पाक से आये शरणार्थियों के लिए महल के दरवाजे
खोले, खुद नंगे पैर और सिर ढककर लंगर छकाती थीं राजमाता
1967 में पटियाला सीट पर कांग्रेसी सांसद रहीं
14 सितंबर 1922 को मोहिंदर कौर का जन्म लुधियाना में हुआ था। उनके पिता हरचंद सिंह जेजी पटियाला रियासत प्रजा मंडल के मेंबर थे। जेजी सरदार सेवा ठीकरीवाला के सहयोगी व रिश्तेदार भी थे। हरचंद सिंह जेजी को स्टेट से निकाल दिया गया था। जेजी यहां से लाहौर चले गये। मोहिंदर कौर ने लाहौर से पढ़ाई की थी। जेजी की सुलह बाद में महाराजा के परिवार से हो गई। सुलह के बाद अगस्त 1938 में 16 साल की उम्र में राजमाता मोहिंदर कौर की शादी महाराजा यादविंदर सिंह से हुई। राजमाता मोहिंदर कौर ने साल 1939 में पहली बेटी हेमिंदर कौर (नटवर सिंह की धर्मपत्नी) को जन्म दिया। इसके बाद बेटी रूपिंदर कौर का जन्म हुआ। कैप्टन अमरिंदर का जन्म 1942 में और राजा मालविंदर सिंह का जन्म 1944 में हुआ। इतिहासकार कुलबंत ग्रेवाल ने बताया कि राजमाता मोहिंदर कौर इतनी बरकत वाली औरत थी कि इन्होंने सारा महल व परिवार संभालकर एक मुट्ठी में करके रखा था। इन्हें अपने शाही शहर पटियाला से बेपनाह मोहब्बत थी और गरीब परवर थी। आज इन्हीं के नक्शेकदम इनकी बहू परनीत कौर भी चल रही हैं। ग्रेवाल बताते हैं कि मोहिंदर कौर ने पंजाब स्टेट में पाकिस्तान से आये शरणार्थियों के लिए शाही महल के अपने दरवाजे खोल दिये। ये खुद लंगर छकाती थीं। इन लोगों की सेवा राजमाता ने नंगे पैर और सिर ढककर की। मेडिकल कैंपों की निगरानी उन्होंने खुद की। वे इन शरणार्थियों के दुख में इस कदर शामिल हुई कि उन्हें दुकानें दिलाई और उनका कारोबार शुरू कराया। बहुत ही धार्मिक वृत्ति की महिला थीं। लोगों का दुख दर्द इनसे देखा न जाता था। शाही परिवार से जुड़ी होने के बावजूद राजमाता मोहिंदर कौर ने लंबे समय तक समाज सेवा की।
सियासी करिअर : इमरजेंसी से कांग्रेस
छोड़ जनता पार्टी से जुड़ी
ग्रेवाल ने बताया कि जुलाई 1948
में देश की बाकी रियासतों के साथ पटियाला रियासत का भी मर्जर कर
दिया गया तो बदलाव के उस दौर में भी राजमाता ने कई अहम काम किए। मर्जर के बाद
पटियाला के साथ कई अन्य रियासतों को मिलाकर पेप्सु (पटियाला एंड ईस्ट पंजाब
स्टेट्स यूनियन) बना दी गई थी और राजमाता के पति यानि महाराजा यादविंदर सिंह को
इसका राजप्रमुख बना दिया गया था। यादविंदर सिंह इस ओहदे पर साल 1956 तक रहे। साल 1964 में राजमाता मोहिंदर कौर ने
पॉलिटिक्स जॉइन की और वह कांग्रेस की ओर से राज्यसभा मेंबर
बनीं। 1967 में उन्होंने पटियाला सीट पर कांग्रेस की ओर से
लोकसभा चुनाव लड़ा और एमपी बनीं। 1974 में महाराज की मौत के बाद
राजमाता ने पॉलिटिक्स छोड़ने का मन बनाया, लेकिन 1977
में इमरजेंसी से नाराज होकर उन्होंने जनता पार्टी ज्वाइन कर ली। साल
1978 से 1984 तक वह जनता पार्टी की ओर से
राज्यसभा सदस्य रहीं। बाद में उन्होंने राजनीति छोड़ समाज
सेवा से जुड़ गईं।