सोमवार, अप्रैल 25, 2011

दावे सरकारी और हकीकत कोसों दूर


सीमांत गांवों के किसानों को केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं की नहीं है जानकारी
गांव ठरू/माछीके से चंदन स्वप्निल
राज्य और केंद्र सरकार किसानों की खुशहाली के लिए हर सुविधा मुहैया कराने के दावे करती है। लेकिन हकीकत में यहां पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता है। खेमकरण सेक्टर के सीमावर्ती गांवों के किसानों को किसी भी केंद्रीय योजना की कोई जानकारी नहीं है। उन्हें खेतीबाड़ी के लिए कर्ज लेने में भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खेती से संबंधित अधिकतर योजनाएं केंद्र द्वारा प्रायोजित हैं, जो इन गांवों में अभी तक पहुंच ही नहीं सकी हैं।
ब्लाक अफसर अपने अधीनस्थ गांवों का चयन करन आधी कीमत पर बीज और जिंक सल्फेट मुहैया करवाता है। ऐसे में यहां पर गड़बड़ी के अवसर ज्यादा रहते हैं। इसमें जो किसान अफसर के संपर्क में रहता है, लाभ केवल उसी को मिलता है। केंद्र प्रायोजित ट्रेनिंग टेस्टिंग डेमोस्ट्रेशन के तहत खेतीबाड़ी विभाग किसानों को नई मशीन चलाने की ट्रेंिनंग इसलिए देता है, ताकि वह इसे बाजार से खरीदने से पहले पूरी जानकारी हासिल कर ले। लेकिन यहां पर कभी भी किसी किसान को विभाग ने ऐसा कोई डेमो पेश नहीं किया। बायो गैस महंगी होने के चलते कोई इसमें हाथ अजमाना नहीं चाहता। यहां पर किसान अब भी पराली को आग लगा देते हैं। वे धान की बिजाई के बाद सीधे गेहूं की रोपाई नहीं करते हैं।
मेंहिदीपुर के किसान सुदर्शन सिंह ने कहा कि वे लोग पहले गन्ने की बिजाई करते थे, लेकिन इस क्षेत्र में कोई भी शुगर मिल नहीं होने के चलते उन्हें गन्ने का सही रेट नहीं मिलता था। इसलिए उन लोगों ने इस क्षेत्र में गन्ने की बिजाई करना ही छोड़ दिया। वहीं हकीकत यह है कि अगर इस इलाके में गन्ने की बिजाई की जाए तो यहां काफी अच्छा उत्पादन हो सकता है। सुदर्शन ने कहा कि सरकारी योजनाएं सिर्फ दिखावे के लिए हैं। उन्हें यहां कोई भी खेतीबाड़ी अधिकारी आकर कभी नहीं बताता कि कैसे बेहतर खेती की जाए और उनके लिए सरकार ने कौन-कौन सी लाभकारी योजनाए शुरूकर रखी हैं। उन्हें अपनी फसल भी औने-पौने दाम में बिचोलियों को बेचनी पड़ती है। किसान औलख सिंहन से मैंने पूछा कि राज्य व केंद्र सरकार की ओर से किसानों को उत्साहित करने के लिए समय-समय पर किसान सिखलाई कैंप लगाए जाते हैं तो उन्होंने बताया कि यह सब केवल हवाबाजी ही है। बार्डर पर ऐसा कोई भी कैंप नही लगाया जाता। पशुधन योजना के बारे में भी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। वे लोग तो पशुओं की खरीदारी के लिए कर्ज भी आढ़तिए से लेते हैं। जिसके एवज में उन्हें भारी ब्याज चुकाना पड़ता है। जब मैंने उन्हें अच्छी खेती के लिए जिप्सम पर मिलने वाली सबसिडी के बारे में बताया तो उन्हें इसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी। इन किसानों का कहना है कि वह अकसर दुकान से कोई भी खाद खरीदकर डाल देते हंै। हैरत की बात तो यह है कि इन्हें सिचाई के लिए खेती औजारों पर मिलने वाली सबसिडी के बारे में भी कोई ज्ञान नहीं है। 
यह है केंद्र का सिस्टम
किसानों के लिए अधिकांश योजना केंद्र की ओर से जारी की जाती हैं। इसके तहत दी जाने वाली सबसिडी में केंद्र और राज्य का 75 और 25 फीसदी हिस्सेदारी होती है। कुछ अन्य योजनाओं में केंद-राज्य की 90 और 10 फीसदी की भागीदारी होती है। इनमें खेती औजारों से संबंधित योजनाओं की सब्सिडी में राज्य का भी हिस्सा है। खाद व बीज केंद्रीय योजना के तहत किसानों को मुहैया कराए जाते हंै।

