शनिवार, फ़रवरी 02, 2019

फसल बीमा करने वाली कंपनियों का बढ़ा मुनाफा, किसानों के आज भी हालात बदतर

आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने आरटीआई के तहत केन्द्रीय कृषि मंत्रालय से प्राप्त सूचनाओं से खुलासा किया है कि बहुचर्चित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को दो वर्षों में पूरे देश के 85 लाख किसानों ने छोड़ दिया है। इस योजना को छोडऩे वाले किसानों में 80 प्रतिशत(कुल 68 लाख) किसान भाजपा शासित चार राज्यों से हैं।

सरकारी क्षेत्र की एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया (ए.आई.सी.) के इलावा कुल दस निजी बीमा कम्पनियों ने इस योजना से इसी दौरान कुल 15,795 करोड़ रूपये कमाए। चार बड़े राज्यों मध्य प्रदेश (2.90 लाख), राजस्थान (31.25 लाख), महाराष्ट (19.47 लाख) व यूपी (14.69) में कुल 1.06 करोड़ किसानों का योजना से मोहभंग हो गया। वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों की औसत कमाई प्रतिमाह 538.30 करोड़ रूपये प्रति माह तो वर्ष 2017-18 में यह औसत कमाई बढक़र प्रतिदिन 778 करोड़  रूपये प्रतिमाह हो गई। वर्ष 2016-17 में 5.72 करोड़ कुल किसान बीमाकृत किए गए तो वर्ष 2017-18 में इनकी संख्या 85 लाख घटकर 4.87 करोड़ रह गई। जबकि बीमा कम्पनियों को वर्ष 2016-17 में वार्षिक मुनाफा कुल 6459.64 करोड़ रूपये हुआ तो वर्ष 2017-18 में बीमा कम्पनियों के इस मुनाफे में 150 प्रतिशत की वृद्धि होकर यह राशि कुल 9335.62 करोड़ रूपये हो गई।
पंजाब राज्य में यह योजना लागू नहीं है वरना बीमा कम्पनियों की तिजौरी और भी ज्यादा भरती। गुजरात में दो वर्षों में बीमा कम्पनियों के लाभ में 5548 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि हुई। वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों ने गुजरात में मात्र 40.16 करोड़ रूपये मुनाफा कमाया तो वर्ष 2017-18 में यह कमाई 2222.58 करोड़ रूपये पहुंच गई। गुजरात में न्यू इंडिया कम्पनी ने अकेले 1429 करोड़ रूपये कमाए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के बीमा करने के लिए भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (कृषि मंत्रालय) ने कुल दस निजी कम्पनियों व भारत सरकार की एग्रीकल्चर इंश्योरेंश कम्पनी ऑफ इंडिया को अधिकृत कर रखा है।
वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों के कुल मुनाफे में सर्वाधिक 2610.60 करोड़ रूपये का मुनाफाा कमाने वाली सरकारी क्षेत्र की एकमात्र कम्पनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया (ए.आई.सी) द्वारा अगले वर्ष 2017-18 में सिर्फ डेढ़ करोड़ किसानों का बीमा कर पाना व मात्र 528 करोड़ रूपये की बचत कर पाना बहुत बड़े घोटाले को स्पष्ट करता है। दो वर्षों के दौरान न्यू इंडिया कम्पनी को सर्वाधिक 2226 करोड़ रूपये मुनाफा हुआ। एचडीएफसी को 1817.74 करोड़ व रिलायंस कम्पनी को कुल 1461.20 करोड़ रूपये का मुनाफा हुआ।
योजना को घोटाला बताया:-
यह खुलासा करने वाले पानीपत के आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना हर वर्ष सरकारी संरक्षण में चलने वाला एक बहुत बड़ा घोटाला है। किसानों के नाम पर निजी बीमा कम्पनियों की तिजौरियां भरी जा रही हैं। योजना पूरी तरह से फ्लॉप हो चुकी है। यह राशि निजी बीमा कम्पनियों को लुटवाने की बजाए सीधे किसानों को दी जाती तो किसानों की स्थिति में सुधार होता। कपूर ने बताया कि 12 सितम्बर की उनकी आरटीआई के जवाब में गत 14 अक्टूबर के पत्र से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार की उपायुक्त कामना आर० शर्मा ने सूचना दी है।
बीमाकृत किसान घटे, कम्पनियों के मुनाफे बढ़े:-
वर्ष 2016-17 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से कुल 5,72,17,159 किसान जुड़े थे तो एक वर्ष बाद (वर्ष 2017-18) में 84.47 लाख किसानों ने इस योजना को छोड़ दिया। किसानों की संख्या (वर्ष 2017-18) में घट कर कुल 4,87,70,515 रह गई। जबकि वर्ष 2016-17 में कुल 17,902.47 करोड़ रूपये मुआवजा राशि देने के बावजूद भी बीमा कम्पनियों नेे कुल 6459.64 करोड़ रूपये का मुनाफा हुआ। इसी प्रकार वर्ष 2017-18 में किसानों को कुल 15,710.25 करोड़ रूपये मुआवजा राशि अदा करने के बावजूद बीमा कम्पनियों को कुल 9335.62 करोड़ रूपये कम्पनियों की तिजौरी में मुनाफे के नाम पर पहुंच गए। यानि किसान घटते गए तो कम्पनियों के मुनाफे बढ़ते गए।
सवाल जो जवाब मांगते है:-
फसल बीमा योजना क्या राकेट साईंस थी जो निजी कम्पनियों को अधिकृत किया गया। वर्ष 2016-17 में सरकारी कम्पनी (ए.आई.सी) ने देश के 21 राज्यों में कुल 2,46,83,612 किसानों का बीमा करके कुल 7984.56 करोड़ का प्रीमियम एकत्रित किया। कुल 5373.96 करोड़ रूपये का मुआवजा राशि देने के बावजूद सर्वाधिक 2610.60 करोड़ रूपये लाभ कमाने वाली इस सरकारी बीमा कम्पनी (ए.आई.सी) को अगले वर्ष 2017-18 में मात्र 1.5 करोड़ किसानों के बीमे कर पाई। ऐसा क्यों? सिर्फ इसलिए ताकि प्राईवेट कम्पनियां खुलकर लूट कर सकें।
किसानों के नाम पर बीमा कम्पनियों की तिजौरियां यूं भरी गई:- 
दो वर्षों में कुल 10.60 करोड़ किसानों से कुल प्रीमियम राशि 49,408 करोड़ रूपये लेकर इसमें से कुल 33,612.72 करोड़ रूपये मुआवजा राशि कुल 4.27 करोड़ किसानों को बांटकर शेष बचे 15,795.26 करोड़ रूपये मुनाफेे के नाम पर कुल दस बीमा कम्पनियों की तिजौरी में भर दिए गए।
अधिकृत दस निजी कम्पनियां व एक सरकारी कम्पनी:
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों की फसलों बीमे करने के लिए भारत सरकार के कृषि, सहकारिता एवं कृषक कल्याण विभाग (कृषि मंत्रालय) ने कुल दस निजि बीमा कम्पनियों को अधिकृत कर रखा है। इनमें आईसीआईसी लोम्बार्ड, रिलायंस, टाटा-एआईजी, यूनिवर्सल, बजाज आलियन, फ्यूचर, एसबीआई, एचडीएफसी, इफको-टोकियो, चोलमंडलम शािमल है। इनके इलावा एक सरकारी  बीमा कम्पनी एग्रीकल्चर इंश्योरंस कम्पनी ऑफ इंडिया (एआईसी) भी अधिकृत है।
हरियाणा के आंकड़े:-
भाजपा शासित हरियाणा में दो वर्ष में बीमाकृत किसानों की संख्या में 15,228 की वृद्धि हुई। जहां वर्ष 2016-17 में बीमाकृत किसानों की कुल संख्या 13,36,028 थी वहीं वर्ष 2017-18 में यह बढक़र 13,51,256 हो गई। वर्ष 2016-17 में किसानों से कुल 364.39 करोड़ रूपये प्रीमियम राशि वसूल कर उन्हें कुल 292.55 करोड़ रूपये की मुआवजा राशि दी गई। बीमा कम्पनियों को वर्ष 2016-17 में कुल 71.83 करोड़ का लाभ हुआ। वर्ष 2017-18 में बीमा कम्पनियों ने कुल 453 करोड़ रूपये का प्रीमियम वसूला जबकि किसानों को मुआवजेे में 358 करोड़ रूपये देकर कुल 95 करोड़ रूपये कमाए।

