पंजाब की इकलौती ओपन जेल पटियाला जिले के नाभा शहर में सत्तर के दशक में बनाई गई थी, इसमें कैदी बिना किसी पाबंदी के एक किसान की जिंदगी कैसे बिताते हैं। कैसे यू खूंखार कैदी अब अपना पिछला बुरा कृत्य बदलकर एक नई पाजीटिव लाइफ जीने की कोशिश कर रहे हैं। यहीं नहीं आने वाले दिनों में कैसे इन कैदियाें द्वारा जेल में उगाई आर्गेनिक सब्जियां आप खा सकेंगे इसकी एक रिपोर्ट चंदन स्वप्निल और राकेश शर्मा।
1957 में वी शांताराम निर्देिशत एक फिल्म रिलीज हुई थी, दो आंखें बारह हाथ। फिल्म का सार यही था छह खूंखार कैदी की जिंदगी में सुधार लाना। मेहनत, ईमानदारी और लगन से हर कसूर को सुधार कर एक अच्छी जिंदगी जी जा सकती है। ये मूवी अोपन जेल के कन्सेप्ट से प्रभावित थी। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक आदेश जारी किया है कि कैदियों की दशा, दिशा आैर जिंदगी में सुधार के मद्देनजर हर जिले में एक ओपन जेल बनाई जाए, ताकि अच्छा आचरण और व्यवहार करने वाले सजायाफ्ता कैदी अपनी सजा की अवधि के दौरान बाहरी सामाजिक जिंदगी भी जी सके। ऐसे में जेलों में सुधार की संभावनाएं ज्यादा से ज्यादा तलाशी जा सके।
राज्य की इकलौती ओपन जेल खेतीबाड़ी सुधार घर
पंजाब में एकमात्र ओपन जेल नाभा में है। जो सत्तर के दशक में बनाई गई थी। 66 एकड़ में फैली इस जेल को खुली खेतीबाड़ी सुधार घर के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर 78 कैदियों के रहने की व्यवस्था की गई है। मौजूदा जेल रिकार्ड के मुताबिक 84 कैदी इस जेल की कुल तीन बैरक में रहते है। यानी दो आंखें और 168 हाथ। क्षमता से ज्यादा कैदियों के रहने की वजह के चलते समय रहते बैरकों में स्पेस को बढ़ाया गया है। इस जेल में पंजाब के लगभग सभी जिलों से सजायाफ्ता कैदी रह रहे है। इनमे ज्यादातर उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं। जेल गुड बुक में शुमार इन कैदियों की सुरक्षा के लिए जेल अधीक्षक के अलावा पांच हवलदार, पांच कांस्टेबल रैंक और तीन मेडिकल स्टाफ तैनात रहता है।
खुली खेतीबाड़ी जेल में कैदियों को भेजने की भी एक प्रक्रिया अपनायी जाती है, जिसके लिए सरकार की तरफ से बनाई कमेटी यहां भेजने के लिए कैदियों का चुनाव करती है। इसमे मुख्य तौर पर पिछले समय से चल रही सजा के दौरान अच्छा आचरण और साफ़ सुथरा जेल रिकार्ड होना जरूरी है।
कैदियों की दिनचर्या ही उनका टास्क
खुली खेतीबाड़ी जेल में स्टाफ आफिस, सुपरिंटेंडेंट आफिस और कैदियों की बैरकों के अलावा खेतीबाड़ी करने लायक जमीन है। जहां बगीचा अफसर गुरमेल सिंह की देख रेख में फिलहाल दस एकड़ में गेहूं की फसल की खेती की जा रही है, बाकी काफी जमीन पर हरे चारे के अलावा सीजन की सब्जियों की खेती की जा रही है। इस जेल के कैदी एक किसान की ही तरह रोजाना सुबह जल्दी उठ जाते है और फिर फसल की बुआई, कटाई, सब्जियां तोड़ना, हरा चारा काटकर लोडिंग करना इन सबके लिए जेल की तरफ से कोई ड्यूटी टाइमिंग की तरह नहीं किया जाता, बल्कि कब, क्या व कैसे करना है कैदी खुद फसल के हिसाब से तय करते हैं, जोकि इनकी दिनचर्या का टास्क है। हाल की घड़ी में ओपन जेल से रोजाना एक ट्रक करीबन सौ क्विंटल हरा चारा बाजार भाव से बेचा जाता है।
कैदियों की उगाई आर्गेनिक सब्जी कम दाम पर बाजार में बिकेगी
टारगेट , बाजार में सस्ती सब्जी दिलाना