फैक्ट फाइल
तरनतारन जिले में खेती का रकबा जिले में कुल 2.41 लाख हैक्टेयर भूगोलिक रकबा है। इसमें से 2.17 लाख हैक्टेयर रकबा खेती के तहत आता है। जिले का 99.9 फीसदी रकबा सिचित है। इसी में 60 फीसदी रकबा नहरों और 40 फीसदी रकबा सींचा जाता है। इस जिले में अधिकतर खेती धान, बासमती, गेहंू की होती है, जबकि मक्की, कपास, मसूर, तिल, मूंगी और सब्जियां भी उगाई जाती हैं।  
कोट्स

तरनतारन के डीसी खुशी राम से बात करने पर उनका कहना है कि यह संभव नहीं है कि सीमांत गांवों के किसानों को कोई जानकारी नहीं है। यदि किसानों ने आपसे ऐसा कहा है, तो वे असलियत छुपा रहे हैं। जिला प्रशासन ने तरनतारन में कैंप लगाया था, इसमें जिले के करीब २००० किसानों ने भाग लिया था। इसके अलावा ब्लॉक स्तर पर कैंप लगाकर किसानों को खेती से संबंधित जानकारी दी गई।

महंगाई का ये गजब खेल
किसान का दर्द : मेहनत हम करें और मलाई बिचौलिए खाएं
गांव डालकेक्या आप जानते हैं कि शरद पवार कौन हैं, जवाब नहीं। मैंने बताया कि वह केंद्रीय कृषि मंत्री हैं। इस पर किसान बग्गा ने कहा कि यह बड़ी अच्छी बात है, फिर उनके हाथ में तो सबकुछ है, उन्हें कहिए कि इस महंगाई को जरा कंट्रोल करें। हमारी फसल का हमें उचित मूल्य दें, बिचौलिए हमसे सब्जियां सस्ती खरीदकर ले जाते हैं और उसे ही बाजार में महंगे दाम पर बेचकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। और हम जो सब्जी उगाने वाले हैं, उन्हें तो इसकी लागत भी नहीं मिल पाती। मेहनत हम कर रहे हैं और बिचौलिए मलाई खा रहे हैं। यह दर्द केवल किसी एक बग्गा का नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के हर किसान के साथ ऐसा ही धोखा हो रहा है। वह जो सब्जी अपने गांव में उगाता है, बाद में उसी गांव में उक्त सब्जी काफी महंगी बिकती हुई नजर आती है।
मैं जब दोपहर को गांव डालके पहुंचा। वहां मैंने एक खेत में कुछ मजदूरों को मटर बीनते हुए देखा। जब मैंने पूछा कि इसका मालिक कौन है, तभी थोड़ी देर में खेत का मालिक मनजिंदर ङ्क्षसह आ पहुंचा। उसने बताया कि दो एकड़ जमीन पर उसने मटर की बिजाई की थी। अभी मौसम उतना अच्छा नहीं है, इसलिए इस बार बंपर फसल नहीं हो सकी। इन खेतों में मटर की बिजाई पर उसने अब तक २० हजार रुपए खर्च कर डाले हैं। हर मजदूर को वह ४० किलो मटर बीनने पर ५५ रुपए की मजदूरी अदा करता है। इसके बाद मैं उसके साथ मंडी पहुंचा, जहां पर उसने मंडी में १० रुपए प्रति किलो मटर को बेचा। इसके बाद मैंने देखा कि यहां से एक ठेला पर सब्जी बेचने वाला उस मटर को १४ रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदकर ले गया। उस ठेले वाले ने मंडी से २० किलो मटर खरीदा। इसके बाद वह इसे गांव डालके में बेचने चला गया। जो मटर इसी गांव के किसान ने मंडी में १० रुपए में बेचा था, वही मटर अब ठेले वाला २० रुपए प्रति किलो बेच रहा था। 