मध्य प्रदेश के आंकड़े:-
भाजपा शासित मध्य प्रदेश में वर्ष 2016-17 में बीमाकृत किसानों की संख्या 71,81,242 थी तो वर्ष 2017-18 में यह संख्या घटकर 68,90,930 रह गई। यानि कुल 2,90,312 किसानों ने योजना छोड़ दी। वर्ष (2016-17) में कुल एकत्रित 3852.24 करोड़ रूपये का प्रीमियम राशि में से 1979.92 करोड़ रूपये का मुआवजा राशि देने के बाद बीमा कम्पनियों को कुल 1862.32 करोड़ रूपये का लाभ हुआ। वहीं अगले वर्ष (2017-18) में बीमाकृत किसानों की संख्या में रिकार्ड 2.90 लाख की गिरावट के कारण बीमा कम्पनियों का लाभ सिर्फ 39.21 करोड़ रूपये रह गया। कुल 1302.84 करोड़ रूपये प्रीमिय राशि किसानों से ले कर कुल 1263.63 करोड़ रूपये मुआवजा राशि किसानों को दी।
महाराष्ट्र के आंकड़े:-
महाराष्ट्र में वर्ष 2016-17 में बीमाकृत किसानों की कुल संख्या 1,20,01252 थी तो वर्ष 2017-18 में घटकर कर 1,0054260 रह गई। यानि कुल 19.47 लाख किसान छोड़ गए। वर्ष 2016-17 मे कुल 4739.74 करोड़ रूपये की प्रीमियम राशि किसानों से लेकर उन्हें कुल 2315.51 करोड़ रूपये का क्लेम दिया गया। यानि बीमा कम्पनियों को कुल 2424.23 करोड़ रूपये का लाभ हुआ।
जबकि वर्ष 2017-18 में कुल 4402.30 करोड़ रूपये की प्रीमियम राशि वसूल कर कुल 2784.36 करोड़ रूपये का मुआवजा दिया गया। यानि कुल 1617.94 करोड़ रूपये का मुनाफा बीमा कम्पनियों को हुआ।
राजस्थान के आंकड़े:-
राजस्थान में दो वर्षों में कुल 31.25 लाख किसान इस योजना को छोड़ गए। वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों ने कुल 91,50,224 किसानों की फसलों का बीमा किया था। कुल 2591.30 करोड़ रूपये की प्रीमियम राशि वसूल कर 1841.25 करोड़ रूपये का मुआवजा दिया था। यानि बीमा कम्पनियों को वर्ष 2016-17 में कुल लाभ 750 करोड़ रूपये का हुआ। वहीं वर्ष 2017-18 में कुल 31.25 लाख किसानों के इस योजना से पीछे हटने से बीमाकृत किसानों की संख्या घटकर 60,25,199 रह गई। इस दौरान 1983 करोड़ रूपये की प्रीमियम राशि किसानों से लेकर उन्हें कुल 1378.45 करोड़ रूपये मुआवजे में बांट दिए गए। यानि कुल 604.45 करोड़ रूपये का लाभ बीमा कम्पनियों को हुआ।
उत्तर प्रदेश के आंकड़े:-
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016-17 में कुल 67,69,968  किसानों का बीमा किया गया, जबकि अगले वर्ष  2017-18 में यह संख्या घटकर 53,00,916 रह गई। यानि दो वर्षों में करीब पंद्रह लाख किसानों का इस योजना से मोहभंग हो गया। जबकि वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों ने कुल 1103.14 करोड़ रूपये प्रीमियम राशि एकत्रित की तथा इसमें से 554.20 करोड़ रूपये मुआवजा राशि बांटकर कुल 548.94 करोड़ रूपये लाभ कमाया। जबकि वर्ष 2017-18 में बीमा कम्पनियों ने कुल 1380.40 करोड़ रूपये प्रीमियम राशि एकत्रित कर कुल 333.59 करोड़ रूपये मुुआवजा राशि बांटकर कुल 1046.81 करोड़ रूपये का मुनाफा बटोर लिया।
गुजरात राज्य के आंकड़े:-
गुजरात में वर्ष 2016-17 में कुल बीमाकृत किसानों की संख्या 5,20,025 थी तो वर्ष 2017-18 में यह बढक़र 17,63,490 हो गई। यानि 12,43,465 बीमाकृत किसानों की संख्या बढ़ गई। वर्ष 2016-17 में कुल वसूली गई 173.94 करोड़ रूपये की राशि में से 133.87 करोड़ रूपये मुआवजा राशि बांटने से बीमा कम्पनियों को कुल 40.07 करोड़ रूपये का लाभ मिला। वर्ष 2017-18 में 3262.17 करोड़ प्रीमियम राशि में से 1039.59 करोड़ रूपये मुआवजा बांटकर कुल 2222.58 करोड़ रूपये कम्पनियों ने कमा लिए।
पश्चिम बंगाल के आंकड़े:-
ममता बनर्जी शासित पश्चिम बंगाल में भी 2,23,940 किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को त्याग दिया। वर्ष 2016-17 में बीमाकृत किसानों की कुल संख्या 41,33,279 थी तो वर्ष 2017-18 में 2,23,940 घटकर 39,09,339 रह गई। जबकि बीमा कम्पनियों का लाभ जो वर्ष 2016-17 में कुल 321.26 करोड़ था वह 2017-18 में बढक़र 547.87 करोड़ पहुंच गया।
तमिलनाडु के आंकड़े:-
तमिलनाडु में वर्ष 2016-17 में बीमा कम्पनियों को 2128.25 करोड़ रूपये का नुकसान झेलना पड़ा। वर्ष 2016-17 में कुल प्रीमियम राशि 1227.37 करोड़ रही तो मुआवजा राशि में कुल 3355.62 करोड़ रूपये देने पड़े।  हालांकि अगले वर्ष 2017-18 में किसानों की संख्या में 25,295 की कटौती के बावजूद बीमा कम्पनियों को कुल 1375.53 करोड़ रूपये का लाभ हुआ। वर्ष 2017-18 में कुल प्रीमियम राशि 1395.53 करोड़ वसूली तो मुआवजा राशि मात्र 20 करोड़ ही दी। वर्ष 2016-17 में बीमाकृत कुल किसान 14,11,228 में तो वर्ष 2017-18 में घटकर 13,85,933 रह गए।
कर्नाटक के आंकड़े:-
कर्नाटका में किसान घटे लेकिन बीमा कम्पनियों का मुनाफा बढ़। वर्ष 2016-17 में कुल 27,37,667 किसानों का बीमा हुआ तो वर्ष 2017-18 में 11,29,090 किसानों के स्कीम छोडऩे से यह संख्या घटकर 16,08,569 रह गई। जहां वर्ष 2016-17 में कुल 1,548.90 की प्रीमियम राशि वसूली वहीं क्लेम राशि 1790.68 करोड़ देने से कम्पनियों को 241.79 करोड़ का नुकसान हुआ। लेकिन अगले ही वर्ष 2017-18 में बीमा कम्पनियों ने कुल 1930.12 करोड़ रूपये का प्रीमियम वसूल कर व मात्र 587.54 करोड़ रूपये क्लेम राशि देकर 1342.58 करोड़ का मुनाफा कमा लिया। इसमें अकेले यूनिवर्सल कम्पनी को 978.84 करोड़ रूपये का लाभ हुआ। इसने 1150 करोड़ रूपये प्रीमियम राशि वसूली जबकि क्लेम राशि में मात्र 171.16 करोड़ दिए।

शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

डिजिटल कंटेंट पर असर डालेंगे ये 5 ट्रेंड

जियो के लॉन्च ने डेटा की कीमतें एकदम से नीचे ला दीं। इससे इंटरनेट सारे भारतीयों के दायरे में आ गया और डिजिटल बिज़नेस में निवेश बढ़ गया। आज डिजिटल क्षेत्र 30-35 फीसदी की संयुक्त एकीकृत वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है और वृद्धि का अगला चरण मोबाइल आधारित क्षेत्रीय बाजारों से अपेक्षित है। अब जब क्षेत्रीय बाजार डिजिटल बिज़नेस का मुख्य फोकस बन रहा है तो क्या क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेन्ट की अत्यधिक मांग है? इसका जवाब तो असंदिग्ध रूप से 'हां' ही है। 2017 तक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मुख्यत: अंग्रेजी भाषा के कंटेन्ट की मांग थी। लेकिन, 2018 से स्थानीय भाषा का कंटेन्ट न सिर्फ निर्मित हो रहा है बल्कि इसकी खपत भी हो रही है। 2019 में भी कंटेन्ट निर्मिति और उसकी खपत के पैटर्न में बदलाव होता रहेगा। इस पृष्ठभूमि में आइए, पांच ऐसे इंटरनेट ट्रेंड्स पर विचार करें, जो 2019 में मोबाइल आधारित डिजिटल कंटेन्ट बिज़नेस को प्रभावित करेंगे। 

5 ट्रेंड्स: जो 2019 में डिजिटल कंटेंट को करेंगे प्रभावित

  1. भारतीय भाषाओं के इंटरनेट यूज़र में ही डिजिटल भविष्य

    भाषाई कंटेन्ट डिजिटल भारत का भविष्य सिद्ध हो रहा है। इन संभावनाओं के दोहन के लिए कई स्थानीयकृत एप्स और सेवाओं की एकदम जमीन से शुरुआत की गई है। जैसे Circle और Lokal जैसे हाईपर लोकल वर्नाक्यूलर न्यूज़ एप। इन्होंने वीडियो स्निपेट्स का इस्तेमाल शुरू भी कर दिया है, क्योंकि वीडियो कंटेन्ट की अत्यधिक मांग है। फिर यह भी है कि सोशल नेटवर्क हो या न्यूज़ एग्रीगेटर्स शायद ही ऐसा होता हो कि यूज़र एक भी वीडियो देखे बिना उनके कंटेन्ट को देखता हो। केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक 80 फीसदी वैश्विक इंटरनेट खपत वीडियो कंटेन्ट के रूप में होगी। स्पष्ट है कि सारे ट्रेंड यही बताते हैं कि ऑनलाइन खपत वाले कंटेन्ट में वीडियो सबसे पसंदीदा स्वरूप होगा। इसके साथ-साथ हम इंटरनेट का पहली बार उपयोग करने वाले गैर-अंग्रेजी यूज़र का सैलाब आते देख रहे हैं। इसे देखते हुए कई कंटेन्ट प्लेटफॉर्म्स ने ऐसे ग्राहकों की विविध जरूरतों व चुनौतियों से निपटने के लिए बहु-भाषा नीति लागू की है। मसलन, नेटफिल्क्स ने आमदनी में हिस्सेदारी और रिकॉल बढ़ाने के लिए भाषाई सब-टाइटल्स के माध्यम से स्थानीयकरण पर फोकस किया है। 
  2. वीडियो के साथ डिजिटल एडवर्टाइजिंग का बढ़ना जारी

    डिजिटल एडवर्टाइजिंग में क्रांति आ गई है, इसलिए इसमें आगे रहना महत्वपूर्ण है। व्यावसायिक घरानों को अहसास हो रहा है कि उच्च प्रभाव वाले मीडिया का होना अब सिर्फ अच्छी बात नहीं रह गई है बल्कि इसका होना ब्रैंड्स के लिए निर्णायक हो गया है। संभावना है कि वीडियो एडवर्टाइजिंग का सबसे शक्तिशाली माध्यम रहेगा, क्योंकि वे सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करने वाले प्लेटफॉर्म हैं। यह कनवर्शन रेट (व्यूवर से खरीददार बनने की दर) भी बढ़ाता है। 
    नवीनतम 'ग्रुप एम' रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में देश में विज्ञापन खर्च 14.2 फीसदी की दर से बढ़ेगा। इसकी तुलना में औसत वैश्विक वृद्धि दर 3.9 फीसदी रहेगी। विज्ञापन बजट में डिजिटल वीडियो विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा होगा। इसमें भी मोबाइल व सोशल वीडियो एडवर्टाइजमेंट विज्ञापनदाताओं की पसंद में शीर्ष पर होंगे। इसके अलावा अपेक्षा है कि ब्रैंड्स 'मोमेंट्स मार्केटिंग' पर फोकस करेंगे। यह संदर्भ को संबंधित संकेतों से जोड़कर लक्षित ग्राहकों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक वीडियो एडवर्टाइजिंग कंटेन्ट डिलीवर करता है। 
  3. एआई, एमएल और ब्लॉकचेन व्यवसायों में उथल-पुथल मचा देंगे

    डेटा संचालित अंतर्दृष्टि, डिजिटल टेक्नोलॉजी और हर जगह मौजूद मोबाइल कंप्यूटिंग भारतीय डिजिटल कंटेन्ट बिज़नेस का स्वरूप बदल रही है। जहां 2018 ऐसा साल था, जिसमें ब्रैंड्स ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग (एमएल) और ब्लॉकचेन अप्लिकेशन में प्रयोग शुरू किए, वहीं 2019 के साल में वे इसे व्यवस्थित रूप दे देंगे। एआई/एमएल संचालित टेकनीक बेहतर ट्रेंड विश्लेषण, कस्टमर की बेहतर प्रोफाइलिंग, पर्सनलाइजेशन की अत्याधुनिक रणनीतियों के जरिये ग्राहक केंद्रित हो जाएगी। ये सब और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के मुख्यधारा में आने की संभावना है। कंपनियां अब यह देख रही हैं कि वे टेक्नोलॉजी का उपयोग यह जानने के लिए कैसे कर सकती हैं कि संभावित ग्राहक किस प्रकार का कंटेन्ट पसंद कर रहे हैं ताकि ग्राहकों को अधिक व्यक्तिगत अनुभव और अत्यधिक संतुष्टि दी जा सके। 
  4. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कंटेन्ट अब भी किंग

    भारतीय बाजार इस बारे में अनूठा है कि इसमें ऐसे कंटेन्ट की पहचान करनी होती है, जो उसकी विविध आबादी का ध्यान खींच सके। 2019 में भारत में ऑनलाइन कंटेन्ट की खपत बढ़ेगी और इसमें 'खबर' के सेगमेंट का महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। फिर भारत में कंटेन्ट कंजम्प्शन के पैटर्न को सावधानी से देखें तो पता चलता है कि कंटेन्ट की गति, मात्रा और सत्यता ही इसकी सफलता पर असर डालेगी। अधिकाधिक डिजिटल कंपनियां फर्जी व सच्चे न्यूज़ कंटेन्ट के अंतर जैसे कारकों का संज्ञान लेंगी। यह प्रमुख तत्व होगा, जो चुनावी वर्ष में कंटेन्ट की दीर्घावधि टिकाऊ सफलता तय करेगा। 
  5. एमटीटीएच के साथ इंटरनेट और विकसित होगा

    भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में अपने अत्यंत किफायती डेटा व वॉइस ऑफरिंग से उथल-पुथल मचाने के बाद 2019 में सारी निगाहें रिलायंस जियो पर हैं, जो अब ब्राडबैंड मार्केट में तूफान लाने के लिए तैयार है। व्यापक बाजार, हाई स्पीड, इंटरनेट आधारित टेलीविजन प्रोग्राम (फाइबर टू द होम यानी एफटीटीएच) के साथ वायर्ड ब्राडबैंड सर्विस भारत में टेलीविजन देखने या इंटरनेट कंटेन्ट के इस्तेमाल के तरीके में बदलाव ला देगी। 
  6. कुल-मिलाकर उम्मीद है कि जियोगिगाफाइबर ब्राडबैंड सेवाएं देश में एफटीटीएच इंडस्ट्री के मौजूदा स्वरूप को बदल देंगी। फिर जियोगिगाफाइबर के उभरने को एप या सॉफ्टेवयर आधारित कंटेन्ट फॉर्मेट की बढ़ती लोकप्रियता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। 2019 टीवी चैनल्स से एप आधारित कंजम्प्शन में बदलाव का है। यह वर्ष 5 जी लाने की तैयारी का भी है। यह महत्वपूर्ण ट्रेंड भारत के मीडिया व मनोरंजन उद्योग में उथल-पुथल मचा देगा। निष्कर्ष यह है कि इस साल कंपनियां नवीनतम टेक्नोलॉजी के माध्यम से कंटेन्ट की शक्ति का दोहन करेंगी। उभरते इंटरनेट और नई रणनीतियों के सहारे मोबाइल आधारित 'डिजिटल इंडिया' का सपना साकार किया जाएगा। 
    उमंग बेदी प्रेसिडेंट, डेली हंट 

महागठबंधन देश हित या स्वार्थ


‘’मंजिल दूर है, डगर कठिन है लेकिन दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते चलिए", कोलकाता में विपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित ममता की यूनाइटिड इंडिया रैली में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का यह एक वाक्य "विपक्ष की एकता" और उसकी मजबूरी दोनों का ही बखान करने के लिए काफी है। अपनी मजबूरी के चलते ये सभी दाल इस बात को भी नजरअंदाज करने के लिए मजबूर हैं कि यह सभी नेता जो आज एक होने का दावा कर रहे हैं वो सभी कल तक केवल बीजेपी नहीं एक दूसरे के भी "विपक्षी" थे। सच तो यह है कि कल तक ये सब एक दूसरे के विरोध में खड़े थे इसीलिए आज इनका अलग आस्तित्व है क्योकि सोचने वाली बात यह है कि अगर ये वाकई में एक ही होते तो आज इनका अलग अलग वजूद नहीं होता। दरअसल कल तक इनका लालच इन्हें एक दूसरे के विपक्ष में खड़ा होने के लिए बाध्य कर रहा था, आज इनके स्वार्थ इन्हें एक दूसरे के साथ खड़े होने के लिए विवश कर रहे हैं। क्योंकि इनमें से अधिकांश भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं जैसे ममता शारदा चिटफंड घोटाला, अखिलेश खनन घोटाला, केजरीवाल राशन घोटाला लालू चारा घोटाला आदि। इसलिए ये सभी केंद्र में कैसी और कौन सी सरकार चाहते यह समझा जा सकता है। शायद इसलिए यह रैली देश के लोगों में चर्चा का विषय बन जाती है जब लालू के बेटे तेजस्वी यादव (जिनके पिता के कार्यकाल में बिहार जंगल राज किडनैपिंग फिरौती और भ्रष्टाचार के लिए मशहूर था) या अरविंद केजरीवाल सरीखे लोग मंच पर मोदी से देश को बचाने के नारे लगाते हैं या फिर ममता बनर्जी जैसी नेता जिनके राज में बंगाल के  पंचायत जैसे चुनाव का नामांकन भी बंदूक की नोक पर होता हो, लोकतंत्र को बचाने की दुहाई देती हैं। क्या ये राजनेता भारत की जनता को इतना मूर्ख समझते हैं कि वो समझ नहीं पाएगी कि असल में लोकतंत्र और संविधान नहीं बल्कि खुद इनका आस्तित्व खतरे में हैं?
 दरअसल राजनीति में जो दिखता है या जो दिखाया जाता है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण वो होता है जो दिखता नहीं है या दिखाया नहीं जाता। जैसे, 
1,ममता ने इस रैली के बहाने जो शक्तिप्रदर्शन किया है वो "कथित बाहरी विपक्ष" यानी भाजपा के लिए नहीं बल्कि "अंदरूनी विपक्ष"यानी प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदारों के लिए था। मोदी तो बहाना था, असली मकसद तो मायावती को अपनी ताकत दिखाना था। उन्हें उस खुमारी से जगाना था जो उन्हें यूपी में सपा के साथ गठबंधन करके होने लगी थी। बसपा और सपा के गठबंधन के बाद भाजपा और मोदी की नींद कितनी उड़ी यह कहना तो मुश्किल है लेकिन ममता की इस रैली से मायावती की नींद अवश्य उड़ गई होगी।
2, विभिन्न क्षेत्रीय दल विपक्षी एकता के जितने भी दावे करे वो खुद भी अपने इस दावे के खोखलेपन को जानते हैं।क्योंकि वो जानते हैं कि कांग्रेस को अपने साथ मिलाए बिना विपक्षी एकता की बात बेमानी होगी लेकिन कांग्रेस को अपने साथ मिलाकर एकता की बात करना बेवकूफी ही नहीं आत्मघाती भी होगी। इस बात को यूपी में बुआ बबुआ ने अपने गठबंधन में कांग्रेस को बाहर रख कर सिद्ध कर दी है और अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों को भी दिशा दिखा दी है।
3, ममता की इस रैली में 23 विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी उतनी अहम नहीं है जितनी कुछ नेताओं की गैरमौजूदगी। क्योंकि ये वो नाम हैं जिन्हें ममता तो क्या ये 23 विपक्षी दल भी अनदेखा नहीं कर सकते। आइए इन नामों पर गौर फरमाएँ, सोनिया गांधी राहुल गांधी मायावती सीताराम येचुरी के चंद्रशेखर जगनमोहन रेड्डी नवीन पटनायक। 
4,यहां यह याद करना भी जरूरी है कि कुछ समय पहले जब सोनिया ने बीजेपी के खिलाफ गठबंधन करने की कोशिश की थी, तब भी कुछ नाम गैरहाजिर थे, माया ममता और अखिलेश। 
5,लेकिन याद कीजिए, कुछ समय पहले ही कर्नाटक में कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में जब मंच पर एक साथ मौजूद सोनिया माया ममता की एक दूसरे को गले लगाती उन तस्वीरों ने मीडिया में काफ़ी सुर्खियाँ बटोरी थीं। तो अब सबसे एहम सवाल यह है कि वो विपक्ष जिसकी कथित एकता की तस्वीरों में ही चेहरों का स्थायित्व नहीं है, वो देश को अपनी एकता का संदेश और स्थायित्व देने में कितना सफल हो पाएगा। 
6, क्योंकि आज जब यूनाईटिड इंडिया के मंच पर ये सभी विपक्षी दल एक होते हैं तो अपने भाषणों से जनता को अपने "एक होने" का मकसद तो सफलता पूर्वक समझा देते हैं, "मोदी को हटाना है"। लेकिन उस मकसद को हासिल करने के बाद देश के लिए अपना एजेंडा तो छोड़ो अपने नेतृत्व का नाम तक नहीं बता पाते। 
7,जब ममता उस मंच से यह कहती हैं कि हमारे यहाँ हर कोई लीडर है तो क्या उनके पास कांग्रेस का कोई इलाज है? क्योंकि अगर कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरती है, तो राहुल अपनी दावेदारी पहले ही जाहिर कर चुके हैं। अगर विपक्षी दल राहुल को पीएम स्वीकार नहीं करें तो कांग्रेस एक बार फिर मनमोहन पर दांव खेल सकती है। ऐसी स्थिति का सामना वो विपक्ष कैसे करेगा जिसमें सभी लीडर हैं यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
लेकिन इन राजनैतिक सवाल जवाबों से परे जब देश का आम आदमी इन विपक्षी दलों को अपने अपने मतभेदों को भुलाकर "देशहित" में एक होते हुए देख रहा है तो सोच रहा है कि क्या इन राजनैतिक दलों का देश हित चुनाव जीत कर सत्ता हासिल करने तक ही सीमित है? जिस आम आदमी की दुहाई देकर ये दल आज महागठबंधन बनाने की बात कर रहे हैं क्या इन्होंने कभी इस आम आदमी के हित के लिए गठबंधन किया है जब उसे वाकई में जरूरत थी? क्या देश के किसी हिस्से में भूकंप बाढ़ सूखा या फिर अन्य किसी प्राकृतिक आपदा में इस प्रकार की एकता दिखा कर उसकी मदद के लिए इकट्ठे हुए हैक्या ऐसे मौकों पर खुद आगे बढ़ कर देश हित में देश सेवा की हैइन सभी क्षेत्रीय दलों के देश हित की दास्तान तो खुद इनके प्रदेश बयाँ कर रहे हैं जहाँ सालों ये सत्ता में थे या हैं। पश्चिम बंगाल हो बिहार हो या उत्तर प्रदेश, जनता सब जानती है इसलिए मंद मंद मुस्कुराती हुए पूछती है कि झूठ क्यों बोलते हो साहेब,यह महागठबंधन नहीं ये तो महाठगबंधन है बाबू।
डॉ नीलम महेंद्र

