patarkar mann jab bhi kahin ghumkaree par nikal padta hai to kuch kamaal ho jata hai
मंगलवार, सितंबर 29, 2009
पानी की बर्बादी
आप अक्सर यह सोचते है कि आज मैंने काफी पानी की बचत कर ली है तो आप किसी खुशफहमी में न रहे, क्योंकि इस तरह आप पानी नही बचा रहें हैं। तो आपको हकीकत से रूबरू कर्बता हूँ। आंकडों पर नज़र डालें तो ब्रेड की एक पीस के उत्पादन पर पर ४० लीटर पानी खर्च होता है.
छुट्टी का सदुपयोग कर रहा हूँ
हैदराबाद में शूटिंग करते वक़्त मेरी पीठ में चोट लग गई थी। उसके बाद मैं बिस्तर पर पड़ा रहा। चोट से उबर ही रहा था कि मुझे ‘जेल’ फ़िल्म की डबिंग करनी पड़ी। फिर ‘एसिड फ़ैक्ट्री’ के प्रचार-प्रसार में जुट जाना पड़ा। और उसके बाद प्रकाश झा की शूटिग के लिए भोपाल आना हुआ है। काफी भागमभाग रही है। पीठ को पूरा आराम दे नहीं पाया। लेकिन, अब पीठ ख़ुद ठीक हो रही है।
आजकल खाली समय में टीवी लगाकर देखता रहता हूँ कि 'एसिड फ़ैक्ट्री' के प्रोमो कब आएंगे। लगातार एसिड फैक्ट्री का प्रचार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। और अच्छा ये लग रहा है कि एसिड फ़ैक्ट्री के निर्माता और वितरक दोनों ही उसके सही प्रदर्शन को लेकर सजग हैं। यहाँ भोपाल में दो दिन की छुट्टी मिली मुझे, तो मैं भोजपुर चला गया शिवलिंग के दर्शन करने। वहाँ से निकलकर भीम बेटिका गया, जो विश्व धरोहर है। वहाँ पहुँचते ही एक गाइड को अपने साथ लिया। ताकि वो हमें गुफाओं और गुफाओ पर बने शैल-चित्रों के बारे में विस्तृत जानकारी दे सके।
अच्छा ये लगा कि इस धरोहर को बहुत ही सुरक्षित ढंग से रखा गया है। काफ़ी साफ़-सफ़ाई रखी गई है। गाइड के बोलने के अंदाज़ को देखकर मैं काफ़ी अचंभित हुआ और मन-ही-मन में उसके अंदाज़ की नक़ल करना शुरु कर दिया। कभी ऐसी कोई भूमिका मिले तो उस गाइड की नक़ल ज़रुर करुंगा। मेरी यात्रा काफ़ी जानकारी भरी रही और गाइड के कारण काफ़ी मनोरंजक भी।
मुझे पता है कि मैं अपना ब्लॉग नियमित नहीं लिख पा रहा हूँ। थोड़ा गैप आ जाता है। लेकिन अब इस अंतराल को कम करने की पूरी कोशिश होगी। अब हर हफ़्ते आपसे मुख़ातिब होऊंगा और उस हफ़्ते की पूरी गतिविधि के बारे में आपसे बातचीत किया करुंगा।
लेकिन,अभी मुझे एक स्क्रिप्ट पढ़कर ख़त्म करनी है,यही मौक़ा है जब मुझे छुट्टी मिली है तो उसका उपयोग करुँ। और ब्लॉग का उपयोग करते हुए मैं सिर्फ़ ये कहूंगा कि एसिड फ़ैक्ट्री के बारे में जितनी जानकारी ले सकते हैं,ले लें। नेट पऱ। फ़िल्म मैंने देखी है और फ़िल्म काफ़ी अच्छी है। लेकिन उसके बारे में बातचीत उसके प्रदर्शन के वक़्त करुंगा। अभी के लिए इतना ही।
आपका और सिर्फ़ आपका
मनोज बाजपेयी
साभार manojbajpayee.itzmyblog.com/
आजकल खाली समय में टीवी लगाकर देखता रहता हूँ कि 'एसिड फ़ैक्ट्री' के प्रोमो कब आएंगे। लगातार एसिड फैक्ट्री का प्रचार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। और अच्छा ये लग रहा है कि एसिड फ़ैक्ट्री के निर्माता और वितरक दोनों ही उसके सही प्रदर्शन को लेकर सजग हैं। यहाँ भोपाल में दो दिन की छुट्टी मिली मुझे, तो मैं भोजपुर चला गया शिवलिंग के दर्शन करने। वहाँ से निकलकर भीम बेटिका गया, जो विश्व धरोहर है। वहाँ पहुँचते ही एक गाइड को अपने साथ लिया। ताकि वो हमें गुफाओं और गुफाओ पर बने शैल-चित्रों के बारे में विस्तृत जानकारी दे सके।
अच्छा ये लगा कि इस धरोहर को बहुत ही सुरक्षित ढंग से रखा गया है। काफ़ी साफ़-सफ़ाई रखी गई है। गाइड के बोलने के अंदाज़ को देखकर मैं काफ़ी अचंभित हुआ और मन-ही-मन में उसके अंदाज़ की नक़ल करना शुरु कर दिया। कभी ऐसी कोई भूमिका मिले तो उस गाइड की नक़ल ज़रुर करुंगा। मेरी यात्रा काफ़ी जानकारी भरी रही और गाइड के कारण काफ़ी मनोरंजक भी।
मुझे पता है कि मैं अपना ब्लॉग नियमित नहीं लिख पा रहा हूँ। थोड़ा गैप आ जाता है। लेकिन अब इस अंतराल को कम करने की पूरी कोशिश होगी। अब हर हफ़्ते आपसे मुख़ातिब होऊंगा और उस हफ़्ते की पूरी गतिविधि के बारे में आपसे बातचीत किया करुंगा।
लेकिन,अभी मुझे एक स्क्रिप्ट पढ़कर ख़त्म करनी है,यही मौक़ा है जब मुझे छुट्टी मिली है तो उसका उपयोग करुँ। और ब्लॉग का उपयोग करते हुए मैं सिर्फ़ ये कहूंगा कि एसिड फ़ैक्ट्री के बारे में जितनी जानकारी ले सकते हैं,ले लें। नेट पऱ। फ़िल्म मैंने देखी है और फ़िल्म काफ़ी अच्छी है। लेकिन उसके बारे में बातचीत उसके प्रदर्शन के वक़्त करुंगा। अभी के लिए इतना ही।
आपका और सिर्फ़ आपका
मनोज बाजपेयी
साभार manojbajpayee.itzmyblog.com/
रविवार, सितंबर 27, 2009
यह मेरा सड़ा आचार
अरे यार यह सड़ा आचार क्या है चलिये मैं बत्ताता हूँ चूँकि पत्रकार हूँ तो बात करता हूँ संपादक की । हर आदमी संपादक होता है और चोट्टे पतरकारों की नज़र में वोः सड़ा आचार होता है । मजे की बात यह है की संपादक की नज़र में यह तुचे पत्रकार सड़ा आचार होता है। इसके ठीक विपरीत ये लेखक संपादक की नजरों में सड़े अचार होते हैं जो सड़े अचार की माफ़िक घोर अपठनीय-अप्रकाशनीय रचनाओं पर रचनाएँ लिख मारते हैं.
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