जो बाेलता उसकी आंखें बांध कर बंदूक की बट से करते थे बर्बरता
1965 की लड़ाई में सीज फायर के बाद पाक सैनिकों ने बंदी बना लिया था दीपालपुर का रामस्वरूप, तीन महीने बाद हुई थी वतन वापसी
बंदूक के बट से छाती की टूटी हड्डी दिखाते आंतिल |
परिवार ने मान लिया था कि लड़ाई में शहीद हो गया, सरकार बता रही थी लापता, तीन महीने बाद घर आया तो पिता ने पूरे गांव में बांटे थे लड्डू
दीपालपुर गांव के 78 वर्षीय रामस्वरूप आंतिल के कंधो में भले ही आज युवाओं जैसा बल नहीं रहा हो, लेकिन आज भी जब बॉर्डर पर गोलियां चलने की खबर टीवी पर चलती है तो पूरी रात सो नहीं पाता। दिल में हलचल पैदा हो जाती है कि सरकार इजाजत दे तो बॉर्डर पर फिर से देश के लिए 1965 वाली हिम्मत व बहादुरी से लड़ाई लड़े। जब विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बनाया तो रामस्वरूप के दिमाग में पाकिस्तान की जेल में तीन महीने तक मिली दर्दनाक यातनाएं ताजा हो गई। रामस्वरूप आंतिल भी 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया था। वे 1978 में रिटायर हुए। रामस्वरूप आंतिल ने पाकिस्तान की जेल में मिले तीन महीने का दर्द सांझा किया।
भारतीय सेना की थर्ड बटालियन के सिपाही रामस्वरूप आंतिल ने बताया कि वह 1963 में सेना में भर्ती हुआ था। राष्ट्रपति भवन से उन्हें लड़ाई के लिए भेजा गया था। उन्होंने दुश्मन को हरा दिया था। भारत- पाकिस्तान की 1965 की लड़ाई समाप्त हो गई थी। सीज फायर घोषित हो गया था। हम युद्ध जीत चुके थे। दो सौ सैनिक राजस्थान के जैसलमेर बॉर्डर पर सादेवाला पोस्ट से घर आने की तैयारी कर रहे थे। अचानक से पाकिस्तान ने सीज फायर का उल्लघंन कर हमला कर दिया। हम सभी 200 सैनिक भी 40 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुस गए। हमारी टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा के अंदर थी, इस कारण दुश्मन ने चारों तरफ से घेर लिया। हमारे बहुत से सैनिक मार दिए गए। मैं अपने शहीद जवानों के शवों के बीच में लेट गया। पाकिस्तानी सैनिक जब शवों की जांच कर रहे थे तो इस दौरान उसे जिंदा पकड़ लिया गया। तीन दिन तक रहीमान खान पोस्ट पर रखा गया और उसके बाद रावलपिंडी जेल में भेज दिया गया। जेल में उनके साथ पशुओं जैसा बर्ताव किया।
हाथ- पैर बांधकर िदन में तीन बार पीटते थे पाक सैनिक, आंखों पर पट्टी बांधकर छाती में मारते थे बंदूक के बट
पाकिस्तानी जेल में मिली प्रताड़ना सुनाते हुए रामस्वरूप आंतिल भावुक हो गए। आंखों से आंसू टकपने लगे। पाकिस्तानी जेल में बंद अपने साथियों के साथ हुई बर्बरता की याद एक फिर ताजा हो गई। रामस्वरूप ने बताया कि हमारे सैनिकों को हाथ- पैर बांधकर दिन में तीन बार पीटा जाता था। भूखा- प्यासा रखा जाता था। दो दिन में डेढ़ रोटी खाने को दी जाती थी। पाक सैनिक कहते थे कि तुम्हारे लिए हमारे पास केवल नौ अंश आट्टा ही आता है। जब कोई और रोटी मांगता तो उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर छाती में बंदूक की बट मारी जाती।
पाक सैनिकों ने जी भरकर पीटा, लेकिन सेना की एक भी जानकारी नहीं दी
रमस्वरूप बताते हैं कि उन्हें पाक के सैनिकों ने जी भरकर पीटा, लेकिन उन्होंने अपनी सेना व सेना के मिशन की कोई जानकारी उन्हें नहीं दी। जब भी पाक सैनिक कुछ पूछते तो उन्हें गुमराह करने के लिए झूठ बोलता कि मैं तो अभी भर्ती हुआ था और ट्रेनिंग से ही सीधे लड़ाई में भेज दिया। भर्ती हुए भी तीन महीने नहीं हुए हैं। पाक सैनिक जब थक जाते थे तो उन्हें अधमरी हालत में छोड़कर चले जाते थे। वे रात भर तड़पते रहते थे।
तीन महीने तक विधवा बनकर रही पत्नी हरनंदी, दोनों नवजात बच्चों की भी हो गई मौत
रामस्वरूप आंतिल पाक की जेल में बंद था। परिवार ने उसे शहीद मान लिया। सरकार के पास भी काेई पुख्ता सूचना नहीं थी। इसलिए सरकार लापता ही मान रही थी। पिता श्रीलाल आंतिल ने भी बेटे को मृत समझकर सभी रस्म करा दी। पत्नी हरनंदी ने भी विधवा का जीवन जीना शुरू कर दिया। जब रामस्वरूप पाकिस्तानी सेना ने बंधक बनाया था तो वह दो बच्चों का पिता था। तीन महीने बाद जब घर आया तो बच्चों की भी बीमारी की वजह से मौत हो चुकी थी। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट चुका था। हरनंदी को मायके वाले अपने साथ ले जा रहे थे, लेकिन उसने जाने से इंकार कर दिया और पूरा जीवन अपने पति की याद में ही बीताने का कठोर संकल्प लिया। तीन महीने बाद अब रामस्वरूप घर आया तो परिवार व गांव में खुशी छा गई। पिता श्रीलाल ने ताे पूरे गांव में लड्डू बांटे।