गुरुवार, सितंबर 13, 2018

ऐसे होता है नेटवर्किंग कंपनी में चेन सिस्टम के जरिए फ्रॉड

आपने स्पीक एशिया, क्रिप्टो कॉइन, क्लिक, बॉक्स इन जैसी कंपनियों में इनवेस्ट करके अपनी गाढ़ी कमाई जरूर खोई होगी। इसमें लोगों को जोड़कर चेन सिस्टम के जरिए ठगी का खेल खेला जाता है। दरअसल देश में ऐसे सभी फाइनेंशियल फ्रॉड के पीछे 200 लोगों का एक नेटवर्क काम करता है। ये एक ऐसा नेटवर्क है, जो एक कंपनी में काम शुरू कराकर अपना कमीशन लेकर दूसरी कंपनी शुरू करने में निकल जाता है। इनका नाम कहीं कागजातों पर नहीं होता, इसलिए पुलिस भी इन तक नहीं पहुंच पाती।
ये गैंग ऐसे करता है जालसाजी
 - यह लोग 20-20 के जोड़ों में देशभर में बंटे हुए हैं, यह नया प्लान सोचते हैं कि किसी प्रकार से कुछ नया करके मार्केट में जुआ खिला सकते हैं। इनमें नेक्सस से जुड़े लोग नई कंपनियों की तलाश करते हैं।
 - इन 200 लोगों में से जिसको भी कोई ऐसी कंपनी मिलती, जो इनके बिजनेस के लिए उपयुक्त है। उसके साथ एक डील का ऑफर रखते हैं। चूंकि इस कंपनी का एमडी खुद फायनेंशियली संघर्ष कर रहा होता है तो वह इनकी डील में हाथ मिला लेता है। डील में बताते हैं कि आपको महीने में 250 करोड़ का निवेश देंगे, इसमें से 20 प्रतिशत हमारा नेक्सस से जुड़े लोगों का होता। इसके साथ यह कंपनी से कहते हैं कि आपको कुछ लग्जरी गाड़ियां, हवाई यात्रा की टिकट, होटल का खर्चा व कार्यालय का खर्चा झेलना पड़ेगा। वह भी कुछ समय के लिए, ताकि लोगों तक यह संदेश जाए कि कंपनी वास्तव में अच्छी है। इस डील में कुछ भी कागजात पर नहीं होता।
 :- डील होते ही अपने गैंग के बाकी सभी एक्सपर्ट को इस कंपनी में बुला लेता है। यहां तय होता है कि मल्टी लेवल मार्केटिंग के कम रुपये लगाकर दोगुना करने का फार्मूला। इसमें कुछ ऐसे भी काम किए जाते हैं कि लगे कि कंपनी एमएलएम के नियमों का पालन कर रही है।
 :- एक्सपर्ट की यह टीम सोशल मीडिया व माउथ टू माउथ पब्लिसिटी कर कंपनी की ब्रांडिंग करती है। सेमिनार हॉल के बाद लग्जरी गाड़ी खड़ी की जाती। स्थानीय स्तर पर सबसे पहले जुड़ने वाले लोग टॉप डिस्ट्रीब्यूटर बनते।
 :- कंपनी में निवेश आने लगता है। पहले 10 करोड़ रुपये प्रति दिन फिर 20 करोड़ प्रतिदिन। कंपनी अन्य राज्यों में दफ्तर खोलती। प्रतिदिन कुल रुपयों का 20% हिस्सा यह 200 लोगों का नेक्सस पहले ही काट लेता। बचे रुपयों से कंपनी बड़ा लाभ अपना बचाकर पे आउट व अन्य खर्चे देती। यह रकम ई-वॉलेट व कैश में होती।
 :- ये गैंग सीएमडी को बताता कि बैलेंस-शीट, रिटर्न फाइल और अन्य टैक्स समय पर दे। लोग जोड़ने पर वेतन व रॉयल्टी दी जाती है। रॉयल्टी पर 10% टीडीएस है तो इसे कागजातों में कमीशन दिखाते हैं।
 :- यह खेल 8 से 10 महीन तक चलता। कानूनी शिकंजा बढ़ने पर या पकड़े जाने पर ये टैक्स का चुपचाप भुगतान करते हैं।
:- किन्हीं स्थानों पर कंपनी के पे आउट आने बंद हो जाते हैं। इस दौरान यह नेक्सस दूसरी कंपनी में शिफ्ट होने का प्लान बना चुका होता है। रेड होते ही ये 200 लोग भूमिगत हो जाते हैं।
 :-कंपनी के दफ्तर और खाते सीज होने की कार्रवाई के बाद लोकल डिस्ट्रीब्यूटर जिन्होंने स्थानीय लोगों के करोड़ों रुपये निवेश कराए हैं, वह सक्रिय हो जाते हैं। बंद दफ्तर के सामने पहुंचकर विभिन्न राज्यों से आए लोगों से कहते हैं कि चिंता न करें किसी को पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया हैं। सोशल मीडिया पर वीडियो बनाकर डाले जाएंगे।
 :- लोग लोकल डिस्ट्रीब्यूटरों से रुपये वापस मांगते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर कहते हैं कि सरकार ने गलत किया है, हम सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। इसके बाद यह लोकल डिस्ट्रीब्यूटर 200 टॉप प्रमोटर्स को फोन मिलाते हैं। प्रमोटर्स कहते हैं कि हमें भी नुकसान हुआ है। वे एक नई कंपनी से जुड़े हैं। फ्लाइट की टिकट भेजते हैं, वहां आ जाओ। डिस्ट्रीब्यूटर को लोगों का कर्ज चुकाना होता है। ये 200 टॉप प्रमोटर्स की टीम इन डिस्ट्रीब्यूटरों के साथ अब वेतन रॉयल्टी के साथ कुल टर्नओवर का 10 प्रतिशत देने का भी वादा करते हैं। डिस्ट्रीब्यूटरों के जुड़ते ही रुपये आने लग जाते हैं। इसमें से पुरानी कंपनी के कुछ लोगों का पैसा वापस हो जाता है और कुछ का नहीं होता। और फिर एक नया फ्रॉड चालू हो जाता है।
फ्रॉड से बचने को लर्निंग :- एमएलएम का बिजनेस प्रोडक्ट पर आधारित होना चाहिए, जो आपको बड़ा रिटर्न करने का दावा कर रहा है। समझिए कुछ गड़बड़ है।


