पढ़ाई के दिनों में मुझे ऐसा कोई टीचर याद नहीं आता, जिन्हें मैं किसी अच्छी वजह से याद रखूं। शायद यही वजह है कि हमारे असम गु्रप के साथी आज उन शिक्षकों को मिलने भी नहीं जाते। कई स्कूलों में भटक-भटक कर पढ़ाई की। असम में अकेला था, पिताजी अपने काम पर सुबह निकल जाते और देर रात लौटते। कोई पढ़ाने वाला था, नहीं और सरकारी स्कूल में पढ़ाई कैसी और कितनी होती है सब जानते हैं। इसलिए ट्यूशन लेनी पड़ी। ८वीं की परीक्षा से ऐन पहले मैंने अपने स्कूल के हिंदी टीचर की ट्यूशन के नोट्स अपने दोस्त राकेश शर्मा को दे दिए, टीचर गुस्सा हो गए और कह दिया कि तुम ट्यूशन पढऩे मत आना। बाद में समझ आया कि वे ट्यूशन बच्चों को उनकी कमजोरी दूर करने और ज्ञान बांटने के मकसद से नहीं बिजनेस के मकसद से पढ़ाते हैं, आजकल वे हमारे उसी हाई स्कूल के पिं्रसिपल है, पता नहीं अब वे बच्चों का कैसा भविष्य संवार रहे होंगे। मेरा मानना है कि अगर कोई बच्चा आपके पास ट्यूशन लेने आ रहा है, इसका मतलब सीधे तौर पर यही है कि उसे घर में या तो कोई पढ़ाने वाला नहीं है या फिर वह अपनी कमजोरी पर विजय हासिल करना चाहता है। अफसोस हमारे समय में टीचर ट्यूशन को शुद्ध रूप से पैसा कमाने का जरिया समझते थे। बाद में मैंने एक मैथ्स टीचर से ट्यूशन रखी। ट्यूशन पढऩे ५ किलोमीटर पैदल जाता था। कभी-कभार हमें लोकल पैसेंजर कोयले के इंजन वाली का सहारा मिल जाता था। उस ट्रेन के गार्ड मेरे दोस्त राकेश शर्मा के पिताजी हुआ करते थे, वे हमें देखते ही ट्रेन में बिठा लेते थे। बिना टिकट हम सभी दोस्त उसी ट्रेन में अपना साइकिल और कुछ मेरे जैसे पैदल चढ़ जाते थे। फिर वो ट्रेन हमारे टीचर के घर से ठीक आधा किलोमीटर पहले रुकती थी। दरअसल यह ट्रेन वर्कशॉप के कर्मचारियों की सुविधा के लिए चलाई गई थी। खैर, परीक्षा के दिनों में मुझे एक सवाल दिक्कत दे रहा था और मुझे भरोसा था कि यह जरूर परीक्षा में आएगा। कल परीक्षा है और मैं अपने दोस्त गुरविंदर सिंह के साथ स्पेशली उसकी मोपेड पर सर के घर डांगतल गया। सर का मूड नहीं था, कहने लगे अरे बअुओ यह सवाल नहीं आएगा। हमें निराश होकर बिना समझे हीं लौटना पड़ा। अगले दिन वहीं सवाल परीक्षा में आया था, और उस वक्त मेरी क्या मन:स्थिति रही होगी समझ ही सकते हैं। खैर गुरविंदर ने किसी तरह आधा-अूधरा सवाल ही अटेंप्ट किया और मैं छोड़ चुका था। बहुत गुस्सा भी आया और बुरा भी लगा।
तरूण सर आपका आभारी, जिन्होंने इकनॉमिक्स का फलसफा समझाया
जब कॉलेज में गए थे, एक साल तो यूं ही इकनॉमिक्स बिना समझे ही निकल गया, लेकिन प्लस टू में मैंने बोंगाईगांव कॉलेज के लेक्चरार श्री तरूण बहादुर जी से इकनॉमिक्स की ट्यूशन ली। सर ने मेरी प्लस वन की रही इको की कमजोरी तो दूर की ही और प्लस टू की इको भी जबर्दस्त तरीके से समझाई कि इको में मुझे मजा आना लगा, हालांकि मैंने प्लस टू हिंदी हायर सेंकेंडरी स्कूल से ही की थी। लेकिन इकनॉमिक्स मैंने तरूण सर से ही समझा और नतीजा ये रहा कि जब रिजल्ट आया तो मेरे इकनॉमिक्स में ही सबसे ज्यादा नंबर थे। उस वक्त यह नहीं मालूम था कि कभी पत्रकार भी बनूंगा। खेैर, आज भी इको के इनफलेशन, मार्केट, बैंकिंग काफी काम आ रही है।
मेरे करिअर के गुरु
घर में दीदी नीलम शर्मा अंशु ने फ्रीलांस करना शुरू किया था। पत्रकार तो मैं फ्रीलांस था। जनसत्ता कोलकाता के समाचार संपादक श्री अमित प्रकाश जी, सबरंग के इंचार्ज श्री अरविंद चतुर्वेद जी की बदौलत पत्रकारिता में लिखने का क्रम शुरू हुआ। दीदी के साथ इनसे यदा-कदा छोटी मुलाकातों में जो समझ पाया कि पत्रकारिता समाज को बदलने का जबर्दस्त टूल है, बस इस पेशे की लत लग गई। जब कोलकाता में प्रभात खबर की लांचिंग होनी थी, असली ब्रेक मुझे श्री ओम प्रकाश अश्क जी ने तत्कालीन संपादक ने दिया। उन्होंने आंख मूंद कर इस नौजवान पर भरोसा जताया और मेरी प्रतिभा को तराशा। सही मायने में पत्रकारिता की एबीसीडी मैं अश्क भैय्या से ही सीख पाया। हम सभी प्यार से उन्हें भैय्या और बाबा बुलाते हैं। उन्होंने मेरे जैसे कई युवाओं को पत्रकारिता में मौका दिया। इसी बीच श्री हरिवंश जी के कोलकाता अल्प प्रवास के दौरान जो कुछ भी पत्रकारिता का मिशन उनसे सीख सका, उसकी अलख अनवरत जलाए रखी है। इस दौरान दादा(श्री दीपक रस्तोगी) जी प्रभात खबर से जुड़े। उन्होंने मुझे करियर ग्रोथ कैसे और किस तरह की जाती है समझाया। बस फिर क्या था निकल पड़ा एक और मंजिल की ओर। अमर उजाला जालंधर में संपादक श्री अकू श्रीवास्तव जी से प्रोफशनल व खोजपरक पत्रकारिता का फलसफा समझा। फिर दैनिक भास्कर से जुडऩा हुआ तो इसी ने तो मेरी करिअर की दिशा और दशा बदलकर रख दी। हॉर्ड हीटिंग जर्नलिज्म श्री निधीश त्यागी जी ने दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के तत्कालीन संपादक जी से सीखने को मिला। तत्कालीन पंजाब एडिटर श्री नवनीत गुर्जर जी ने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देकर मुझे निरंतर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। जबकि किसी खबर या हेडिंग को लेकर मैं कन्फयूज हुआ तो उन्हें सधिकार पीक ऑवर में डिस्टर्ब किया और नवनीत सर ने तत्काल मुझे समाधान सुझाया। पंजाब चुनाव के दौरान कमलेश किशोर सिंह सर से यही सीखा कि स्पेशल स्टोरीज को इनोवेशन के जरिए परफेक्शन के हाई लेवल तक कैसे पहुंचाते हैं। आज शिक्षक दिवस पर मैं आपको बतौर अपने गुरु को शत-शत नमन करता हूं।