मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

सीमा का हर घर ४१,५७६ रुपये का कर्जदार



भारत पाक सीमा से

पाकिस्तान की सीमा से भारत के सीमा क्षेत्रों में अन्य देशों की सीमा की तुलना में प्रतिकूलता ज्यादा है। इसका कारण पंजाब में एक लंबे दशक तक चला आतंकवाद का दौर, राज्य में अन्य समस्याएं जैसे अप्रवासी समस्या, तस्करी, अपराध, नागरिकों की हत्या आदि रहा है। इन समस्याओं पर काबू पाने के मकसद से बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती यहां पर करनी पड़ी। ५५३ किलोमीटर दूर तक फैली पाकिस्तान के साथ लगती पंजाब की सीमा के वासियों को सामाजिक-आर्थिक दिक्कतों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक दबाव भी झेलना पड़ रहा है।

सीमावर्ती क्षेत्र में समस्त बाधाओं को देखते हुए यहां पर विकास की संभावनाओं की योजना पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पड़ोसी मुल्क के रवैये के चलते यहां के वासियों की भौगोलिक स्थिति के आधार पर उनकी खास जरूरतों को तरजीह दी जाए। सीमावासियों में अप्राप्यता और असुरक्षा की भावना को दूर करना होगा। अभी तत्काल आवश्यकता इस बात की है कि सीमावासियों के दिलों में घर कर चुकी असुरक्षा की भावना को दूर किया जाए। शिक्षित-अशिक्षित कुशल और अकुशल बेरोजगारों की फौज में खासा इजाफा हुआ है। रोजगार सृजन के लिए लागू किए जा रहे कार्यक्रम वांछित नतीजे नहीं दे सके हैं। उधर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल लगातार कहते आ रहे हैं कि पड़ोसी मुल्क की गतिविधियों से पंजाब सशंकित है।

सीमा क्षेत्र की हालत राज्य के पिछड़े इलाकों से भी ज्यादा खराब है। यहां के लोगों में तीव्र अंसतोष भरा हुआ है। सरकार इनकी सुध बिलकुल नहीं लेती। हमने जो स्थिति इस रिपोर्ट में बयान की है, वह दरअसल गुरदासपुर, तरनतारन, अमृतसर, फिरोजपुर सीमावासियों से बातचीत पर आधारित है। लोगों की शिकायतें यही हैं कि उन्हें दिहाड़ी भी बहुत कम मिलती है। गांव में गिनेचुने किसान हैं और मजदूरी पर निर्भर रहने वालों की संख्या बहुत अधिक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि फिरोजपुर क्षेत्र को छोडक़र बाकी इलाकों में खेतीबाड़ी कोई फायदे का कायदा नहीं रहा है। यही वजह है कि अधिकतर युवा अब इस ओर रुख करना नहीं चाहते हैं। बहरहाल कुछ पढ़ेलिखे किसानों ने फ्लोरीक्लचर, हार्टिकल्चर, डेयरी फार्मिंग और एग्रो प्रोसेसिंग जैसे काम की ओर कदम बढ़ाया है। चाहे कुछ भी हो बार्डर अब भी कृषि क्षेत्र में अपना प्रभुत्व रखता है। अब भी रोजगार और आय का स्रोत काफी हद तक इसी पर निर्भर करता है।

हमें नहीं, आरक्षण की जरूरत शहरी महिलाओं को

वहीं गुरदासपुर बेल्ट में गुर्जरों की संख्या अधिक है, वे पशुपालन के माध्यम से काफी अच्छी हैसियत रखते हैं। भूमिहीन किसान पशुपालन व दुग्ध उत्पादन की ओर अग्रसर है, लेकिन उन्हें दूध की उचित कीमत नहीं मिलती है। दोधी मनमाने दाम उनसे दूध ले जाता है। कोआप्रेटिव भी उचित मूल्य अदा नहीं करती है। बार्डर क्षेत्र की एक खासियत दिखी कि यहां की महिलाएं मर्दों के बराबर मेहनत करती हैं, चाहे वह खेत, पशुपालन हो या घर हो। उनसे पूछने पर कि क्या उन्हें आरक्षण चाहिए, तो वे कहती हैं कि उन्हें इसकी क्या जरूरत है, यहां तो वे हर काम में मर्दो को चुनौती देती हैं, आरक्षण की जरूरत शहरी महिलाओं को होगी।