मंगलवार, जून 12, 2018

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी सड़क से बदल रही किस्मत

नई सड़कें : हादसे, मौका और मुसीबत भी
सड़क से बदल रही किस्मत
केजीपी एक्सप्रेस वे देश में अपनी तरह का पहला ऐसा नेशनल हाईवे होगा, जो हरित एक्सप्रेस कहाएगा। साथ ही इसमें सौर ऊर्जा संचालित एलईडी लाइटें होंगी। देश का पहला ड्रिप सिचाई वाला हाईवे होगा। इसके निर्माण से आसपास के क्षेत्र की तस्वीर बदल रही है। सड़क किनारे जमीन महंगी हो रही हैं, नए निर्माण होने जा रहे हैं, गांवों का विस्तारीकरण होगा। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ने की उम्मीद है। व्यापार-कारोबार में बढ़ोत्तरी होगी। इसके सफर पर यह जानने की कोशिश की कि इसने लोगों के जीवन स्तर को कैसे प्रभावित किया है।

हाइवे से ठीक नीचे 15 सौ लोगों की आबादी का एक गांव है, मावी कलां। यहां पर खपरैल से बनी छोटी-छोटी झाेपड़ियां, इनमें जमा किया जा रहा है प्याज। 12वीं पास अनीश चंद महिला मजदूरों को लेकर प्याज साफ कराकर जमा करा रहा है। कहता है जब भाव आसमान छुएंगे तो ही वो इन्हें बेचेगा। अनीश तो अपने पिता के काम में हाथ बंटा रहा है। उसका सपना आर्मी में भर्ती होने का है, जिसकी वो तैयारी कर रहा है। एक्सप्रेस वे के निर्माण पर जरा कटु लहजे में कहता है कि अभी तो ये पूरा बना नहीं है तो कितनी जिंदगियां निगल गया है। आज भी एक हादसा हुआ है। कल पता नहीं और कितनी जाने ले लेगा। बकौल अनीश इस एक्सप्रेस वे के निर्माण से उनके गांव की तस्वीर में कोई फर्क नहीं आया है।

बुजुर्ग सत्यवीर ने बताया कि इस सड़क ने उसकी रोज़ी रोटी भी ठप कर रखी है। वो इस उम्र में मेहनत नहीं कर सकता, इसलिए खेरड़ा गांव के पुल के नीचे आकर खरबूजों की रेहड़ी लगाता है, जिससे करीब 100 रुपए ही कमा पाता है। हालांकि उसको उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कमाई बढ़ेगी।
खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे
कृष्ण कुमार कहते हैं कि नई सड़क बनने के बाद खेतीबाड़ी अब बची नहीं। जमीन सड़क में समा गई। यूपी में किसानों को करोड़ों का मुआवजा मिला, जबकि हरियाणा में लाखों भी बमुश्किल दिए गए। उनकी कमाई आधी रह गई है। सड़कें बनने से आसपास हरियाली बची नहीं। वहीं गांव 25 फुट नीचे हो गए हैं। खेतों से काटकर मिट्टी यहां भरी गई। इसके किनारे जाली की बाड़ लगा दी है। सड़क में आना जाना दो हिस्सों में बंट गया है। इससे यहां ठहराव खत्म हो गया है। नतीजतन कोई दुकानदारी की संभावना भी नहीं बची। उनकी एक और शिकायत है कि इन चौड़ी तेज रफ्तार सड़कों से दुर्घटनाएं भी बढ़ गई हैं, जिसकी वजह से लोग अब सड़क पार करने से भी डरते हैं। उनका कहना है कि हो सकता है कि एक्सप्रेस वे ने कुछ लोगों को बहुत फायदा पहुंचाया हो, लेकिन वे इसकी वजह से हाशिए पर जरूर चले गए हैं.
कहीं और की लगती हैं ये सड़क
सोनीपत से निकलकर जैसे ही कुंडली के राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचे, तो अचानक से यूं लगा कि जैसे-कि अमेरिका या इंग्लैंड के किसी इलाके में आ गए हों। ये सड़कें भारत को बहुत दूर ले जाने के लिए बनी हैं, लेकिन लोगों को उन पर चलने के काबिल भी बनाना होगा।

-----इतिहास के पन्नों से-------
जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी की चर्चा जरूर होती है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था, जिसने भारत के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ा था। सड़क किनारे पेड़, सराय, मील के पत्थर और डाक वितरण प्रणाली का विकास आदि ऐसी अवधारणाएं थीं जो न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के कई हिस्सों के लिए नई थीं।

पहला ड्रिप सिंचाई एक्सप्रेस वे : यह भारत का पहला ड्रिप सिंचाई वाला एक्सप्रेस वे है। जिसमें दोनों लेन के मध्य जो पौधे लगाए गए हैं उनके लिए ड्रिप सिंचाई सुविधा रखी गई है।

टावरनुमा टोल प्लाजा : केजीपी पर जो टोल प्लाजा बन रहा है वह दूर से देखने में टावरनुमा है। इसका तरह का टोल प्लाजा पहले किसी एक्सप्रेस वे पर नहीं बना है। यह पूरी तरह लोहे का है और दोनों लेन के बीच में प्लाजा है जिस पर तीन फ्लोर बनाए गए हैं। जिस पर करीब 25 करोड़ की लागत आई है, जबकि सामान्य प्लाजा 2 करोड़ में बनता है।
यमुना एक्सप्रेस वे की तर्ज पर टोल लगेगा। जिसके टेंडर होंगे फिर रेट तय होंगे।

सोलर वे : यह हाइवे पूरी तरह सोलर से कनेक्ट हैं। सभी लाइटें सोलर से ही चलेंगी। जिसके लिए एंट्री पर ही 250 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। जो देखने में खुद भी एक हाइवे जैसा ही प्रतीत हो रहा है। इसके बाद हाइवे पर 6 पैकेज में करीब 200 जगह पर सोलर प्वाइंट बनाए गए हैं।

500 दिन में निर्माण : सद्भाव के प्रोजेक्ट मैनेजर वी के देसाई ने बताया कि 2016 के बाद जब इसका दोबारा निर्माण शुरू हुआ तो उस समय सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई का डेडलाइन दी थी। मई 2016 में शुर हुआ लेकिन 8 महीने किसानों के विवाद के चलते काम बंद रहा। अन्य कार्यों विवादों आदि के कारण भी करीब 200 दिन कार्य नहीं हुआ। केवल 500 दिन में इसका काम पूरा किया गया है।

2 हजार टन का है ओवरब्रिज : खेखड़ा पर जो रेलवे ओवरब्रिज बन रहा है वो करीब 2 हजार टन लोहे का बना है। जिसकी एक साइड की लंबाई 70 मीटर और चौड़ाई 22 मीटर है। इसके नीचे कोई पिलर नहीं रहेगा। इस तरह का यह पहला ओवरब्रिज है।

