं दिखाता। क्योंकि चंद अखबार भेजने के लिए सीमावर्ती गांवों में जाना उनके लिए काफी मुश्किल है।
फिरोजपुर का सीमावर्ती गांव टेंडीवाला की आबादी करीब २०00 है। यहां किसी के घर अखबार नहीं आता। गांव के 35 वर्षीय जगीर सिंह कहते हैं कि उनकी हम उम्र वालों ने तो गांव में अखबार लाने की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन अब अपने बच्चों के लिए अखबार लगाने की जरूर सोच रहे हैं, ताकि उनके बच्चे सूचना का अभाव में न रह सकें। उन्हें सरकार की नीतियों और समाज में आ रहे बदलावों के बारे में अवगत होना बहुत जरूरी है। वह बताते हैं कि उनके गांव तक हाकर नहीं आता है। इसलिए वे लोग सोच रहे हैं कि सुबह उनके घरों से दूध ले जाने वाले दोधियो पर यह कंडीशन लगाएं कि अगर उन्हें गांव से दूध चाहिए तो गांव के लिए अपने साथ अखबार जरूर लेकर आएं।
तरनतारन जिले के सीमांत वासियों ने दोधियों को ही अखबार लाने की जिम्मेदारी दे रखी है। टेंडीवाला के साथ लगते गांव कालूवाल में भी अखबार नहीं आता है।
गुरदासपुर के सीमावर्ती गांवों की भी यही स्थिति है। ४०० आबादी वाले गांव सलांच के लोगों की सुबह भी अखबार के साथ शुरू नहीं होती। गांव में दो-तीन युवक ही दसवीं पास हैं और उन्हें अखबार की जरूरत महसूस नहीं होती। गांव चौंतरा में सिर्फ सरपंच के घर ही अखबार आता है। इसकी वजह उनका बीए पास होना है। सलांच के 45 वर्षीय तारा सिंह बताते हैं कि गांव में मनोरंजन के लिए कई लोगों ने टीवी खरीद रखे हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह टीवी भी नहीं ले सका है। उसके बच्चे उसके भाई के घर टीवी देखने जाते हैं। हालांकि कई बार उसका दिल भी टीवी देखने को करता है, लेकिन भाई की बहुओं के कारण वह वहां टीवी देखने भी नहीं जा पाता। ऐसे कई परिवार हैं,  जिनका पास टीवी भी नहीं है।
सीमावर्ती गांवों के लोगों की सीमित मोबिलिटी होने के कारण यहां के ज्यादातर लोगों को सीधे तौर पर दूसरे जिलों में आ रहे बदलाव के बारे जानकारी नहीं मिल पाती है। गांवों के कई लोग डीटीएच सेवा जरिए बाहर की दुनिया से जुड़े हुए हैं। इसी से मनोरंजन और जानकारी हासिल करते हैं।

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