खेतीबाड़ी से संबंधित

खेतीबाड़ी से संबंधित स्कीमें मुख्यत केंद्र प्रयाजित है। इनमें से कई स्कीमों में दी जाने वाली सब्सिडी में केंद्र और राज्य का क्रमश 75 व 25 हिस्सा है, जबकि कई स्कीमों में केंद्र और राज्य का क्रमश 90 और 10 फीसदी हिस्सा है। इनमें खासकर खेतीबाड़ी टूल से संबंधित स्कीमों जिनकी सब्सिडी में राज्य का भी हिस्सा है, राज्य सरकार के अपने हिस्सा की सब्सिडी न दिए जाने के कारण इनके ला"ू करने में रुकावट आ जाती है। खाद और बीज पूरी तरह केंद्र सरकार की विभिन्न स्कीमों के तहत ही राज्य के किसानों को दिए जाते है। इसमें राज्य सरकार को कोई हिस्सा नहीं है। यही कारण है कि खाद और बीज से संबंधित इन स्कीमों में ला"ू करने में भी कोई खास रुकावट नहीं आ रही है।

बीज(100 फीसदी केंद्र की स्कीम)
इसमें जालंधर के किसानों के गेहूं, तेल, दालों के बीज सब्सिडी पर मुहैया करवाए जाते हैं।
बीजों के सब्सिडी के मामले में पिछली गेहूं की बिजाई में पांच सौ रुपए प्रति क्विंटल की छूट देकर जिले के किसानों को गेहूं का बीज उपलब्ध करवाया गया था। इसके अलावा जिले के नौ ब्लाकों में से कुछ चुनिंदा गांवों(हर ब्लाक में कुछ गांव) में सीड विलेज स्कीम लागू की गई। इसमें चुने गए हर गांव के किसानों को 21 क्विंटल गेहूं का बीज आधी कीमत पर मुहैया करवाया गया था। इस तरह ही गेहूं के लिए अब तीन सौ टन जिंक सल्फेट केंद्र की तरफ से उपलब्ध करवाया जा रहा है। जिले के नौ ब्लाकों में से हर ब्लाक 20-ग0 टन जिंक सल्फेट दिया जा रहा है। फिर आगे ब्लाक अधिकारी अपने ब्लाक के चुनिंदा गांवों को जिंक सल्फेट देंगे।
गेहूं के अलावा दालों में मटर और छोले के बीजों की किïट्टें भी केंद्र की तरफ से यहां भेजी जाती हैं, जो कि चुनिंदा गांवों के किसानों को मुफ्त दी जाती हैं। इस साल मटर के बीजों की किटें तो पहुंची है, लेकिन छोले की करीब एक हजार किट नहीं पहुंच सकी है।

 ब्लाक अधिकारियों की तरफ से चयन- आधा दाम पर बीज उपलब्ध करवाने और जिंक सल्फेट आदि उपलब्ध करवाने के लिए ब्लाक अधिकारी ही अपने ब्लाक में गांवों का चयन करते हैं। इसके लिए सही लाभपात्रों के चयन का तरीका बहुत पारदर्शिता वाला नहीं है। जिन गांवों के किसान या फिर किसान ब्लाक अधिकारियों के संपंर्क में रहते हैं, उन तक ही यह लाभ सीमित हो जाते हैं।
जालंधर जिला केंद्र के नैशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत नहीं आने के कारण इसे पंजाब के दूसरे दस जिलों जितनी सब्सिडी नहीं मिल रही है।

खाद(100 केंद्र की तरफ से सप्लाई होती है)
जालंधर जिले में लगने वाले फसलों की जरुरत मुताबिक खाद की पूरी मात्रा केंद्र की तरफ से ही भेजी जाती है। खेतीबाड़ी विभाग यहां पर लगने वाले फसलों गेहूं, मक्की, आलू, धान आदि की जरुरत मुताबिक अपने डिमांड तैयार करने के राज्य सरकार को भेज देते हैं और फिर राज्य की तरफ से केंद्र से अपने जरुरत की खाद मंगवाई जाती है। खेतीबाड़ी अधिकारियों और किसानों मुताबिक केंद्र की तरफ से भेजी जाने वाली खाद की सप्लाई आम तौर पर उन्हें बिजाई के समय मिल जाती है। खाद का डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम ठीक है।

टूल
किसानों को आधुनिक किस्म के टूल खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र प्रायोजित कई स्कीमें है। इन स्कीमों के तहत टूल खरीदने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी में 75 फीसदी हिस्सा केंद्र का और 25 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार का है। कई टूल में यह हिस्सा 90 और 10 फीसदी है। राज्य के अपना हिस्से सब्सिडी न देने पर कई बार इन स्कीमों के लागू करने में रुकावट आ जाती है। जालंधर जिले में पिछले साल 265 किसानों इन स्कीमों के तहत आधूनिक औजारों का लाभ उठाया है।