हाइवे पर होंगे भारत दर्शन :

यह देश का पहला ऐसा एक्सप्रेस वे होगा जिस पर चलते हुए छुट्टी मनाने जैसी फिलिंग आएगी और भारत देश का मौका मिलेगा। इसके दोनों किनारों पर जगह-जगह देश के करीब 20 प्रसिद्ध स्मारकों के छोटे डेमो रखे गए हैं। जिसमें कहीं गेटवे ऑफ इंडिया तो कहीं इंडिया गेट और अशोक चक्र से लेकर कुतुब मीनार आदि के डेमो सड़क किनारे बनाए गए हैं जो काफी भव्य दिखते हैं।


केजीपी के बारे में वो सब जो शायद कुछ ही लोग जानते हैं -

आंकड़ों में एक्सप्रेस वे : मेजर ब्रिज 4 हैं, जिसमें यमुना नदी पर, हिंडन नदी पर, आगरा कैनाल और खेखड़ा ओवरब्रिज।

छोटे ब्रिज : 45

रेलवे ब्रिज : 6

फ्लाईओवर : 5

इंटरचेंज : 9

अंडरपास : 55

छोटे अंडरपास : 152

कलवर्टर्स : 113

वे साइड एमीनिटीज : 2

कुल लंबाई : 135 किलोमीटर
2006 में शुरू हुई थी प्लानिंग :
हरियाणा के कुंडली, पलवल और दिल्ली के गाजियाबाद को जोड़ने व दिल्ली को ट्रैफिक की समस्या से निजात दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बाहर रिंग रोड बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे की प्लानिंग 2006 में शुरू हुई थी। यह एक्सप्रेस-वे इसलिए बनाया है कि हरियाणा से यूपी आने-जाने वाले भारी वाहन दिल्ली में न घुसें। अभी इनके दिल्ली से गुजरने पर शहर में ट्रैफिक का बोझ बढ़ता है।

क्या है पूरा प्रोजेक्ट?
2006 में बनना शुरू हुए 271 किमी लंबे इस एक्सप्रेस वे के दो हिस्से हैं। पहला, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से गाजियाबाद होते हुए पलवल जाएगा। दूसरा, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे जो कुंडली से मानेसर हाेते हुए पलवल को जोड़ेगा।

क्या होगा फायदा?
एक्सप्रेस-वे पूरे होने से हरियाणा का एक प्रमुख हिस्सा पलवल प्रदेश के अन्य हिस्सों से कनेक्ट हो पाएगा। वहीं दिल्ली से होकर दूसरे राज्यों तक जाने वाले 80% वाहन सीधे इससे होकर जा सकेंगे। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल या जम्मू-कश्मीर तक जाने वालों को दिल्ली के ट्रैफिक में नहीं फंसना पड़ेगा। वहीं वायु-ध्वनि और धूल से होने वाले प्रदूषण में 25% तक की कमी आएगी।

कब पूरा होना था?
दोनों ओर के एक्सप्रेस-वे 2009 में बन जाने थे। बाद में कॉमनवेल्थ गेम के पहले 2010 में इन्हें बनाने की डेड लाइन तय की गई। इसके बाद भी तारीखें बढ़ती गईं। अब 2018 में ये शुरू हो रहे हैं, यानी नौ साल लेट हो गया। लेकिन दूसरा पहलु यह है कि इस पर भाजपा सरकार आने के बाद 201 में दोबारा कार्य शुरू हुआ था और 18 जुलाई 2018 में निर्माण पूरा करने की डेडलाइन खुद सुप्रीम कोर्ट ने रखी थी जबकि उसमें अभी समय है।

अभी शुरू किया तो क्या है खतरा : एक्सपर्ट के अनुसार हाइवे का काम पूरा होने में अभी समय है। बिना सही कनेक्टिविटी के शुरू करने में काफी खतरे हैं। इससे रोज सड़क पर दुर्घटनाएं होंगी। फिनिशिंग का कार्य भी काफी शेष है और बारिश आदि आने पर काफी परेशानियां इसमें आ सकती हैं। दुर्घटनाएं होंगी और लोगों की जान अगर इसकी वजह से गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

300 साल से मेहमान को चिमटे से उठाकर देते हैं बीड़ी

22 साल से कैथल के मालखेड़ी नहीं पीते बीड़ी-सिगरेट, बुजुर्ग हुक्का भी नहीं गुड़गुड़ाते, रिश्तेदार को भी धूम्रपान करने से रोकते हैं ग्रामीण
देसां म्हं देस हरियाणा, जैसा नाम वैसी ही अजब-गजब संस्कृति और रहन-सहन है यहां के गांवों की। गांवों की अपनी खासियत, रोचक किस्से और परंपरा है। आज हम ऐसे ही दो गांवों की कहानी आपको बता रहे हैं, कैथल का मालखेड़ी और जींद का खेड़ीबुल्ला। इन दोनों गांवों में लोग धूम्रपान नहीं करते।
जट सिख बाहुल्य वाला खेड़ीबुल्ला गांव धूम्रपान न करने के कारण दूसरे गांवों से अलग है। प्रदेश में जहां हुक्का-पानी देना सबसे बड़ी मेहमानवाजी समझी जाती है। अगर इस गांव के लोगों को मेहमान को बीड़ी देनी पड़ जाए तो उसे चिमटे से उठाकर देते हैं। इस रिवाज के चलते अधिकतर मेहमान गांव में आने के बाद बीड़ी या हुक्का पीने से गुरेज ही करते हैं। 300 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी कायम है। कुछ इसी तरह कैथल से 20 किलोमीटर दूर खनौरी रोड पर स्थित मालखेड़ी गांव में पिछले 22 साल से बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते। बुजुर्गों ने भी हुक्का गुड़गुड़ाना बंद किया हुआ है।

डॉक्टर ने मालखेड़ी वालों को बताए थे धूम्रपान के नुकसान
मालखेड़ी में प्राइवेट पॉलीटेक्निकल कॉलेज में प्रोफेसर दर्शन सिंह ने बताया कि ये उनदिनों की बात जब वे छोटे थे, तब बीड़ी-सिगरेट का प्रचलन शुरू ही हुआ था। बुजुर्गों ने इसका सेवन किया तो उन्हें तकलीफ हुई। डॉक्टरों ने बीड़ी-सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। फिर गांव ने फैसला लिया कि अब गांव में धूम्रपान नहीं होगा। बीड़ी-सिगरेट तो बंद हुई, इसके साथ ही हुक्का भी बंद कर दिया गया। 22 साल से ये फैसला कायम है। गांव में कोई रिश्तेदार धूम्रपान करता है तो उससे पहले क्षमा मांगकर बीड़ी-सिगरेट न पीने की अपील की जाती है। मालखेड़ी गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी है। हर बिरादरी के लोगों के चौपाल बने हुए हैं। जाट समाज की दो चौपाल व कश्यप, वाल्मीकि, हरिजन, ब्राह्मण समाज की एक-एक चौपाल हैं। किसी भी बात को गांव में ही चर्चा करके हल किया जाता है। 12वीं पास सरपंच पूनम ने बताया कि हमें गर्व है कि ऐसे गांव में रह रहे हैं, जहां कोई धूम्रपान नहीं करता है।