टीचर राम कुमार का कहना है कि इस क्षेत्र में सरकार को चाहिए कि रोजगार के साधन मुहैया कराए। सीमांतवासियों में बेहतरी की उम्मीद जगाए, कम से कम ५० किलोमीटर के दायरे में किसान अपना माल बेच सके। ऐसी व्यवस्था होगी, तो उसे आय बढिय़ा होगी। यहां पर लोग खेतीबाड़ी से इतर पोलट्री व्यवसाय और मछली पालन भी कर रहे हैं। लेकिन सही धंधे के बारे में उचित जानकारी नहीं होने के चलते निर्माता को खास फायदा नहीं मिल पा रहा है। यहां पर कोई प्रशिक्षण शिविर भी नहीं लगाए जाते। यह अच्छा मजाक है कि उसे अपनी ही बनाई हुई वस्तु बाद में महंगे दाम पर खरीदनी पड़ती है।

नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन २००३ की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के ६५.४० फीसदी किसान कर्ज के भार तले दबा है। बार्डर में प्रति घर के हिसाब ४१५७६ रुपये का कर्जा है। रिपोर्ट के मुताबिक ७६ फीसदी लोग साहूकारों से कर्ज लेते हैं। गैर सीमांत क्षेत्रों की तुलना में यहां पर कर्ज की मार झेलते लोगों की संख्या अधिक है। इसकी वजह भी किसान यही बताते हैं कि उन्हें खेतीबाड़ी में सरकारी एजेंसियों की तरफ से सुविधाएं नहीं मिलती हैं, उनकी कागजी कार्यवाही बड़ी लंबी-चौड़ी होती हैं। तयशुदा अवधि में रियायती दर पर कर्ज उपलब्ध हो, ताकि वह कमीशन एजेंटों और सूदखोराों के जाल से बच सके, जो उससे मनमानी ब्याज दर वसूलते हैं। कर्ज की मार का एक बड़ा कारण यह भी है कि वे अपनी फसल की लागत निकालने में भी सक्षम नहीं हैं, जिससे कि वे अपनी घर की जरूरतें पूरी कर सकें।

कर्ज के बोझ और गरीबी की मार के चलते ये लोग कुपोषण का भी शिकार होकर रह गए हैं। बीज बदलाव में भारी दिक्कतें हैं। कुछ अन्य मामलों में उन्हें बहुत दूर की यात्रा तय करनी पड़ती है। इनमें से अधिकतर की जानकारी शून्य है। वे डब्ल्यूटीओ, उदारीकरण और एमएसपी(मार्केट सेलिंग प्राइस) भी नहीं जानते। नई खेती तकनीक की भी बहुतों को जानकारी नहीं है। यहां का किसान बेशक शिक्षा और सेहत पर काफी खर्च करता है, लेकिन उसका नतीजा सिफर ही है।

पंचायती व्यवस्था तो है, लेकिन सरपंच के हाथ भी बंधे हुए हैं, उसे जो मदद मिलती है, उससे इन इलाकों का संपूर्ण विकास संभव नहीं है। इन गांवों में पंचायती व्यवस्था अब भी अपने प्रारंभिक दौर से गुजर रही है। सरपंच कहते हैं कि उनके अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जाए। उनका अधिकतर समय बीडीओ से एनओसी लेने में ही व्यर्थ हो जाता है। ग्राम सभा के प्रतिनिधियों को भी पंचायती कार्यप्रणाली की सुचारू रूप से जानकारी नहीं है। पंचायत इतनी सक्षम नहीं है कि वह अपने स्तर पर लघु योजनाएं बनाकर उन्हें लागू कर सकें। जाहिर है कि जमीनी स्तर पर आधारभूत योजनाएं यहां से गायब दिखती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanx 4 yr view. keep reading chandanswapnil.blogspot.com

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...