स्कीमें
...  माईक्रो मैनेजमेंट वर्क प्लान (केंद्र प्रायोजित)
इसमें किसानों को नई तकनीक औजार खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाती है।
ट्रेनिंग टैस्टिंग डैमोस्ट्रेशन(टीटीडी)(केंद्र प्रायोजित)
इसमें खेतीबाडी विभाग किसानों को नई मशीनरी की डैमोस्ट्रेशन देता है।इसमें खरीदने के लिए कोई सब्सिडी नहीं दी जाती है। विभाग किसानों को नए मशीनरी को चलाने की ट्रेंिनंग इसलिए देता है, ताकि वह इसके बारे पूरी तरह जानकारी लेकर ही इसे मार्कीट में खरीदे। नए मशीनरी को किसानों के प्रयोग के लिए भी मुहैया करवाया जाता है और इसमें किसानों से मशीनरी चलाने के लिए सस्टेंनएवल चार्जेस वसूल किए जाते हैं। जालंधर मे पिछले साल इस स्कीम के तहत लेजर लेवरलर्ज किसानों के सामने रखे गए थे, ताकि पैड्डी के दौरान आ रही लेबर की मुश्किल से इनके जरिए पार पाया जा सके।

बायो गैस स्कीम
- इसमें खेतीबाड़ी विभाग किसानों को सिर्फ तकनीकी सहायता ही देते है। सब्सिडी कोई नहीं दी जाती है। पंजाब एनर्जी डिवैलपमेंट एजैंसी, जो कि पंजाब सरकार का ही एक विभाग है, इसके तहत सब्सिडी दे रहा है। हालांकि इसकी कीमत ज्यादा होने के कारण यह किसानों व गांवों में ज्यादा पापुलर नहीं हो रहा है।

4.  अग्र्रीकल्चर प्रोडक्शन पैट्रन एडजस्टमेंट स्कीम
पिछले करीब पांच सालों में चल रही इस स्कीम में किसानों की खेतीबाड़ी की नई विधियों व नई मशीनरी के इस्तेमाल से खेतीबाड़ी के ढंगों में बदलाव पर जोर दिया जा रहा है। ताकि इससे बढिय़ा पैदावार और लागत में भी कमी आए। इसके तहत जालंधर में 80 एकड़ में गेहूं की बिजाई की गई है। पहले किसान धान के बाद बची उसके अवशेष की सफाई करने के बाद उसे आग लगा देते थे, इससे प्रदूषण काफी फैलता था। अब इस स्कीम के तहत धान की कटाई के बाद उसकी पराली को साफ करने की बजाए उसमें ही गेहूं की बिजाई की गई है। पिछले साल गेहूं की बिजाई के इस प्रयोग से पैदा हुई गेहूं की फसल भी अ'छी है।

आतमा(एग्र्रीकल्चर टैक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजैंसी)
इसमें भी किसानों को नई टैक्नोलाजी खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस स्कीम के तहत दी जाने वाली सब्सिडी में 90 फीसदी केंद्र और 10 फीसदी राज्य सरकार का होता है। किसानों को नई मशीनरी खरीदने के लिए तैयार  करने के लिए पहले खेतीबाड़ी कैंप लगाए जाते हैं, मशीनरी का प्रदर्शन किया जाता है और इसके अलावा दूसरे राज्यों व राज्य में ही यहां नई मशीनरी का बढिय़ा इस्तेमाल हो रहा है, वहां पर किसानों को लेकर जाया जाता है। साल 200ग से यह स्कीम जालंधर में लागू हुई थी, हालांकि इससे कुछ बढिय़ा परिणाम सामने आए हैं, लेकिन बदलाव की प्रक्रिया काफी धीमी है।

इस स्कीम के तहत किए प्रयासों से जालंधर में हल्दी की खेती की शुरुआत हुई है। फिशरी के लिए नई टैक्नीक लाई गई हैं। कमर्शियल डेयरी को बढ़ावा मिला है।
मार्कीटिंग की स्कीमें
इनके अलावा घी, शहद आदि उत्पादों की मार्कीटिंग के लिए भी केंद्र सरकार की सब्सिडी आ रही हैं, लेकिन इन उत्पादों की मार्कीटिंग अभी तरीके से हो नहीं पा रही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...