खेड़ीबुल्ला :गुरुद्वारा बना तो हुक्का भी हुआ बंद :
सदियों पहले खेड़ीबुल्ला गांव बसाने वाले गुरदत सिंह (कैथल की रियासत के राजा उदयसिंह के वजीर) ने धूम्रपान न करने जो पहल की थी, अब वह परंपरा बन गई है। गांव के युवा भी इसे बखूबी निभा रहे हैं। 1100 की आबादी वाले खेड़ीबुल्ला गांव में किसी भी मौके पर कोई भी सगा संबंधी या रिश्तेदार किसी के घर आता है तो उसकी खातिरदारी में ग्रामीण कभी भी हुक्का-बीड़ी या सिगरेट नहीं देते। गांव की एक दुकान पर बीड़ी-सिगरेट तो उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण या दुकानदार उन्हें हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव के सबसे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कभी बारात की खातिरदारी हुक्के से नहीं की। कई ग्रामीणों की उम्र 90 से ऊपर है। ग्रामीणों का मानना है कि शायद हुक्का-बीड़ी पीते तो इतने साल कभी नहीं जीते। बीड़ी-सिगरेट या हुक्का न पीने का किसी पर कोई दबाव नहीं है। पंचायत या ग्रामीणों ने इसके लिए कोई भी नियम-कायदा नहीं बनाया है, सब अपनी मर्जी से इस परंपरा को निभा रहे हैं। सरपंच अंग्रेज सिंह ने बताया कि पहले बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए अलग से हुक्का होता था। 15 साल पहले बने गुरुद्वारे के बाद गांव में रखे इस हुक्के को भी हटा दिया गया। अब केवल एक दुकान पर बीड़ी ही बिकती है, उसे भी ग्रामीण हाथ नहीं लगाते बल्कि चिमटे से उठाकर देते हैं। गांव में सबसे ज्यादा संख्या में किसान है तो एक बड़ी संख्या में सेना में भी भर्ती हैं। अधिकतर गांवों के युवा सेना को ही अपना भविष्य के रूप में चुनते हैं।

दूरदर्शन का उद्भव और विकास


आधुनिक जनसंचार माध्यमों में टेलीविजन का महत्वपूर्ण स्थान है टेलीविजन के विकास के फलस्वरुप सूचना विस्फोट हुआ है टेलीविजन क्या दर्जनों चैनल हैं जिनमें अंतरराष्ट्रीय चैनल भी शामिल हैं इन चैनलों द्वारा विविध कार्यक्रम का सीधा प्रसारण होता है आम आदमी के सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक टेलीविजन पर लगातार कार्यक्रम चलते रहते हैं टेलीविजन दिन के फिल्म प्रसारण तथा क्रिकेट आदि खेलों का सीधा प्रसारण आम आदमी को सोने और जागने के समय को नियंत्रित किया है आज टेलीविजन विकास की सामग्री ना होकर दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता बन गया है
रेडियो की भांति टेलीविजन का आविष्कार की पश्चिमी देशों हुआ 1920 के आसपास पश्चिमी देशों में मूक फिल्मों का प्रचलन काफी बढ़ गया था तदंतर उसमें विशेषता बढ़ाने हेतु चित्र को ध्वनि देने की खोज आरंभ हुई भारत में टेलीविजन की शुरुआत 15 अगस्त 1959 से हुई यूनेस्को की सहायता से आरंभ उस पहले प्रसार पर टिप्पणी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवालाल नेहरु ने कहा था टेलीविजन मनोरंजन शिक्षा व सूचना का माध्यम और विकास का प्रेरक है जो देश की जनता और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हितकर साबित होगा नेहरु जी की कल्पना 15 अगस्त 1965 को साकार हुई टेलीविजन के 1 घंटे के नियमित प्रसारण से लोगों को नई दिशा मिली भारत में टेलीविजन के माध्यम से संचार की दुनिया में अपना वर्चस्व कायम किया भारत में सेटेलाइट इंस्ट्रक्शन टेलीविजन एक्सपेरिमेंट यानी साइट से टेलीविजन को नया आयाम प्राप्त हुआ यह सन 1975 में उड़ीसा मध्य प्रदेश बिहार आंध्र प्रदेश कर्नाटक और राजस्थान 6 प्रदेशों में स्थापित किए गए कार्यक्रम प्रसारित करने का प्रयोग किया  गया इनमें राशि वालों को उपग्रह के जरिए शैक्षणिक कार्यक्रम प्रसारित करने का विश्व में पहला प्रयोग किया गया इन रिसीवर केंद्रों के माध्यम से टेलीविज़न इन प्रदेशों के सुदूरवर्ती गांव तक अपना कार्यक्रम पहुंचाने लगा आज दूरदर्शन ने हिंदी भाषा को अनमोल बनाया है तथा इसके क्षेत्र को विस्तृत किया है हिंदी भाषा को अहिंदी भाषी दूरदराज के गांव तक पहुंचाने में दूरदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है दूरदर्शन के प्रचार प्रसार के लिए केंद्रीय सरकार ने सन 1959 में स्कूल कॉलेज व स्थानीय निकायों को टेलीविजन सेट प्रदान किए सन 1982 में एशियाई खेलों के प्रकार टेलीविजन का महत्व डा एशियाड खेलों के कारण ही केंद्र सरकार ने सौ किलो वाट ट्रांसमीटर आवंटित कर देश के विभिन्न महानगर में स्थापित किए 1985 के बाद दूरदर्शन के विस्तार को नई गति मिली तथा दूरदर्शन घर घर पहुंचा अंतिम दशक के प्रारंभ में विदेशी समाचार एजेंसी सीआईए ने अमेरिकी इराक युद्ध का रोमांचक प्रसारण दुनिया के लोगों के साथ सामान्य भारतीयों के सामने एहसास कराया कि सरकार के दूरदर्शन नेटवर्क करीब 200 विदेशी कार्यक्रम के साथ जुड़े हुए हैं दूरदर्शन को शिक्षा सूचना और मनोरंजन के माध्यम के रूप में विकसित करके सामाजिक परिवर्तन में इसकी भूमिका स्पष्ट दिखती है देश की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को देखते पशुपालन डेरी बागवानी आदि को बढ़ावा देने और इसके विकास को प्रेरित किया है लोगों में अंधविश्वास की धारणा को खत्म कर जन सामान्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जागरुक किया है कला संस्कृति और साहित्य के प्रति व्यक्ति के प्रति जनता में जागरूकता पैदा की है
दूरदर्शन के कार्यक्रम की सेवाएं तीन भागों में बटी हुई है राष्ट्रीय क्षेत्रीय और स्थानीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में राष्ट्र की संस्कृति को प्रसारित किया जाता है केंद्रित किया जाता है साथ ही समाचार समसामयिक गतिविधियां सांस्कृतिक पत्रिका विज्ञान पत्रिका धारावाहिक संगीत नृत्य नाटक फीचर फिल्म में आदि प्रसारित की जाती है क्षेत्रीय कार्यक्रम राज्यों की राजधानी से प्रसारित होते चीन की भाषा उस राज्य की भाषा होती है और उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति को दूरदर्शन के माध्यम से प्रदर्शित और प्रसारित किया जाता है इसके अतिरिक्त स्थानीय कार्यक्रम कुछ विशेष समस्याओं के और उनका समाधान निकालने का प्रयास करते हैं ऐसा अनुमान है कि 600 लाख घरों में इस समय टेलीविजन सेट है जिसके द्वारा 30 करोड़ जनता दूरदर्शन के कार्यक्रम बैठ कर देखती है गांव में सामुदायिक टेलीविजन के प्रावधान से अनुमान 45 करोड़ जनता का समय लगाया जाता है इतनी बड़ी आबादी को एक सूत्र में बांधने का अनुपम संगठन दूरदर्शन अपने उद्देश्य सत्यम शिवम सुंदरम को चित्रित करने का प्रयास करता है।
नोट : ये तमाम पोस्ट पत्रकारिता के छात्रों की सुविधा के लिए दी गई हैं

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार

यहां खाकी बदनाम :- नशा तस्करों से मोटी रकम वसूलने वाले सहायक थानेदार और सिपाही नामजद, दोनों फरार एसटीएफ की कार्रवाई में आरोपियों से...