फिलहाल सरकार की तरफ से जेल के लिए बजट जारी होता है। कुछेक सब्जियां वगैरह जेल में ही उगाई जाती है, लेकिन मसाले और कई तरह का सामान बाजार से खरीदा जाता है। उसको लेकर जेल के अंदर ही इस नए साल के पहले जनवरी महीने से सब्जियों और हल्दी, मिर्च और कई तरह की खेती करने की योजना बनाई गयी है। जिससे जेल की सब्जियों की जरूरत पूरी होना तो छोटी बात होगी। इसके अलावा मसाले भी जेल की जमीन पर उगाने शुरू किये जायेंगे। जिससे सब्जियों की बड़े स्तर पर पैदावार की जाएगी, जिसे बाजार में रिटेल भाव से कम दाम पर आमजन को मुहैया कराई जाएगी ही। सब्जियां कैदियों के खाने के लिए रखने के अलावा दो कैदी जेल के बाहर एक काउंटर लगाकर बाजार भाव से कम दाम पर सीजन के अनुसार सब्जियां बेचते हैं। इस जेल में जो सब्जी उगाई जा रही है, उसमें किसी भी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। ये आर्गेनिक सब्जियां जल्द ही इस जेल के काउंटर से बाहर निकलकर ओपन मार्केट में बेची जाएंगी, वो भी बाजार भाव से सस्ती होंगी। साथ ही इस जेल को कमाऊ जेल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। सरकार का बजट का बोझ भी अपने आप कम हो जाएगा और कैदी भी इस काम को लेकर उत्साहित है और पूरा साथ देने को राजी है।
ओपन जेल के सुपरिंटेंडेंट सुच्चा सिंह - अच्छी सोच, बेहतर प्लानिंग
जेल सुपरिटेंडेंट सुच्चा सिंह ने कुछ दिन पहले ही जेल का चार्ज संभाला है। इनका रिकार्ड बेदाग और ईमानदार रहा है, 20 साल की सर्विस में 15 ट्रांसफर। इतने तबादलों पर कहते हैं कि जिस जेल में तैनाती हुई, वहां जरूरत के मुताबिक सुधार करते चले गये। अपना काम खत्म होने पर तबादला करा लेते ताकि अगली जेल में सुधार को निकलें। जेल का चार्ज संभालते ही पहला काम ज्यादातर अधिकारियों की तरह बजाए अपने आफिस को सजाने के इन्होंने कैदियों की बैरकों में उनके रहने की जगह और बाथरूम की रिपेयर शुरू करवाई और फिर सब्जियों और दूसरी खेती की तरफ काम शुरू किया।
जेल सुपरिटेंडेंट सुच्चा सिंह ने बताया की जेल में तैनाती होते सबसे पहले कैदियों के रहन-सहन की तरफ ध्यान देकर बैरकों और बाथरूम में कई तरह की रिपेयर का काम शुरू करवाया ताकि सुबह की पहली किरण से दिन की शुरुआत के वक्त और सांझ ढलने पर बैरक में लौटे कैदी किसी तरह की परेशानी ना झेलें। कई कैदियों में होड़ होती है कि उन्हें वीआईपी बैरक अलाट हो लेकिन वे जिन जेलों में भी तैनात रहे उन्होंने आम बैरक को ही वीआईपी बैरक में तब्दील कर दिया। इसी जनवरी महीने से जेल की खेतीबाड़ी लायक जमीन पर सब्जियों और दूसरे मसालों की खेती शुरू की जा रही है ताकि जेल के अंदर ही ज्यादा से ज्यादा पैदावार करके आमजन को बिना कीटनाशक दवा और स्प्रे रहित सब्जियां बाजार में मुहैया कराई जा सके। जेल की आमदन बढ़ेगी, जिसे जेल में कई सुधारों के लिए खर्च किया जा सकेगा।
कैदियों को कंट्रोल करने और बाकी कामों के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग के सवाल पर कहा कि रूटीन ट्रेंनिंग तो चलती है लेकिन कैदियों संग रहते हुए तजुर्बा सब सीखा देता है। एक परिवारिक मुखिया जैसे अंदाज में कहा कि इस जेल में बंद कैदी मेरी बाजू है। मेरा और कैदियों का बाप-बेटों और नाखून और मांस जैसा रिश्ता है। किसी बात पर किसी भी कैदी को डांट देता हूं तो एक बच्चे की तरह ही उसे भी शाम तक इंतजार रहता है कि उसे मनाया जायेगा और मैं शाम को एक बाप ही की तरह उन्हें प्यार से मनाता भी हूं.
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